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भारत का कार्बन बाज़ार: हरित संवृद्धि का उत्प्रेरक

  • 18 Sep 2023
  • 21 min read

यह एडिटोरियल 15/09/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘STRIKING A GREEN BALANCE’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत में कार्बन बाज़ारों के विकास और जलवायु परिवर्तन तथा कार्बन उत्सर्जन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने में उनकी भूमिका के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

कार्बन बाज़ार, क्योटो प्रोटोकॉल, ऊर्जा दक्षता ब्यूरो, भारतीय कार्बन बाज़ार (ICM), पेरिस समझौता, ग्रीनवाशिंगNDCs, GHG उत्सर्जन, कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना

मेन्स के लिये:

कार्बन बाज़ार: भारतीय कार्बन बाज़ार, लाभ, चुनौतियाँ और आगे की राह। 

जैसे-जैसे भारत अपनी आबादी की बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये अपनी अर्थव्यवस्था विकसित कर रहा है, देश को जलवायु परिवर्तन के परिणामों और कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने की संबद्ध आवश्यकता के कारण गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। 

ग्लोबल वार्मिंग (global warming) के प्रभाव की गंभीरता में वृद्धि के साथ ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम कर सकने वाले अभ्यासों को अपनाने की त्वरित आवश्यकता भी उत्पन्न हुई है। 

एक जीवंत कार्बन ट्रेडिंग नेटवर्क (carbon trading network) उन विभिन्न समाधानों में से एक है जिन्हें इस आपात स्थिति से निपटने के लिये अपनाया जा रहा है या जिन पर विचार किया जा रहा है। 

कार्बन बाज़ार (Carbon Markets):

  • परिचय: कार्बन बाज़ार कार्बन उत्सर्जन पर मूल्य आरोपित करने का एक साधन है; वे ऐसी व्यापार प्रणालियाँ स्थापित करते हैं जहाँ कार्बन क्रेडिट या अलाउंस (carbon credits or allowances) की खरीद-बिक्री की जा सकती है। 
    • कार्बन क्रेडिट एक प्रकार का व्यापार योग्य परमिट है, जो संयुक्त राष्ट्र (UN) के मानकों के अनुसार, वायुमंडल से हटाये गए, कम किये गए या पृथक किये गए एक टन कार्बन डाइऑक्साइड के समतुल्य होता है। 
    • कार्बन अलाउंस या सीमाएँ विभिन्न देशों या सरकारों द्वारा उनके उत्सर्जन कटौती लक्ष्य के अनुसार निर्धारित की जाती हैं। 
    • कार्बन व्यापार औपचारिक रूप से वर्ष 1997 में संयुक्त राष्ट्र के क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) के तहत शुरू हुआ। 
  • बाज़ार के प्रकार: वर्तमान में मोटे तौर पर दो प्रकार के कार्बन बाज़ार मौजूद हैं, यथा: 
    • स्वैच्छिक बाज़ार (Voluntary Markets): ऐसे बाज़ार जिनमें उत्सर्जक (emitters) एक टन CO2 या समकक्ष ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की भरपाई के लिये कार्बन क्रेडिट की खरीद करते हैं। 
      • ऐसे कार्बन क्रेडिट उन गतिविधियों द्वारा सृजित होते हैं जो वायु से CO2 को कम करते हैं, जैसे वनीकरण (afforestation)। 
      • स्वैच्छिक बाज़ार में, कोई कॉर्पोरेशन जो अपने अपरिहार्य ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन की भरपाई करना चाहता है, वह उत्सर्जन को कम करने, उसकी निर्मुक्ति, जब्ती या कैप्चरिंग या उत्सर्जन से परहेज करने वाली परियोजनाओं से संलग्न इकाई से कार्बन क्रेडिट की खरीद करता है। 
        • उदाहरण के लिये, विमानन क्षेत्र में विभिन्न एयरलाइंस अपने द्वारा संचालित उड़ानों के कार्बन फुटप्रिंट की भरपाई के लिये कार्बन क्रेडिट की खरीद कर सकते हैं। 
      • स्वैच्छिक बाज़ारों में, लोकप्रिय मानकों के अनुसार निजी फर्मों द्वारा क्रेडिट को सत्यापित किया जाता है। 
    • अनुपालन बाज़ार (Compliance Markets): वे राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और/या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रियान्वित नीतियों द्वारा स्थापित किये जाते हैं और आधिकारिक तौर पर विनियमित होते हैं। 
      • वर्तमान में अनुपालन बाज़ार मुख्यतः ‘कैप-एंड-ट्रेड’ (cap-and-trade) सिद्धांत के तहत संचालित हैं और ये यूरोपीय संघ (EU) में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। 

भारत में कार्बन बाज़ार की स्थिति  

  • भारत में, केंद्र सरकार एक राष्ट्रीय ढाँचा स्थापित कर भारतीय कार्बन बाज़ार (Indian Carbon Market- ICM) स्थापित करने की योजना पर कार्य कर रही है जो घरेलू अर्थव्यवस्था को डीकार्बोनाइज़ (decarbonise) करने में मदद करेगा। 
    • केंद्र सरकार द्वारा भारतीय कार्बन क्रेडिट योजना (Indian Carbon Credit Scheme), 2023 के लिये मसौदा रूपरेखा हाल ही में अधिसूचित की गई है। 
    • ऊर्जा मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency) को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ मिलकर कार्बन व्यापार योजना (Carbon Trading Scheme) विकसित करने का कार्य सौंपा गया है। 
  • ICM के निम्नलिखित लाभ होंगे: 
    • यह भारत को वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करने में मदद करेगा, जिससे इसकी वैश्विक जलवायु प्रतिबद्धताओं से संबंधित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान  (Nationally Determined Contributions- NDC) लक्ष्य की प्राप्ति होगी। 
      • ICM वाणिज्यिक एवं औद्योगिक खंडों को डीकार्बोनाइज़ करने में मदद करेगा (वर्ष 2070 तक ‘शुद्ध शून्य’ के भारत के लक्ष्य के अनुरूप)। 
    • देश के संभावित ऊर्जा क्षेत्रों को कवर कर सकने की वृहत गुंजाइश के कारण यह ऊर्जा संक्रमण को बढ़ावा देगा। 
      • GHG उत्सर्जन तीव्रता लक्ष्य और बेंचमार्क फिर जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप घरेलू उत्सर्जन प्रक्षेपवक्र के साथ समन्वित रूप से विकसित किये जाएँगे। 
    • यद्यपि ICM विनियमित होगा, यह कार्बन बाज़ार क्रेडिट के माध्यम से अपने GHG उत्सर्जन प्रयासों को बढ़ाने के लिये कंपनियों को ‘हार्ड-टू-अबेट’ खंडों (hard-to-abate segments) में लचीलापन प्रदान करेगा। यह हार्ड-टू-अबेट उद्योगों में अधिक जागरूकता, परिवर्तन और नवाचार भी उत्पन्न करेगा। 
      • हार्ड-टू-अबेट क्षेत्र में इस्पात, सीमेंट और पेट्रोकेमिकल जैसी श्रेणियाँ शामिल हैं जो अपनी प्रक्रिया में कार्बन का अभिन्न रूप से इस्तेमाल करते हैं और कुल GHG उत्सर्जन में 30% का योगदान करते हैं। 
    • यह सतत परियोजनाओं के लिये वित्त और प्रौद्योगिकी को आकर्षित करने में भी मदद कर सकता है जो कार्बन क्रेडिट उत्पन्न कर सकते हैं। 

कार्बन बाज़ार के प्रमुख लाभ:  

  • वित्तीय प्रोत्साहन (Financial Incentives): कार्बन बाज़ार एक वित्तीय प्रोत्साहन प्रणाली स्थापित करते हैं जहाँ निकायों को उत्सर्जन सीमाएँ (emission limits) आवंटित की जाती हैं और वे उत्सर्जन परमिट का व्यापार कर सकते हैं। यह कंपनियों को अपनी सीमा से नीचे उत्सर्जन कम करने के लिये प्रोत्साहित करता है और अतिरिक्त उत्सर्जन के लिये उन पर अर्थदंड लगाता है। 
  • लागत-प्रभावी कटौती (Cost-Effective Reductions): कार्बन बाज़ार लागत-प्रभावी उत्सर्जन कटौती को प्राथमिकता देते हैं। जो कंपनियाँ उत्सर्जन को अधिक आसानी से और निम्न लागत पर कम कर सकती हैं, उन्हें ऐसा करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे निम्न आर्थिक लागत पर समग्र उत्सर्जन में कमी आती है। 
  • कारोबारी लचीलापन (Business Flexibility): कार्बन बाज़ार व्यवसायों को उत्सर्जन को कम करने का तरीका चुनने में लचीलापन प्रदान करते हैं। वे स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश कर सकते हैं, ऊर्जा दक्षता में सुधार कर सकते हैं या कहीं और क्रियान्वित उत्सर्जन कटौती परियोजनाओं से कार्बन क्रेडिट की खरीद कर सकते हैं, जिससे रणनीतियों की एक विविध शृंखला को अवसर मिलता है। 
  • स्वच्छ तकनीक को बढ़ावा (Clean Tech Promotion): ये बाज़ार स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और अभ्यास के विकास एवं अंगीकरण को प्रोत्साहित करते हैं। कंपनियाँ कार्बन बाज़ार में अपनी अनुपालन लागत को कम करने के लिये उत्सर्जन को कम करने वाली प्रौद्योगिकियों में नवाचार और निवेश करने के लिये प्रेरित होती हैं। 
  • संवहनीयता के लिये समर्थन (Support for Sustainability): कार्बन बाज़ार ऐसी सतत/संवहनीय  परियोजनाओं के लिये धन का सृजन करते हैं जो उत्सर्जन को कम करते हैं, जैसे कि नवीकरणीय ऊर्जा, वनीकरण, पुनर्वनीकरण और ऊर्जा दक्षता परियोजनाएँ। ये परियोजनाएँ कार्बन क्रेडिट अर्जित करती हैं जिन्हें निवेश आकर्षित करते हुए बाज़ार में बेचा जा सकता है। 
  • जलवायु लक्ष्य से संरेखण (Climate Goal Alignment): कार्बन बाज़ारों को देश के जलवायु लक्ष्यों और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुरूप तैयार किया जा सकता है, जिससे उत्सर्जन पर नज़र बनाये रखने और उन्हें कम करने के लिये एक तंत्र का निर्माण कर राष्ट्रों को उनके उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों (जैसे पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्य) को पूरा करने में मदद मिलेगी।  
  • पारदर्शिता और जवाबदेही (Transparency & Accountability): कार्बन बाज़ारों में भागीदारी के लिये उत्सर्जन के सटीक मापन और रिपोर्टिंग की आवश्यकता है। इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर नज़र रखने और उसे कम करने में अधिक पारदर्शिता एवं जवाबदेही आएगी। 
  • राजस्व सृजन (Revenue Generation): सरकारें उत्सर्जन परमिट की नीलामी कर या कार्बन  टैक्स अधिरोपित कर कार्बन बाज़ारों के माध्यम से राजस्व सृजित कर सकती हैं। इस राजस्व को संवहनीय पहलों में पुनर्निवेशित किया जा सकता है या अन्य सार्वजनिक उद्देश्यों के लिये उपयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, कंपनियाँ कार्बन क्रेडिट की बिक्री कर भी राजस्व अर्जित कर सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिये, इलेक्ट्रिक कार निर्माता ‘टेस्ला’ ने वर्ष 2021 की पहली तिमाही में पुराने कार निर्माताओं को कार्बन क्रेडिट की बिक्री कर 518 मिलियन अमेरिकी डॉलर का राजस्व अर्जित किया। 

कार्बन बाज़ारों के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ  

  • उत्सर्जन कटौती की दोहरी गणना: यह स्थिति तब बनती है जब एक ही उत्सर्जन में कमी का दावा एक से अधिक निकायों या एक से अधिक प्रणालियों के तहत किया जाता है। यह कार्बन बाज़ारों की पर्यावरणीय अखंडता और विश्वसनीयता को कमज़ोर कर सकता है। 
  • जलवायु परियोजनाओं की गुणवत्ता और प्रामाणिकता: जलवायु परियोजनाओं की विश्वसनीयता और वास्तविकता सुनिश्चित करना उनकी अतिरिक्तता, मापनीयता, सत्यापनीयता, स्थायित्व और उत्सर्जन स्थानांतरण की रोकथाम के स्तर को निर्धारित करने की चुनौती पेश करता है। 
  • कमज़ोर बाज़ार पारदर्शिता: यह कार्बन क्रेडिट या ऑफसेट की आपूर्ति और मांग के साथ-साथ उनकी कीमतों, लेनदेन एवं प्रभावों पर जानकारी की उपलब्धता और पहुँच के बारे में अस्पष्टता से संबंधित है। 
  • ग्रीनवॉशिंग (Greenwashing): यह वास्तव में उत्सर्जन को कम करने या व्यावसायिक अभ्यासों में परिवर्तन लाने के बजाय पर्यावरणीय उत्तरदायित्व की गलत या भ्रामक धारणा का निर्माण करने के लिये कार्बन क्रेडिट या ऑफसेट का उपयोग करने का अभ्यास है। यह जनता के भरोसे को समाप्त कर सकता है और अधिक प्रभावी जलवायु कार्रवाइयों से संसाधनों का विचलन कर सकता है। 
  • विनियामक अनिश्चितता: इसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर कार्बन बाज़ारों को नियंत्रित करने वाली नीतियों एवं विनियमनों की स्पष्टता या स्थिरता की कमी शामिल है। यह बाज़ार सहभागियों और निवेशकों के लिये जोखिम एवं बाधाएँ पैदा कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत में यह दुविधा मौजूद है कि कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना को विनियमित करने के ऊर्जा मंत्रालय उपयुक्त मंत्रालय है या इसे पर्यावरण मंत्रालय के अधीन होना चाहिये। 

कार्बन बाज़ार की चुनौतियों पर काबू पाने के लिये कदम उठाये जाने वाले कदम : 

  • कार्बन क्रेडिट और ऑफसेट के लिये एक सामान्य वर्गीकरण और शब्दावली विकसित करना, साथ ही उत्सर्जन में कटौती की दोहरी गणना से बचने के लिये एक सुसंगत लेखांकन ढाँचा विकसित करना। 
  • अतिरिक्तता, मापनीयता, स्थायित्व और रिसाव से बचाव जैसे सिद्धांतों के आधार पर कार्बन क्रेडिट या ऑफसेट उत्पन्न करने वाली जलवायु परियोजनाओं के लिये स्पष्ट एवं विश्वसनीय गुणवत्ता मानदंड और सत्यापन तंत्र स्थापित करना। 
  • कार्बन क्रेडिट या ऑफसेट की आपूर्ति एवं मांग, साथ ही उनकी कीमतों, लेनदेन और प्रभावों पर विश्वसनीय एवं समयबद्धर डेटा और रिपोर्टिंग प्रदान कर बाजार में पारदर्शिता एवं प्रकटीकरण की वृद्धि करना। 
  • कार्बन क्रेडिट या ऑफसेट के बारे में दावे और संचार के लिये स्पष्ट और प्रवर्तनीय नियम एवं दिशानिर्देश के माध्यम से ‘ग्रीनवाशिंग’ पर रोक लगाना और इसके लिये दंडित करना; इसके साथ ही सार्वजनिक जागरूकता एवं संवीक्षा सुनिश्चित करना। 
  • राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न कार्बन बाज़ार प्रणालियों को सुसंगत एवं एकीकृत करना, साथ ही अन्य नीति उपकरणों और पहलों के साथ संबंध एवं तालमेल बनाना। 

निष्कर्ष 

  • चूँकि भारत शुद्ध शून्य (net-zero) विश्व की ओर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, औद्योगिक गतिविधियों की डीकार्बोनाइज़िंग महत्त्वपूर्ण होगी। इस क्रम में कार्बन प्रबंधन समाधान और स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में उद्योग क्षेत्र के नेता देश को जीवाश्म ईंधन या विरासत प्रौद्योगिकियों से स्वच्छ ऊर्जा प्रणालियों की ओर आगे ले जाने में मदद कर शुद्ध-शून्य भविष्य की ओर संक्रमण को सुविधाजनक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 
  • चूँकि भारत आर्थिक आवश्यकताओं और पर्यावरणीय चिंताओं के बीच एक नाजुक संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है, एक जीवंत कार्बन व्यापार तंत्र अधिक संवहनीय भविष्य के निर्माण में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। 

अभ्यास प्रश्न: भारत सरकार अपनी जलवायु कार्रवाई रणनीति के एक प्रमुख घटक के रूप में भारतीय कार्बन बाज़ार (ICM) स्थापित करने की प्रक्रिया में है। इस संदर्भ में, कार्बन बाज़ार से जुड़े लाभों और चुनौतियों की चर्चा कीजिये। ICM भारत के जलवायु लक्ष्यों में किस प्रकार योगदान दे सकता है? 

निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. कथन - I: ऐसी संभावना है कि कार्बन बाज़ार, जलवायु परिवर्तन से निपटने का एक सबसे व्यापक साधन बन जाए।
  2. कथन- II : कार्बन बाज़ार संसाधनों को प्राइवेट सेक्टर से राज्य को हस्तांतरित कर देते हैं।

उपर्युक्त कथनों के बारे में, निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है?

(a) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या है
(b) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या नहीं है
(c) कथन-I सही है किन्तु कथन-II गलत है
(d) कथन-I गलत है किन्तु कथन-II सही है

उत्तर: B


प्रश्न. कार्बन क्रेडिट की अवधारणा निम्नलिखित में से किससे उत्पन्न हुई है? (2009)

(a) पृथ्वी शिखर सम्मेलन, रियो डी जनेरियो
(b) क्योटो प्रोटोकॉल
(c) मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
(d) जी-8 शिखर सम्मेलन, हेलीजेंडम

उत्तर: (b)

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