मध्य प्रदेश Switch to English
भारत का पहला भिखारी मुक्त शहर
चर्चा में क्यों?
इंदौर देश का पहला भिक्षावृत्ति-मुक्त शहर बन गया है, जहाँ प्रशासन ने भिक्षुओं का पुनर्वास कर उन्हें रोज़गार के अवसर प्रदान किये हैं और भिक्षावृत्ति में लगे बच्चों को स्कूलों में दाखिल कराया है।
मुख्य बिंदु
- बहु-चरणीय अभियान रणनीति:
- फरवरी 2024 में, शहर में महिला एवं बाल विकास विभाग के तहत भिक्षावृत्ति विरोधी अभियान शुरू किया गया।
- उस समय, अधिकारियों ने इंदौर की सड़कों पर रहने वाले 500 बच्चों सहित लगभग 5,000 भिखारियों की पहचान की थी।
- यह अभियान दो प्रमुख चरणों में चलाया गया:
- चरण 1: जनता को सूचित करने और हितधारकों को शामिल करने के लिये जागरूकता अभियान।
- चरण 2: रोज़गार सहायता और बच्चों के स्कूल नामांकन के माध्यम से भिखारियों का पुनर्वास।
- पाया गया कि कई भिखारी राजस्थान से पलायन कर आए हैं, जिससे शहरी भिक्षावृत्ति के अंतर्राज्यीय आयाम उजागर होते हैं।
- फरवरी 2024 में, शहर में महिला एवं बाल विकास विभाग के तहत भिक्षावृत्ति विरोधी अभियान शुरू किया गया।
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता:
- इस पहल को केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा एक आदर्श परियोजना के रूप में मान्यता दी गई है।
- शहरी क्षेत्रों में भीख मांगने की समस्या को खत्म करने के लिये पायलट परियोजना के लिये चयनित 10 शहरों में इंदौर भी शामिल है।
- विश्व बैंक की एक टीम ने भी अभियान के प्रभाव को स्वीकार किया है।
- इस पहल को केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा एक आदर्श परियोजना के रूप में मान्यता दी गई है।
भिक्षावृत्ति से संबंधित कानूनी प्रावधान
- औपनिवेशिक कानून: वर्ष 1871 के आपराधिक जनजाति अधिनियम ने खानाबदोश जनजातियों को अपराधी घोषित कर दिया तथा उन्हें भिक्षावृत्ति से जोड़ दिया।
- वर्तमान विधिक ढाँचा: भारतीय संविधान के अनुसार संघ और राज्य सरकारों दोनों को समवर्ती सूची (सूची III, प्रविष्टि 15) के तहत आहिंडन अथवा वैग्रेंसी (भिक्षावृत्ति सहित), घुमंतू और प्रवासी जनजातियों पर विधि का निर्माण करने की अनुमति है।
- भिक्षावृत्ति से संबंधित कोई केंद्रीय विधि नहीं है। इसके स्थान पर, कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 को आधार बनाकर विधि का निर्माण किया है।
- इस अधिनियम में भिक्षुक को न केवल भिक्षा माँगने वाले व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, बल्कि इसके अंतर्गत ऐसी व्यक्ति भी शामिल हैं जो सड़कों पर प्रदर्शन करते हैं, जीविकोपार्जन हेतु वस्तुओं का विक्रय करते हैं अथवा निर्वाह के प्रत्यक्ष साधन के आभाव में निराश्रित होते हैं।
- आहिंडन में भिक्षा माँगना भी शामिल है और अधिनियम के अनुसार इन गतिविधियों में शामिल व्यक्तियाँ सामाजिक उपद्रवी होते हैं।
- भिक्षावृत्ति से संबंधित कोई केंद्रीय विधि नहीं है। इसके स्थान पर, कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 को आधार बनाकर विधि का निर्माण किया है।
- विधिशास्त्र: दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में निर्णय सुनाया कि बॉम्बे अधिनियम की प्रवृत्ति मनमाना है और यह सम्मान से जीने के अधिकार का उल्लंघन है और निर्धनता को अपराध घोषित किये बिना इसका समाधान किये जाने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 में सार्वजनिक स्थानों से भिक्षुकों को प्रतिबंधित किये जाने की मांग वाले एक लोकहित मुकदमे को खारिज़ कर दिया और निर्णय सुनाया कि भिक्षावृत्ति एक आपराधिक मुद्दा नहीं अपितु सामाजिक-आर्थिक समस्या है।
- SMILE: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा वर्ष 2022 में शुरू की गई आजीविका और उद्यम हेतु हाशिए पर स्थित व्यक्तियों की सहायता (SMILE) योजना का उद्देश्य वर्ष 2026 तक "भिक्षावृत्ति मुक्त" भारत की दिशा में कार्य करते हुए चिकित्सा देखभाल, शिक्षा तथा कौशल प्रशिक्षण प्रदान कर भिक्षुकों का पुनर्वास करना है।
- वर्ष 2024 तक, SMILE के तहत 970 व्यक्तियों का पुनर्वास किया गया, जिनमें बालकों की संख्या 352 थी।


छत्तीसगढ़ Switch to English
छत्तीसगढ़ में PMAY-G
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री ने रायपुर में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) और पीएम जनमन योजना के कार्यान्वयन की समीक्षा की।
मुख्य बिंदु
- कार्यक्रम के बारे में:
- उन्होंने PMAY-G और पीएम जनमन योजना के तहत घर की चाबियाँ वितरित कीं और 51,000 नए PMAY लाभार्थियों के लिये गृह प्रवेश समारोह का नेतृत्व किया।
- उन्होंने ग्रामीण सशक्तीकरण में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले स्वयं सहायता समूह (SHGs) के सदस्यों और 'लखपति दीदियों' को भी सम्मानित किया।
- प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G):
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वर्ष 2016 में शुरू की गई PMAY-G का उद्देश्य समाज के सबसे गरीब तबके को आवास उपलब्ध कराना है।
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लाभार्थियों के चयन में तीन चरणों की गहन सत्यापन प्रक्रिया शामिल है, जिसमें सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011, ग्राम सभा अनुमोदन और जियो-टैगिंग शामिल है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सहायता सबसे योग्य व्यक्तियों तक पहुँचे।
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PMAY-G के तहत लाभार्थियों को मिलता है:
- वित्तीय सहायता: मैदानी क्षेत्रों में 1.20 लाख रुपए तथा पूर्वोत्तर राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों सहित पहाड़ी राज्यों में 1.30 लाख रुपए।
- शौचालयों के लिये अतिरिक्त सहायता: स्वच्छ भारत मिशन- ग्रामीण (SBM-G) या महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGA) या किसी अन्य समर्पित वित्त पोषण स्रोत जैसी योजनाओं के साथ अभिसरण के माध्यम से शौचालयों के निर्माण के लिये 12,000 रुपए।
- रोज़गार सहायता: आवास निर्माण के लिये महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के माध्यम से लाभार्थियों के लिये 90/95 व्यक्ति-दिवस अकुशल मजदूरी रोज़गार का अनिवार्य प्रावधान।
- बुनियादी सुविधाएँ: प्रासंगिक योजनाओं के साथ अभिसरण के माध्यम से पानी, तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (LPG) और बिजली कनेक्शन तक पहुँच।
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- पीएम-जनमन योजना
- पीएम-जनमन एक सरकारी योजना है, जिसका उद्देश्य जनजातीय समुदायों को मुख्यधारा में लाना है।
- यह योजना (केंद्रीय क्षेत्र तथा केंद्र प्रायोजित योजनाओं के एकीकरण) जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों एवं PVTG समुदायों के सहयोग से कार्यान्वित की जाएगी।
- यह योजना 9 संबंधित मंत्रालयों द्वारा देख-रेख किये जाने वाले 11 महत्त्वपूर्ण कार्यप्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करेगी, जो PVTG वाले गाँवों में मौजूदा योजनाओं के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करेगी।
- इसमें पीएम-आवास योजना के तहत सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल तक पहुँच, बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, पोषण, सड़क एवं दूरसंचार कनेक्टिविटी के साथ-साथ स्थायी आजीविका के अवसर सहित विभिन्न क्षेत्र शामिल हैं।
- इस योजना में वन उपज के व्यापार के लिये वन धन विकास केंद्रों की स्थापना, 1 लाख घरों के लिये ऑफ-ग्रिड सौर ऊर्जा प्रणाली तथा सौर स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था शामिल है।
स्वयं सहायता समूह (SHGs)
- परिचय:
- स्वयं सहायता समूह को समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले और सामूहिक रूप से एक सामान्य उद्देश्य को पूरा करने के इच्छुक लोगों के स्व-शासित, सहकर्मी-नियंत्रित सूचना समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
- एक SHG में आमतौर पर समान आर्थिक दृष्टिकोण और सामाजिक स्थिति वाले कम-से-कम पाँच व्यक्ति (अधिकतम बीस) शामिल होते हैं।
- भारत में स्वयं सहायता समूहों की उत्पत्ति:
- प्रारंभिक प्रयास (1970 से पूर्व): सामूहिक कार्रवाई और आपसी सहयोग के लिये विशेष रूप से महिलाओं के बीच अनौपचारिक SHG के उदाहरण थे।
- SEWA (1972): इलाबेन भट्ट द्वारा स्थापित स्व-रोज़गार महिला संघ (Self-Employed Women's Association- SEWA) को अक्सर एक निर्णायक क्षण माना जाता है।
- इसने गरीब और स्व-रोज़गार महिला श्रमिकों को संगठित किया, आय सृजन एवं समर्थन के लिये एक मंच प्रदान किया।
- MYRADA और पायलट कार्यक्रम (1980 के दशक के मध्य): 1980 के दशक के मध्य में, मैसूर पुनर्वास और क्षेत्र विकास एजेंसियों (MYRADA) ने निर्धनों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को ऋण प्रदान करने के लिये एक माइक्रोफाइनेंस रणनीति के रूप में SHG की शुरुआत की।
- NABARD एवं SHG-बैंक लिंकेज (1992): राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (National Bank for Agriculture and Rural Development- NABARD) ने वर्ष 1992 में SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम शुरू किया।
- इस पहल ने SHG को औपचारिक बैंकिंग संस्थानों से जोड़ा गया, जिससे विभिन्न समूहों के लिये ऋण और वित्तीय सेवाओं तक पहुँच संभव हो गई।
- सरकारी मान्यता (1990-वर्तमान): 1990 के दशक से, सरकार ने स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोज़गार योजना (SGSY) और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (National Rural Livelihoods Mission- NRLM) जैसी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से SHG को सक्रिय रूप से समर्थन दिया है।
- इन पहलों ने भारत में SHG आंदोलन की पहुँच और प्रभाव में काफी विस्तार किया है।


उत्तर प्रदेश Switch to English
ब्रह्मोस मिसाइल
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय रक्षा मंत्री के द्वारा उत्तर प्रदेश के लखनऊ में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल उत्पादन यूनिट का उद्घाटन किया गया।
मुख्य बिंदु
- ब्रह्मोस मिसाइल के बारे में:
- भारत-रूस संयुक्त उद्यम, ब्रह्मोस मिसाइल की मारक क्षमता 290 किमी. है और यह मैक 2.8 (ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना) की उच्च गति के साथ विश्व की सबसे तेज़ क्रूज़ मिसाइल है।
- इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है।
- यह दो चरणों वाली (पहले चरण में ठोस प्रणोदक इंजन और दूसरे में तरल रैमजेट) मिसाइल है।
- यह एक मल्टीप्लेटफॉर्म मिसाइल है जिसे स्थल, वायु एवं समुद्र में बहुक्षमता वाली मिसाइल से सटीकता के साथ लॉन्च किया जा सकता है जो खराब मौसम के बावजूद दिन और रात में काम कर सकती है।
- यह "फायर एंड फॉरगेट/दागो और भूल जाओ" सिद्धांत पर काम करती है यानी लॉन्च के बाद इसे मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती।
- भारत-रूस संयुक्त उद्यम, ब्रह्मोस मिसाइल की मारक क्षमता 290 किमी. है और यह मैक 2.8 (ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना) की उच्च गति के साथ विश्व की सबसे तेज़ क्रूज़ मिसाइल है।
- लखनऊ ब्रह्मोस यूनिट के बारे में:
- यूनिट की स्थापना 300 करोड़ रुपए की लागत से उत्तर प्रदेश रक्षा औद्योगिक गलियारे (UP DIC) के अंतर्गत की गई है।
- यह भारत सरकार के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और रूस की कंपनी NPOM का संयुक्त उपक्रम है।
- इसमें भारत की 50.5% और रूस की 49.5% हिस्सेदारी है।
- पहले चरण में यहाँ ब्रह्मोस मिसाइल के कल-पुर्जे जोड़े जाएंगे और बाद में पूर्ण निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा।
- यूनिट में प्रतिवर्ष 100 से 150 अगली पीढ़ी की मिसाइलें बनाई जाएंगी।
- नए संस्करण का वज़न 2,900 किग्रा से घटकर 1,290 किग्रा कर दिया गया है।
- इसकी रेंज 300 किमी से अधिक होगी।
- उत्तर प्रदेश रक्षा औद्योगिक गलियारा:
- यह एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका उद्देश्य भारतीय एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र की विदेशी निर्भरता को कम करना है।
- इसमें 6 नोड्स हैं- अलीगढ़, आगरा, कानपुर, चित्रकूट, झाँसी और लखनऊ।
- उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (UPEIDA) को राज्य की विभिन्न एजेंसियों के साथ मिलकर इस परियोजना को निष्पादित करने के लिये नोडल एजेंसी बनाया गया है।
- इस कॉरिडोर/गलियारे का उद्देश्य राज्य को सबसे बड़े और उन्नत रक्षा विनिर्माण केंद्रों में से एक के रूप में स्थापित करना एवं विश्व मानचित्र पर लाना है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)
- परिचय:
- DRDO की स्थापना 1958 में भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (TDE), तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (DTDP) और रक्षा विज्ञान संगठन (DSO) का संयोजन करके की गई थी।
- DRDO भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय का अनुसंधान एवं विकास विंग है।
- आरंभ में DRDO के पास 10 प्रयोगशालाएँ थीं, वर्तमान में यह 41 प्रयोगशालाओं और 5 DRDO युवा वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं (DYSL) का संचालन करता है।
- सिद्धांत:
- DRDO का मार्गदर्शक सिद्धांत "बलस्य मूलं विज्ञानम् " (शक्ति विज्ञान में निहित है) है, जो राष्ट्र को शांति और युद्ध दोनों ही स्थिति में मार्गदर्शित करता है।
- मिशन:
- इसका मिशन तीनों सेनाओं की आवश्यकताओं के अनुसार भारतीय सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों और उपकरणों से लैस करते हुए महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों तथा प्रणालियों में आत्मनिर्भर होना है


उत्तर प्रदेश Switch to English
यूपी-एग्रीस और एआई प्रज्ञा कार्यक्रम
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा विश्व बैंक के अध्यक्ष की उपस्थिति में लखनऊ में ‘यूपी-एग्रीस’ और ‘एआई प्रज्ञा’ कार्यक्रमों का शुभारंभ किया गया।
मुख्य बिंदु
- यूपी-एग्रीस के बारे में:
- यह कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बुंदेलखंड क्षेत्रों के 28 ज़िलों में लागू किया जाएगा।
- इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य कृषि उत्पादकता में वृद्धि करना, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित करना और किसानों की आय बढ़ाना है।
- कार्यक्रम की कुल लागत 3900 करोड़ रुपए है, जिसमें 2737 करोड़ रुपए का ऋण विश्व बैंक द्वारा प्रदान किया जाएगा। जबकि राज्य सरकार इस योजना में 1166 करोड़ रुपए का अंशदान देगी।
- 6 वर्ष की यह ऋण सहायता, जिसे 1.23% ब्याज दर पर 35 वर्षों में चुकाया जाएगा, से 10 लाख किसान लाभान्वित होंगे — जिनमें से 30% महिलाएँ होंगी।
- इस परियोजना के तहत 10,000 महिला उत्पादक समूहों को जोड़ा जाएगा और 500 किसानों को उन्नत प्रशिक्षण के लिये विदेश भेजा जाएगा।
- एआई प्रज्ञा कार्यक्रम:
- ‘एआई प्रज्ञा’ कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य उत्तर प्रदेश को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डिजिटल तकनीकों के क्षेत्र में नेतृत्वकारी राज्य के रूप में स्थापित करना है।
- इस कार्यक्रम के अंतर्गत 10 लाख युवाओं को AI, मशीन लर्निंग, डाटा एनालिटिक्स और साइबर सुरक्षा जैसी अत्याधुनिक तकनीकों में प्रशिक्षण और प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा।
- इस पहल से प्रदेश में AI आधारित स्टार्टअप को बढ़ावा मिलेगा, रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे और डिजिटली दक्ष कार्यबल का निर्माण होगा।
- कार्यक्रम का संचालन शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, राजस्व, सचिवालय प्रशासन जैसे विभिन्न राज्य विभागों के सहयोग से किया जाएगा।
विश्व बैंक:
- परिचय:
- इसे वर्ष 1944 में IMF के साथ मिलकर पुनर्निर्माण और विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय बैंक (IBRD) के रूप में स्थापित किया गया था। बाद में IBRD विश्व बैंक बन गया।
- विश्व बैंक समूह पाँच संस्थानों की एक अनूठी वैश्विक साझेदारी है जो विकासशील देशों में गरीबी को कम करने और साझा समृद्धि का निर्माण करने वाले स्थायी समाधानों के लिये कार्य कर रहा है।
- विश्व बैंक संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट एजेंसियों में से एक है।
- सदस्य:
- 189 देश इसके सदस्य हैं।
- भारत भी इसका सदस्य है।
- पाँच विकास संस्थान:
- अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (IBRD)
- अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA)
- अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC)
- बहुपक्षीय गारंटी एजेंसी (MIGA)
- निवेश विवादों के निपटान के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (ICSID)
- भारत ICSID का सदस्य नहीं है।
- विश्व बैंक की शेयरधारिता:
- 16.41% वोटों के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका सबसे बड़ा एकल शेयरधारक है, इसके बाद जापान (7.87%), जर्मनी (4.49%), यूनाइटेड किंगडम (4.31%), और फ्राँस (4.31%) का स्थान है। शेष शेयर अन्य सदस्य देशों के बीच विभाजित हैं।


राजस्थान Switch to English
कृषक उपहार योजना
चर्चा में क्यों?
राजस्थान सरकार द्वारा कृषक उपहार योजना के तहत राज्य स्तरीय ऑनलाइन लॉटरी का आयोजन किया गया, जिसमें किसानों को लाखों रुपए के पुरस्कार वितरित किये गये।
मुख्य बिंदु
- कृषक उपहार योजना के बारे में:
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इस योजना के माध्यम से किसानों को ई-नाम (eNAM) पोर्टल और ई-पेमेंट (E-Payment) के माध्यम से अपने कृषि उत्पादों की बिक्री करने और भुगतान प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- इससे किसानों को अपनी उपज का अधिकतम लाभ मिल सकेगा और बिचौलियों की भूमिका कम होगी, जिससे वे सीधे उपभोक्ताओं से अपनी उपज बेच सकेंगे।
-
- लॉटरी आयोजन:
- लॉटरी का आयोजन शासन सचिव कृषि एवं उद्यानिकी की अध्यक्षता में पंत कृषि भवन, जयपुर में हुआ।
- योजना के तहत प्रथम पुरस्कार 2 लाख 50 हज़ार रुपए का, कोटा कृषि उपज मंडी को दिया गया।
ई-नाम’ (eNAM):
- केंद्र सरकार द्वारा अप्रैल 2016 में ई-नाम (eNAM) नामक पोर्टल की शुरुआत की गई थी।
- ई-नाम एक पैन इंडिया ई-व्यापार प्लेटफॉर्म है। कृषि उत्पादों के लिये एक एकीकृत राष्ट्रीय बाज़ार का सृजन करने के उद्देश्य से इसका निर्माण किया गया है।
- इसके तहत किसान अपने नज़दीकी बाज़ार से अपने उत्पाद की ऑनलाइन बिक्री कर सकते हैं तथा व्यापारी कहीं से भी उनके उत्पाद के लिये मूल्य चुका सकते हैं।
- इसके परिणामस्वरूप व्यापारियों की संख्या में वृद्धि होगी, जिससे प्रतिस्पर्द्धा में भी बढ़ोतरी होगी।
- इसके माध्यम से मूल्यों का निर्धारण भली-भाँति किया जा सकता है तथा किसानों को अपने उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त होगा।
- ई-नाम पोर्टल पर वर्तमान में, खाद्यान्न, तिलहन, रेशे, सब्जियों और फलों सहित 150 वस्तुओं का व्यापार किया जा रहा है। साथ ही इस पर 1,005 से अधिक ‘किसान उत्पादक संगठन’ पंजीकृत हैं।


मध्य प्रदेश Switch to English
मध्य प्रदेश में सिंचाई परियोजनाएँ
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ने सीतापुर-हनुमना उदवहन सिंचाई परियोजना, बाणसागर परियोजना तथा अन्य लंबित योजनाओं की प्रगति का अवलोकन करते हुए, इनके निर्माण कार्यों को निर्धारित समय-सीमा में पूर्ण करने के निर्देश दिये।
मुख्य बिंदु
- सीतापुर-हनुमना उदवहन सिंचाई परियोजना के बारे में:
- यह परियोजना मऊगंज, सीधी और सिंगरौली ज़िलों की सिंचाई व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में सहायक है।
- इस परियोजना से कुल 653 गाँवों में 1 लाख 20 हज़ार हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई सुविधा से जोड़ा जाएगा।
- इस परियोजना के लिये राज्य शासन द्वारा 4,167 करोड़ रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति दी जा चुकी है।
- निर्माण स्थल और पर्यावरणीय चुनौती
- इस परियोजना में प्रस्तावित बाँध सीधी ज़िले के अमिलिया क्षेत्र में सोन नदी पर बनाया जाना है।
- यह क्षेत्र सोन घड़ियाल अभयारण्य के अंतर्गत आता है, जिससे पर्यावरणीय और वन्यजीव स्वीकृति अनिवार्य हो जाती है।
- पर्यावरणीय सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए घड़ियाल संरक्षण पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े, इसका विशेष ध्यान रखने को कहा गया
- बाणसागर बाँध की स्थिति और कार्य
- बाणसागर बाँध मध्य प्रदेश के रीवा ज़िले में सोन नदी पर स्थित है।
- यह एक बहुउद्देश्यीय परियोजना है, जिसका उद्देश्य सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन और जल आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
- अधिकारियों को 18 किमी. बेला माइनर नहर के निर्माण, छुहिया घाटी में सुरंग लाइनिंग, जलसेतु विकास और नहर लाइनिंग के काम में तेज़ी लाने के निर्देश दिये गए हैं।
- बेला माइनर नहर, बाणसागर परियोजना की एक सहायक नहर है।
- इस नहर की कुल लंबाई 51 किमी. है, जिसमें से अभी तक केवल 21 किमी. का कार्य पूर्ण हुआ है।
- लाभ
- बाँध और नहर परियोजना के पूरा होने पर रीवा, मऊगंज, सीधी और सिंगरौली ज़िलों के लाखों हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा सुनिश्चित होगी।
- इस परियोजना से लाखों किसानों को स्थायी सिंचाई सुविधा मिलेगी जिससे फसल विविधीकरण, उत्पादकता में वृद्धि, और आय में सुधार होगा।
सोन घड़ियाल अभयारण्य
- यह मध्य प्रदेश के सोन नदी क्षेत्र में स्थित एक महत्त्वपूर्ण अभयारण्य है, जो 1981 में घड़ियाल के संरक्षण और उनकी संख्या में वृद्धि के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।
- इस अभयारण्य के तहत सोन नदी का 161 किमी, 23 किमी बनास नदी और 26 किमी गोपद नदी का क्षेत्र मिलाकर कुल 210 किमी क्षेत्र को संरक्षित किया गया है।
- यह अभयारण्य प्रोजेक्ट क्रोकोडाइल के अंतर्गत आता है, अभयारण्य का प्रमुख आकर्षण रेतीले पर्यावास हैं, इनमें प्रमुख रूप से घड़ियाल, भारतीय नर्म खोल कछुआ (Chitra Indica) और भारतीय स्किमर (Rynchops albicollis) शामिल हैं। ये क्षेत्र विभिन्न संकटग्रस्त प्रजातियों को संरक्षण प्रदान करते हैं।