मध्य प्रदेश
भारत का पहला भिखारी मुक्त शहर
- 13 May 2025
- 5 min read
चर्चा में क्यों?
इंदौर देश का पहला भिक्षावृत्ति-मुक्त शहर बन गया है, जहाँ प्रशासन ने भिक्षुओं का पुनर्वास कर उन्हें रोज़गार के अवसर प्रदान किये हैं और भिक्षावृत्ति में लगे बच्चों को स्कूलों में दाखिल कराया है।
मुख्य बिंदु
- बहु-चरणीय अभियान रणनीति:
- फरवरी 2024 में, शहर में महिला एवं बाल विकास विभाग के तहत भिक्षावृत्ति विरोधी अभियान शुरू किया गया।
- उस समय, अधिकारियों ने इंदौर की सड़कों पर रहने वाले 500 बच्चों सहित लगभग 5,000 भिखारियों की पहचान की थी।
- यह अभियान दो प्रमुख चरणों में चलाया गया:
- चरण 1: जनता को सूचित करने और हितधारकों को शामिल करने के लिये जागरूकता अभियान।
- चरण 2: रोज़गार सहायता और बच्चों के स्कूल नामांकन के माध्यम से भिखारियों का पुनर्वास।
- पाया गया कि कई भिखारी राजस्थान से पलायन कर आए हैं, जिससे शहरी भिक्षावृत्ति के अंतर्राज्यीय आयाम उजागर होते हैं।
- फरवरी 2024 में, शहर में महिला एवं बाल विकास विभाग के तहत भिक्षावृत्ति विरोधी अभियान शुरू किया गया।
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता:
- इस पहल को केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा एक आदर्श परियोजना के रूप में मान्यता दी गई है।
- शहरी क्षेत्रों में भीख मांगने की समस्या को खत्म करने के लिये पायलट परियोजना के लिये चयनित 10 शहरों में इंदौर भी शामिल है।
- विश्व बैंक की एक टीम ने भी अभियान के प्रभाव को स्वीकार किया है।
- इस पहल को केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा एक आदर्श परियोजना के रूप में मान्यता दी गई है।
भिक्षावृत्ति से संबंधित कानूनी प्रावधान
- औपनिवेशिक कानून: वर्ष 1871 के आपराधिक जनजाति अधिनियम ने खानाबदोश जनजातियों को अपराधी घोषित कर दिया तथा उन्हें भिक्षावृत्ति से जोड़ दिया।
- वर्तमान विधिक ढाँचा: भारतीय संविधान के अनुसार संघ और राज्य सरकारों दोनों को समवर्ती सूची (सूची III, प्रविष्टि 15) के तहत आहिंडन अथवा वैग्रेंसी (भिक्षावृत्ति सहित), घुमंतू और प्रवासी जनजातियों पर विधि का निर्माण करने की अनुमति है।
- भिक्षावृत्ति से संबंधित कोई केंद्रीय विधि नहीं है। इसके स्थान पर, कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 को आधार बनाकर विधि का निर्माण किया है।
- इस अधिनियम में भिक्षुक को न केवल भिक्षा माँगने वाले व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, बल्कि इसके अंतर्गत ऐसी व्यक्ति भी शामिल हैं जो सड़कों पर प्रदर्शन करते हैं, जीविकोपार्जन हेतु वस्तुओं का विक्रय करते हैं अथवा निर्वाह के प्रत्यक्ष साधन के आभाव में निराश्रित होते हैं।
- आहिंडन में भिक्षा माँगना भी शामिल है और अधिनियम के अनुसार इन गतिविधियों में शामिल व्यक्तियाँ सामाजिक उपद्रवी होते हैं।
- भिक्षावृत्ति से संबंधित कोई केंद्रीय विधि नहीं है। इसके स्थान पर, कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 को आधार बनाकर विधि का निर्माण किया है।
- विधिशास्त्र: दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में निर्णय सुनाया कि बॉम्बे अधिनियम की प्रवृत्ति मनमाना है और यह सम्मान से जीने के अधिकार का उल्लंघन है और निर्धनता को अपराध घोषित किये बिना इसका समाधान किये जाने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 में सार्वजनिक स्थानों से भिक्षुकों को प्रतिबंधित किये जाने की मांग वाले एक लोकहित मुकदमे को खारिज़ कर दिया और निर्णय सुनाया कि भिक्षावृत्ति एक आपराधिक मुद्दा नहीं अपितु सामाजिक-आर्थिक समस्या है।
- SMILE: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा वर्ष 2022 में शुरू की गई आजीविका और उद्यम हेतु हाशिए पर स्थित व्यक्तियों की सहायता (SMILE) योजना का उद्देश्य वर्ष 2026 तक "भिक्षावृत्ति मुक्त" भारत की दिशा में कार्य करते हुए चिकित्सा देखभाल, शिक्षा तथा कौशल प्रशिक्षण प्रदान कर भिक्षुकों का पुनर्वास करना है।
- वर्ष 2024 तक, SMILE के तहत 970 व्यक्तियों का पुनर्वास किया गया, जिनमें बालकों की संख्या 352 थी।