उत्तर प्रदेश
ब्रह्मोस मिसाइल
- 13 May 2025
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चर्चा में क्यों?
केंद्रीय रक्षा मंत्री के द्वारा उत्तर प्रदेश के लखनऊ में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल उत्पादन यूनिट का उद्घाटन किया गया।
मुख्य बिंदु
- ब्रह्मोस मिसाइल के बारे में:
- भारत-रूस संयुक्त उद्यम, ब्रह्मोस मिसाइल की मारक क्षमता 290 किमी. है और यह मैक 2.8 (ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना) की उच्च गति के साथ विश्व की सबसे तेज़ क्रूज़ मिसाइल है।
- इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है।
- यह दो चरणों वाली (पहले चरण में ठोस प्रणोदक इंजन और दूसरे में तरल रैमजेट) मिसाइल है।
- यह एक मल्टीप्लेटफॉर्म मिसाइल है जिसे स्थल, वायु एवं समुद्र में बहुक्षमता वाली मिसाइल से सटीकता के साथ लॉन्च किया जा सकता है जो खराब मौसम के बावजूद दिन और रात में काम कर सकती है।
- यह "फायर एंड फॉरगेट/दागो और भूल जाओ" सिद्धांत पर काम करती है यानी लॉन्च के बाद इसे मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती।
- भारत-रूस संयुक्त उद्यम, ब्रह्मोस मिसाइल की मारक क्षमता 290 किमी. है और यह मैक 2.8 (ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना) की उच्च गति के साथ विश्व की सबसे तेज़ क्रूज़ मिसाइल है।
- लखनऊ ब्रह्मोस यूनिट के बारे में:
- यूनिट की स्थापना 300 करोड़ रुपए की लागत से उत्तर प्रदेश रक्षा औद्योगिक गलियारे (UP DIC) के अंतर्गत की गई है।
- यह भारत सरकार के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और रूस की कंपनी NPOM का संयुक्त उपक्रम है।
- इसमें भारत की 50.5% और रूस की 49.5% हिस्सेदारी है।
- पहले चरण में यहाँ ब्रह्मोस मिसाइल के कल-पुर्जे जोड़े जाएंगे और बाद में पूर्ण निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा।
- यूनिट में प्रतिवर्ष 100 से 150 अगली पीढ़ी की मिसाइलें बनाई जाएंगी।
- नए संस्करण का वज़न 2,900 किग्रा से घटकर 1,290 किग्रा कर दिया गया है।
- इसकी रेंज 300 किमी से अधिक होगी।
- उत्तर प्रदेश रक्षा औद्योगिक गलियारा:
- यह एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका उद्देश्य भारतीय एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र की विदेशी निर्भरता को कम करना है।
- इसमें 6 नोड्स हैं- अलीगढ़, आगरा, कानपुर, चित्रकूट, झाँसी और लखनऊ।
- उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (UPEIDA) को राज्य की विभिन्न एजेंसियों के साथ मिलकर इस परियोजना को निष्पादित करने के लिये नोडल एजेंसी बनाया गया है।
- इस कॉरिडोर/गलियारे का उद्देश्य राज्य को सबसे बड़े और उन्नत रक्षा विनिर्माण केंद्रों में से एक के रूप में स्थापित करना एवं विश्व मानचित्र पर लाना है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)
- परिचय:
- DRDO की स्थापना 1958 में भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (TDE), तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (DTDP) और रक्षा विज्ञान संगठन (DSO) का संयोजन करके की गई थी।
- DRDO भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय का अनुसंधान एवं विकास विंग है।
- आरंभ में DRDO के पास 10 प्रयोगशालाएँ थीं, वर्तमान में यह 41 प्रयोगशालाओं और 5 DRDO युवा वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं (DYSL) का संचालन करता है।
- सिद्धांत:
- DRDO का मार्गदर्शक सिद्धांत "बलस्य मूलं विज्ञानम् " (शक्ति विज्ञान में निहित है) है, जो राष्ट्र को शांति और युद्ध दोनों ही स्थिति में मार्गदर्शित करता है।
- मिशन:
- इसका मिशन तीनों सेनाओं की आवश्यकताओं के अनुसार भारतीय सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों और उपकरणों से लैस करते हुए महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों तथा प्रणालियों में आत्मनिर्भर होना है