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प्रिलिम्स फैक्ट्स

रैपिड फायर

विक्रम 32-बिट माइक्रोप्रोसेसर और सेमीकॉन इंडिया 2025

स्रोत: द हिंदू 

सेमिकॉन इंडिया 2025 में भारत के प्रधानमंत्री को भारत में निर्मित 'विक्रम' 32-बिट लॉन्च व्हीकल ग्रेड माइक्रोप्रोसेसर भेंट किया गया, जो सेमीकंडक्टर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि का प्रतीक है। 

विक्रम 3201

  • विक्रम 3201 को इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र और सेमीकंडक्टर प्रयोगशाला (SCL), चंडीगढ़ द्वारा KALPANA-3201 (32-बिट माइक्रोप्रोसेसर जिसे ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर टूल्स के साथ काम करने के लिये डिज़ाइन किया गया है) के साथ विकसित किया गया था। 
  • यह 16-बिट VIKRAM1601 का उन्नत संस्करण है, जिसका उपयोग वर्ष 2009 से इसरो प्रक्षेपण वाहन एवियोनिक्स में किया जा रहा है। 
  • इसे अंतरिक्ष उड़ान अनुप्रयोगों के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो -55°C से 125°C तक के चरम तापमान को सहन करने में सक्षम है। 
    • विक्रम 3201 का प्रारंभिक अंतरिक्ष परीक्षण SpaDeX मिशन (PSLV-C60 मिशन) के साथ सफलतापूर्वक पूरा किया गया, जिससे यह सिद्ध हुआ कि यह माइक्रोप्रोसेसर भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिये विश्वसनीय है। 
  • इसमें एक कस्टम इंस्ट्रक्शन सेट आर्किटेक्चर है, जिसे विशेष रूप से एडा (Ada) प्रोग्रामिंग भाषा के लिये तैयार किया गया है, जो सुरक्षा-संवेदनशील प्रणालियों में व्यापक रूप से उपयोग होती है। यह माइक्रोप्रोसेसर फ्लोटिंग-पॉइंट गणना जैसी जटिल प्रक्रियाओं को सँभालने में भी सक्षम है। 
  • यह लॉन्च वाहनों (लॉन्च व्हीकल्स) के नेविगेशन, गाइडेंस और नियंत्रण प्रणालियों में आत्मनिर्भरता को सक्षम बनाता है। 

VIKRAM3201             

सेमीकॉन इंडिया 2025 

  • थीम: अगले सेमीकंडक्टर पावरहाउस का निर्माण (Building the Next Semiconductor Powerhouse)। 
  • भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) के माध्यम से कार्यान्वित सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम, चिप डिज़ाइन, पैकेजिंग और निर्माण में भारत की बढ़ती क्षमताओं को प्रदर्शित करता है। 
  • यह वैश्विक सहयोग, अनुसंधान व्यावसायीकरण, कौशल विकास को भी सुगम बनाता है तथा वैश्विक सेमीकंडक्टर मूल्य शृंखला में भारत की स्थिति को मज़बूत करता है। 

Semiconductor

और पढ़ें: भारत की सेमीकंडक्टर महत्त्वाकांक्षाएँ 


रैपिड फायर

CEREBO: इंडिजेनस ब्रेन डायग्नोस्टिक टूल

स्रोत: द हिंदू  

भारत ने CEREBO नामक एक इंडिजेनस, हैंड-हेल्ड डायग्नोस्टिक टूल विकसित किया है, जो ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी (TBI) का पता लगाने के लिये बनाया गया है। इसका उद्देश्य प्रारंभिक पहचान और मरीजों के परिणामों में सुधार करना है, विशेषकर ग्रामीण तथा आपातकालीन परिस्थितियों में। 

  • CEREBO की प्रमुख विशेषताएँ: 
    • प्रौद्योगिकी: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा विकसित, यह उन्नत नियर-इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी और मशीन लर्निंग का उपयोग करके इंट्राक्रैनियल ब्लीडिंग तथा एडिमा का पता लगाता है। 
    • गति: एक मिनट के भीतर परिणाम उपलब्ध कराता है, जिससे आपात स्थिति में तेज़ी से निदान संभव होता है। 
    • सुरक्षा: यह गैर-आक्रामक और विकिरण-मुक्त है, जिससे शिशुओं, गर्भवती महिलाओं और बार-बार उपयोग के लिये सुरक्षित है। 
    • उपयोगकर्त्ता-अनुकूल:स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा आसान परिणामों के लिये कलर-कोडेड आउटपुट प्रदान करता है।
      • यह पोर्टेबल है और इसे एम्बुलेंस, ट्रॉमा सेंटर, ग्रामीण क्लीनिक तथा आपदा प्रतिक्रिया इकाइयों के लिये डिज़ाइन किया गया है, जहाँ CT (कंप्यूटेड टोमोग्राफी) या MRI (मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग) स्कैन की उपलब्धता सीमित होती है। 
    • लागत-प्रभावशीलता: सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों में CT स्कैन का एक किफायती विकल्प उपलब्ध कराता है। 
      • CEREBO, गहन ऊतक मूल्यांकन (Deep Tissue Assessment) के लिये CT स्कैन का स्थानापन्न नहीं है, बल्कि उसे पूरक करता है। 
  • ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी (TBI): यह मस्तिष्क को बाह्य बल से होने वाली क्षति है। माइल्ड TBI सोचने, चलने या व्यवहार पर अस्थायी प्रभाव डाल सकती है, जबकि सीवियर TBI स्थायी दिव्यांगता या मृत्यु का कारण बन सकती है। 
और पढ़ें: ब्रेनवेयर 

रैपिड फायर

ब्रेन ईटिंग अमीबा

स्रोत: DTE 

केरल में प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (PAM) के कई मामले सामने आए हैं, जो “ब्रेन-ईटिंग अमीबा” के कारण होने वाला संक्रमण है। 

ब्रेन ईटिंग अमीबा

  • विषय: ब्रेन-ईटिंग अमीबा विशेष रूप से नेग्लेरिया फाउलेरी और एकैंथअमीबा प्रजातियों के कारण होता है, जो कुओं और तालाबों जैसे- दूषित गर्म, मीठे पानी के स्रोतों में पाया जाता है। 
  • संचरण: नेग्लेरिया फाउलेरी दूषित मीठे पानी में तैरने या नहाने के दौरान नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है, मस्तिष्क तक पहुँचता है, यह मस्तिष्क के ऊतक को नष्ट कर देता है, जिससे गंभीर रूप से मस्तिष्क में सूजन आ जाती है। 
    • यह पीने के पानी या व्यक्ति-से-व्यक्ति के माध्यम से नहीं फैलता है। 
  • लक्षण: शुरुआती लक्षणों में सिरदर्द, बुखार, मतली, उल्टी, गर्दन में अकड़न, भ्रम, दौरे, मतिभ्रम और कोमा शामिल हैं। 
    • मृत्यु दर बहुत अधिक (>95%) है, अधिकांश रोगी 1-18 दिनों के भीतर, अक्सर शुरुआत के 5 दिनों के भीतर मर जाते हैं। 
  • उपचार: वर्तमान में कोई प्रभावी उपचार उपलब्ध नहीं है। संक्रमण के प्रबंधन के लिये एम्फोटेरिसिन B, एज़िथ्रोमाइसिन, फ्लुकोनाज़ोल और अन्य दवाओं के संयोजन की सिफारिश की जाती है। 

Primary Amoebic Meningoencephalitis (PAM)

और पढ़ें: प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस 

रैपिड फायर

भारत में प्रमुख क्षेत्रों का डीकार्बोनाइज़ेशन

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति केंद्र (CSEP) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत को वर्ष 2030 तक ऊर्जा, इस्पात, सीमेंट और सड़क परिवहन क्षेत्रों का डीकार्बोनाइज़ेशन करने के लिये 467 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी। ये क्षेत्र CO2 उत्सर्जन में 50% से अधिक का योगदान करते हैं। 

मुख्य क्षेत्रों का डीकार्बोनाइज़ेशन

क्षेत्र 

अतिरिक्त वित्तपोषण एवं प्रमुख डीकार्बोनाइज़ेशन उपाय 

इस्पात (Steel) 

251 बिलियन अमेरिकी डॉलर, कार्बन कैप्चर एवं स्टोरेज (CCS), ग्रीन हाइड्रोजन की ओर बदलाव, ऊर्जा दक्षता। 

सीमेंट (Cement) 

141 बिलियन अमेरिकी डॉलर, CCS, वैकल्पिक ईंधन, क्लिंकर प्रतिस्थापन। 

ऊर्जा/विद्युत (Electricity) 

47 बिलियन अमेरिकी डॉलर, नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार (सौर, पवन), ग्रिड का आधुनिकीकरण। 

सड़क परिवहन (Road Transport) 

18 बिलियन अमेरिकी डॉलर, विद्युत वाहन, जैव ईंधन, चार्जिंग अवसंरचना। 

डीकार्बोनाइज़ेशन और भारत का लक्ष्य 

  • डीकार्बोनाइज़ेशन: वैश्विक तापमान को कम करने और नेट-ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने के लिये CO₂ उत्सर्जन में व्यवस्थित कमी लाना। 
    • केवल इस्पात, सीमेंट और ऊर्जा क्षेत्रों का डीकार्बोनाइज़ेशन करके ही वर्ष 2030 तक लगभग 6.9 बिलियन टन CO₂ उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। 
  • भारत के वर्ष 2030 डीकार्बोनाइज़ेशन लक्ष्य: ग्लासगो में आयोजित COP26 (2021) में भारत ने अपनी पंचामृत (Panchamrit) जलवायु कार्ययोजना प्रस्तुत की, जिसमें पाँच प्रमुख लक्ष्य शामिल हैं: 
    • वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता हासिल करना। 
    • वर्ष 2030 तक ऊर्जा आवश्यकता का 50% नवीकरणीय स्रोतों से पूरा करना। 
    • वर्ष 2030 तक 1 बिलियन टन CO₂ उत्सर्जन में कमी लाना। 
    • वर्ष 2030 तक कार्बन तीव्रता में 45% की कटौती करना। 
    • वर्ष 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना। 
  • प्रगति: 
    • भारत ने अपना गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता लक्ष्य वर्ष 2024 में ही हासिल कर लिया, जो निर्धारित समय (2030) से पाँच वर्ष पहले है। कुल 484.82 गीगावाट स्थापित क्षमता में से 242.78 गीगावाट (लगभग 50%) गैर-जीवाश्म स्रोतों से है। 
    • भारत ने वर्ष 2030 तक 2.5-3 बिलियन टन कार्बन सिंक स्थापित करने का संकल्प लिया है। वर्ष 2021 तक भारत पहले ही 2.29 बिलियन टन हासिल कर चुका था। 
    • भारत ने वर्ष 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता में 45% कमी का लक्ष्य रखा था, जिसमें से वर्ष 2020 तक पहले ही 36% उत्सर्जन तीव्रता कमी प्राप्त की जा चुकी थी।
और पढ़ें: भारत के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र का डीकार्बोनाइज़ेशन 

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