उत्तराखंड Switch to English
उत्तराखंड में बेली ब्रिज
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड के मिलम गाँव के निवासियों को हिमस्खलन के कारण गौखा नदी पर बने बेली ब्रिज के क्षतिग्रस्त होने के कारण महत्त्वपूर्ण पहुँच संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
- सीमा सड़क संगठन (BRO) को क्षति की मरम्मत करने और पुल को जल्द से जल्द पुनः स्थापित करने के निर्देश दिये गए हैं।
मुख्य बिंदु
- पुल की अवस्थिति:
- मिलम गाँव से लगभग 8 किमी. दूर स्थित बेली ब्रिज गाँव और चीन सीमा पर स्थित कई सुरक्षा चौकियों के बीच एक महत्त्वपूर्ण संपर्क प्रदान करता है।
- लगभग 400 निवासियों की आबादी वाला मिलम गाँव, भारत-चीन सीमा के पास स्थित जोहार घाटी में अंतिम बसा हुआ क्षेत्र है।
- 65 किमी. लंबा मुनस्यारी-मिलम मार्ग इन मौसमी आवागमन के दौरान निवासियों के लिये एकमात्र संपर्क मार्ग है।
- मिलम गाँव से लगभग 8 किमी. दूर स्थित बेली ब्रिज गाँव और चीन सीमा पर स्थित कई सुरक्षा चौकियों के बीच एक महत्त्वपूर्ण संपर्क प्रदान करता है।
- बेली ब्रिज के बारे में:
- बेली ब्रिज एक प्रकार का मॉड्यूलर पुल (modular bridge) है, जिसके सभी हिस्से पहले से बने होते हैं, इसलिये आवश्यकतानुसार उन्हें जल्दी से जोड़ा जा सकता है।
- इसका आविष्कार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सिविल इंजीनियर डोनाल्ड कोलमैन बेली (Donald Coleman Bailey) द्वारा किया गया था।
- इस पुल की प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं: मॉड्यूलर डिज़ाइन, परिवहन में आसानी, उच्च भार वहन क्षमता और विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में अनुकूलन क्षमता।
- बेली ब्रिजों को विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण वातावरण में त्वरित संयोजन के लिये डिज़ाइन किया गया है, जिसके लिये न तो भारी मशीनरी की आवश्यकता होती है और न ही उन्नत निर्माण तकनीक की।
- भारतीय सशस्त्र बलों को बेली ब्रिज का डिज़ाइन अंग्रेजों से विरासत में मिला था। इसे वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में और वर्ष 2021 की उत्तराखंड बाढ़ जैसी आपदाओं में राहत कार्यों के दौरान प्रयोग में लाया गया था।
हिमस्खलन
- परिचय:
- हिमस्खलन अथवा हिमधाव (Avalanche) पर्वतीय ढलानों पर बर्फ, बर्फीले टुकड़ों तथा मलबे का तीव्र गति से नीचे की ओर बहना होता है। इसमें प्रायः मिट्टी, चट्टानें तथा मलबा भी शामिल होता है, जिससे भारी विनाश होता है।
- दिसंबर से अप्रैल के बीच हिमस्खलन का खतरा अधिक रहता है, क्योंकि इस अवधि में शीत ऋतु में भारी हिमपात (बर्फ का संचय) और वसंत ऋतु में हिम-स्तरों के कमज़ोर होने (हिम परतों का विगलन होना) की घटनाएँ होती हैं।
- प्रकार:
- अदृढ़ हिम अवधाव (Loose Snow Avalanche): यह एक एकल बिंदु से शुरू होता है, जहाँ हिम का आबंध सुदृढ़ नहीं होता, हिम के कणों के गिरने के साथ इसमें प्रतिलोमित V आकार में विस्तार होता है तथा अपेक्षाकृत कम मात्रा और गति के कारण यह कम संकटपूर्ण होता है।
- स्लैब हिमस्खलन (Slab Avalanche): किसी संसक्त हिम पट्ट का अंतर्निहित परतों से टूटकर अलग होना स्लैब हिमस्खलन कहलाता है, जिसकी गति प्रायः 50 से 100 किमी/घंटा तक होती है और यह भीषण विनाश का कारण बनता है।
- ग्लाइडिंग हिमस्खलन (Gliding Avalanche): इसमें हिम पुंज का घास अथवा चट्टान जैसी समान सतह से नीचे की ओर फिसलन होता है, जिससे इसमें विभंजन होता है और यह स्थिर हिम खंड से अलग हो जाता है।
- आर्द्र-हिम अवधाव (Wet-Snow Avalanche): आर्द्र-हिम हिमस्खलन स्वाभाविक रूप से तापमान या वर्षा में बढ़ोतरी के कारण होता है, क्योंकि विगलित हिम के जल से हिम परत का आबंध कमज़ोर हो जाता है।
सीमा सड़क संगठन (BRO)
- देश के उत्तरी और पूर्वोत्तर सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों के नेटवर्क के तीव्र विकास के समन्वय के लिये वर्ष 1960 में सीमा सड़क संगठन (BRO) की स्थापना की गई थी।
- यह संगठन रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है।
- BRO ने अब अपना कार्यक्षेत्र हवाई पट्टियों, भवन परियोजनाओं, रक्षा संबंधी निर्माण तथा सुरंग निर्माण तक विस्तारित कर लिया है।
- केंद्र सरकार ने सीमा सड़क विकास बोर्ड (BRDB) की स्थापना की, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री तथा उपाध्यक्ष रक्षा मंत्री होते हैं।


राजस्थान Switch to English
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड
चर्चा में क्यों?
राजस्थान वन विभाग ने ऑपरेशन सिंदूर और इसमें शामिल सैन्य कर्मियों के सम्मान में नवजात ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (अर्डियोटिस नाइग्रिसेप्स) चूजों का नाम सिंदूर, व्योम, मिश्री और सोफिया रखा।
मुख्य बिंदु
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के बारे में:
- राजस्थान का राज्य पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड भारत का सबसे गंभीर रूप से संकटग्रस्त पक्षी माना जाता है। यह विश्व स्तर पर उड़ने वाले सबसे भारी पक्षियों में से एक है तथा यह मुख्य रूप से राजस्थान के थार रेगिस्तान में पाया जाता है। कम संख्या में यह गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मिलते हैं।
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड भारत में पाई जाने वाली चार बस्टर्ड प्रजातियों में से एक है, जिसमें लेसर फ्लोरिकन, बंगाल फ्लोरिकन और मैकक्वीन बस्टर्ड भी शामिल हैं।
- फ्रंटल विज़न के अभाव के कारण ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की विद्युत लाइनों से टकराने की अधिक संभावना रहती है।
- राजस्थान का राज्य पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड भारत का सबसे गंभीर रूप से संकटग्रस्त पक्षी माना जाता है। यह विश्व स्तर पर उड़ने वाले सबसे भारी पक्षियों में से एक है तथा यह मुख्य रूप से राजस्थान के थार रेगिस्तान में पाया जाता है। कम संख्या में यह गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मिलते हैं।
- पारिस्थितिकी महत्त्व: ग्रेट इंडियन बस्टर्ड एक संकेतक प्रजाति है तथा यह पक्षी चरागाह पारिस्थितिकी तंत्र के बेहतर स्वास्थ्य का परिचायक है। इनकी संख्या में कमी स्थानीय घास के मैदानों के क्षरण का संकेतक है।
- संरक्षण स्थिति: IUCN रेड लिस्ट (गंभीर रूप से संकटग्रस्त), CITES (परिशिष्ट 1), प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय (CMS) (परिशिष्ट I) और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (अनुसूची I)।
- खतरे: कृषि, खनन और बुनियादी ढाँचे से इनके अधिवास की क्षति के साथ विद्युत लाइनों से टकराव (मृत्यु दर का प्रमुख कारण) इनके लिये प्रमुख खतरा है।
- इनके अवैध शिकार में कमी आई है लेकिन मानवीय गतिविधियों एवं असंतुलित भूमि उपयोग से इस प्रजाति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- संरक्षण प्रयास: इसके संरक्षण की दिशा में वर्ष 2018 में पर्यावरण मंत्रालय, भारतीय वन्यजीव संस्थान और राजस्थान वन विभाग ने प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की शुरुआत की।
- जैसलमेर के सुदासरी और साम स्थित कैप्टिव ब्रीडिंग सेंटर्स में नवजात ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की जीवन दर में सुधार के क्रम में AI-सक्षम निगरानी, इनक्यूबेटर तथा सेंसर-आधारित प्रणालियों का उपयोग किया जा रहा है।
ऑपरेशन सिंदूर
- परिचय: यह पहलगाम आतंकी हमले के प्रत्युत्तर में 7 मई, 2025 को भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा लॉन्च किया गया एक समन्वित स्ट्राइक ऑपरेशन है।
- लक्ष्य: 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थित जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन से संबद्ध आतंकी ठिकानों को लक्षित किया।
- इन हमलों का उद्देश्य भारत के खिलाफ हमलों की योजना बनाने में इस्तेमाल किये गए आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करना था।


उत्तर प्रदेश Switch to English
दुधवा टाइगर रिज़र्व में तितली विविधता
चर्चा में क्यों?
अपनी विशाल बाघ आबादी के लिये प्रसिद्ध उत्तर प्रदेश का दुधवा टाइगर रिज़र्व (DTR) अब तितलियों की 180 प्रजातियों का भी आश्रय स्थल बन गया है, जो एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र और बेहतर संरक्षण प्रयासों का संकेत है।
मुख्य बिंदु
- तितली प्रजातियों में वृद्धि:
- लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में किये गए सर्वेक्षण में DTR में 110 से अधिक तितली प्रजातियाँ दर्ज की गईं, जबकि पहले ज्ञात संख्या केवल 45 थी।
- प्रवासी एवं दुर्लभ प्रजातियाँ:
- उत्तराखंड से प्रवासी तितलियाँ उत्तर प्रदेश में बढ़ती विविधता में योगदान देती हैं।
- पहचानी गई दुर्लभ और उल्लेखनीय प्रजातियों में कॉमन मॉर्मन, कॉमन माइन, कॉमन लाइम, टॉनी कोस्टर, गौडी बैरन (दुर्लभ), स्ट्राइप्ड टाइगर, कॉमन टाइगर (दोनों लिंग), ग्रे काउंट (दुर्लभ), कमांडर शामिल हैं।
- महत्त्व:
- तितलियाँ, जिन्हें जैव-संकेतक के रूप में जाना जाता है, जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती हैं तथा केवल पारिस्थितिकी रूप से स्वस्थ वातावरण में ही पनपती हैं।
- यह तीव्र वृद्धि एक अधिक स्वस्थ एवं संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र का संकेत है।
- दुधवा टाइगर रिज़र्व (DTR) के बारे में:
- पृष्ठभूमि
- संरक्षणवादी बिली अर्जन सिंह ने जनवरी 1977 में दुधवा को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- बाद में वर्ष 1987 में इसे टाइगर रिज़र्व घोषित कर दिया गया।
- संरचना
- दुधवा टाइगर रिज़र्व (DTR) में शामिल हैं:
- दुधवा राष्ट्रीय उद्यान
-
किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य
- कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य
- उत्तरी खीरी, दक्षिण खीरी और शाहजहाँपुर वन प्रभागों के बफर ज़ोन।
- दुधवा टाइगर रिज़र्व (DTR) में शामिल हैं:
- वनस्पति और जीव:
- यह क्षेत्र ऊपरी गंगा के मैदानों के तराई-भाबर पारिस्थितिकी तंत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
- यहाँ की वनस्पति मुख्यतः उत्तर भारतीय नम पर्णपाती वन है।
- यह रिज़र्व अपनी समृद्ध जैवविविधता के लिये जाना जाता है, जहाँ विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ और जीव पाए जाते हैं जिनमें बंगाल टाइगर, भारतीय गैंडा, दलदली हिरण, तेंदुआ और पक्षियों की कई प्रजातियाँ शामिल हैं।
- जैवविविधता और संरक्षण स्थिति:
- 490.3 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैले दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में उत्तर प्रदेश के कुल 205 बाघों में से 135 बाघ हैं, जो वर्ष 2018 के 82 बाघों से उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।
- वर्ष 2022 की अखिल भारतीय बाघ जनगणना में, दुधवा टाइगर रिज़र्व (DTR) को बाघ आबादी के लिये भारत में चौथा स्थान दिया गया।
नोट:
- वर्ष 2015 में, महाराष्ट्र "ब्लू मॉर्मन" (पैपिलियो पॉलीमनेस्टर) को अपना राज्य तितली नामित करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया।
- यह तितली भारत में दक्षिणी बर्डविंग के बाद दूसरी सबसे बड़ी तितली है।


झारखंड Switch to English
बिरसा मुंडा शहीद दिवस
चर्चा में क्यों?
9 जून 2025 को प्रधानमंत्री ने भगवान बिरसा मुंडा को उनके शहीद दिवस के अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
मुख्य बिंदु
- बिरसा मुंडा के बारे में:
- परिचय:
- बिरसा मुंडा एक प्रमुख आदिवासी नेता, धार्मिक सुधारक तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने छोटानागपुर क्षेत्र में ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों के विरुद्ध सशक्त प्रतिरोध का नेतृत्व किया।
- उन्हें "धरती अब्बा" (अर्थात् पृथ्वी के पिता) के नाम से भी जाना जाता है। वे भूमि अधिकारों, सामाजिक सुधार तथा आध्यात्मिक एकता के लिये आदिवासी समुदायों को संगठित करने हेतु स्मरण किये जाते हैं।
- प्रारंभिक जीवन:
- उनका जन्म 15 नवंबर 1875 को उलिहातु गाँव (ज़िला खूंटी, झारखंड) में एक गरीब मुंडा आदिवासी बटाईदार परिवार में हुआ था। प्रारंभ में उनका नाम दाउद मुंडा रखा गया था, क्योंकि उनके पिता ने कुछ समय के लिये ईसाई धर्म अपनाया था।
- शिक्षा:
- उन्होंने जर्मन मिशन स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, जिससे उन पर प्रारंभ में ईसाई धर्म-शिक्षा का प्रभाव पड़ा, किंतु सांस्कृतिक पृथक्करण के कारण उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।
- बिरसा वैष्णव विचारधारा से प्रभावित थे। उन्होंने एक नवीन धार्मिक पंथ ‘बिरसाइत’ की स्थापना की, जिसके अनुयायी उन्हें भगवान के रूप में पूजते थे।
- विश्वास और शिक्षाएँ:
- उन्होंने सिंहबोंगा (सूर्य देवता) की पूजा के माध्यम से एकेश्वरवाद का प्रचार किया, शराबखोरी, काला जादू, अंधविश्वास और जबरन श्रम (बेथ बेगारी) की निंदा की एवं स्वच्छता, आध्यात्मिक एकता, आदिवासी पहचान पर गर्व व सामुदायिक भूमि स्वामित्व को बढ़ावा दिया।
- ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रतिरोध:
- ब्रिटिश भूमि-राजस्व नीतियों ने पारंपरिक "खुंटकट्टी" भूमि प्रणाली (जो एक कबीले के भीतर सामूहिक भूमि स्वामित्व पर आधारित थी) को समाप्त कर दिया, जिससे ज़मींदारों तथा ठेकेदारों को सशक्त किया गया, जिन्होंने आदिवासी किसानों का शोषण किया।
- बिरसा मुंडा ने इन अन्यायों के विरुद्ध आदिवासी जनता को संगठित किया तथा उनके भूमि अधिकारों की पुनः प्राप्ति हेतु सशक्त अभियान चलाया।
- ब्रिटिश भूमि-राजस्व नीतियों ने पारंपरिक "खुंटकट्टी" भूमि प्रणाली (जो एक कबीले के भीतर सामूहिक भूमि स्वामित्व पर आधारित थी) को समाप्त कर दिया, जिससे ज़मींदारों तथा ठेकेदारों को सशक्त किया गया, जिन्होंने आदिवासी किसानों का शोषण किया।
- उलगुलान आंदोलन (1895–1900):
- वर्ष 1895 में बिरसा मुंडा को दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 2 वर्षों के लिये जेल में डाल दिया गया। वर्ष 1897 में रिहाई के पश्चात् उन्होंने आदिवासी नेतृत्व वाले स्वशासन आंदोलन के समर्थन हेतु गाँवों में जनजागरण आरंभ किया।
- वर्ष 1899 में उन्होंने "उलगुलान" (महान कोलाहल) नामक सशस्त्र आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सत्ता का प्रतिकार करने तथा "बिरसा राज" के रूप में एक स्वशासित आदिवासी राज्य की स्थापना हेतु गुरिल्ला युद्ध-नीति अपनाई।
- वर्ष 1895 में बिरसा मुंडा को दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 2 वर्षों के लिये जेल में डाल दिया गया। वर्ष 1897 में रिहाई के पश्चात् उन्होंने आदिवासी नेतृत्व वाले स्वशासन आंदोलन के समर्थन हेतु गाँवों में जनजागरण आरंभ किया।
- परिणाम और विरासत:
- फरवरी 1900 में बिरसा मुंडा को पुनः गिरफ्तार कर लिया गया तथा 9 जून 1900 को मात्र 25 वर्ष की आयु में ब्रिटिश हिरासत में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई; आधिकारिक रूप से मृत्यु का कारण हैजा बताया गया।
- उनके आंदोलन के परिणामस्वरूप वर्ष 1908 में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया, जिसने जनजातीय भूमि अधिकारों (खुंटकट्टी) को कानूनी मान्यता दी, ग़ैर-जनजातीयों को भूमि हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाया तथा "बेठ बेगारी" (जबरन श्रम) की प्रथा को समाप्त कर दिया।
- वर्ष 2021 से, 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस (जनजातीय गौरव दिवस) के रूप में मनाया जाता है।
- फरवरी 1900 में बिरसा मुंडा को पुनः गिरफ्तार कर लिया गया तथा 9 जून 1900 को मात्र 25 वर्ष की आयु में ब्रिटिश हिरासत में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई; आधिकारिक रूप से मृत्यु का कारण हैजा बताया गया।
जनजातीय समुदायों से संबंधित प्रमुख पहल
- धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान: यह योजना 63,000 अनुसूचित जनजाति बहुल गाँवों में मौजूदा योजनाओं को लागू करने के लिये एक व्यापक योजना है।
- पीएम-जनमन की शुरुआत वर्ष 2023 में की गई थी, ताकि स्वास्थ्य सेवा, वित्तीय समावेशन और सामुदायिक समर्थन सहित लक्षित योजनाओं के साथ विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTG) का समर्थन किया जा सके।
- प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना (PMAAGY) का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण जनजातीय आबादी वाले गाँवों में बुनियादी ढाँचा उपलब्ध कराना है।

