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डेली न्यूज़

सामाजिक न्याय

दलित ईसाई

  • 09 Jan 2020
  • 4 min read

प्रीलिम्स के लिये:

दलित ईसाइयों की वैधानिक स्थिति

मेन्स के लिये:

दलित ईसाइयों पर पड़ने वाले सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति मूल के ईसाइयों को अनुसूचित जातियों के समान दिये जाने वाले लाभों को आवंटित करने के लिये एक याचिका पर विचार करने हेतु सहमति व्यक्त की है। विदित है कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 का अनुच्छेद तीन अनुसूचित जाति मूल के ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने से प्रतिबंधित करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • राष्ट्रीय दलित ईसाई परिषद (National Council of Dalit Christians-NCDC) की सरकारी नौकरियों तथा शिक्षण संस्थानों में धार्मिक तटस्थता (ReligiousNeutral) की मांग संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को एक नोटिस जारी किया है।
  • राष्ट्रीय दलित ईसाई परिषद ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि “धर्म परिवर्तन से भी सामाजिक बहिष्कार समाप्त नही होता है। जाति पदानुक्रम व्यवस्था ईसाई धर्म के भीतर भी असमानता को बनाए रखता है, भले ही ईसाई धर्म इसकी अनुमति न देता हो”।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने अपील की है कि संसद द्वारा पारित अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 तथा संशोधन अधिनियम, 2018 के तहत कानूनी उपाय/संरक्षण का लाभ, शिक्षा में विशेष विशेषाधिकार प्राप्त करने, छात्रवृत्ति, रोज़गार के अवसर, कल्याणकारी उपाय, सकारात्मक कार्यवाई, पंचायत में आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ने का अधिकार प्राप्त करने के लिये अनुसूचित जाति मूल के ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने और उसे बढ़ाने की अनुमति दी जाए।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने पीठ का ध्यान आकर्षित करते हुए बताया कि हाथ से मैला ढोने (Manual Scavenging) के कार्य में आज भी अनुसूचित जाति मूल के ईसाई संलग्न हैं ।
  • याचिकाकर्त्ताओं के अनुसार, यह स्थिति संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21 और 25 का उल्लंघन करती है।

कौन हैं दलित ईसाई?

  • ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान हिंदू धर्म को मानने वाले अनुसूचित जाति समुदाय के वे लोग जिन्होंने ईसाई धर्म को अपना लिया दलित ईसाई कहलाए।
  • भारत में 24 मिलियन ईसाई आबादी में से, दलित ईसाइयों की संख्या लगभग 16 मिलियन है। इन दलित ईसाइयों में से अधिकांश आबादी दक्षिणी राज्यों आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में निवास करती है।
  • दलित ईसाइयों को आज भी चर्च, राज्य तथा समाज के द्वारा किये जाने वाले भेदभावों का सामना करना पड़ता है।
  • आधुनिक साहित्य में अनुसूचित जाति को ‘दलित’ नाम से संबोधित किया जाने लगा। औपनिवेशिक शासन के दौरान ‘डिप्रेस्ड क्लास’ के लिये दलित शब्द का प्रयोग किया गया, जिसे भारतीय संविधान निर्माता बी.आर.आंबेडकर द्वारा प्रसिद्ध किया गया।

स्रोत: द हिंदू

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