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वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन

  • 07 Jan 2021
  • 15 min read

 Last Updated: July 2022 

वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora-CITES) एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका पालन राष्ट्र तथा क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठन स्वैच्छिक रूप से करते हैं।

  • वर्ष 1963 में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN) के सदस्यों देशों की बैठक में अपनाए गए एक प्रस्ताव के परिणामस्वरूप CITES का मसौदा तैयार किया गया था।
    • आई.यू.सी.एन. एक सदस्यीय संघ है जो विशिष्ट रूप से सरकार एवं नागरिक समाज संगठनों दोनों से मिलकर बना है।
    • यह सार्वजनिक, निजी एवं गैर-सरकारी संगठनों को ज्ञान तथा युक्तियाँ प्रदान करता है ताकि मानव प्रगति, आर्थिक विकास और प्रकृति संरक्षण को सुनिश्चित किया जा सके।
  • CITES जुलाई 1975 में लागू हुआ था। वर्तमान में CITES के 183 पक्षकार देश हैं ( इसमें देश अथवा क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठन दोनों शामिल हैं)।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वन्य जीवों एवं वनस्पतियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण उनका अस्तित्त्व पर संकट न हो।
  • CITES का सचिवालय संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा प्रशासित किया जाता है जो यह जिनेवा स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
    • यह कन्वेंशन (CITES) की क्रियाविधि में एक समन्वयक, सलाहकार एवं सेवा प्रदाता की भूमिका निभाता है।
  • CITES के पक्षकारों का सम्मेलन इस कन्वेंशन का सर्वोच्च निर्णायक निकाय होता है एवं इसमें सभी पक्षकार शामिल होते हैं।
  • पक्षकारों का पिछला सम्मेलन (17वाँ) वर्ष 2016 में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग शहर में आयोजित किया गया था। भारत ने वर्ष 1981 में पक्षकारों के सम्मेलन के तृतीय संस्करण की मेज़बानी की थी।
  • यद्यपि CITES अपने पक्षकारों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है परंतु इसे राष्ट्रीय स्तर के कानून का दर्जा नहीं प्रदान किया गया है।
    • निःसंदेह यह प्रत्येक पक्षकार द्वारा स्वीकृत एक ढाँचा प्रदान करता है जिसे प्रत्येक राष्ट्र द्वारा घरेलू कानूनों में शामिल किया जाता है ताकि CITES को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जा सके।

कार्य

  • CITES चयनित प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित कर अपने कार्यों का निष्पादन करता है।
  • कन्वेंशन में शामिल विभिन्न प्रजातियों के आयात, निर्यात, पुनः निर्यात एवं प्रवेश संबंधी प्रक्रियाओं को लाइसेंसिंग प्रणाली के माध्यम से अधिकृत किया जाना आवश्यक है।
  • कन्वेंशन के लिये प्रत्येक पक्षकार देश को एक या एक से अधिक प्रबंधन संबंधी प्राधिकरणों को नामित करना चाहिये जो कि लाइसेंसिंग प्रणाली और वैज्ञानिक प्राधिकरणों को प्रजातियों की व्यापार संबंधी स्थिति के प्रभावों पर सलाह देने के लिये प्रशासनिक प्रभारी को नामित करें।
  • कन्वेंशन के परिशिष्ट I, II एवं III में विभिन्न प्रजातियों को सूचीबद्ध किया गया है जो प्रजातियों को अत्यधिक दोहन से बचाने हेतु विभिन्न स्तर एवं विभिन्न प्रकार के संरक्षण का प्रावधान करता है।

परिशिष्ट-I

  • इसमें वे प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं जो CITES द्वारा सूचीबद्ध वन्य जीवों एवं पौधों में सबसे अधिक संकटापन्न स्थिति में हैं।
  • उदाहरणतः इसमें गोरिल्ला, समुद्री कछुए, अधिकांश ऑर्किड प्रजातियाँ एवं विशाल पांडा शामिल हैं। वर्तमान में इसमें 931 प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं।
  • इन प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है एवं CITES इन प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करता है, सिवाय  जब इसके आयात का उद्देश्य व्यावसायिक न होकर वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये किया जाता हो।
  • कुछ विशिष्ट मामलों में इनका व्यापार तभी हो सकता है जब यह आयात परमिट एवं निर्यात परमिट (या पुनः निर्यात प्रमाण पत्र) दोनों की स्वीकृति द्वारा अधिकृत हो।

परिशिष्ट II

  • इसमें ऐसी प्रजातियाँ शामिल हैं जिनके निकट भविष्य में लुप्त होने का खतरा नहीं नहीं है लेकिन ऐसी आशंका है कि यदि इन प्रजातियों के व्यापार को सख्त तरीके से नियंत्रित नहीं किया गया तो ये लुप्तप्राय की श्रेणी में आ सकती हैं।
  • इस परिशिष्ट में अधिकांश CITES प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं जिनमें अमेरिकी जिनसेंग, पैडलफिश, शेर, अमेरिकी मगरमच्छ, महोगनी एवं कई प्रवाल शामिल हैं। वर्तमान में 34,419 प्रजातियाँ इसमें सूचीबद्ध हैं।
  • इसमें तथाकथित ‘एक जैसी दिखने वाली प्रजातियाँ (look-alike species)’ भी शामिल हैं अर्थात् ऐसी प्रजातियाँ जो एक समान दिखती हैं उन्हें व्यापार संरक्षण कारणों से सूचीबद्ध किया गया है।
  • परिशिष्ट- II की कुछ प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को निर्यात परमिट या पुनः निर्यात प्रमाण पत्र द्वारा अधिकृत किया जा सकता है।
  • CITES के तहत इन प्रजातियों के आयात हेतु किसी आयात परमिट की आवश्यकता नहीं होती है (हालाँकि कुछ देशों में आयात परमिट की आवश्यकता होती है जिन्होंने CITES की तुलना में अधिक सख्त कदम उठाए हैं)।
  • परमिट या प्रमाण पत्र केवल तभी प्रदान किये जाने चाहिये जब संबंधित अधिकारी संतुष्ट हो कि आवश्यक शर्तें पूरी की गई हैं, इन सबसे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि संबंधित व्यापार प्रमाण पत्र वन्य प्रजातियों के अस्तित्व के लिये हानिकारक नहीं होगा।

परिशिष्ट III

  • यह उन प्रजातियों की सूची है जिन्हें  किसी पक्षकार के अनुरोध पर शामिल किया जाता है, जिनका व्यापार पक्षकार द्वारा पहले से ही विनियमित किया जा रहा है तथा शामिल की गईं प्रजातियों के अधारणीय एवं अत्यधिक दोहन रोकने के लिये दूसरे देशों के सहयोग की आवश्यकता है।
  • इनमें मैप टर्टल, वालरस और केप स्टैग बीटल शामिल हैं। वर्तमान में इसमें 147 प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं।
  • इस परिशिष्ट में सूचीबद्ध प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को केवल उपयुक्त परमिट या प्रमाण पत्र की प्रस्तुति पर ही अनुमति प्रदान की जाती है।

प्रजातियों को केवल पक्षकारों के सम्मेलन द्वारा परिशिष्ट I और II में शामिल किया जा सकता है या हटाया जा सकता है अथवा उनके मध्य स्थानांतरित किया जा सकता है।

  • हालाँकि परिशिष्ट III में सूचीबद्ध प्रजातियों को किसी भी पक्षकार द्वारा किसी भी समय शामिल किया जा सकता है अथवा हटाया जा सकता है।

CITES का योगदान

  • CITES पौधों एवं वन्य जीवों की लगभग 35,000 प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करता है -
    • आमतौर पर इनमें से 3% प्रजातियों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निषिद्ध है।
    • शेष 97% प्रजातियों का अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक व्यापार यह सुनिश्चित करके विनियमित किया जाता है कि इनका व्यापार वैध, धारणीय एवं अनुमार्गी है।
  • CITES पिछले 42 वर्षों से जैव विविधता के सतत् उपयोग पर वार्ता में अग्रणी रहा है एवं इस अवधि में इसके आधारभूत आँकड़ों में 12,000,000 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार लेन-देन दर्ज हैं। इनमें ऐसे कई व्यापार शामिल हैं जिनसे कई बार स्थानीय समुदाय लाभान्वित हुए हैं जैसे-दक्षिण अमेरिका में विक्यूना।
    • CITES का परिशिष्ट II ऊनी कपड़ों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं अन्य निर्मित उत्पादों (लग्ज़री एवं बुने हुए हस्तशिल्प) के लिये जीवित विक्यूना से ऊन कर्तन के प्रयोग की अनुमति प्रदान करता है।
  • एक अनुमान के अनुसार, अवैध व्यापार का मूल्य प्रतिवर्ष 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मध्य है।
    • अवैध गतिविधियाँ जो कई प्रजातियों को विलुप्ति की ओर ले जा रही हैं और स्थानीय लोगों को विकास के विकल्पों एवं सरकारों को संभावित राजस्व से वंचित कर रही हैं।
  • अवैध वन्यजीवों के व्यापार से निपटने के लिये CITES सचिवालय, अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन (International Criminal Police Organization-INTERPOL), संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय, विश्व बैंक एवं विश्व सीमा शुल्क संगठन के एक सहायक संघ के रूप में ‘वन्यजीव अपराध के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय सहायक संघ’ (The International Consortium on Combating Wildlife Crime-ICCWC) की स्थापना की गई है।
    • यह वन्यजीवों के अवैध व्यापार से निपटने के लिये राष्ट्रीय प्रवर्तन अधिकारियों एवं क्षेत्रीय निकायों की सहायता करने हेतु पूर्ण प्रवर्तन शृंखला प्रदान करता है।

CITES और भारत 

  • भारत विश्व के उन मान्यता प्राप्त अत्यधिक विविधता (Mega Diverse) वाले देशों में से एक है जो विश्व में रिकॉर्ड की गई कुल प्रजातियों में से लगभग 7-8% का आवास स्थल है। वैश्विक स्तर पर मान्य 34 में से 4 जैव विविधता हॉटस्पॉट केंद्र (हिमालय, भारत-बर्मा, पश्चिमी घाट और सुंडालैंड) भारत में हैं।
    • भारत जैविक संसाधनों से संबंधित पारंपरिक ज्ञान का एक विशाल भंडारण केंद्र है। अब तक देश के दस जैव भौगोलिक क्षेत्रों में 91,200 से अधिक वन्य जीवों एवं 45,500 पौधों की प्रजातियों को प्रलेखित किया गया है।
    • निरंतर सर्वेक्षणों एवं अन्वेषणों के माध्यम से कई नवीन प्रकटीकरण के साथ वन्य जीव एवं वानस्पतिक विविधता की सूची को उत्तरोत्तर अद्यतन किया जा रहा है।
  • CITES के एक पक्षकार के रूप में भारत संकटापन्न वन्य प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सक्रिय रूप से प्रतिबंधित करता है (जैसे निर्यात के लिये प्रमाण पत्र, आयात के लिये परमिट आदि) और आक्रामक विदेशी प्रजातियों के खतरों को नियंत्रित करने के लिये कई उपाय करता है।
  • भारत ने CITES के परिशिष्ट II में सूचीबद्ध शीशम (Dalbergia sissoo) को हटाने का प्रस्ताव किया है। यह प्रजाति बहुत तीव्र दर से बढ़ती है और अपनी मूल सीमा के बाहर भी प्राकृतिक रूप से उगने की क्षमता रखती है। यह विश्व के अन्य हिस्सों में आक्रमक प्रजाति के रूप में भी जानी जाती है।
    • निकट भविष्य में परिशिष्ट I में शामिल होने से बचने के लिये प्रजातियों के व्यापार का विनियमन आवश्यक नहीं है।
  • भारत ने छोटे पंजे वाले ऊदबिलाव (Aonyx Cinereus), स्मूद कोटेड ऑटर (Lutrogale Perspicillata) इंडियन स्टार टोर्टोइज़ (Geochelone Elegans) को परिशिष्ट II से परिशिष्ट I में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव दिया है ताकि इन प्रजातियों को और अधिक सुरक्षा मिल सके।
  • प्रस्ताव में CITES के परिशिष्ट II में टोके गैको और वेजफिश (Rhinidae) को शामिल करने की भी बात कही गई है।
    • टोके गैको का चीनी पारंपरिक दवा निर्माण के लिये अत्यधिक व्यापार किया जाता है।
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