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प्रश्न :
प्रश्न. “सामाजिक न्याय क लिये दान की नहीं, बल्कि अभिगम्यता और गरिमा की आवश्यकता होती है।” दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के आलोक में दिव्यांगजनों को सशक्त बनाने के लिये भारत के प्रयासों का मूल्यांकन कीजिये।
09 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय
(150 शब्द)उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- उद्धरण की संक्षेप में व्याख्या कीजिये।
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये।
- कार्यान्वयन में लगातार आ रही कमियों और चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए, उनसे निपटने के लिये उपयुक्त उपायों को भी प्रस्तावित कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
दिव्यांग व्यक्तियों (दिव्यांगजनों) का सशक्तीकरण सामाजिक न्याय का एक प्रमुख आयाम है, जो केवल चैरिटी के बजाय समान अधिकारों, अभिगम्यता और सम्मान पर ज़ोर देता है।
- अमर जैन बनाम भारत संघ एवं अन्य (2025) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि दिव्यांगजनों के लिये समावेशी डिजिटल एक्सेस जीवन और स्वतंत्रता के मूल अधिकार (A-21) का हिस्सा है, साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने दिव्यांगजनों को अधिकार-धारक के रूप में मान्यता देते हुए डिजिटल KYC प्रक्रिया को सुलभ बनाने का निर्देश दिया।
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 इस उद्देश्य से बनाया गया है कि दिव्यांगजनों के अधिकार केवल सैद्धांतिक या आदर्श स्तर पर न रह जाऍं बल्कि उन्हें सुनिश्चित करने हेतु ठोस एवं व्यावहारिक उपाय लागू किये जा सकें।
मुख्य भाग:
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की उपलब्धियाँ:
- विस्तारित परिभाषा और कानूनी क्षमता: इस अधिनियम ने निर्दिष्ट दिव्यांगताओं की संख्या 7 से बढ़ाकर 21 कर दी, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि अधिक व्यक्ति इसके दायरे में आएँ।
- इसमें ‘सीमित संरक्षकता’ की भी शुरुआत की गई है, जो संयुक्त निर्णय-निर्माण को बढ़ावा देती है और दिव्यांगजनों की स्वायत्तता का सम्मान करती है।
- सकारात्मक कार्रवाई: यह मानक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के लिये सरकारी नौकरियों में 4% और उच्च शिक्षा में 5% आरक्षण अनिवार्य करता है, जिससे सशक्तीकरण के लिये संस्थागत तंत्र उपलब्ध होते हैं।
- भेदभाव से सुरक्षा: यह अधिनियम दिव्यांगता के आधार पर भेदभाव को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित करता है और सार्वजनिक एवं निजी प्रतिष्ठानों में ‘उचित समायोजन’ को अनिवार्य करता है, जिससे समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये संस्थाएँ कानूनी तौर पर बाध्य होती हैं।
- समर्पित निधि और शिकायत निवारण: राष्ट्रीय और राज्य निधियों का सृजन, चैरिटी मॉडल से आगे बढ़कर, वित्तीय सहायता को संस्थागत बनाता है। अधिनियम के उल्लंघनों को दूर करने के लिये प्रत्येक ज़िले में विशेष न्यायालय स्थापित किये गए हैं, जिससे न्याय तक अभिगम्यता में सुधार हुआ है।
- राष्ट्रीय दिव्यांगजन वित्त एवं विकास निगम (NDFDC) की स्थापना दिव्यांगजनों (PwDs) के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु वित्तपोषित करने और उनको बढ़ावा देने के लिये की गई है।
- विस्तारित परिभाषा और कानूनी क्षमता: इस अधिनियम ने निर्दिष्ट दिव्यांगताओं की संख्या 7 से बढ़ाकर 21 कर दी, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि अधिक व्यक्ति इसके दायरे में आएँ।
- कार्यान्वयन में जारी कमियाँ और चुनौतियाँ:
- असमान अभिगम्यता: सुगम्य भारत अभियान जैसी पहलों के बावजूद, कार्यान्वयन धीमा और असंगत है, कई सार्वजनिक भवनों एवं परिवहन प्रणालियों में अभी भी आधारभूत अभिगम्यता सुविधाओं का अभाव है।
- वर्ष 2018 की एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, दिव्यांगजनों के लिये केवल 3% भवन ही पूरी तरह से सुगम्य थे।
- दिव्यांगजन सशक्तीकरण अधिनियम, 2016 का अप्रभावी प्रवर्तन: दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 का क्रियान्वयन प्रभावी नहीं है, क्योंकि निगरानी और प्रवर्तन की व्यवस्था कमज़ोर है, जिसके कारण अनुपालन का स्तर भी बहुत कम रहता है।
- कई सरकारी वेबसाइटें अभी भी दुर्गम हैं, विशेषकर एसिड अटैक सर्वाइवर्स और दृष्टिबाधित व्यक्तियों को प्रभावित कर रही हैं।
- आर्थिक गतिविधियों और संसाधनों से वंचन: नौकरी आरक्षण कोटा प्रायः अधूरा रह जाता है और कई निजी कंपनियाँ अनुपालन से बचती हैं।
- व्यापक सामाजिक कलंक, विशेष रूप से दिव्यांग महिलाओं के लिये, रोज़गार की संभावनाओं को भी सीमित करता है।
- सरकारी आँकड़े बताते हैं कि 2.6 करोड़ दिव्यांगजनों में से केवल 36% ही कार्यरत हैं।
- प्रशासनिक बाधाएँ: विशिष्ट दिव्यांगता पहचान पत्र (UDID) कार्ड प्राप्त करने की प्रक्रिया प्रायः धीमी एवं अक्षम होती है, जिससे पात्रता प्राप्त करने में बाधा आती है।
- भारत में 40% से भी कम दिव्यांग व्यक्तियों के पास UDID है।
- असमान अभिगम्यता: सुगम्य भारत अभियान जैसी पहलों के बावजूद, कार्यान्वयन धीमा और असंगत है, कई सार्वजनिक भवनों एवं परिवहन प्रणालियों में अभी भी आधारभूत अभिगम्यता सुविधाओं का अभाव है।
दिव्यांगजनों के लिये ‘ENABLE’ फ्रेमवर्क
- E – Enforcement (कानूनों का प्रवर्तन):
- RPwD अधिनियम, 2016 की सख्त निगरानी और अनुपालन न करने पर दंड।
- सार्वजनिक भवनों, वेबसाइटों और परिवहन प्रणालियों का नियमित सुगम्यता ऑडिट।
- N – Navigation-friendly Infrastructure (नेविगेशन-अनुकूल अवसंरचना):
- शहरी नियोजन में सार्वभौमिक डिज़ाइन (रैंप, स्पर्शनीय फर्श, सुलभ शौचालय, साइनबोर्ड)।
- समयबद्ध लक्ष्यों के साथ सुगम्य भारत अभियान का विस्तार।
- A – Awareness & Social Inclusion (जागरूकता और सामाजिक समावेशन):
- दिव्यांगजनों, विशेषकर महिलाओं के प्रति सामाजिक कलंक को दूर करने के लिये व्यापक जन-जागरण अभियान का संचालन।
- दिव्यांगता संवेदनशीलता के लिये मीडिया, स्कूलों और कार्यस्थलों को प्रशिक्षित करना।
- B – Building Economic Empowerment (आर्थिक सशक्तीकरण का निर्माण):
- नौकरी हेतु आरक्षण में लंबित पदों पर भर्ती; समावेशी नियोजन के लिये निजी फर्मों को प्रोत्साहित करना।
- नए युग के क्षेत्रों (IT, हरित अर्थव्यवस्था, डिजिटल सेवाएँ) में कौशल प्रशिक्षण।
- L – Leveraging Technology (प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना):
- सुलभ सरकारी पोर्टल, AI-संचालित सहायक उपकरण और ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म।
- स्क्रीन रीडर, गतिशीलता सहायक उपकरण और अनुकूलित उपकरणों के लिये सब्सिडी।
- E – Efficient Governance & Delivery (कुशल शासन और वितरण):
- डिजिटल ट्रैकिंग, शिकायत निवारण और घर-घर सेवाओं के साथ UDID प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना।
- दिव्यांगजनों के लिये राज्य आयुक्तों, जैसे संस्थागत तंत्रों को मज़बूत करना।
निष्कर्ष:
अंबेडकर के सामाजिक लोकतंत्र के दृष्टिकोण से प्रेरित होकर, भारत को दिव्यांगजनों के लिये सम्मान और सुलभ अवसर सुनिश्चित करने के लिये चैरिटी से आगे बढ़ना होगा। सर्वोच्च न्यायालय का वर्ष 2024 का निपुण मल्होत्रा निर्णय इस बात पर और बल देता है कि वास्तविक समावेशन के लिये विधिक प्रवर्तन और सांस्कृतिक परिवर्तन दोनों की आवश्यकता होती है।
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