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बागेश्वर में सोपस्टोन खनन
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड के बागेश्वर ज़िले में कानूनी रूप से अनुमत खनन गतिविधियों को पुनः शुरू करने की अनुमति दी है, क्योंकि वैध पट्टा और पर्यावरणीय मंज़ूरी होने पर उच्च न्यायालय सभी खनन गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगा सकता।
- उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने फरवरी 2025 में पर्यावरणीय क्षति का हवाला देते हुए ज़िलों में खनन गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था।
मुख्य बिंदु
- बागेश्वर में खनन:
- बागेश्वर में सोपस्टोन खनन एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि है, जो सैकड़ों स्थानीय लोगों के लिये रोज़गार सृजित करता है तथा क्षेत्रीय टैल्क प्रसंस्करण इकाइयों को समर्थन प्रदान करता है।
- सोपस्टोन (टैल्क) खनन कांडा, कपकोट और विजयपुर जैसे क्षेत्रों में केंद्रित है, जहाँ उत्तराखंड के सबसे समृद्ध टैल्क भंडार मौजूद हैं।
- आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, पिछले 5 वर्षों में बागेश्वर की खानों से लगभग 18 लाख टन सोपस्टोन निकाला गया है।
- अत्यधिक खनन के कारण भूमि क्षरण, ढलान अस्थिरता और भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है।
- भारी ट्रकों की आवाजाही के कारण नदी के किनारों और गाँव की सड़कों को नुकसान पहुँचा है।
- सोपस्टोन:
- सोपस्टोन एक नरम रूपांतरित चट्टान है, जो क्लोराइट, डोलोमाइट और मैग्नेसाइट की अलग-अलग मात्रा के साथ टैल्क से निर्मित होती है।
- इसका उपयोग सिरेमिक, सौंदर्य प्रसाधन, फार्मास्यूटिकल्स, कागज़, खाद्य प्रसंस्करण, पेंट और विद्युत इन्सुलेटर में किया जाता है।
- प्रमुख उत्पादक राज्य में राजस्थान (सबसे बड़ा), उत्तराखंड, कर्नाटक और तमिलनाडु शामिल हैं।
- उत्तराखंड का निक्षेप मुख्यतः बागेश्वर, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा ज़िले में स्थित है।
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