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उच्च न्यायालय की पीठों के प्राधिकार

  • 08 Apr 2024
  • 12 min read

प्रिलिम्स:

जनहित याचिका, उच्च न्यायालय, न्यायिक पीठ

मेन्स:

जनहित याचिका, उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने सभी प्रकार की जनहित याचिकाओं (PIL) पर निर्णय लेने के लिये मदुरै पीठ के प्राधिकार को बहाल कर दिया है, जिसमें उसके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर केवल 13 ज़िलों के बजाय संपूर्ण राज्य से संबंधित मामले शामिल हैं।

नोट: चेन्नई में मद्रास उच्च न्यायालय की मुख्य पीठ की मदुरै में एक स्थायी पीठ है, जो मूल क्षेत्राधिकार को छोड़कर सभी मामलों में मुख्य पीठ को प्रतिबिंबित करते हुए अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग करती है।

मद्रास न्यायालय का निर्णय क्या है?

  • मुद्दे:
    • मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा पारित एक निर्णय में ज़िला-विशिष्ट मामलों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, मदुरै पीठ के बजाय न्यायालय की मुख्य पीठ पर राज्यव्यापी मंदिर के हितों के संबंध में जनहित याचिका दायर करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया था।
  • निर्णय:
    • हालिया निर्णय में मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के अधिकारों को सभी प्रकार की जनहित याचिकाओं की सुनवाई के लिये बहाल कर दिया गया है, जिसमें वे मुद्दे भी शामिल हैं जो संपूर्ण राज्य से संबंधित हैं, न केवल इसके अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले 13 ज़िलों से।
      • न्यायालय ने कहा कि यदि आवश्यक हो तो मुख्य न्यायाधीश एक मामले को मुख्य पीठ से स्थायी पीठ में हस्तांतरित कर सकते हैं, लेकिन सभी पैन-स्टेट मामलों को केवल मुख्य पीठ में दायर करने की आवश्यकता वाला एक व्यापक आदेश मदुरै पीठ के कामकाज के लिये उपयुक्त नहीं होगा।
  • निर्णय का कानूनी आधार:
    • न्यायालय ने मदुरै पीठ के गठन के लिये वर्ष 2004 में जारी राष्ट्रपति की अधिसूचना पर विश्वास किया, जिसमें इस प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया था।
    • न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि बी. स्टालिन बनाम रजिस्ट्रार, 2012 में एक संपूर्ण पीठ के  निर्णय ने स्पष्ट किया कि मदुरै पीठ में दायर एवं सुनवाई की जा सकने वाली जनहित याचिकाओं के प्रकारों पर कोई प्रतिबंध नहीं था, हालाँकि इसने मुख्य न्यायाधीश के मामलों को मुख्य पीठ और मदुरै पीठ के बीच हस्तांतरित करने के अधिकार की पुष्टि की।

उच्च न्यायालय तथा स्थायी पीठों की स्थापना की प्रक्रिया क्या है?

  • उच्च न्यायालय की पीठों की स्थापना:
    • भारत के संविधान के अनुच्छेद 214 में प्रावधान है कि प्रत्येक राज्य के लिये एक उच्च न्यायालय होगा।
    • हालाँकि, राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की धारा 51 में मुख्य स्थान से दूर पीठ स्थापित करने का प्रावधान है।
  • न्यायमूर्ति जसवंत सिंह आयोग:
    • वर्ष 1981 में, उत्तर प्रदेश के पश्चिमी ज़िलों में उच्च न्यायालय की पीठों की मांग पर विचार करने के लिये एक आयोग नियुक्त किया गया था।
    • बाद में वर्ष 1983 में उच्च न्यायालयों के मुख्य स्थानों के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर पीठों की स्थापना के सामान्य प्रश्न की जाँच करने के लिये संदर्भ की शर्तों का विस्तार किया गया।
    • सिफारिशें:
      • आयोग ने क्षेत्र की विशेषताओं, जनसंख्या आकार, क्षेत्र, यात्रा और संचार के साधन, मुकदमों के लिये दूरी, लंबित दर, बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता एवं कानूनी प्रतिभा सहित कई मानदंडों की सिफारिश की।
  • सर्वोच्च न्यायालय की स्थिति:
    • एक रिट याचिका में सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य स्थान के अतिरिक्त अन्य केंद्रों पर उच्च न्यायालय की पीठ स्थापित करने की मांग की जाँच की, जिसमें इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि निर्णय, भावनात्मक या संकीर्ण विचारों पर नहीं बल्कि, तर्क पर आधारित होने चाहिये।
      • पीठों की स्थापना के लिये राज्य सरकार, संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल के बीच सर्वसहमती आवश्यक होती है।
  • केंद्र सरकार की भूमिका:
    • मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल की सहमति और राज्य सरकार से पूर्ण प्रस्ताव प्राप्त होने के बाद ही सरकार पीठ स्थापित करने के प्रस्तावों पर विचार करती है।
    • राज्य सरकार बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने तथा उच्च न्यायालय और उसकी पीठ के संपूर्ण व्यय को वहन करने के लिये ज़िम्मेदार होती है।
    • उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश उसकी पीठ के दैनिक प्रशासन का प्रबंधन करते हैं, और आवश्यकतानुसार मुख्य सीट से न्यायाधीशों को पीठ में नियुक्त करते हैं।
    • बेंचों की स्थापना पर निर्णय लेने के लिये राज्य सरकार और उच्च न्यायालय के बीच सर्वसम्मति की आवश्यकता वाले परामर्शी दृष्टिकोण को अपनाया जाता है।

भारत का संविधान

भाग VI | राज्य | उच्च न्यायालय

अनुच्छेद 215: उच्च न्यायालयों का अभिलेख न्यायालय होना।

अनुच्छेद 222: एक न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरण।

अनुच्छेद 225: उच्च न्यायालयों का क्षेत्राधिकार।

अनुच्छेद 226: कुछ रिट जारी करने की उच्च न्यायालयों की शक्ति।

अनुच्छेद 230: उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र का केंद्रशासित प्रदेशों तक विस्तार।

अनुच्छेद 231: दो या दो से अधिक राज्यों के लिये एक सामान्य उच्च न्यायालय की स्थापना।

जनहित याचिका क्या है?

  • जनहित याचिका (PIL) की अवधारणा 1960 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रारंभ एवं विकसित हुई।
  • भारत में जनहित याचिका न्यायिक सक्रियता का एक उदाहरण है। न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर तथा जस्टिस पी.एन. भगवती PIL की अवधारणा के प्रणेता थे।
  • भारत में PIL की शुरूआत 'लोकस स्टैंडी' के पारंपरिक नियम में छूट प्राप्त हुई। इस नियम के अनुसार केवल वही व्यक्ति जिसके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, उपचार के लिये न्यायालय जा सकता है, जबकि जनहित याचिका इस पारंपरिक नियम का अपवाद है।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका को "सार्वजनिक हित अथवा सामान्य हित को लागू करने के लिये न्यायालय में शुरू की गई एक कानूनी कार्रवाई के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें जनता अथवा समुदाय के एक वर्ग का आर्थिक हित या कुछ अन्य हितों के साथ-साथ उनके कानूनी अधिकार एवं दायित्व भी प्रभावित होते हैं।"
  • जनहित याचिका को किसी कानून अथवा किसी अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है। बड़े पैमाने पर जनता की मंशा पर विचार करने हेतु न्यायाधीशों द्वारा इसकी व्याख्या की गई है।
  • जनहित याचिका के तहत विचार किये जाने वाले कुछ मामले हैं:
    • बँधुआ मज़दूरी के मामले
    • उपेक्षित बच्चे
    • श्रमिकों को न्यूनतम वेतन का भुगतान न करना और आकस्मिक श्रमिकों का शोषण
    • महिलाओं पर अत्याचार
    • पर्यावरण प्रदूषण एवं पारिस्थितिक संतुलन में गड़बड़ी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत की न्यायिक प्रणाली में जनहित याचिका (पीआईएल) की भूमिका और महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। पिछले कुछ वर्षों में जनहित याचिका कैसे विकसित हुई है और इसका शासन तथा सामाजिक न्याय पर क्या प्रभाव पड़ा है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (2013)

(a) भारत में एक ही व्यक्ति को एक समय में दो या अधिक राज्यों में राज्यपाल नियुक्त नहीं किया जा सकता।
(b) भारत में राज्यों के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राज्य के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किये जातें हैं, ठीक वैसे ही जैसे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जातें हैं।
(c) भारत के संविधान में राज्यपाल को उसके पद से हटाने हेतु कोई भी प्रक्रिया अधिकथित नहीं है।
(d) विधायी व्यवस्था वाले संघ राज्यक्षेत्र में मुख्यमंत्री की नियुक्ति उपराज्यपाल द्वारा बहुमत समर्थन के आधार पर की जाती है।

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2021)

  1. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा भारत के राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से वापस बैठने और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिये बुलाया जा सकता है। 
  2. भारत में उच्च न्यायालय के पास अपने निर्णय की समीक्षा करने की शक्ति है जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

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