राजस्थान Switch to English
ओरण भूमि वन के रूप में वर्गीकृत
चर्चा में क्यों?
राजस्थान सरकार ने सामुदायिक संरक्षित 'ओरण' भूमि को वनों के रूप में वर्गीकृत करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके बाद, इन पवित्र उपवनों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत आधिकारिक तौर पर "सामुदायिक रिज़र्व" के रूप में अधिसूचित किया जाएगा।
मुख्य बिंदु
- ओरण भूमि के बारे में:
- 'ओरण' राजस्थान के पवित्र वन क्षेत्र हैं, जो पारंपरिक रूप से ग्रामीण समुदायों द्वारा संरक्षित और प्रबंधित किये जाते हैं।
- ये उपवन सामाजिक-धार्मिक परंपरा के तहत स्थानीय देवताओं को समर्पित हैं।
- राजस्थान में लगभग 25,000 ओरण स्थल हैं, जो मिलकर राजस्थान के रेगिस्तानी परिदृश्य में 6 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को आच्छादित करते हैं।
- राजस्थान में ओरण को विभिन्न नामों से भी जाना जाता है, जैसे– देवरा, मालवन, देवराई, रखत बणी, देव घाट, मंदिर वन और बाग
- ओरण में बड़ी संख्या में खेजड़ी के पेड़ (Prosopis cineraria), हिरण, काले हिरण और नीलगाय भी पाई जाती हैं जो राजस्थान के बिश्नोई समुदाय के लिये भी पवित्र हैं।
- इन ओरण भूमियों में रहने वाले समुदायों ने ऐतिहासिक रूप से इन वनों को बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- ये भूमि चरागाह को बढ़ावा देती हैं, वन उपज प्रदान करती हैं, प्राकृतिक जल निस्पंदन में सहायता करती हैं तथा पशुधन अर्थव्यवस्था के माध्यम से आजीविका को बनाए रखती हैं।
- संबंधित सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- 18 दिसंबर 2024 को दिये गए एक ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को ओरण भूमि का विस्तृत मानचित्रण करने का निर्देश दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य को 'ओरांस' को वन के रूप में वर्गीकृत करने के लिये केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) की 2005 की सिफारिशों को लागू करने का निर्देश दिया।
- हालाँकि, राजस्थान वन नीति, 2023 में 'ओरांस' को सामान्य सामुदायिक भूमि के रूप में वर्गीकृत किया गया है,जिससे इन वनों को पर्याप्त कानूनी संरक्षण नहीं मिल पाता और वे अतिक्रमण व पारिस्थितिक क्षरण के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय औपचारिक वन वर्गीकरण के माध्यम से कानूनी सुरक्षा उपायों को मज़बूत करके इन अंतरालों को दूर करता है।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972:
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन, जंगली जानवरों, पौधों तथा उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन एवं नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
- यह अधिनियम उन पौधों और जानवरों की अनुसूचियों को भी सूचीबद्ध करता है, जिन्हें सरकार द्वारा अलग-अलग स्तर की सुरक्षा तथा निगरानी प्रदान की जाती है।
केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC)
- परिचय:
- केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) का गठन मूलतः सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2002 में किया गया था तथा बाद में वर्ष 2008 में इसका पुनर्गठन किया गया था।
- यह पर्यावरण संरक्षण तथा न्यायालय के निर्देशों और पर्यावरण कानूनों के अनुपालन की निगरानी के लिये एक तदर्थ निगरानी निकाय के रूप में कार्य करता था।
- सुधार:
- केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वर्ष 2023 की अधिसूचना के अनुसार, CEC को एक स्थायी वैधानिक निकाय में परिवर्तित करने का प्रस्ताव है।
- इस कदम का उद्देश्य CEC को दीर्घकालिक आधार पर प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों को संभालने के लिये संस्थागत निरंतरता और कानूनी अधिकार प्रदान करना है।


बिहार Switch to English
बिहार से पद्म पुरस्कार 2025 के विजेता
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में 139 विशिष्ट व्यक्तियों को पद्म पुरस्कार 2025 प्रदान किये। इनमें बिहार की सात हस्तियों को पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
मुख्य बिंदु
बिहार के पद्म पुरस्कार विजेता
नाम |
पुरस्कार |
क्षेत्र |
विवरण |
डॉ. शारदा सिन्हा |
पद्म विभूषण (मरणोपरांत) |
कला |
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सुशील कुमार मोदी |
पद्म भूषण (मरणोपरांत) |
सार्वजनिक मामलों |
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किशोर कुणाल |
पद्म श्री (मरणोपरांत) |
सिविल सेवा |
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भीम सिंह भावेश |
पद्म श्री |
सामाजिक कार्य |
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हेमंत कुमार |
पद्म श्री |
चिकित्सा |
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निर्मला देवी |
पद्म श्री |
कला |
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विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी महाराज |
पद्म श्री |
अन्य– अध्यात्मवाद |
|
पद्म पुरस्कार
- पद्म पुरस्कार भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक हैं, जिनकी स्थापना वर्ष 1954 में की गई थी।
- इन्हें प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर घोषित किया जाता है और भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया जाता है।
- ये पुरस्कार तीन श्रेणियों में दिये जाते हैं:
- पद्म विभूषण (असाधारण एवं विशिष्ट सेवा के लिये)
- पद्म भूषण (उच्च कोटि की विशिष्ट सेवा के लिये)
- पद्मश्री (किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट सेवा के लिये)
- पात्रता:
- सभी व्यक्ति, चाहे उनकी जाति, व्यवसाय या लिंग कुछ भी हो, पात्र हैं।
- सरकारी कर्मचारी (डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को छोड़कर) पात्र नहीं हैं।
- क्षेत्र:
- कला (संगीत, सिनेमा, चित्रकला, आदि)
- सामाजिक कार्य और सार्वजनिक मामले
- विज्ञान एवं इंजीनियरिंग, चिकित्सा, साहित्य एवं शिक्षा
- सिविल सेवा, व्यापार और उद्योग, खेल
- अन्य श्रेणियाँ जैसे मानव अधिकार, पर्यावरण संरक्षण और भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना।
- चयन एवं नामांकन:
- पद्म पुरस्कारों के लिये नामांकन सार्वजनिक रूप से खोले जाते हैं और स्व-नामांकन (Self-nomination) भी मान्य है।
- प्रधानमंत्री द्वारा प्रतिवर्ष गठित की जाने वाली पद्म पुरस्कार समिति सभी नामांकनों का मूल्यांकन करती है।
- इस समिति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करते हैं तथा इसमें गृह सचिव, राष्ट्रपति सचिवालय के सचिव, और 4 से 6 प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होते हैं।
- पुरस्कार प्रस्तुति एवं नियम:
- पुरस्कार आमतौर पर प्रत्येक वर्ष मार्च/अप्रैल में प्रदान किये जाते हैं।
- प्रत्येक प्राप्तकर्त्ता को एक प्रमाण-पत्र (सनद) और एक पदक मिलता है; इसकी प्रतिकृति आधिकारिक आयोजनों के दौरान पहनी जा सकती है।
- पुरस्कार विजेताओं के नाम भारत के राजपत्र में प्रकाशित किये जाते हैं।
- यह पुरस्कार कोई उपाधि नहीं है और इसका प्रयोग उपसर्ग या प्रत्यय के रूप में नहीं किया जा सकता।
- सामान्यतः प्रति वर्ष अधिकतम 120 पद्म पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं (हालाँकि इसमें मरणोपरांत, प्रवासी भारतीय, विदेशी नागरिक एवं OCI कार्डधारक शामिल नहीं होते)।
- मरणोपरांत पुरस्कार बहुत कम ही दिये जाते हैं, लेकिन अत्यंत योग्य मामलों में अपवाद स्वरूप प्रदान किये जा सकते हैं।
- एक ही व्यक्ति को दो पद्म पुरस्कारों के बीच कम-से-कम पाँच वर्ष का अंतराल आवश्यक होता है, जब तक कि कोई विशेष रूप से उचित और असाधारण कारण न हो।


राजस्थान Switch to English
केर सांगरी को GI टैग प्राप्त
चर्चा में क्यों?
राजस्थान की लोकप्रिय व्यंजन केर सांगरी को भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिला है, जो इसे पारंपरिक तरीके से बनाए जाने वाले विशिष्ट क्षेत्रीय उत्पाद के रूप में मान्यता देता है।
मुख्य बिंदु
- केर सांगरी के बारे में:
- केर सांगरी एक पारंपरिक राजस्थानी व्यंजन है, जो दो देशी रेगिस्तानी पौधों से बनाया जाता है:
- केर – एक छोटा, जंगली बेरी।
- सांगरी – एक बींस की तरह फलने वाला फल हैं, जो खेजड़ी के पेड़ पर उगता है। यह शुष्क क्षेत्रों का स्वदेशी वृक्ष है।
- ये सामग्री थार के सूखे, रेतीले इलाके में प्राकृतिक रूप से उगती हैं।
- ऐतिहासिक रूप से, केर सांगरी सूखे के समय जीवित रहने वाले खाद्य के रूप में विकसित हुई थी, जब ताज़ी सब्जियाँ उपलब्ध नहीं होती थीं।
- समय के साथ, यह व्यंजन राजस्थान का लोकप्रिय व्यंजन और सांस्कृतिक प्रतीक बन गया।
- खेजड़ी का पेड़, जिससे सांगरी प्राप्त होती है, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- यह बिश्नोई समुदाय द्वारा पवित्र माना जाता है, जिसने सदियों से इस पेड़ को जीवन और स्थिरता के प्रतीक के रूप में संरक्षित रखा है।
- केर सांगरी एक पारंपरिक राजस्थानी व्यंजन है, जो दो देशी रेगिस्तानी पौधों से बनाया जाता है:
- केर सांगरी के लिये GI टैग का महत्त्व:
- यह इसके प्रामाणिकता को नकली या घटिया उत्पादों से बचाता है।
- यह स्थानीय किसानों और कारीगरों को उचित सम्मान और पारिश्रमिक दिलाने में सहायक है।
- राजस्थान के अन्य GI-टैग उत्पाद:
- राजस्थान अपने समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और हस्तकला के लिये कई GI टैग प्राप्त उत्पादों के लिये प्रसिद्ध है। इनमें प्रमुख हैं: सोजत मेहंदी, बीकानेरी भुजिया, कोटा डोरिया, जयपुर की ब्लू पॉटरी, मोलेला माटी के काम, राजस्थान की कठपुतलियाँ, सांगानेरी हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग, बागड़ू हैंड ब्लॉक प्रिंट, थेवा कला, पोकरण मिट्टी के बर्तन, नाथद्वारा पिचवाई चित्रकला, उदयपुर की कोफ्तगारी धातु कला, बीकानेर कशीदाकारी, जोधपुर बंदेज कारीगरी, बीकानेर उस्ताद कला और मकराना संगमरमर।
भौगोलिक संकेतक (GI) टैग
- परिचय:
- भौगोलिक संकेत (GI) टैग, एक ऐसा नाम या चिह्न है जिसका उपयोग उन विशेष उत्पादों पर किया जाता है जो किसी विशिष्ट भौगोलिक स्थान या मूल से संबंधित होते हैं।
- GI टैग यह सुनिश्चित करता है कि केवल अधिकृत उपयोगकर्त्ताओं या भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले लोगों को ही लोकप्रिय उत्पाद के नाम का उपयोग करने की अनुमति है।
- यह उत्पाद को दूसरों द्वारा नकल या अनुकरण किये जाने से भी बचाता है।
- एक पंजीकृत GI टैग 10 वर्षों के लिये वैध होता है।
- GI पंजीकरण की देखरेख वाणिज्य तथा उद्योग मंत्रालय के अधीन उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग द्वारा की जाती है।
- विधिक ढाँचा:
- वस्तुओं का भौगोलिक उपदर्शन (रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999
- बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार-संबंधित पहलुओं (TRIPS) पर WTO समझौते द्वारा विनियमित एवं निर्देशित है।


उत्तर प्रदेश Switch to English
NFSA के तहत ज़िलेवार कोटा समाप्त किया
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के अंतर्गत लाभार्थी आवंटन के लिये ज़िलेवार कोटा प्रणाली को समाप्त करने का निर्णय लिया है, ताकि पात्र परिवारों, विशेषकर पिछड़े और वंचित ज़िलों में रहने वालों को अधिक न्यायसंगत ढंग से शामिल किया जा सके।
मुख्य बिंदु
- राज्य में वर्तमान स्थिति:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के अंतर्गत प्रत्येक राज्य के लिये अन्न आवंटन केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित जनसंख्या कवरेज के आधार पर किया जाता है, जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में 64.46% तथा शहरी क्षेत्रों में 78.54% तय किया गया है।
-
नीति परिवर्तन:
-
ज़िलेवार कोटा हटाना:
- उत्तर प्रदेश में पारंपरिक रूप से प्रति ज़िले लाभार्थियों को आवंटित करने की एक अतिरिक्त ज़िलेवार सीमा का पालन किया जाता रहा है।
- इसके परिणामस्वरूप असमान वितरण हुआ, जो गाज़ियाबाद और गौतम बुद्ध नगर जैसे अपेक्षाकृत समृद्ध ज़िलों के पक्ष में रहा तथा गरीब ज़िलों में प्रायः सभी पात्र परिवारों को समायोजित करने में असमर्थता रही।
-
- राज्यव्यापी आवंटन की शुरूआत:
- नई प्रणाली लाभ आवंटित करने के लिये राज्यव्यापी जनसंख्या डेटा और पात्रता मानदंडों का उपयोग करेगी।
-
इससे यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है कि वितरण मनमाने प्रशासनिक सीमाओं से बाधित होने के बजाए अधिनियम में निर्धारित पात्रता मानदंडों के साथ अधिक निकटता से संरेखित हो।
लाभार्थी कवरेज पर प्रभाव:
- नई प्रणाली लाभ आवंटित करने के लिये राज्यव्यापी जनसंख्या डेटा और पात्रता मानदंडों का उपयोग करेगी।
- पुनर्वितरण प्रक्रिया के भाग के रूप में, सीतापुर, बाराबंकी और ललितपुर ज़िलों में से प्रत्येक में 5,000 नए लाभार्थियों को जोड़ा गया है।
- ये वृद्धि गाज़ियाबाद और गौतम बुद्ध नगर से लाभार्थियों की संख्या को पुनः आवंटित करके की गई।
- बुंदेलखंड क्षेत्र में NFSA कवरेज को 90% तक बढ़ाया गया है।
- पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई योग्य ज़िलों में कवरेज को 85% तक बढ़ाया गया है।
- प्रशासनिक प्रदर्शन:
- एकीकृत शिकायत निवारण प्रणाली (IGRS) पोर्टल की अप्रैल की रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग जन शिकायतों के समाधान में चौथे स्थान पर है।
- इसका स्थान खादी एवं ग्रामोद्योग, सहकारिता विभाग तथा आबकारी विभाग से ठीक पीछे था।
-
निचले चार स्थानों में शामिल विभागों में उद्योग एवं अवसंरचना विकास, आवास एवं शहरी नियोजन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन तथा महिला कल्याण शामिल हैं।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013
- NFSA के बारे में:
- इसे भारत में खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 5 जुलाई 2013 को अधिनियमित किया गया था।
- इसने कल्याण-आधारित दृष्टिकोण से अधिकार-आधारित दृष्टिकोण की ओर बदलाव को चिह्नित किया, जिससे जनसंख्या के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने का कानूनी अधिकार प्राप्त हुआ।
- उद्देश्य:
- इस अधिनियम का उद्देश्य लोगों को सम्मानजनक जीवन जीने के लिये वहनीय मूल्य पर पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तापूर्ण भोजन उपलब्ध कराना है।
- यह राशन कार्ड के प्रयोजनों के लिये परिवार की सबसे बड़ी महिला (18 वर्ष या उससे अधिक आयु) को परिवार का मुखिया नामित करके महिला सशक्तीकरण को भी बढ़ावा देता है।
- कवरेज और अधिकार:
- NFSA कानूनी तौर पर ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% को रियायती दरों पर खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार देता है।
- इसमें पूरे भारत में लगभग 81.34 करोड़ व्यक्ति शामिल हैं।
- लाभार्थियों की श्रेणियाँ:
- अंत्योदय अन्न योजना के तहत आने वाले परिवार, जिन्हें सबसे गरीब माना जाता है, प्रति परिवार प्रति माह 35 किलोग्राम खाद्यान्न पाने के हकदार हैं।
- प्राथमिकता वाले परिवारों को प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार है।
- खाद्यान्न की कीमतें:
- अधिनियम में खाद्यान्नों के लिये सब्सिडीयुक्त मूल्य निर्दिष्ट किये गए हैं:
- चावल 3 रुपए और गेहूँ 2 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से उपलब्ध कराया जाता है।
- मोटा अनाज 1 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से उपलब्ध कराया जाता है।
- ये कीमतें शुरू में कार्यान्वयन की तारीख से तीन वर्षों के लिये निर्धारित की गई थीं, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर इन्हें बढ़ाया जाता रहा है
- NFSA के अंतर्गत जिम्मेदारियाँ:
- केंद्र सरकार:
- राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को खाद्यान्न आवंटित करने की ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की है।
- यह निर्धारित डिपो तक खाद्यान्न के परिवहन का प्रबंधन करती है तथा आगे वितरण के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- केंद्र सरकार:
- इसके पास धारा 39 के अंतर्गत अधिनियम के कार्यान्वयन के लिये नियम बनाने की शक्ति भी है।
- राज्य एवं संघ राज्य क्षेत्र सरकारें:
- राज्य एवं संघ राज्य क्षेत्र सरकारें पात्र परिवारों की पहचान करने, राशन कार्ड जारी करने और उचित मूल्य की दुकानों (FPS) के माध्यम से खाद्यान्न वितरित करने के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- उन्हें FPS नेटवर्क की निगरानी भी करनी होगी, लाइसेंस जारी करना होगा और शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित करनी होगी।
- अतिरिक्त प्रावधान:
- पात्र खाद्यान्न या भोजन की आपूर्ति न होने की स्थिति में, लाभार्थी खाद्य सुरक्षा भत्ते के हकदार होते हैं, जो राज्य सरकार द्वारा प्रदान किया जाना चाहिये।
- टाइड ओवर आबंटन का प्रावधान उन राज्यों की रक्षा के लिये किया गया है, जिनका NFSA के तहत आबंटन उनके पूर्व लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के आबंटन से कम है।
- केंद्र सरकार ने अधिनियम के अंतर्गत कई नियम अधिसूचित किये हैं, जिनमें शामिल हैं:
- खाद्य सुरक्षा भत्ता नियम, 2015
- खाद्य सब्सिडी का नकद हस्तांतरण नियम, 2015
- राज्य सरकारों को सहायता नियम, 2015


उत्तराखंड Switch to English
उत्तराखंड में सांस्कृतिक विरासत और विकास को बढ़ावा
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने हाल ही में 'अहिल्या स्मृति मैराथन- एक विरासत, एक संकल्प' तथा प्रथम गज घंटाकर्ण महोत्सव-2025 का उद्घाटन किया, जिसमें राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर ज़ोर देते हुए इसे चल रही विकासात्मक पहलों से जोड़ा गया।
मुख्य बिंदु
- अहिल्या स्मृति मैराथन:
- यह मैराथन देहरादून में विरासत थीम पर आधारित कार्यक्रम के तहत आयोजित की गई थी।
- इस आयोजन का विषय, एक विरासत-एक संकल्प, का उद्देश्य उत्तराखंड में स्वास्थ्य, एकता और सांस्कृतिक गौरव के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना है।
- इस पहल का उद्देश्य प्रतिभागियों के बीच स्वास्थ्य जागरूकता, सामाजिक सद्भाव और सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा देना था।
- गज घंटाकर्ण महोत्सव-2025:
- यह महोत्सव टिहरी ज़िले के गज घण्टाकर्ण मंदिर के परिसर को केंद्र बनाकर आयोजित किया गया, जिसे उत्तराखंड का एक महत्त्वपूर्ण पौराणिक स्थल माना जाता है।
- यह मंदिर पारंपरिक रूप से बद्रीनाथ धाम की यात्रा के बाद दूसरी परिक्रमा स्थली के रूप में जाना जाता है।
- मंदिर से हरिद्वार से लेकर हिमालयी पर्वतमालाओं तक के विहंगम दृश्य दिखाई देते हैं, जिससे यह स्थान आध्यात्मिक और पार्यावरणीय पर्यटन (eco-tourism) के लिये आदर्श स्थल बन जाता है।
- सांस्कृतिक योगदान:
- इस महोत्सव की शुरुआत क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को पुनर्जीवित करने और बढ़ावा देने के लिये की गई थी।
- इसका उद्देश्य पारंपरिक गतिविधियों और समारोहों के माध्यम से सांस्कृतिक पर्यटन और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाना था।
- इस तरह के आयोजन अमूर्त विरासत को बनाए रखने और स्थानीय समुदायों में पहचान की भावना को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
-
ये प्रयास 2047 तक विकसित उत्तराखंड और भारत के व्यापक दृष्टिकोण से जुड़े हैं, जो प्रधानमंत्री के अमृतकाल विज़न के अनुरूप हैं।
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सरकार गज में पॉलिटेक्निक संस्थान, हेंवलघाटी पंपिंग पेयजल योजना आदि सहित बुनियादी ढाँचे और सामाजिक विकास परियोजनाओं पर सक्रिय रूप से काम कर रही है।
-
एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) जैसी पहलों के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना, स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं के बीच आत्मनिर्भरता और कौशल विकास पर सरकार के लक्ष्य को दर्शाता है।
एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) योजना:
- ODOP पहल का उद्देश्य भारत के 761 ज़िलों में से प्रत्येक के एक विशिष्ट उत्पाद की पहचान कर उसे प्रोत्साहित करना है, ताकि संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
- अब तक कुल 1,102 उत्पादों का चयन किया जा चुका है, जिनमें स्थानीय विशेषताओं पर केंद्रित वस्तुएँ शामिल हैं, जैसे कि भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्राप्त उत्पाद तथा ज़िला निर्यात केंद्र (DEH) पहल के अंतर्गत चयनित वस्तुएँ।
- उत्तराखंड के GI टैग प्राप्त उत्पादों में शामिल हैं– लाल चावल, अल्मोड़ा की लखोरी मिर्च, बेरीनाग चाय, रामनगर (नैनीताल) की लीची, रामगढ़ का आड़ू, बासमती चावल आदि।
- इन उत्पादों का चयन राज्यों और केंद्र\शासित प्रदेशों द्वारा किया जाता है तथा यह प्रक्रिया औद्योगिक संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) के समन्वय से पूरी की जाती है।


जैव विविधता और पर्यावरण Switch to English
पोलावरम परियोजना
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने पोलावरम परियोजना पर चर्चा के लिये आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की अध्यक्षता की।
मुख्य बिंदु
- पोलावरम सिंचाई परियोजना:
- पोलावरम परियोजना आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी पर पोलावरम गाँव के पास स्थित है।
- यह एक बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना है क्योंकि एक बार पूर्ण होने के बाद यह परियोजना सिंचाई संबंधी लाभ प्रदान करेगी तथा जल विद्युत उत्पन्न करेगी।
- इसके अलावा यह परियोजना पेयजल की आपूर्ति भी करेगी।
- इस परियोजना के दाईं ओर स्थित नहर से कृष्णा नदी बेसिन हेतु अंतर-बेसिन हस्तांतरण (Inter-Basin Transfer) की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
- इस परियोजना के परोक्ष लाभ भी होंगे जैसे- मत्स्य पालन (मछली का प्रजनन और पालन), पर्यटन और शहरीकरण।
- वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 की धारा-90 के तहत केंद्र सरकार द्वारा परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिया गया है।
- पृष्ठभूमि एवं संबंधित मुद्दे:
- उच्च स्तरीय विचार-विमर्श के कई दौर के बावजूद, राज्य पोलावरम परियोजना पर अंतर-राज्यीय विवादों को सुलझाने में विफल रहे हैं।
- ओडिशा, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना ने परियोजना के विभिन्न पहलुओं, जैसे विनियामक अनुपालन मुद्दे, जनजातीय समुदायों पर प्रभाव आदि को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएँ दायर की हैं।
- आंध्र प्रदेश ने जलमग्नता की स्थिति का सामना कर रहे गाँवों की सुरक्षा के लिये एक रिटेनिंग दीवार के निर्माण का प्रस्ताव रखा।
- हालाँकि, ओडिशा और छत्तीसगढ़ ने भूमि अधिग्रहण और अपर्याप्त पुनर्वास उपायों के संबंध में आपत्तियाँ उठाईं।
गोदावरी नदी
- गोदावरी सबसे बड़ी प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली है। इसे दक्षिण गंगा भी कहते हैं।
- इसका बेसिन उत्तर में सतमाला पहाड़ियों, दक्षिण में अजंता श्रेणी और महादेव पहाड़ियों, पूर्व में पूर्वी घाट और पश्चिम में पश्चिमी घाट से घिरा हुआ है।
- उद्गम:
- गोदावरी नदी महाराष्ट्र में नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले लगभग 1465 किमी. की दूरी तय करती है।
- अपवाह तंत्र:
- गोदावरी बेसिन महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों के अलावा मध्य प्रदेश, कर्नाटक तथा पुद्दुचेरी के मध्य क्षेत्र के छोटे हिस्सों में फैला हुआ है।
- सहायक नदियाँ:
- प्रवरा, पूर्णा, मंजरा, पेनगंगा, वर्धा, वैनगंगा, प्राणहिता (वेनगंगा, पेनगंगा, वर्धा का संयुक्त प्रवाह), इंद्रावती, मनेर और सबरी।
- सांस्कृतिक महत्त्व: कुंभ मेला नासिक में गोदावरी नदी के तट पर आयोजित किया जाता है।
- गोदावरी पर महत्त्वपूर्ण परियोजनाएँ:
- पोलावरम सिंचाई परियोजना।
- कालेश्वरम।
- गोदावरी नदी पर स्थित सदरमट एनीकट नामक दो सिंचाई परियोजनाओं को सिंचाई एवं जल निकासी पर अंतर्राष्ट्रीय आयोग’ (WHIS) द्वारा धरोहर सिंचाई संरचना (Heritage Irrigation Structures) स्थल के रूप में मान्यता दी गई है।
- इंचमपल्ली: इंचमपल्ली परियोजना गोदावरी नदी पर प्रस्तावित है, यह परियोजना आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी तथा इंद्रावती के संगम के पास 12 किमी. अनुप्रवाह पर स्थित है।
- यह महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों की एक संयुक्त परियोजना है।
- श्रीराम सागर परियोजना: श्रीराम सागर परियोजना एक बहुउद्देशीय परियोजना है, जो तेलंगाना के निज़ामाबाद ज़िले में पोचमपाद के पास गोदावरी नदी पर स्थित है।

