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कृषि

भारत का बासमती चावल का कृषि विवाद और चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण

  • 26 Mar 2024
  • 21 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, चावल, हरित क्रांति, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण, विश्व व्यापार संगठन, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR)

मेन्स के लिये:

बौद्धिक संपदा संरक्षण को नियंत्रित करने वाले विनियम, चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पूसा-1121 और पूसा-1509 बासमती जैसी भारत की बेशकीमती बासमती चावल की किस्में पाकिस्तान में नए नामों के साथ पाई गई हैं, जिससे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों के बीच इसको लेकर चिंता बढ़ गई है और उन्होंने भारतीय किसानों तथा निर्यातकों की सुरक्षा के लिये कानूनी कार्रवाई किये जाने का आग्रह किया है।

  • यह भारतीय किसानों की सुरक्षा और न्यायसंगत व्यापार प्रथाओं को बनाए रखने के लिये एकीकृत कार्रवाई की तात्कालिकता पर प्रकाश डालता है।
  • फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्रीज़ ऑफ इंडिया (FSII) और सथगुरु कंसल्टेंट्स ने चावल की कृषि में सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है, जिसमें चावल के प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR) तकनीकों पर विशेष ध्यान दिया गया है।

पाकिस्तान में भारतीय बासमती किस्मों की अवैध खेती कैसे की जाती है?

  • अवैध खेती:
    • पाकिस्तान में भारतीय बासमती किस्मों की खेती पूसा बासमती-1121 (PB-1121) से शुरू हुई, जो आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान में 'PK-1121 एरोमैटिक' के रूप में पंजीकृत है।
      • पूसा बासमती-6 (PB-6) और PB-1509 जैसी अन्य लोकप्रिय IARI-प्रजनित किस्मों को भी पाकिस्तान में उगाया गया है और उनका नाम बदल दिया गया है, जो भारतीय कृषि अधिकारियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करती है।
    • पूसा बासमती-1847 (PB-1847), PB-1885 और PB-1886 जैसी हालिया किस्मों की पहचान भी पाकिस्तानी खेतों में की गई है, जो बैक्टीरियल ब्लाइट एवं चावल ब्लास्ट फंगल संक्रमण का प्रतिरोध करने के लिये तैयार की गई हैं।
  • आशय:
    • पाकिस्तान में भारतीय बासमती किस्मों की अनधिकृत कृषि बीज अधिनियम, 1966 और पौधों की किस्मों तथा कृषक अधिकार संरक्षण (PPV एवं FR अधिनियम) अधिनियम, 2001 के तहत संरक्षित भारतीय किसानों तथा प्रजनकों के अधिकारों को कमज़ोर करती है।
      • भारत में अधिनियमित पौधों की किस्मों और कृषक अधिकारों का संरक्षण अधिनियम 2001, पंजीकृत किस्मों से उत्पादित बीज/अनाज को बोने, बचाने, दोबारा बोने, विनिमय करने या साझा करने के भारतीय किसानों के अधिकारों की रक्षा करता है।
        • यह अधिनियम प्रजनक की सहमति के बिना संरक्षित किस्मों के बीजों को ब्रांड लेबल लगाकर बेचने पर रोक लगाता है।
        • IARI-प्रजनित की उन्नत बासमती किस्में इस अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं।
      • बीज अधिनियम 1996, भारत के भीतर बासमती चावल के केवल आधिकारिक रूप से सीमांकित भौगोलिक संकेत (GI) क्षेत्र में IARI किस्मों की कृषि की अनुमति देता है।
        • IARI द्वारा उत्पन्न की गई सभी बासमती किस्मों को कृषि के लिये बीज अधिनियम, 1966 के तहत आधिकारिक तौर पर अधिसूचित किया गया है।
        • इन किस्मों को भारत में बासमती चावल के आधिकारिक रूप से सीमांकित भौगोलिक संकेत क्षेत्र के भीतर कृषि के लिये नामित किया गया है, जो 7 उत्तरी राज्यों (पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश (पश्चिम) और इसके अलावा जम्मू-कश्मीर (जम्मू एवं कठुआ) के दो ज़िलों में फैला हुआ है।
        • यहाँ तक कि भारतीय किसानों को ब्रांडेड, संवेष्टित या लेबल वाले रूप में बीज बेचकर ब्रीडर के अधिकारों का उल्लंघन करने से भी प्रतिबंधित किया गया है।इन विनियमों का उद्देश्य प्रजनकों के बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा करना और संरक्षित बासमती किस्मों की कृषि एवं व्यापार करने के लिये भारतीय किसानों के विशेष अधिकारों को सुनिश्चित करना है।
        • पाकिस्तान में संरक्षित बासमती किस्मों की खेती संभावित रूप से बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) का उल्लंघन होगी और भारत द्वारा इसे प्रासंगिक द्विपक्षीय मंचों एवं विश्व व्यापार संगठन में उठाया जा सकता है।

पौध किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001:

  • अधिनियम के तहत अधिकार:
    • प्रजनकों के अधिकार:
      • प्रजनकों को संरक्षित किस्मों का उत्पादन, बिक्री, विपणन, वितरण, आयात या निर्यात करने का विशेष अधिकार दिया जाता है।
      • ब्रीडर के अधिकारों में एजेंटों या लाइसेंसधारियों को नियुक्त करने और उल्लंघन के लिये नागरिक उपचार प्राप्त करने की क्षमता शामिल है।
    • शोधकर्त्ताओं के अधिकार:
      • शोधकर्त्ता प्रयोग या अनुसंधान उद्देश्यों के लिये पंजीकृत किस्मों का उपयोग कर सकते हैं।
      • किसी अन्य किस्म को विकसित करने के लिये किसी किस्म के प्रारंभिक प्रयोग की अनुमति है, लेकिन बार-बार प्रयोग के लिये पंजीकृत ब्रीडर से पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है।
    • किसानों के अधिकार:
      • जिन किसानों ने
      • किस्में विकसित की हैं, वे प्रजनकों के समान पंजीकरण और सुरक्षा के हकदार हैं।
      • किसान कुछ शर्तों के अधीन संरक्षित किस्मों के माध्यम से कृषि उपज को बचा सकते हैं, प्रयोग कर सकते हैं, विनिमय कर सकते हैं, साझा कर सकते हैं या बेच सकते हैं।
      • पादप आनुवंशिक संसाधनों से संबंधित किसानों के संरक्षण प्रयासों के लिये मान्यता और पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं।
      • संरक्षित किस्मों के गैर-प्रदर्शन के मामलों में किसानों के लिये मुआवज़े के प्रावधान मौजूद हैं।
      • किसानों को संबंधित अधिकारियों या न्यायालयों के समक्ष अधिनियम के तहत कार्यवाही में शुल्क का भुगतान करने से छूट दी गई है।

यह बासमती चावल वैश्विक बाज़ार को किस-प्रकार प्रभावित करता है?

  • वर्ष 2022-23 में, भारत ने 4.79 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के 45.61 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया। भारत का बासमती चावल निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचने के कगार पर है, अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में 5.5 अरब डॉलर मूल्य के 50 लाख टन निर्यात का संकेत दिया गया है।
    • विशेष रूप से, खरीफ वर्ष 2023 के दौरान बोए गए अनुमानित 21.35 लाख हेक्टेयर बासमती क्षेत्र का 89% IARI-प्रजनित किस्मों के अंतर्गत था, जिसमें PB-1121, PB-1718, PB-1885, PB-1509, PB-1692, PB-1847, PB-1, PB-6, और PB-1886 जैसी विशिष्ट किस्मों के तहत महत्त्वपूर्ण हिस्से थे जो निर्यात मात्रा एवं राजस्व पर अवैध कृषि के प्रभाव के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करते हैं।
  • हालाँकि भारत की तुलना में पाकिस्तान का बासमती निर्यात कम है, पाकिस्तानी रुपए के मूल्यह्रास के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धी मूल्य निर्धारण को सक्षम करने के कारण वृद्धि हुई है।
  • पाकिस्तान द्वारा भारतीय बासमती किस्मों की चोरी प्रमुख निर्यात बाज़ारों, विशेषकर यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम में भारत के प्रभुत्व के लिये समस्याएँ उत्पन्न करती है।
    • अपनी सस्ती मुद्रा के कारण पाकिस्तान की यूरोपीय संघ-यूनाइटेड किंगडम बाज़ार में 85% हिस्सेदारी है, जिससे वह इन बाज़ारों पर हावी हो गया है।
  • हालाँकि, भारत ईरान, सऊदी अरब और अन्य पश्चिम एशियाई देशों जैसे बाज़ारों में प्रभुत्व बनाए हुए है, जहाँ उपभोक्ता सख्त दाने वाले उसना/परबॉयल्ड चावल पसंद करते हैं जिसकी भोजन पकाने के दौरान टूटने की कम संभावना होती है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान:

  • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) कृषि विज्ञान में अनुसंधान, उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण में भारत का सबसे बड़ा एवं अग्रणी संस्थान है।
  • इसने हरित क्रांति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, वैज्ञानिक प्रगति और उपयुक्त कृषि प्रौद्योगिकियों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1905 में उत्तरी बिहार के पूसा गाँव में की गई थी जिसे वर्ष 1936 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद नई दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया।
  • IARI, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कार्य करता है जो सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 के तहत स्थापित एक स्वायत्त संस्था है।

डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) तकनीक क्या है?

  • परिचय:
    • डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) चावल की खेती की एक विधि है, जहाँ पारंपरिक पौधशाला (नर्सरी) तैयार करने और रोपाई की आवश्यकता नहीं होती है तथा बीजों का प्रत्यक्ष रूप से खेत में रोपण किया जाता है।
  • DSR के लाभ:
    • श्रम और लागत बचत:
      • इस विधि में श्रम-केंद्रित नर्सरी तैयार करने और रोपाई की आवश्यकता समाप्त हो जाती है जिससे उत्पादन की कुल लागत कम हो जाती है।
      • यह मैन्युअल श्रम आवश्यकताओं और संबंधित लागतों को कम करता है, जिससे संभावित रूप से अधिक उपज होती है और किसानों को अधिक लाभ मिलता है।
    • जल संरक्षण:
      • इस तकनीक के उपयोग से पारंपरिक विधियों की तुलना में जल की खपत लगभग 40% कम हो जाती है जिससे मृदा अपरदन और मीथेन उत्सर्जन कम हो जाता है।
      • पारंपरिक रोपाई की तुलना में इसमें जल की आवश्यकता कम होती है, जो इसे जल की कमी वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त बनाता है।
    • फसल की प्रारंभिक परिपक्वता: फसलें सामान्य (115-120 दिन) की तुलना में 7-10 दिन पूर्व पक जाती हैं, जिससे क्रमिक फसल की समय पर बुवाई संभव हो जाती है।
  • DSR की विधियाँ:
    • ड्राय सीडिंग: इसमें बीजों का रोपण शुष्क मृदा में किया जाता है जो सुनिश्चित वर्षा अथवा सिंचाई सुविधाओं वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।
    • वेट सीडिंग: इसमें बीजों का रोपण पोखर वाली मृदा में किया जाता है जो रोपाई की स्थितियों के समान है, जो सुनिश्चित पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।
  • चुनौतियाँ:
    • खरपतवार:
      • खरपतवार अपनी तीव्र विकास और जल की परतों की अनुपस्थिति में प्रारंभिक संक्रमण के कारण DSR के लिये एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती हैं, जिससे उपज की संभावित हानि 20% से 85% तक हो सकती है।
      • DSR से लेकर पडल्ड ट्रांसप्लांटेड राइस (PTR) तक खरपतवारों की विविधता एवं संरचना में बदलाव के कारण खरपतवार प्रबंधन की रणनीतियाँ और अधिक जटिल हो गई हैं।
      • खरपतवारयुक्त चावल, आनुवंशिक रूप से खेती किये गए चावल के समान, उन क्षेत्रों में एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है, जहाँ DSR का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है जिससे उपज की हानि और गुणवत्ता में कमी होती है।
    • शाकनाशी प्रतिरोध का विकास:
      • DSR में शाकनाशी (Herbicide) के उपयोग में वृद्धि के कारण शाकनाशी-प्रतिरोधी खरपतवार बायोटाइप की उत्पत्ति हुई है, जिससे खरपतवार नियंत्रण के प्रयास प्रभावित हुए हैं।
      • रूट-नॉट नेमाटोड, DSR के उपज में गंभीर बाधा उत्पन्न करते हैं जिससे फसल, विशेषकर PTR से DSR में संक्रमण वाले क्षेत्रों में, की पैदावार प्रभावित होती है।
        • रूट-नॉट नेमाटोड जीनस मेलोइडोगाइन के पादप-परजीवी नेमाटोड हैं। ये प्रायः ऊष्म जलवायु अथवा कम सर्दियों वाले क्षेत्रों में मृदा में पाए जाते हैं और ये विभिन्न पादपों को नुकसान पहुँचाने में सक्षम होते हैं।
    • स्थिर उपज:
      • रिपोर्टों के अनुसार, DSR में उपज में गिरावट आई है, जिसका कारण मृदा रुग्णता, पादपों की ऑटोटॉक्सिसिटी और सही रोटेशन के बिना निरंतर कृषि करना है।
    • लॉजिंग:
      • पडल्ड ट्रांसप्लांटिंग सिस्टम (PTR) की तुलना में DSR में लॉजिंग की संभावना अधिक होती है, जिससे फसल की गुणवत्ता और फसल दक्षता दोनों प्रभावित होती हैं, जिससे लॉजिंग-प्रतिरोधी किस्मों को प्राथमिकता देना आवश्यक हो जाता है।
    • रोग और कीट-पीड़क:
      • DSR विभिन्न बीमारियों जैसे राइस ब्लास्ट और शीथ ब्लाइट के साथ-साथ कीट-पीड़क (Insect Pests) के प्रति संवेदनशील होता है, जो फसल के स्वास्थ्य एवं उपज क्षमता को प्रभावित करता है।
    • अन्य चुनौतियाँ:
      • चावल के बीजों का पक्षियों एवं चूहों के संपर्क में आना, बीज बोने के बाद अचानक होने वाली वर्षा के प्रतिकूल प्रभाव के साथ असमान फसल की स्थिति जैसी चुनौतियाँ DSR कृषि की जटिलताओं को और बढ़ा देती हैं।
  • संभावित समाधान:
    • एकीकृत एवं व्यवस्थित खरपतवार निगरानी कार्यक्रम तथा सूत्रकृमि नियंत्रण के लिये बायोसाइड का उपयोग।
    • हिल सीडिंग, लॉजिंग प्रतिरोधी खेती से लॉजिंग पर नियंत्रण प्राप्त करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
    • एकीकृत प्रबंधन के साथ-साथ जैव-तकनीकी एवं आनुवंशिक दृष्टिकोण, कीट और बीमारी के मुद्दों को हल करने में सहायता प्रदान कर सकते हैं।
  • उद्योग परिप्रेक्ष्य:
    • इसे चावल की खेती में एक तकनीकी प्रगति के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो बीज, उर्वरक, कीटनाशकों तथा कृषि मशीनरी से जुड़े व्यवसायों हेतु अवसर सृजित कर रही है।
    • यह वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों के अनुरूप उन हितधारकों से अपील करता है जो पर्यावरणीय विषय पर चिंतित हैं।
    • इसके अंर्तगत किसानों एवं कृषि मूल्य शृंखला हेतु आर्थिक व्यवहार्यता का मूल्यांकन किया जाता है।
  • सरकारी सहायता एवं नीतियाँ:
    • सरकारी नीतियों एवं खरीद प्रणालियों से सहायता महत्त्वपूर्ण है।
    • DSR में प्रभावी परिवर्तन के लिये केंद्र एवं राज्य सरकार की नीतियों के बीच तालमेल की आवश्यकता है।

नोट:

FSII अनुसंधान एवं विकास आधारित पादप विज्ञान उद्योग का एक निकाय है, जो भारत में भोजन, चारा एवं फाइबर के लिये उच्च प्रदर्शन गुणवत्ता वाले बीजों के उत्पादन में लगा हुआ है।

चावल:

  • तापमान: उच्च आर्द्रता के साथ 22-32 डिग्री सेल्सियस के बीच।
  • वर्षा: लगभग 150-300 सेंटीमीटर।
  • मृदा का प्रकार: गहरी चिकनी मृदा और दोमट मृदा।
  • शीर्ष चावल उत्पादक राज्य: पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और बिहार।
  • यह बहुसंख्यक भारतीय लोगों की मुख्य खाद्य फसल है।
  • चीन के बाद भारत दुनिया में चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • असम, पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा जैसे राज्यों में एक वर्ष में धान की तीन फसलें उगाई जाती हैं। ये हैं औस, अमन एवं बोरो।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. कृषि में शून्य-जुताई (Zero-Tillage) का/के क्या लाभ है/हैं? (2020)

  1. पिछली फसल के अवशेषाें को जलाए बिना गेहूँ की बुवाई संभव है।
  2. चावल की नई पौध की नर्सरी बनाए बिना धान के बीजाें का नम मृदा में सीधे रोपण संभव है।
  3. मृदा में कार्बन पृथक्करण संभव है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. विज्ञान हमारे जीवन में गहराई तक कैसे गुथा हुआ है? विज्ञान-आधारित प्रौद्योगिकियों द्वारा कृषि में उत्पन्न हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तन क्या हैं? (2020)


प्रश्न. सिक्किम भारत में प्रथम ‘जैविक राज्य’ है। जैविक राज्य के पारिस्थितिक एवं आर्थिक लाभ क्या-क्या होते हैं? (2018)


प्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस.) किस सीमा तक कृषि उत्पादन को संधारित करने में सहायक है? (2019)

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