राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत हस्तक्षेप

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, हरित क्रांति, खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन - ऑयल पाम, प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना, जलवायु परिवर्तन, कुपोषण

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत प्रमुख हस्तक्षेप, भारत में खाद्य सुरक्षा से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री ने लोकसभा में लिखित जवाब में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में हुई प्रगति पर महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन:

  • परिचय:
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसकी शुरुआत वर्ष 2007 में राष्ट्रीय विकास परिषद की कृषि उप-समिति की सिफारिशों के आधार पर की गई थी।
      • इस समिति ने बेहतर कृषि विस्तार सेवाओं, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और विकेंद्रीकृत योजना की आवश्यकता पर बल दिया जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन को एक मिशन मोड कार्यक्रम के रूप में संकल्पित किया गया।
  • प्रमुख क्षेत्र:
    • इसे मुख्य रूप से चावल, गेहूँ, दलहन जैसी लक्षित फसलों के उत्पादन में धारणीय वृद्धि के साथ कदन्न, पोषक अनाज और तिलहन तक विस्तारित किया गया।
    • कृषि विशिष्ट उत्पादकता और मृदा की उर्वरता की पुनर्प्राप्ति।
    • कृषि क्षेत्र में शुद्ध आय में वृद्धि।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत प्रमुख हस्तक्षेप:

  • क्लस्टर प्रदर्शन और बेहतर पद्धतियाँ: कृषि पद्धतियों के बेहतर पैकेजों को प्रदर्शित करने वाले क्लस्टर प्रदर्शन आयोजित करने के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के माध्यम से किसानों को सहायता प्रदान की जाती है।
    • ये प्रदर्शन अनुकूलित फसल की खेती और प्रबंधन की तकनीकों पर प्रकाश डालते हैं।
  • बीज उत्पादन और वितरण: कृषि उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा बढ़ाने के लिये उच्च उपज देने वाली किस्मों एवं संकर किस्मों को विकसित, उत्पादित करने हेतु किसानों को वितरित किया जाता है।
  • कृषि मशीनीकरण और संसाधन संरक्षण: आधुनिक तथा कुशल कृषि मशीनरी और संसाधन संरक्षण उपकरणों का कार्यान्वयन संसाधन उपयोग को अनुकूलित करते हुए उन्नत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देता है।
    • प्रसंस्करण और कटाई के बाद उपकरणों में निवेश समग्र मूल्य शृंखला को बढ़ाता है तथा फसल के बाद के नुकसान को कम करता है।
  • पौध संरक्षण और पोषक तत्त्व प्रबंधन: कीटों एवं बीमारियों से फसलों की सुरक्षा के उपाय, प्रभावी पोषक तत्त्व प्रबंधन तथा मृदा सुधार रणनीतियों के साथ मिलकर स्वस्थ पौधों के विकास में योगदान करते हैं।
  • तिलहन उत्पादन पर केंद्रित दृष्टिकोण: तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने और खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिये NFSM-तिलहन पहल तैयार की गई है। इसमें शामिल है:
    • बीज सब्सिडी और वितरण: वित्तीय प्रोत्साहन एवं सब्सिडी गुणवत्ता वाले बीजों की खरीद तथा वितरण की सुविधा प्रदान करती है, जिससे बेहतर फसल पैदावार सुनिश्चित होती है।
    • प्रदर्शन और प्रशिक्षण: ब्लॉक प्रदर्शन (Block Demonstrations), फ्रंट-लाइन प्रदर्शन (Front-Line Demonstrations) तथा क्लस्टर फ्रंट-लाइन प्रदर्शन (Cluster Front-Line Demonstrations) प्रभावी तिलहन खेती प्रथाओं को प्रदर्शित करने के लिये मंच के रूप में कार्य करते हैं।
    • बुनियादी ढाँचा और इनपुट वितरण: जल-वाहक उपकरण, पादप संरक्षण उपकरण, विशिष्ट मृदा, सूक्ष्म पोषक तत्त्व तथा जैव-अभिकर्त्ता जैसे आवश्यक संसाधन तिलहन की खेती को उन्नत करते हैं।

नोट:

  • खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन - ऑयल पाम (NMEO-OP): खाद्य तेल आयात को कम करने के लिये अगस्त 2021 में NMEO-OP की स्थापना की गई।
    • यह मिशन पाम ऑयल की खेती के विस्तार पर ज़ोर देता है, जिसका उद्देश्य कच्चे पाम ऑयल का उत्पादन, उत्पादकता बढ़ाना और देश के आयात बोझ को कम करना है।
  • सतत् कृषि हेतु जल प्रबंधन:
    • प्रति बूँद अधिक फसल (PDMC): इसे वर्ष 2015-16 में लॉन्च किया गया था, PDMC ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों का उद्देश्य जल उपयोग दक्षता को बढ़ाना है।
      • यह स्थान-विशिष्ट वैज्ञानिक तकनीकों और आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने पर भी ज़ोर देता है।
    • कमांड एरिया डेवलपमेंट एंड वाटर मैनेजमेंट (जल प्रबंधन) [CADWM]: यह प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का भाग है, जिसका उद्देश्य सिंचाई दक्षता को बढ़ाना है।
      • इसमें अंतिम-मील कनेक्टिविटी के लिये पंक्तिबद्ध फील्ड चैनलों और भूमिगत पाइपलाइनों का निर्माण शामिल है।
    • जल उपयोग दक्षता ब्यूरो (BWUE): इसे विभिन्न क्षेत्रों में कुशल जल उपयोग को विनियमित करने के लिये स्थापित किया गया है, जो सिंचाई, उद्योगों और घरेलू समायोजनों (Domestic Settings) में जल उपयोग दक्षता में सुधार की नीतियों को बढ़ावा देता है।
    • राष्ट्रीय जल मिशन (NWM): NWM ने वर्ष 2019 में 'सही फसल' अभियान शुरू किया, जो जल की कमी वाले क्षेत्रों में किसानों को ऐसी फसलें उगाने के लिये प्रोत्साहित करता है जो आर्थिक रूप से व्यवहार्य, जल-कुशल और कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप हों।

भारत में खाद्य सुरक्षा से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:

  • कृषि चुनौतियाँ: भारत का कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन, कीटों के संक्रमण और मिट्टी के क्षरण के कारण अप्रत्याशित मौसम पैटर्न जैसी विभिन्न चुनौतियों के प्रति संवेदनशील है।
    • इन कारकों से फसल की पैदावार कम हो सकती है और भोजन की कमी हो सकती है।
  • भूमि विखंडन: विरासत कानूनों की वजह से भूमि के उपविभाजन के कारण भूमि जोत छोटी और खंडित हो गई है।
    • हालाँकि इससे आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने में बाधा आती है लेकिन ये उत्पादकता को बढ़ा सकती हैं।
  • विविधता का अभाव: कुछ प्रमुख फसलों पर अत्यधिक निर्भरता आहार विविधता को सीमित करती है। उचित पोषण के लिये विविध आहार आवश्यक है और चावल तथा गेहूँ जैसी कुछ फसलों पर ज़ोर कुपोषण में योगदान कर सकता है।
  • खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें: वैश्विक और घरेलू खाद्य कीमतों में उतार-चढ़ाव कमज़ोर आबादी के लिये आवश्यक खाद्य पदार्थों को अप्राप्य बना सकता है।
    • आपूर्ति शृंखला में व्यवधान की वजह से मूल्य में अस्थिरता के कारण खाद्य असुरक्षा में अचानक वृद्धि हो सकती है।

आगे की राह

  • कृषि-पारिस्थितिकी क्षेत्रीकरण: उन्नत भू-स्थानिक विश्लेषण का उपयोग करके विस्तृत कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रीकरण मानचित्र बनाए जाने चाहिये।
    • इससे विशिष्ट क्षेत्रों को उनकी प्राकृतिक विशेषताओं के आधार पर सबसे उपयुक्त फसलों की पहचान करने में मदद मिलेगी, इस प्रकार संसाधन उपयोग को अनुकूलित किया जा सकेगा और फसल की विफलता के जोखिम को कम किया जा सकेगा।
  • शहरी क्षेत्रों में खाद्य भूदृश्य: शहरी निवासियों को अपने लॉन और अप्रयुक्त स्थानों को खाद्य परिदृश्य, फल एवं सब्जियाँ उगाने में बदलने के लिये प्रोत्साहित करना।
    • यह विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण स्थानीय खाद्य उत्पादन में योगदान देता है और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाता है।
  • अपशिष्ट जल से पोषक तत्त्व पुनर्प्राप्ति: अपशिष्ट जल एवं जैविक कचरे से पोषक तत्त्व प्राप्ति के लिये प्रणाली को लागू करना, इसके पश्चात् इन पोषक तत्त्वों को उर्वरकों में परिवर्तित करना।
    • यह सिंथेटिक उर्वरकों की आवश्यकता को कम करता है और साथ ही जल प्रदूषण का भी निपटान करता है।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता से कीट का पता लगाना: कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित-संचालित कैमरे एवं सेंसर विकसित करना जो पौधों के स्वास्थ्य में सूक्ष्म परिवर्तनों का विश्लेषण करके लक्षित हस्तक्षेप की अनुमति देने के साथ व्यापक कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता को कम कर कीट एवं बीमारी के प्रकोप का शीघ्र पता लगा सकते हैं।
  • एकीकृत ऊर्जा का उपयोग कर खेती: कृषि को नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के साथ संयोजित करना।
    • फसल वाले क्षेत्रों में सौर पैनलों को लगाया जा सकता है, जो छाया प्रदान करते हैं और जल के वाष्पीकरण को कम करते हैं, साथ ही कृषि उपकरणों को विद्युत प्रदान करने के लिये स्वच्छ ऊर्जा उत्पन्न करते हैं।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. केवल 'गरीबी रेखा से नीचे (BPL)' की श्रेणी में आने वाले परिवार ही सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के पात्र हैं।
  2. राशन कार्ड जारी करने के उद्देश्य से घर की सबसे बड़ी महिला, जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है, घर की मुखिया होगी।
  3. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद छह महीने तक प्रतिदिन 1600 कैलोरी का 'टेक-होम राशन' मिलता है

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. मूल्य सब्सिडी को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) से बदलने से भारत में सब्सिडी का परिदृश्य किस प्रकार बदल सकता है? चर्चा कीजिये।(2015)

स्रोत: पी.आई.बी