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राजस्थान

मानित वन स्थिति

  • 22 Apr 2024
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य से "वन भूमि के रूप में ओरान, दी-वान, रूंध और अन्य उपवनों की पहचान वन सर्वेक्षण के लिये उठाए जा रहे कदमों" को उज़ागर करने के लिये कहा। इसके प्रत्युत्तर में राजस्थान सरकार ने अंततः अपने पवित्र उपवनों, जिन्हें ओरांस के नाम से जाना जाता है, को "मानित वन" के रूप में अधिसूचित किया।

मुख्य बिंदु:

  • राजस्थान के सामुदायिक वनों में ओरान सामुदायिक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं जो कभी-कभी सदियों पुराने होते हैं, जिन्हें पारंपरिक रूप से पवित्र माना जाता है, ग्रामीण समुदायों द्वारा संरक्षित एवं प्रबंधित किया जाता है, स्थानीय कानूनों व नियमों के साथ उनके उपयोग को नियंत्रित किया जाता है।
    • पशुचारक अपने पशुओं को चराने के लिये ओरान में ले जाते हैं।
    • ये समुदायों के सामाजिक कार्यक्रमों और त्योहारों के लिये एकत्रित होने के स्थान के रूप में भी काम करते हैं।
    • ये गंभीर रूप से संकटग्रस्त ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) के लिये प्राकृतिक आवास भी हैं।
  • वन संरक्षण अधिनियम (FCA), 1980 में कुछ प्रतिबंधात्मक प्रावधान थे, जिसमें वन की स्थिति को गैर-वन भूमि में बदलने के लिये केंद्र की मंज़ूरी की आवश्यकता थी। लेकिन संशोधित FCA में मानित, अवर्गीकृत और निजी वनों की मंज़ूरी राज्य सरकार स्वयं कर सकती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के एक मामले में जहाँ इन संशोधनों की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है, न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश में कहा कि गोदावर्मन मामले, 1996 के अनुसार वनों को संरक्षित किया जाना चाहिये।

ओरान (Orans)

  • ये समुदाय-संरक्षित हरित स्थान हैं जिनमें खेजड़ी (Prosopis cineraria) और रोहिडा (Tecomella undulata) जैसे स्थानीय पेड़ शामिल हैं तथा आमतौर पर स्थानीय देवताओं को समर्पित हैं।
  • ये विनाश के कगार पर थे क्योंकि राजस्व रिकॉर्ड में इन्हें सरकारी भूमि की कृषि योग्य बंजर भूमि के रूप में चिह्नित किया गया था जिसे खेती के तहत लाया जा सकता था। इससे ओरान को गैर-वन गतिविधियों के लिये आवंटित करना आसान हो गया।
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