जैव विविधता और पर्यावरण
भारतीय हिमालयी क्षेत्र
- 21 Aug 2023
- 10 min read
प्रिलिम्स के लिये:हिमालयी क्षेत्र, स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण, जैवविविधता, हिमनद का पीछे हटना, भूकंप, भूस्खलन, आकस्मिक बाढ़, हिमनद झील के फटने से बाढ़ मेन्स के लिये:भारतीय हिमालयी क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
अपने मनोरम वातावरण और सांस्कृतिक विरासत के लिये प्रसिद्ध हिमालय क्षेत्र के स्वच्छता संबंधी मुद्दों को त्वरित रूप से हल किये जाने की आवश्यकता है, अवैध निर्माण और पर्यटकों की बढ़ती संख्या के कारण स्थिति दिन-पर-दिन चिंतनीय होती जा रही है।
- सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट ने एक हालिया विश्लेषण में हिमालयी राज्यों में स्वच्छता प्रणालियों की गंभीर स्थिति पर प्रकाश डाला है।
विश्लेषण के प्रमुख बिंदु:
- जल आपूर्ति और अपशिष्ट जल उत्पादन: स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के दिशा-निर्देशों के अनुसार, प्रत्येक पहाड़ी शहर में प्रति व्यक्ति लगभग 150 लीटर पानी की आपूर्ति की जाती है।
- चिंता की बात यह है कि इस जल आपूर्ति का लगभग 65-70% अपशिष्ट जल में परिवर्तित हो जाता है।
- धूसर जल प्रबंधन चुनौतियाँ: उत्तराखंड में केवल 31.7% घर सीवरेज सिस्टम से जुड़े हैं, जिस कारण अधिकांश लोग ऑन-साइट स्वच्छता सुविधाओं (एक स्वच्छता प्रणाली जिसमें अपशिष्ट जल को उसी भू-खंड पर एकत्रित, संग्रहीत और/या उपचारित किया जाता है जहाँ वह उत्पन्न होता है) पर निर्भर हैं।
- घरों और छोटे होटल दोनों ही द्वारा बाथरूम एवं रसोई से निकलने वाले गंदे जल के प्रबंधन के लिये अक्सर सोखने वाले गड्ढों (Soak Pits) का उपयोग किया जाता है।
- कुछ कस्बों में खुली नालियों से गंदे जल का अनियमित प्रवाह होता है, जिससे इस जल का अधिक रिसाव ज़मीन में होने लगता है।
- मृदा और भूस्खलन पर प्रभाव: हिमालयी क्षेत्र की मृदा की संरचना, जिसमें चिकनी, दोमट और रूपांतरित शिस्ट, फिलाइट एवं गनीस शैलें शामिल हैं, स्वाभाविक रूप से कोमल होती है।
- विश्लेषण के अनुसार, जल और अपशिष्ट जल का ज़मीन में अत्यधिक रिसाव, मृदा को नरम/कोमल बना सकता है जिससे भूस्खलन की संभावना अधिक होती है।
भारतीय हिमालयी क्षेत्र से संबंधित अन्य चुनौतियाँ:
- परिचय:
- भारतीय हिमालयी क्षेत्र 13 भारतीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, असम और पश्चिम बंगाल) में 2500 किमी. तक विस्तृत है।
- इस क्षेत्र में लगभग 50 मिलियन लोग रहते हैं, विविध जनसांख्यिकीय और बहुमुखी आर्थिक, पर्यावरणीय, सामाजिक तथा राजनीतिक प्रणालियाँ इन क्षेत्रों की विशेषता है।
- ऊँची चोटियों, विशाल दृश्यभूमि, समृद्ध जैवविविधता और सांस्कृतिक विरासत के साथ भारतीय हिमालयी क्षेत्र लंबे समय से भारतीय उपमहाद्वीप एवं विश्व भर से आगंतुकों तथा तीर्थयात्रियों के लिये आकर्षण का केंद्र रहा है।
- चुनौतियाँ:
- पर्यावरणीय क्षरण और वनों की कटाई: वनों की व्यापक कटाई भारतीय हिमालयी क्षेत्र की सबसे प्रमुख समस्या रही है, यह पारिस्थितिक संतुलन पर काफी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
- बुनियादी ढाँचे और शहरीकरण के लिये बड़े पैमाने पर होने वाले निर्माण कार्य से निवास स्थान का नुकसान, मृदा का क्षरण और प्राकृतिक जल प्रवाह में बाधा जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- जलवायु परिवर्तन और आपदाएँ: भारतीय हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। बढ़ते तापमान का हिमनदों पर अधिक बुरा असर पड़ा है जिससे निचले इलाकों में रहने वाले समुदायों के लिये जल संसाधनों की उपलब्धता पैटर्न में बदलाव देखा जा रहा है।
- अनियमित मौसम पैटर्न, वर्षा की तीव्रता में वृद्धि और दीर्घकालीन शुष्क मौसम पारिस्थितिक तंत्र स्थानीय समुदायों को और अधिक प्रभावित करते हैं।
- यह क्षेत्र भूकंप, भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति भी अतिसंवेदनशील है।
- गैर-योजनाबद्ध विकास, आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचे की कमी एवं अपर्याप्त प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के कारण इस प्रकार की घटनाओं के प्रभाव में और वृद्धि होती है।
- सांस्कृतिक और स्वदेशी ज्ञान का पतन: भारतीय हिमालयी क्षेत्र पीढ़ियों से कायम रखे हुए अद्वितीय ज्ञान और प्रथाओं वाले विविध स्वदेशी समुदायों का घर है।
- हालाँकि आधुनिकीकरण के कारण धारणीय संसाधन प्रबंधन हेतु मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने वाली इन सांस्कृतिक परंपराओं का क्षरण हो सकता है।
- पर्यावरणीय क्षरण और वनों की कटाई: वनों की व्यापक कटाई भारतीय हिमालयी क्षेत्र की सबसे प्रमुख समस्या रही है, यह पारिस्थितिक संतुलन पर काफी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
आगे की राह
- प्रकृति-आधारित पर्यटन: पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभावों को कम करते हुए स्थानीय समुदायों के लिये आय उत्पन्न करने वाले धारणीय और ज़िम्मेदार पर्यटन प्रथाओं का विकास किया जाना चाहिये।
- इसमें पर्यावरण संवेदी पर्यटन को बढ़ावा देना, वहन क्षमता सीमा लागू करना और पर्यटकों के बीच जागरूकता बढ़ाने जैसे कार्यों को शामिल किया जा सकता है।
- हिमनद जल संग्रहण: गर्मी के महीनों के दौरान हिमनदों से पिघले जल को संगृहीत करने के लिये नवीन तरीकों का विकास किया जा सकता है।
- इस संगृहीत जल उपयोग शुष्क मौसम के दौरान कृषि आवश्यकताओं और डाउनस्ट्रीम पारिस्थितिकी तंत्र के समर्थन हेतु किया जा सकता है।
- आपदा शमन और इससे संबंधित तैयारियाँ: इसके लिये व्यापक आपदा प्रबंधन योजनाएँ विकसित की जा सकती हैं जो भूस्खलन, हिमस्खलन और हिमनद झील के विस्फोट के कारण आने वाली बाढ़ की वजह से संबद्ध क्षेत्र के लिये उत्पन्न गंभीर जोखिमों को कम करने में मदद कर सके। आपदा प्रबंधन के लिये राज्य सरकारें प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, निकासी योजनाओं तथा सामुदायिक प्रशिक्षण कार्यों में निवेश कर सकती हैं।
- कृषि संवर्द्धन के लिये धूसर जल पुनर्चक्रण: कृषि उपयोग के लिये घरेलू धूसर जल को एकत्रित और उपचारित करने के लिये भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में एक धूसर जल पुनर्चक्रण प्रणाली लागू करने की आवश्यकता है।
- फसल उत्पादन में वृद्धि हेतु जल और पोषक तत्त्वों का एक स्थायी स्रोत प्रदान करने के लिये इस उपचारित जल का उपयोग स्थानीय खेतों में सिंचाई हेतु किया सकता है।
- जैव-सांस्कृतिक संरक्षण क्षेत्र: ऐसे विशिष्ट क्षेत्रों, जहाँ प्राकृतिक जैवविविधता और स्वदेशी सांस्कृतिक प्रथाएँ दोनों संरक्षित हैं, को जैव-सांस्कृतिक संरक्षण क्षेत्र के रूप में नामित किया जाना चाहिये। इससे स्थानीय समुदायों तथा पर्यावरण के बीच संबंध बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. जब आप हिमायल की यात्रा करेंगे, तब आप निम्नलिखित को देखेंगे: (2012)
उपर्युक्त में से कौन-से हिमालय तरुण वलित पर्वत होने के साक्ष्य कहे जा सकते हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. पश्चिमी घाट की तुलना में हिमालय में भूस्खलन की घटनाओं के प्रायः होते रहने के कारण बताइये। (2013) प्रश्न. भूस्खलन के विभिन्न कारणों और प्रभावों का वर्णन कीजिये। राष्ट्रीय भू-स्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटकों का उल्लेख कीजिये। (2021) |