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प्रश्न :
प्रश्न. भारत में आपराधिक मानहानि (Criminal Defamation) प्रायः अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से असंगत होती है। मानहानि को अपराधमुक्त करने की आवश्यकता (Decriminalize) का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं प्रतिष्ठा की रक्षा के बीच संतुलन स्थापित करने हेतु सुधारों को प्रस्तावित कीजिये। (150 शब्द)
07 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- आपराधिक मानहानि की संक्षिप्त परिभाषा दीजिये तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के साथ इसकी संगतता की पुष्टि कीजिये।
- मानहानि को अपराधमुक्त करने की आवश्यकता का परीक्षण कीजिये।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने के लिये सुधारों को प्रस्तावित कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारतीय न्याय संहिता (BNS)- 2023 की धारा 356 के अनुसार, 'मानहानि' का अर्थ है— किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से उसपर कोई आरोप लगाने, उसके खिलाफ बोलने, लिखने, प्रकाशित करने या संकेत देने का कार्य है। न्यायालयों ने प्रतिष्ठा को अनुच्छेद 21 के अंतर्गत 'जीवन के अधिकार' का अंग माना है। तथापि, मानहानि को अपराध घोषित किये जाने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, पत्रकारिता की स्वतंत्रता तथा लोकतांत्रिक असहमति पर 'प्रतिरोधक प्रभाव' (Chilling effect) पड़ने की गंभीर आशंका उत्पन्न होती है।
मुख्य भाग:
भारत में मानहानि को अपराधमुक्त करने की आवश्यकता
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा: आपराधिक मानहानि कानूनों का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ‘प्रतिरोधक प्रभाव’ पड़ता है, जो पत्रकारों, व्हिसलब्लोअर और नागरिकों को वैध आलोचना या असहमति व्यक्त करने से रोकता है, जिसके परिणामस्वरूप सेल्फ-सेंसरशिप होती है।
- सितंबर वर्ष 2025 में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं यह टिप्पणी की कि आपराधिक अभियोजन के भय के कारण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता {अनुच्छेद 19(1)(a)} के अधिकार का प्रयोग सीमित हो जाता है, जबकि प्रतिष्ठा से संबंधित हानि की भरपाई के लिये दीवानी उपाय पर्याप्त हैं।
- श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) में सर्वोच्च न्यायालय ने ऑनलाइन मानहानि (IT अधिनियम की धारा 66A) की आपराधिक धारा को इसलिये रद्द कर दिया क्योंकि यह अस्पष्ट थी तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव डालती थी।
- दुर्व्यवहार और उत्पीड़न की रोकथाम: आपराधिक मानहानि राजनेताओं, अभिनेताओं और उद्योगपतियों जैसे शक्तिशाली व्यक्तियों के लिये जनभागीदारी के विरुद्ध रणनीतिक मुकदमे (SLAPP) दायर करने का एक हथियार बन गई है।
- न्यायिक लंबित मामलों और विलंब को कम करना: मानहानि के मुकदमे निचली अदालतों को अवरुद्ध कर देते हैं और निजी विवादों के लिये विशाल न्यायिक संसाधनों का उपभोग करते हैं।
- सितंबर 2025 में वायर-JNU मामले की सुनवाई करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने हज़ारों आपराधिक मानहानि मामलों में लंबी मुकदमेबाज़ी और विलंब का अवलोकन किया।
- प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा: कानूनी विशेषज्ञ इस बात पर बल देते हैं कि आपराधिक मानहानि मीडिया की आवाज़ दबाने और लोकतांत्रिक बहस को दबाने का जोखिम उत्पन्न करती है।
- विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक (2025) में भारत 180 देशों में 151वें स्थान पर है, जो पत्रकारिता की स्वतंत्रता और मीडिया की स्वतंत्रता के लिये गंभीर चुनौतियों को उजागर करता है।
- लोकतांत्रिक मूल्यों का संरक्षण: सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी हालिया टिप्पणी में इस बात पर ज़ोर दिया कि प्रतिष्ठा की गरिमा की रक्षा की जानी चाहिये, लेकिन लोकतांत्रिक बहुलवाद और समालोचनात्मक विमर्श की कीमत पर नहीं।
- वैश्विक मानकों के अनुरूप: पत्रकारों की सुरक्षा समिति और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद सहित अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन, भारत से आपराधिक मानहानि कानूनों को निरस्त करने का आग्रह करते हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा की रक्षा के बीच संतुलन के लिये सुधार
- निजी मानहानि को अपराधमुक्त करना, जनहित के लिये आपराधिक मानहानि को बरकरार रखना: कानूनी विशेषज्ञों द्वारा सुझाया गया एक संतुलित दृष्टिकोण यह है कि आपराधिक मानहानि को केवल जनहित, राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक हस्तियों से जुड़े मामलों तक ही सीमित रखा जाना चाहिये, जबकि निजी प्रतिष्ठा के विवादों को पूरी तरह से दीवानी अदालतों में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिये।
- दीवानी मानहानि की कार्यवाही को सुदृढ़ और तीव्र करना: भारत को दीवानी मानहानि के मामलों को स्पष्ट समय-सीमा और उचित मुआवज़े की सीमा के साथ निपटाने के लिये फास्ट-ट्रैक कोर्ट या समर्पित पीठें स्थापित की जानी चाहिये, जिससे भाषण को आपराधिक बनाए बिना प्रभावी और समय पर समाधान मिल सके।
- एंटी-SLAPP (जनभागीदारी के विरुद्ध रणनीतिक मुकदमा) कानून लागू करना: SLAPP मुकदमों का इस्तेमाल शक्तिशाली व्यक्ति और निगम आलोचकों को महंगे मुकदमे से डराने के लिये करते हैं।
- निष्पक्ष आलोचना और जनहित पर विशिष्ट न्यायिक दिशानिर्देश प्रदान करना: सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों और अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं से प्रेरणा लेते हुए, निष्पक्ष आलोचना, व्यंग्य एवं राय को दुर्भावनापूर्ण मानहानि से अलग करने के लिये स्पष्ट न्यायिक सिद्धांतों को संहिताबद्ध किया जाना चाहिये।
- ज़िम्मेदार भाषण पर मीडिया साक्षरता और जन जागरूकता को बढ़ावा देना: ज़िम्मेदार भाषण को प्रोत्साहित करने और आलोचना एवं मानहानि के बीच अंतर के बारे में नागरिकों को शिक्षित करने से तुच्छ मामलों में कमी आ सकती है।
निष्कर्ष:
भारत में मानहानि कानूनों में सुधार करने के लिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा की रक्षा के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।
जॉन स्टुअर्ट मिल ने ‘ऑन लिबर्टी’ में कहा था कि “किसी मत को दबा देना मानवता को उस अवसर से वंचित कर देता है, जिसके माध्यम से वह भ्रांति को सत्य से बदल सकती है; इससे समालोचनात्मक विचार और लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व दोनों बाधित होते हैं।”
अतः निजी मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर करना, सिविल उपायों को सशक्त करना और ‘एंटी-स्लैप’ (Anti-SLAPP) प्रावधानों को लागू करना पत्रकारों एवं नागरिकों दोनों की सुरक्षा करेगा, उत्तरदायी संवाद को प्रोत्साहित करेगा तथा संवैधानिक स्वतंत्रता एवं सामाजिक न्याय, दोनों की रक्षा सुनिश्चित करेगा।
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