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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: सऊदी–पाकिस्तान आपसी रक्षा संधि क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता के पुनर्गठन का संकेत देती है। भारत की रणनीतिक गणना पर इसके प्रभावों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    23 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सऊदी-पाकिस्तान पारस्परिक रक्षा समझौते का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • समझौते की प्रमुख शर्तों पर चर्चा कीजिये।
    • भारत की रणनीतिक गणना और क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता पर इसके प्रभावों का विश्लेषण कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    सितंबर 2025 में सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच एक स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट (SMDA) पर हस्ताक्षर मध्य पूर्व और दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में एक मील का पत्थर सिद्ध हुआ। यह कूटनीतिक उन्नयन न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरणों को पुनः परिभाषित करता है, बल्कि वैश्विक व्यवस्था पर भी प्रभाव डालते हुए भारत के सामने नई रणनीतिक चुनौतियाँ खड़ी करता है।

    मुख्य भाग:

    समझौते की प्रमुख शर्तें:

    • स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट (SMDA) सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच सामूहिक रक्षा को औपचारिक रूप देता है, जिसमें कहा गया है कि “Any aggression against either country shall be considered an aggression against both अर्थात् किसी भी देश के विरुद्ध कोई आक्रमण दोनों के विरुद्ध आक्रमण माना जाएगा।”
    • यह समझौता स्थायी समन्वय के लिये तंत्र स्थापित करता है, जिसमें एक संयुक्त सैन्य समिति, खुफिया साझाकरण व्यवस्थाएँ (Intelligence Sharing Arrangements) और विस्तारित प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल हैं।
    • यह पाकिस्तान की लंबे समय से चली आ रही सैन्य उपस्थिति को सऊदी अरब में औपचारिक रूप प्रदान करता है और यह सऊदी अरब के आशय को दर्शाता है कि वह फारस की खाड़ी की सुरक्षा में पाकिस्तान की रणनीतिक भूमिका को बढ़ाना चाहता है।

    भारत और क्षेत्रीय सुरक्षा पर प्रभाव:

    • खाड़ी और पश्चिम एशियाई सुरक्षा संरचना का पुनः संतुलन: SMDA पाकिस्तान की पश्चिम एशिया में औपचारिक सुरक्षा भूमिका को संस्थागत रूप देता है, जो क्षेत्र पारंपरिक रूप से अमेरिकी सुरक्षा गारंटी पर निर्भर रहा है।
      • समझौता दोनों देशों को यह प्रतिबद्धता देता है कि किसी एक पर आक्रमण को दोनों पर आक्रमण माना जाएगा, जो NATO के अनुच्छेद 5 जैसी सामूहिक रक्षा मॉडल की ओर संकेत करता है।
    • परमाणु प्रसार संबंधी चिंताएँ और रणनीतिक स्थिरता के जोखिम: कहा जाता है कि इस समझौते में पाकिस्तान की परमाणु छत्र को सऊदी अरब तक विस्तारित करने के प्रावधान शामिल हैं, जो पहले से तनावपूर्ण क्षेत्र में प्रसार संबंधी चिंताओं को बढ़ाते हैं।
    • भारत के सापेक्ष पाकिस्तान का संवर्द्धित रणनीतिक आत्मविश्वास: यह समझौता पाकिस्तान की भू-राजनीतिक स्थिति को सशक्त बनाता है, संभावित रूप से भारत के विरुद्ध उसकी निवारक रणनीति को सशक्त करता है।
      • सऊदी अरब के समर्थन के साथ, इस्लामाबाद कश्मीर और सीमा-पार आतंकवाद पर अधिक साहसी रुख अपना सकता है, जिससे नई दिल्ली के लिये सुरक्षा जोखिम बढ़ते हैं।
      • पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने एक संभावित भारत-पाकिस्तान युद्ध में सऊदी समर्थन की पुष्टि करते हुए बदलते सुरक्षा पैमानों को रेखांकित किया है।
    • भारत–सऊदी अरब संबंधों और कूटनीतिक संतुलन पर प्रभाव: समझौते के बावजूद, सऊदी अरब भारत के सबसे बड़े ऊर्जा आपूर्तिकर्त्ताओं और आर्थिक साझेदारों में से एक बना हुआ है।
      • नई दिल्ली को दिये गए रियाद के आश्वासन इस बात पर ज़ोर देते हैं कि इस्लामाबाद के साथ अपने विकसित होते गठबंधन का प्रबंधन करते हुए वह रणनीतिक साझेदारी को जारी रखेगा।

    भारत अपनी सामरिक हितों की रक्षा के लिये अपनाए जाने वाले नीतिगत उपाय:

    • सऊदी अरब और खाड़ी देशों के साथ रणनीतिक और रक्षा सहयोग को दृढ़ करना: भारत को सऊदी अरब के साथ अपने रक्षा और रणनीतिक साझेदारी को दृढ़ करना चाहिये, जिसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास, खुफिया जानकारी साझाकरण और रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग का विस्तार शामिल हो।
    • कूटनीतिक संवाद और बहुपक्षीय पहुँच को बढ़ाना: भारत को संयुक्त राष्ट्र, G20 और I2U2 जैसे बहुपक्षीय मंचों का उपयोग करना चाहिये ताकि क्षेत्रीय सुरक्षा खतरों, जिनमें समझौते से उत्पन्न परमाणु प्रसार संबंधी जोखिम शामिल हैं, के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके।
    • सैन्य आधुनिकीकरण और खुफिया क्षमताओं को तेज़ करना: इस समझौते और सऊदी समर्थन के माध्यम से पाकिस्तान द्वारा प्राप्त बढ़ी हुई रणनीतिक आत्मविश्वास को देखते हुए, भारत को अपनी सशस्त्र सेनाओं के आधुनिकीकरण में तेज़ी लानी चाहिये, विशेष रूप से पारंपरिक खतरों और सीमा-पार आतंकवाद का सामना करने के लिये।
    • खाड़ी क्षेत्र और उससे परे ऊर्जा और आर्थिक साझेदारियों में विविधता लाना: सऊदी अरब भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्तिकर्त्ता और आर्थिक साझेदार है।
      • इन संबंधों की सुरक्षा करते हुए, भारत को अन्य खाड़ी देशों के साथ संबंध दृढ़ करके और खाड़ी अर्थव्यवस्थाओं से जुड़े नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश करके ऊर्जा स्रोतों में विविधता लानी चाहिये।
      • पश्चिम एशिया में अपने हितों का संतुलन बनाए रखने हेतु, भारत इरान के साथ संबंधों को रणनीतिक रूप से दृढ़ कर सकता है, विशेष रूप से चाबहार परियोजना को पुनर्जीवित करके, जो वर्तमान में अमेरिकी प्रतिबंध छूट के कारण तनाव में है, जबकि यह सुनिश्चित करता है कि इसका दृष्टिकोण इज़रायल के साथ संबंधों को कमज़ोर न करे।

    निष्कर्ष:

    जैसा कि विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर अक्सर कहते हैं, “भारत का मार्ग यह होना चाहिये कि वह अधिक निर्णयकर्त्ता या रूपरेषाकार बने, न कि परहेज करने वाला… न कि विघटनकारी, बल्कि एक स्थिरीकरण शक्ति जो अपनी क्षमताओं का उपयोग वैश्विक कल्याण के लिये करे।” सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौता इस आवश्यक कदम को और दृढ़ता प्रदान करता है, जो भारत को प्रतिक्रियाशील रुख से आगे बढ़कर सक्रिय, रणनीतिक रूप से स्वतंत्र और कूटनीतिक रूप से सक्रिय भूमिका अपनाने के लिये प्रेरित करता है।

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