ध्यान दें:



मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न 2. “व्यापारिक शुल्क (Trade Tariffs) अब केवल आर्थिक सुरक्षा कवच नहीं रहे, बल्कि 21वीं सदी में ये भू-राजनीतिक हथियारों के रूप में उभरकर नए गठबंधनों और प्रतिद्वंद्विताओं को नया रूप दे रहे हैं।” भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    02 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • किसी वर्तमान घटना के उदहारण के साथ कथन की पुष्टि करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • आर्थिक ढाल से भू-राजनीतिक अस्त्रीकरण तक व्यापारिक शुल्कों के विकास पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • भारतीय संदर्भ में इसके निहितार्थों पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    वर्ष 2025 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारतीय आयातों पर शुल्क लगाया। इसका औचित्य यह बताया गया कि भारत पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूसी तेल का आयात कर रहा है। यह घटना इस बात का संकेत है कि शुल्कों का प्रयोग अब केवल आर्थिक साधन के रूप में नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक उपकरण के रूप में भी किया जाने लगा है।

    शुल्क का विकास: आर्थिक सुरक्षा कवच से लेकर भू-राजनीतिक अस्त्र तक

    • आर्थिक सुरक्षा कवच:
      • घरेलू उद्योगों की रक्षा: ऐतिहासिक रूप से शुल्कों ने घरेलू उद्योगों की रक्षा की, आयातों को नियंत्रित किया और सरकार के लिये राजस्व उत्पन्न किया।
      • सरकारों के लिये राजस्व सृजन: शुल्क परंपरागत रूप से राजस्व का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत रहे हैं, विशेषकर उन विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में, जहाँ कराधान का ढाँचा सीमित रहा है।
      • व्यापार घाटे का संतुलन: शुल्क आयातित वस्तुओं को अधिक महँगा बनाकर व्यापार असंतुलन को कम करने में सहायक होते हैं तथा स्थानीय वस्तुओं की घरेलू खपत को प्रोत्साहित करते हैं।
    • भू-राजनीतिक अस्त्र:
      • राजनीतिक दबाव: वर्तमान समय में शुल्क ऐसे उपागम के रूप में प्रयुक्त हो रहे हैं, जिनके माध्यम से देशों को व्यापक विदेश नीति लक्ष्यों के अनुरूप होने के लिये विवश किया जाता है। उदाहरणस्वरूप, अमेरिका द्वारा इस्पात और एल्युमिनियम पर लगाए गए शुल्क, जिनका औचित्य राष्ट्रीय सुरक्षा बताया गया, किंतु वास्तविकता में उन्होंने सहयोगी देशों पर दबाव बनाने का कार्य किया।
      • आपूर्ति शृंखलाओं पर प्रभाव: शुल्क वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकते हैं, जिससे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर निर्भरता अथवा दबाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
        • उदाहरणस्वरूप, वर्ष 2010 में चीन द्वारा जापान पर दुर्लभ धातुओं के निर्यात पर लगाई गई पाबंदियों ने जापान की व्यापारिक तथा प्रौद्योगिकीय नीतियों को प्रभावित किया।
      • प्रतिबंधों का उपकरण: शुल्क प्रायः आर्थिक प्रतिबंधों का स्थान ले लेते हैं अथवा उन्हें पूरक रूप में प्रयुक्त किया जाता है। भू-राजनीतिक विवादों के बीच अमेरिका द्वारा भारत के निर्यात को लक्ष्य बनाना इस प्रकार के ‘अस्त्रीकरण’ का समकालीन उदाहरण है।

    आर्थिक एवं रणनीतिक निहितार्थ: भारतीय परिप्रेक्ष्य

    • आर्थिक निहितार्थ:
      • निर्यात में संभावित गिरावट: अमेरिका द्वारा लगाया गया शुल्क भारत के कुल अमेरिकी निर्यात का लगभग 10% सीधे प्रभावित करेगा, जिससे प्रतिवर्ष लगभग 87 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं पर प्रभाव पड़ेगा। इसमें औषधि, वस्त्र तथा अभियांत्रिकी क्षेत्र सर्वाधिक दबाव का सामना करेंगे।
      • मुद्रास्फीति का दबाव: शुल्क भारतीय निर्यातकों एवं आयातकों की लागत बढ़ा देते हैं, जिससे उन क्षेत्रों में घरेलू मूल्य वृद्धि की संभावना उत्पन्न होती है, जो अमेरिकी बाज़ारों पर निर्भर हैं।
      • बाज़ारों का विविधीकरण: इस दबाव ने भारत को अफ्रीका, लैटिन अमेरिका तथा आसियान जैसे वैकल्पिक बाज़ारों की खोज के लिये प्रेरित किया है।
      • स्टार्टअप्स एवं सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों पर प्रभाव: छोटे तथा मध्यम उद्यम, जो निर्यात पर अत्यधिक निर्भर होते हैं, नकदी की कमी और रोज़गार हानि का सामना कर सकते हैं। उदाहरणस्वरूप, अमेरिकी बाज़ार में निर्यात करने वाले भारतीय वस्त्र एमएसएमई शुल्क के आघातों के कारण अपने कार्यबल को घटाने के लिये विवश हो सकते हैं।
      • आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहन: शुल्क ‘मेक इन इंडिया’ तथा ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे उपक्रमों को प्रोत्साहित करते हैं और घरेलू मूल्य संवर्द्धन को बढ़ावा देते हैं। इससे आयात पर निर्भरता घटती है तथा औद्योगिक क्षमता में वृद्धि होती है।
    • रणनीतिक निहितार्थ:
      • भारत-रूस-चीन की निकटता: शुल्क विवाद ने भारत की रूस और चीन के साथ सहभागिता को तीव्र किया है, जिसका उदाहरण वर्ष 2025 के शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में देखा गया। इससे क्षेत्रीय गठबंधनों का पुनर्गठन हुआ है तथा बहुध्रुवीय रणनीतिक संतुलन का संकेत मिला है।
      • रणनीतिक स्वायत्तता का संरक्षण: ऊर्जा आयातों और विदेश नीति पर भारत का दृष्टिकोण स्वतंत्र निर्णय-निर्माण के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह संकेत देता है कि बाहरी आर्थिक दबाव राष्ट्रीय विकल्पों को निर्धारित नहीं कर सकते।

    निष्कर्ष:

    वर्तमान समय में शुल्क केवल वाणिज्यिक उपकरण नहीं रह गए हैं, वे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और रणनीतिक विकल्पों को प्रभावित करने वाले साधन बन चुके हैं। “शुल्क केवल व्यापार पर लगाया गया कर नहीं है, यह शक्ति का संकेत है, गठबंधनों की परीक्षा है और राष्ट्रों के प्रतिस्पर्धी परिदृश्य में प्रयुक्त एक साधन है।” भारत के लिये ऐसे कदम चुनौतियाँ और अवसर, दोनों प्रस्तुत करते हैं, जो उसे बाज़ारों का विविधीकरण करने तथा अपनी वैश्विक साझेदारी को सुदृढ़ करने के लिये प्रेरित करते हैं।

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