-
प्रश्न :
प्रश्न 1. “भारत में संघवाद एक निश्चित व्यवस्था नहीं, बल्कि संघ और राज्यों के बीच एक सतत् समन्वय है।” हाल के वित्तीय और राजनीतिक घटनाक्रमों के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
02 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- भारत में संघवाद की प्रकृति के संबंध में संक्षिप्त जानकारी देकर उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- राजकोषीय विकास और संघवाद की वार्ता-आधारित प्रकृति पर गहन विचार कीजिये।
- राजनीतिक विकास और संघवाद की वार्ता-आधारित प्रकृति पर प्रकाश डालिये।
- संघ और राज्यों के बीच निरंतर वार्ता के सकारात्मक विकास पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
भारतीय संघवाद एक गतिशील और विकसित होती अवधारणा है, जिसे ग्रैनविल ऑस्टि न ने “सहकारी संघवाद” के रूप में वर्णित किया है। संविधान में शक्तियों का स्पष्ट विभाजन स्थापित किया गया है, किंतु संघीय प्रणाली का वास्तविक संचालन संघ और राज्यों के बीच लगातार सौदेबाजी और बातचीत की प्रक्रिया के माध्यम से होता है।
राजकोषीय विकास और संघवाद की सहमति आधारित प्रकृति
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) का क्रियान्वयन : 2017 में लागू GST ने सहकारी संघवाद को चिह्नित किया, लेकिन VAT को प्रतिस्थापित करके और GST परिषद पर निर्भरता बढ़ाकर राज्य की स्वायत्तता को कम कर दिया।
- मुआवज़े में देरी, विशेषरूप से COVID-19 के दौरान तथा परिषद में केंद्र का प्रभावी वीटो संघीय तनाव और राजकोषीय प्रभुत्व के प्रति चिंता को उजागर करता है।
- सेस और अधिभार का बढ़ता प्रयोग: केंद्र सरकार द्वारा सेस और अधिभार के माध्यम से राजस्व संग्रह की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है।
- ये करों के विभाज्य कोष का हिस्सा नहीं हैं और इन्हें राज्यों के साथ साझा करने की आवश्यकता नहीं होती।
- इस प्रथा ने राज्यों को आवंटित होने योग्य राजस्व की मात्रा को कम करते हुए संघीय संतुलन केंद्र की ओर स्थानांतरित कर दिया है।
- कर आवंटन पर बहस: पंद्रहवें वित्त आयोग (2020-2025) ने केंद्रीय करों में राज्यों के हिस्से को 42% से घटाकर 41% करने की सिफारिश की, जिससे संसाधनों के वितरण को लेकर बहस छिड़ गई।
- राजकोषीय घाटा सीमा और उधारी प्रतिबंध: FRBM अधिनियम के तहत केंद्र सरकार द्वारा राजकोषीय घाटा सीमाएँ लागू करने से राज्यों की उधारी क्षमता सीमित हो जाती है, जिससे राजकोषीय अनुशासन और राज्य की स्वायत्तता के बीच तनाव उत्पन्न होता है (जैसे- उधार सीमा के प्रति पश्चिम बंगाल का विरोध)।
राजनीतिक विकास और संघवाद की सहमति आधारित प्रकृति
- राज्यपाल: संघीय ढाँचे में विवादित भूमिका: राज्यपाल के विवेकाधिकार, जैसे कि राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंज़ूरी देने में देरी या अस्वीकृति, अक्सर केंद्र द्वारा राज्य मामलों में हस्तक्षेप का साधन माने जाते हैं।
- कई राज्यों (जैसे: तमिलनाडु, केरल और दिल्ली) में हाल के राज्यपाल व राज्य सरकार के मध्य हुए गतिरोध यह दर्शाते हैं कि संघीय स्तर पर राजनीतिक समझौते संविधान के ढाँचे से परे भी विकसित होते हैं।
- अनुच्छेद 370 का उन्मूलन—एकपक्षीय संघीय पुनर्गठन: जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति को समाप्त कर इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करना एक प्रमुख संघीय कदम था, जिसे राज्य की सलाह को दरकिनार करने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा।
- सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण को बनाए रखा, किंतु राज्य का दर्जा पुनः स्थापित करने का निर्देश दिया, जिससे केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के संतुलन में न्यायपालिका की भूमिका स्पष्ट हुई।
- केंद्रीय एजेंसियों का प्रयोग-स्वायत्तता पर निगरानी: कुछ राज्यों में प्रवर्तन निदेशालय (ED) जैसी केंद्रीय एजेंसियों के बढ़ते उपयोग ने केंद्र सरकार के अतिक्रमण और राज्य स्वायत्तता पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- केंद्र-प्रायोजित योजनाएँ (CSS) - शर्तों पर आधारित सहयोग: केंद्र-प्रायोजित योजनाओं का विस्तार राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक है, किंतु इससे राज्यों की वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता सीमित होती है। इन योजनाओं के तहत राज्यों को धनराशि साझा करनी होती है और सख्त दिशा-निर्देशों का पालन करना अनिवार्य होता है, जिससे अक्सर योजना संचालन में निर्णय की स्वतंत्रता या अतिरिक्त सहायता सुनिश्चित करने के लिये केंद्र के साथ समन्वय और वार्ता करनी पड़ती है।
निरंतर वार्ता के माध्यम से, भारतीय संघवाद ने रचनात्मक सुधार और नवाचार को भी बढ़ावा दिया है:
- आम सहमति से संचालित नीति-निर्माण: GST ने भले ही राजकोषीय स्वायत्तता को कम कर दिया हो, लेकिन इसने एक साझा राष्ट्रीय बाज़ार का निर्माण किया तथा जीएसटी परिषद के माध्यम से संघीय संवाद को संस्थागत रूप दिया।
- केंद्र-प्रायोजित योजनाओं के माध्यम से सामाजिक क्षेत्र का विस्तार : केंद्र-प्रायोजित योजनाओं ने सीमाओं के बावजूद स्वास्थ्य (आयुष्मान भारत), शिक्षा और ग्रामीण अवसंरचना (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना) में प्रगति को गति दी, क्योंकि इनमें केंद्र और राज्यों के संसाधनों को मिलाकर उपयोग किया गया।
- आपातकालीन वित्तीय सहायता: कोविड-19 के दौरान, केंद्र और राज्यों ने जीएसटी मुआवजा ऋण, सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का 5% तक उधारी सीमा का विस्तार और लक्षित कल्याण योजनाओं के माध्यम से राहत सहयोगात्मक रूप से प्रदान की।
- अंतर-संघीय संस्थाओं का सुदृढ़ीकरण: वित्त आयोग, अंतर-राज्य परिषद और नीति आयोग सभी ऐसे संस्थागत मंच के रूप में विकसित हुए हैं, जहाँ राज्यों और केंद्र के बीच संवाद एवं समझौता होता है, जिससे प्रतिस्पर्धी मांगों का संतुलन बनता है।
- क्षेत्रीय आकांक्षाओं का राष्ट्रीय नीति में समावेश: संघीय विवाद ने कभी-कभी सुधारों को प्रेरित किया है। उदाहरण के लिये- जलवायु कार्य योजनाएँ, नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य और डिजिटल सेवा वितरण को राज्यस्तरीय प्रयोगों के माध्यम से आकार दिया गया, जिन्हें बाद में राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया गया।
निष्कर्ष:
भारतीय संघवाद एक प्रवाही और विकसित होता ढाँचा है, जो निरंतर राजकोषीय एवं राजनीतिक अंतःक्रियाओं से आकार लेता है। इसे संविधान की मूल विशेषता के रूप में मान्यता प्राप्त है (एस.आर. बोम्मई मामला, 1994) और यह सुनिश्चित करता है कि केंद्र-राज्य संबंध लचीले हों, किंतु संवैधानिक सिद्धांतों में दृढ़ता से आधारित रहें।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print