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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. “रणनीतिक स्वायत्तता अब गुटनिरपेक्षता नहीं, बल्कि बहु-संरेखण बन गई है।” चर्चा कीजिये कि भारत किस प्रकार ग्लोबल साउथ के परिप्रेक्ष्य का नेतृत्व करते हुए पश्चिमी देशों के साथ सहयोग को गहरा कर सकता है। (250 शब्द)

    19 Aug, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • रणनीतिक स्वायत्तता को परिभाषित कीजिये तथा गुटनिरपेक्षता से बहु-गठबंधन तक इसके विकास का वर्णन कीजिये।
    • ग्लोबल साउथ की आवाज़ के रूप में भारत की भूमिका का वर्णन कीजिये।
    • पश्चिमी देशों के साथ भारत के बढ़ते सहयोग पर चर्चा कीजिये।
    • दोनों विचारों के बीच संतुलन बनाने में आने वाली चुनौतियों की विवेचना कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    रणनीतिक स्वायत्तता, जो कभी नेहरूवादी गुटनिरपेक्षता का पर्याय मानी जाती थी, 21वीं सदी में विकसित होकर ‘बहु-संरेखण’ के रूप में सामने आयी है। इसका आशय एक व्यावहारिक दृष्टिकोण से है, जिसमें भारत विविध शक्ति–केंद्रों के साथ एक साथ जुड़कर कार्य करता है। आज भारत का प्रयास है कि वह एक ओर 'ग्लोबल साउथ' के नेतृत्व को सशक्त बनाये तथा दूसरी ओर व्यापार, रक्षा एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पश्चिमी साझेदारों के साथ गहन सहयोग स्थापित करे।

    मुख्य भाग:

    ग्लोबल साउथ की आवाज़ के रूप में भारत

    • आर्थिक विकास और व्यापार प्रभाव:
      • भारत दक्षिण-दक्षिण व्यापार और आर्थिक विकास में एक प्रमुख अभिकर्त्ता है।
      • ग्लोबल साउथ के साथ भारत का व्यापार बढ़ा है, अफ्रीका के साथ व्यापार वर्ष 2001 में 5 अरब डॉलर से बढ़कर वर्ष 2020 में 90 अरब डॉलर हो गया है।
      • भारत वर्ष 2024 में 20.22 अरब डॉलर के साथ लैटिन अमेरिका को वस्तुओं का सातवाँ सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता था, जो उसकी बढ़ती आर्थिक साझेदारियों को दर्शाता है।
    • जलवायु न्याय:
      • COP शिखर सम्मेलनों में ‘साझा लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियों’ की अनुशंसा करता है।
      • जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर ज़ोर देता है।
      • उदाहरण: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA)– 110 से अधिक देशों को एकजुट करता है, जिनमें से अधिकतर ग्लोबल साउथ से हैं।
    • विकास साझेदारियाँ:
      • भारत ने 160 से अधिक देशों को 32 अरब डॉलर की ऋण सीमाएँ (विदेश मंत्रालय के आँकड़े) प्रदान कीं।
      • वैक्सीन मैत्री जैसी पहल: 100 से अधिक देशों को 25 करोड़ कोविड-19 खुराकें प्रदान कीं।
      • क्षमता निर्माण पर ध्यान: ITEC कार्यक्रम सालाना 14,000 पेशेवरों को प्रशिक्षित करता है।
    • तकनीकी और डिजिटल नवाचार:
      • आधार और UPI के माध्यम से भारत की डिजिटल छलांग ने इसे डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना में वैश्विक अग्रणी बना दिया है।
      • UPI के माध्यम से इसके वित्तीय समावेशन मॉडल ने ग्लोबल साउथ के 12+ देशों को इसी तरह की प्रणालियाँ अंगीकरण के लिये प्रेरित किया है।
    • संस्थागत सुधार:
      • विकासशील देशों को शामिल करने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार की अनुशंसा।
      • खाद्य सुरक्षा की रक्षा के लिये विश्व व्यापार संगठन में सुधारों को बढ़ावा (जैसे: MSP और सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग पर भारत का रुख)।
      • वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट (वर्ष 2023) का नेतृत्व किया, जिसमें 125 देशों को एक साथ लाया गया।

    पश्चिम के साथ प्रगाढ़ होते संबंध

    • व्यापार और अर्थव्यवस्था:
      • यूरोपीय संघ-भारत मुक्त व्यापार समझौता: वार्ता फिर से शुरू; वर्तमान 115 अरब डॉलर के व्यापार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद।
      • भारत-अमेरिका व्यापार: सत्र 2024-25 में लगातार चौथे वर्ष 131.84 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा।
      • भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता: बाजार पहुँच और निवेश का विस्तार करने पर सहमति।
      • भारत-EFTA TEPA: व्यापार और आर्थिक संबंधों को गहरा करने के लिये यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ के साथ समझौता संपन्न।
    • रक्षा सहयोग:
      • अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ QUAD साझेदारी हिंद-प्रशांत सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
      • रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग: GE इंजन सह-उत्पादन, ब्रह्मोस निर्यात।
      • रूस से सबसे बड़ा रक्षा आयात— लेकिन अमेरिका, फ्राँस और इज़रायल के साथ विविधीकरण जारी है।
    • प्रौद्योगिकी और नवाचार
      • AI, क्वांटम, सेमीकंडक्टर में महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों (iCET) पर भारत-अमेरिका पहल।
      • 5G रोलआउट और साइबर सुरक्षा में सहयोग।
      • अंतरिक्ष सहयोग: आर्टेमिस समझौते, NASA-ISRO NISAR मिशन।

    दोनों पक्षों में संतुलन की चुनौतियाँ

    • रूस-यूक्रेन युद्ध: पश्चिम प्रतिबंधों पर जोर दे रहा है; भारत ऊर्जा सुरक्षा का हवाला देते हुए तटस्थता बनाए रखता है।
    • व्यापार विवाद: टैरिफ, डिजिटल संप्रभुता को लेकर अमेरिका की चिंताएँ।
    • जलवायु दबाव: पश्चिम 2050 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन पर ज़ोर दे रहा है, लेकिन भारत विकास की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2070 तक इसे लागू करने के लिये प्रतिबद्ध है।
    • भू-राजनीतिक तनाव: BRICS एकजुटता बनाए रखते हुए QUAD के साथ तालमेल बिठाना।

    आगे की राह:

    • दोहरी कूटनीति: QUAD/BRICS/IBSA को बनाए रखते हुए वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ को वार्षिक शिखर सम्मेलन के रूप में संस्थागत बनाना चाहिये।
    • आर्थिक कूटनीति: दक्षिण-दक्षिण व्यापार समझौतों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये; साथ ही यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर वार्ता करनी चाहिये।
    • तकनीक और विकास: ग्लोबल साउथ के साथ डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (UPI, CoWIN मॉडल) साझा किया जाना चाहिये; पश्चिम के साथ अग्रणी तकनीक का सह-विकास करना चाहिये।
    • सुधारित बहुपक्षवाद: ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हुए UNSC, WTO, IMF सुधारों के अभियान का नेतृत्व करना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    पश्चिम के साथ रणनीतिक जुड़ाव बनाए रखते हुए ग्लोबल साउथ में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका निभाते हुए, भारत को कई वैश्विक संबंधों में कुशलता से संतुलन बनाने की आवश्यकता है। जैसा कि विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने सटीक रूप से कहा है, “यह हमारे लिये अमेरिका से जुड़ने, चीन को प्रबंधित करने, यूरोप को साधने, रूस को आश्वस्त करने, जापान को शामिल करने, पड़ोसियों को शामिल करने, पड़ोस का विस्तार करने और समर्थन के पारंपरिक क्षेत्रों का विस्तार करने का समय है।”

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