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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. “प्रगति की राहों में अस्पृश्यता की छाया अभी भी मंडरा रही है।” हाथ से मैला ढोने की प्रथा के विरुद्ध कानूनों के क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये तथा पुनर्वास कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

    12 Aug, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा के मुद्दे के संक्षिप्त परिचय से शुरुआत कीजिये।
    • हाथ से मैला ढोने के विरुद्ध कानूनों को लागू करने में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।
    • पुनर्वास कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    हालाँकि संविधान ने अनुच्छेद 17 के तहत अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया है और हाथ से मैला ढोने वालों के रोज़गार पर रोक तथा उनके पुनर्वास के लिये 2013 के अधिनियम ने इस प्रथा को अपराध घोषित किया है, फिर भी वर्ष 2021 में 58,098 पहचाने गए हाथ से मैला ढोने वाले (जिनमें 75% महिलाएँ हैं) श्रमिक यह दर्शाते हैं कि अस्पृश्यता की छाया नए रूपों में आज भी बनी हुई है।

    मुख्य भाग:

    हाथ से मैला ढोने की प्रथा के विरुद्ध कानूनों के क्रियान्वयन में चुनौतियाँ

    • संरचनात्मक चुनौतियाँ:
      • जातिगत कलंक (Caste-based stigma): यह प्रथा अब भी दलित समुदायों से संबंधित है, जिससे सामाजिक पदानुक्रम और रूढ़िवादिता के कारण इसे समाप्त करना कठिन है।
      • अनौपचारिक प्रणालियों पर निर्भरता (Dependence on informal systems): स्थानीय निकाय अक्सर सीवेज, नालियों और सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिये मैनुअल श्रमिकों पर निर्भर रहते हैं, भले ही मैकेनाइजेशन के प्रयास किये गए हों।
      • कमज़ोर निगरानी तंत्र (Weak monitoring mechanisms): कार्यान्वयन नगरपालिकाओं के पास है, लेकिन निगरानी कमज़ोर बनी हुई है।
    • वित्तीय बाधाएँ:
      • अपर्याप्त आवंटन (Insufficient allocation): हाथ से मैला ढोने वालों के पुनर्वास हेतु स्वरोज़गार योजना (Self-Employment Scheme for Rehabilitation of Manual Scavengers- SRMS) जैसी योजनाओं के लिये बजट बहुत कम है।
      • विलंबित मुआवज़ा (Delayed compensation): सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत संघ (2014) में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद, जो सीवर मौतों के लिये ₹10 लाख मुआवज़े की मांग करते हैं, विलंब और कम रिपोर्टिंग आम है।
    • नियामक कमजोरियाँ:
      • मामलों की कम रिपोर्टिंग (Under-reporting of cases): कई राज्यों में सरकारी आंकड़े “शून्य हाथ से मैला ढोने वाले” दिखाते हैं, जबकि सफाई कर्मचारी आंदोलन जैसी NGO हज़ारों की संख्या उजागर करती हैं।
      • उत्तरदायित्व की कमी (Accountability deficit): हाथ से मैला ढोने वालों को काम पर रखने वाले अधिकारियों या ठेकेदारों/संविदाकारों के विरुद्ध दुर्लभ मामलों में ही अभियोजन किया जाता है।
      • विभाजित नीतिगत ढाँचा (Fragmented policy framework): स्वच्छता, श्रम एवं सामाजिक न्याय मंत्रालयों की ज़िम्मेदारियाँ ओवरलैप करती हैं और स्पष्ट ज़िम्मेदारी का अभाव रहता है।

    पुनर्वास कार्यक्रमों की प्रभावशीलता

    • सफलताएँ:
      • विधिक कार्यढाँचा: वर्ष 2013 के अधिनियम ने हाथ से मैला ढोने की प्रथा को अपराध घोषित किया, जिससे निवारक प्रभाव उत्पन्न हुआ।
      • NAMASTE योजना (वर्ष 2022) और सफाई मित्र सुरक्षा चुनौती: मैकेनाइज़ेशन को बढ़ावा दिया गया, जिससे सीधे मानव प्रवेश की आवश्यकता कम हुई।
      • तकनीकी नवाचार:बैंडिकूट रोबोट और वैक्यूम ट्रक जैसे उपकरण कई शहरों में तैनात किये गए।
      • कौशल प्रशिक्षण और रोजगार योजनाएँ: स्वच्छता उद्यमी योजना (SUY),पूर्व अधिगम की मान्यता (Recognition of Prior Learning- RPL) और SRMS जैसी योजनाओं ने वैकल्पिक रोज़गारों का सृजन किया।
      • जागरूकता अभियान: राष्ट्रीय गरिमा अभियान ने सामाजिक कलंक कम किया और गरिमा को बढ़ावा दिया।
      • संस्थागत तंत्र: राष्ट्रीय सफाई कर्मचारियों आयोग (National Commission for Safai Karamcharis) ने निगरानी और शिकायत निवारण को सुदृढ़ किया।
    • सीमाएँ:
      • सीमित कवरेज: 2021 के आँकड़ों के अनुसार, केवल लगभग 58,000 हाथ से मैला ढोने वाले पहचाने गए हैं, जबकि स्वतंत्र अनुमानों के अनुसार संख्या कहीं अधिक है।
      • रोज़गार में विविधता की कमी: कई प्रशिक्षित श्रमिक सामाजिक कलंक और नई क्षमताओं की मांग की कमी के कारण स्थायी रोज़गार प्राप्त करने में असफल रहते हैं।
      • अपर्याप्त पुनर्वास समर्थन: प्रशासनिक और नौकरशाही बाधाओं के कारण पुनर्वास के लाभ अक्सर व्यवहार में नहीं बदल पाते।

    आगे की राह

    • तकनीकी विकल्प (Technological substitution): मैकेनाइज़्ड सफाई उपकरणों का व्यापक विस्तार किया जाना चाहिये तथा नगरपालिकाओं (ULB) का उत्तरदायित्व सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
    • सख्ती से प्रवर्तन (Stringent enforcement): हाथ से मैला ढोने वालों को काम पर रखने वाले अधिकारियों और ठेकेदारों के लिये आपराधिक ज़िम्मेदारी तय की जानी चाहिये।
    • समग्र पुनर्वास (Holistic rehabilitation): केवल कौशल प्रशिक्षण तक सीमित न रहकर सामाजिक समावेशन, क्रेडिट सहायता और परिवारों की शिक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिये।
    • जागरूकता अभियान (Awareness campaigns): जाति-संवेदनशील प्रशिक्षण और समुदाय की भागीदारी के माध्यम से मानसिकता में बदलाव लाने के प्रयास किये जाने चाहिये।
    • स्वतंत्र निगरानी (Independent monitoring): नागरिक समाज और NHRC को प्रभावी निगरानी एवं शिकायत निवारण के लिये सशक्त बनाया जाना चाहिये।


    निष्कर्ष:

    जैसा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा, “Political democracy cannot last unless there lies at the base of it social democracy अर्थात् राजनीतिक लोकतंत्र तब तक कायम नहीं रह सकता जब तक कि उसके आधार में सामाजिक लोकतंत्र न हो।” हाथ से मैला ढोने की कुप्रथा का लगातार विद्यमान रहना यह दर्शाता है कि विधिक सुरक्षा के बावजूद सामाजिक लोकतंत्र की सीमाएँ हैं। वास्तविक प्रगति केवल कानूनों और योजनाओं तक सीमित नहीं हो सकती, बल्कि गरिमा, मैकेनाइज़ेशन और व्यापक सामाजिक सुधार के माध्यम से ही इस अमानवीय प्रथा को समाप्त किया जा सकता है।

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