भारतीय राजव्यवस्था
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की भूमिका की पुनर्कल्पना
यह एडिटोरियल 22/10/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “National Commission for Minorities has barely served those for whom it was set up” पर आधारित है। इसमें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) की प्रासंगिकता एवं कार्यप्रणाली का परीक्षण किया गया है, साथ ही इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि किस प्रकार सीमित स्वायत्तता तथा लंबे समय से रिक्त पदों के कारण अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा और समावेशी शासन को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका कमज़ोर हुई है।
प्रिलिम्स के लिये: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992, अनुच्छेद 29 और 30, रंगनाथ मिश्रा आयोग, मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), NCMEI, भारत में अल्पसंख्यक अधिकार
मेन्स के लिये: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्वायत्तता और कार्यप्रणाली से जुड़े मुद्दे।
अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा के लिये भारत का कार्यढाँचा संवैधानिक आदर्शों और संस्थागत क्रियान्वयन के बीच एक संवेदनशील संतुलन पर आधारित है। इस दृष्टिकोण के प्रमुख संरक्षकों में से एक, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) की स्थापना समानता और समावेशिता को बनाए रखने के लिये की गई थी, फिर भी आज इसकी प्रासंगिकता सवालों के घेरे में है। NCM अधिनियम, 1992 के तहत लंबे समय से रिक्त पदों, सीमित स्वायत्तता और सीमित शक्तियों के साथ, इस निकाय का पतन राज्य द्वारा अल्पसंख्यक कल्याण के प्रति दृष्टिकोण में गहन संरचनात्मक चुनौतियों को दर्शाता है। मुद्दा केवल प्रशासनिक चूक का नहीं, बल्कि संस्थागत कार्यढाँचे का भी है, जहाँ सलाहकार तंत्रों में उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने का अधिकार नहीं है। अतः राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) की भूमिका का पुनर्संविधान आवश्यक है, ताकि उसे भारत के संवैधानिक वचनों— न्याय, बहुलवाद तथा भागीदारीपूर्ण शासन के अनुरूप सशक्त रूप में पुनः स्थापित किया जा सके।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग क्या है?
- विषय: यह राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है, जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों के हितों की रक्षा करना है।
- पहला वैधानिक आयोग 17 मई 1993 को गठित किया गया था।
- गठन: अल्पसंख्यक आयोग (MC) की स्थापना वर्ष 1978 में गृह मंत्रालय के एक प्रस्ताव के माध्यम से हुई थी और 1984 में इसे नवगठित कल्याण मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया था।
- वर्ष 1988 में, कल्याण मंत्रालय ने भाषाई अल्पसंख्यकों को आयोग के अधिकार क्षेत्र से बाहर कर दिया।
- संरचना: इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पाँच सदस्य होते हैं, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाता है, लेकिन एक पूर्ण निकाय की अनुपस्थिति ने इसकी अक्षमता को लेकर चिंताएँ उत्पन्न की हैं।
- प्रत्येक सदस्य छह अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों में से एक का सदस्य होना चाहिये: मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन।
- शक्तियाँ और कार्यकाल: इसके पास अर्द्ध-न्यायिक शक्तियाँ हैं और प्रत्येक सदस्य पदभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा करता है।
- निष्कासन: केंद्र सरकार NCM के अध्यक्ष या किसी भी सदस्य को हटा सकती है यदि वे:
- दिवालिया घोषित किये जाते हैं,
- अपने कर्त्तव्यों के अलावा कोई अन्य वेतनभोगी नौकरी करते हैं,
- कार्य करने से इनकार करते हैं या अक्षम हो जाते हैं,
- न्यायालय द्वारा विकृतचित्त घोषित किये जाते हैं,
- अपने पद का दुरुपयोग करते हैं, या
- नैतिक अधमता से जुड़े किसी अपराध के लिये दोषी सिद्ध किये जाते हैं।
भारत में अल्पसंख्यक और उनके संवैधानिक सुरक्षा उपाय
- अल्पसंख्यकों के बारे में: भारत का संविधान 'अल्पसंख्यक' शब्द को परिभाषित नहीं करता है, लेकिन संविधान धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को मान्यता प्रदान करता है।
- NCM अधिनियम, 1992 अल्पसंख्यकों को ‘केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित समुदाय’ के रूप में परिभाषित करता है।
- अल्पसंख्यक समुदाय: कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 1993 की एक अधिसूचना के अनुसार, भारत सरकार ने शुरू में पाँच धार्मिक समुदायों— मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी, को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मान्यता दी थी।
- बाद में, वर्ष 2014 में जैनियों को भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया।
- अल्पसंख्यकों की जनसंख्या: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में अल्पसंख्यकों का प्रतिशत देश की कुल जनसंख्या का लगभग 19.3% है।
- अल्पसंख्यकों से संबंधित सुरक्षा उपाय:
- अनुच्छेद 29: नागरिकों के किसी भी वर्ग को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति के संरक्षण का अधिकार।
- अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार।
- अनुच्छेद 347: किसी राज्य की जनसंख्या के एक वर्ग द्वारा बोली जाने वाली भाषा से संबंधित विशेष प्रावधान।
- अनुच्छेद 350-A: शिक्षा के लिये सुविधाओं का प्रावधान प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा।
- अनुच्छेद 350-B: भाषाई अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी और उसके कर्त्तव्यों का प्रावधान।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) को किन प्रमुख समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है?
- संचालनगत रिक्तियाँ: NCM वर्तमान में निष्क्रिय है, क्योंकि अध्यक्ष और सदस्य दोनों के पद रिक्त हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इसके पुनर्गठन की मांग वाली एक जनहित याचिका (PIL) का संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को जवाब देने का निर्देश दिया है, जिससे प्रशासनिक निष्क्रियता एवं संस्थागत प्रभावकारिता के कथित क्षरण पर चिंताएँ उजागर हुई हैं।
- संवैधानिक दर्जा का अभाव: वर्ष 1978 में अपने गठन के बाद से, आयोग को संवैधानिक दर्जा प्राप्त करने के लिये सीमित संस्थागत समर्थन का सामना करना पड़ा है। इसके कानूनी ढाँचे को मज़बूत करने के प्रयास अनिर्णायक रहे हैं, जिससे यह सीमित अधिकारों वाला एक वैधानिक निकाय बनकर रह गया है।
- सीमित वैधानिक शक्तियाँ: NCM अधिनियम, 1992 के तहत, इसकी शक्तियाँ एक दीवानी न्यायालय के समान ही हैं, जिससे प्रवर्तन क्षमता सीमित हो जाती है। वर्ष 2004 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (NCMEI) के गठन ने, विशेष रूप से शिक्षा संबंधी मामलों में इसके कार्यात्मक दायरे को और सीमित कर दिया है।
- स्वायत्तता का अभाव: NCM कार्यपालिका के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है, जिससे इसकी परिचालन स्वतंत्रता सीमित हो जाती है। आयोग की रिपोर्टों और सिफारिशों पर अपर्याप्त अनुवर्ती कार्रवाई एक कमज़ोर कार्यान्वयन ढाँचे और अल्पसंख्यक कल्याण के मुद्दों की कम प्राथमिकता को दर्शाती है।
- संदिग्ध प्रभावकारिता: चार दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में होने के बावजूद, अल्पसंख्यक कल्याण में सुधार पर NCM का प्रभाव सीमित ही रहा है। एक महत्त्वपूर्ण वार्षिक बजट लेकिन न्यूनतम परिणामों के साथ, इसे प्रायः वास्तविक के बजाय प्रतीकात्मक माना जाता है, जिससे दक्षता और जवाबदेही पर सवाल उठते हैं।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) को किन उपायों से मज़बूत किया जा सकता है?
- संवैधानिक दर्जा प्रदान करना: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) को संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिये, जैसा कि इसकी कई वार्षिक रिपोर्टों में सिफारिश की गई है, ताकि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (अनुच्छेद 338) जैसी अन्य निगरानी संस्थाओं के साथ स्थायित्व, स्वायत्तता और समानता सुनिश्चित हो सके। NCM अधिनियम, 1992 में संशोधन इसकी अर्द्ध-न्यायिक शक्तियों और प्रवर्तन क्षमता का विस्तार कर सकते हैं।
- संस्थागत स्वायत्तता को मज़बूत करना: NCM को स्वतंत्र वित्तपोषण, कर्मचारियों और रिपोर्टिंग संरचना के साथ कार्य करना चाहिये, ताकि कार्यपालिका पर निर्भरता कम हो सके।
- मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 से प्रेरणा लेते हुए, NCM विश्वसनीयता और जवाबदेही को मज़बूत करने के लिये राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) मॉडल के समान पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रियाएँ और वार्षिक रिपोर्टिंग तंत्र को अपनाना चाहिये।
- समन्वय स्थापित करना: नीति कार्यान्वयन को सुव्यवस्थित करने और अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं, जैसे: प्रधानमंत्री के नए 15-सूत्री कार्यक्रम और बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (MSDP) की प्रभावी निगरानी के लिये एक संरचित NCM-राज्य आयोग समन्वय परिषद का गठन किया जाना चाहिये। इससे समान मानक स्थापित होंगे और साझा जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
- शैक्षिक और आर्थिक सशक्तीकरण को एकीकृत करना: सच्चर समिति (2006) और रंगनाथ मिश्रा आयोग (2007) की सिफारिशों के अनुरूप, मदरसों के आधुनिकीकरण, उच्च शिक्षा छात्रवृत्तियों के विस्तार और कौशल-आधारित प्रशिक्षण के माध्यम से शैक्षिक समावेशन पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (NCM) के साथ सहयोग संस्थागत तालमेल सुनिश्चित कर सकता है।
- डेटा-संचालित निगरानी तंत्र को संस्थागत बनाना: प्रत्येक अल्पसंख्यक समुदाय के लिये निधि उपयोग, योजना कवरेज और परिणामों पर नज़र रखने के लिये राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG) के समान एक अल्पसंख्यक कल्याण डैशबोर्ड विकसित किया जाना चाहिये। साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण से अल्पसंख्यक कल्याण शासन में पारदर्शिता, दक्षता और जनता का विश्वास बढ़ेगा।
निष्कर्ष:
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना भारत की बहुलवादी परंपरा के संरक्षक और अल्पसंख्यक अधिकारों के रक्षक के रूप में की गई थी। लेकिन समय के साथ, इसके सीमित अधिकार, पद रिक्तताएँ और कमज़ोर संस्थागत इच्छाशक्ति इसे केवल प्रतीकात्मक संस्था तक सीमित कर चुके हैं। इसे एक सक्रिय रक्षक में बदलने के लिये इसकी स्वायत्तता, संवैधानिक मज़बूती और जवाबदेही को पुनर्जीवित करना अनिवार्य है। एक ऐसा आयोग जिसके पास वास्तविक अधिकार नहीं हैं, वह केवल दिखावे का कार्य करता है और अधिकारों की प्रभावी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता—वह शासन तंत्र को सशक्त बनाए बिना केवल शान बढ़ाता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) की प्रासंगिकता का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। इसकी स्वायत्तता, उत्तरदायित्व और प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये सुधारों का सुझाव दीजिये। |
FAQs
1. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) की स्थापना कब हुई थी?
अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना वर्ष 1978 में हुई थी और इसे राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के माध्यम से वैधानिक दर्जा दिया गया था।
2. NCM के मुख्य कार्य क्या हैं?
अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना, संवैधानिक सुरक्षा उपायों की निगरानी करना और पूछताछ एवं सिफारिशों के माध्यम से शिकायतों का समाधान करना।
3. क्या NCM के पास प्रवर्तन शक्तियाँ हैं?
नहीं, यह केवल सिफारिशें कर सकता है और अपने निर्णयों को लागू करने की शक्ति का अभाव है।
4. संविधान के कौन से अनुच्छेद अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा करते हैं?
अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की रक्षा करते हैं।
5. NCM और NHRC के बीच क्या संबंध है?
NCM अध्यक्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का पदेन सदस्य होता है।
6. NCMEI क्या है और यह NCM से किस प्रकार भिन्न है?
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (NCMEI) की स्थापना वर्ष 2004 में अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक अधिकारों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करने के लिये की गई थी, जिससे NCM का कार्यक्षेत्र कम हो गया।
7. NCM की मुख्य आलोचनाएँ क्या हैं?
स्वायत्तता का अभाव, राजनीतिक हस्तक्षेप, सीमित शक्तियाँ और अल्पसंख्यक कल्याण पर न्यूनतम प्रभाव।
8. कौन-से सुधार NCM को सुदृढ़ बना सकते हैं?
अर्द्ध-न्यायिक शक्तियाँ प्रदान करना, स्वतंत्र वित्त पोषण सुनिश्चित करना, पारदर्शी नियुक्तियाँ और समन्वित कार्रवाई के लिये अतिव्यापी निकायों का विलय।
9. भारत में अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता प्राप्त समुदाय कौन हैं?
NCM अधिनियम, 1992 के तहत छह समुदायों— मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन - को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया गया है।
10. NCM अन्य राष्ट्रीय आयोगों से किस प्रकार भिन्न है?
NHRC या NCAC जैसे निकायों के विपरीत, NCM एक संवैधानिक दर्जा रहित वैधानिक निकाय है, जिससे इसे प्रवर्तनीय शक्तियों के बजाय सलाहकार शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. भारत में यदि किसी धार्मिक संप्रदाय/समुदाय को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है, तो वह किस विशेष लाभ का हकदार है? (2011)
- यह विशिष्ट शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन कर सकता है।
- भारत का राष्ट्रपति स्वतः ही लोकसभा के लिये किसी समुदाय के एक प्रतिनिधि को नामित करता है।
- इसे प्रधानमंत्री के 15 सूत्री कार्यक्रम का लाभ मिल सकता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
प्रश्न 2. 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक संवैधानिक स्थिति क्या थी? (2021)
(a) एक लोकतांत्रिक गणराज्य
(b) एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य
(c) एक संप्रभु धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य
(d) एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य
उत्तर: (b)
प्रश्न 3. भारत के संविधान की उद्देशिका है? (2020)
(a) संविधान का भाग है किंतु कोई विधिक प्रभाव नहीं रखती।
(b) संविधान का भाग नहीं है और कोई विधिक प्रभाव भी नहीं रखती।
(c) संविधान का भाग है और वैसा ही विधिक प्रभाव रखती है जैसा कि उसका कोई अन्य भाग।
(d) संविधान का भाग है किंतु उसके अन्य भागों से स्वतंत्र होकर उसका कोई विधिक प्रभाव नहीं है।
उत्तर: (d)