भारतीय राजव्यवस्था
भारत में ‘अल्पसंख्यक’ का निर्धारण
- 29 Mar 2022
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प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992, अनुच्छेद-29, अनुच्छेद-30, अनुच्छेद-350(B) मेन्स के लिये:भारत में अल्पसंख्यकों का निर्धारण एवं संबंधित संवैधानिक प्रावधान, अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि राज्य सरकारें अब हिंदुओं सहित किसी भी धार्मिक या भाषायी समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकती हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका के संबंध में केंद्र सरकार से जवाब मांगा था, जिसमें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने के लिये दिशा-निर्देश तैयार करने के निर्देश देने की मांग की गई थी।
- ‘अल्पसंख्यक’ शब्द संविधान के कुछ अनुच्छेदों में दिखाई देता है, लेकिन इसे कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है।
मामला:
- याचिका में कहा गया है कि भारत के छह राज्यों और तीन केंद्रशासित प्रदेशों में हिंदू 'अल्पसंख्यक' हैं, लेकिन वे कथित तौर पर अल्पसंख्यकों के लिये बनाई गई योजनाओं का लाभ उठाने में सक्षम नहीं थे।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, लक्षद्वीप (2.5%), मिज़ोरम (2.75%), नगालैंड (8.75%), मेघालय (11.53%), जम्मू-कश्मीर (28.44%), अरुणाचल प्रदेश (29%), मणिपुर (31.39%) और पंजाब (38.40%) में हिंदू अल्पसंख्यक बन गए हैं।
- इन राज्यों में ‘टीएमए पाई फाउंडेशन’ वाद (2002) और ‘बाल पाटिल’ वाद (2005) के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित सिद्धांत के अनुसार अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना चाहिये।
- ‘टीएमए पाई फाउंडेशन’ वाद (2002):
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिये अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित अनुच्छेद 30 के प्रयोजन के लिये धार्मिक एवं भाषायी अल्पसंख्यकों का निर्धारण राज्यवार आधार पर किया जाना चाहिये।
- ‘बाल पाटिल’ वाद (2005):
- वर्ष 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने 'बाल पाटिल' वाद में अपने फैसले में ‘टीएमए पाई’ वाद के निर्णय का उल्लेख किया था।
- कानूनी स्थिति स्पष्ट करती है कि अब से भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक, दोनों की स्थिति निर्धारित करने की इकाई 'राज्य' होगी।
- ‘टीएमए पाई फाउंडेशन’ वाद (2002):
- याचिका में दावा किया गया है कि NCMEI (राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान) अधिनियम 2004 केंद्र को अत्यधिक शक्ति प्रदान करता है जो ‘स्पष्ट रूप से मनमाना, तर्कहीन एवं अपमानजनक’ है।
- NCMEI अधिनियम 2004 की धारा 2(f) भारत में अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान करने और उन्हें अधिसूचित करने के लिये केंद्र को शक्ति प्रदान करती है।
केंद्र का रुख:
- केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्त्ताओं का तर्क सही नहीं है क्योंकि राज्य भी "उक्त राज्य के नियमों के अनुसार संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थानों के रूप में प्रमाणित कर सकते हैं।
- केंद्र ने बताया कि महाराष्ट्र ने वर्ष 2016 में यहूदियों को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया था तथा कर्नाटक ने उर्दू, तेलुगू, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमानी, हिंदी, कोंकणी और गुजराती को अल्पसंख्यक भाषाओं के रूप में अधिसूचित किया था।
- संसद और राज्य विधानसभाओं को अल्पसंख्यकों एवं उनके हितों के संरक्षण के लिये समवर्ती सूची के तहत कानून बनाने की शक्तियाँ प्राप्त हैं।
- लद्दाख, मिज़ोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में यहूदी, बहावाद और हिंदू धर्म के अनुयायियों को अल्पसंख्यक घोषित करने जैसे मामले स्थापित हो सकते हैं तथा उक्त राज्य में अपनी पसंद के शिक्षण संस्थानों का प्रशासन एवं राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक की पहचान हेतु दिशा-निर्देश निर्धारित करने पर संबंधित राज्य सरकारों द्वारा विचार किया जा सकता है।
- टीएमए पई (TMA Pai) के फैसले से यह भी पता चलता है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी समुदाय को 'अल्पसंख्यक' के रूप में अधिसूचित करने की केंद्र सरकार की शक्ति को कहीं भी सीमित नहीं किया गया है।
- अल्पसंख्यकों के हितों को बढ़ावा देने तथा उनके संरक्षण हेतु कानून बनाने के लिये संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत संसद को समवर्ती सूची की प्रविष्टि 20, "आर्थिक और सामाजिक योजना" के तहत अधिकार दिया गया है।
- संसद के पास विधायी तथा केंद्र सरकार के पास राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2 (सी) के तहत एक समुदाय को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित करने की कार्यकारी क्षमता है।
अल्पसंख्यकों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 29:
- यह अनुच्छेद उपबंध करता है कि भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार होगा।
- अनुच्छेद-29 के तहत प्रदान किये गए अधिकार अल्पसंख्यक तथा बहुसंख्यक दोनों को प्राप्त हैं।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस अनुच्छेद का दायरा केवल अल्पसंख्यकों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि अनुच्छेद में 'नागरिकों के वर्ग' शब्द के उपयोग में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ बहुसंख्यक भी शामिल हैं।
- अनुच्छेद 30:
- धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थानों की स्थापना करने और उनके प्रशासन का अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षण केवल अल्पसंख्यकों (धार्मिक या भाषायी) तक ही सीमित है और नागरिकों के किसी भी वर्ग (जैसा कि अनुच्छेद 29 के तहत) तक विस्तारित नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद 350 B:
- मूल रूप से भारत के संविधान में भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये विशेष अधिकारों के संबंध में कोई प्रावधान नहीं किया गया था। इसे 7वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1956 द्वारा संविधान में अनुच्छेद 350B के रूप में जोड़ा गया।
- यह भारत के राष्ट्रपति द्वारा भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान करता है।
भारत सरकार द्वारा अधिसूचित अल्पसंख्यक:
- वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा एनसीएम अधिनियम, 1992 की धारा 2 (सी) के तहत अधिसूचित समुदायों को ही अल्पसंख्यक माना जाता है।
- वर्ष 1992 में NCM अधिनियम, 1992 के अधिनियमन के साथ अल्पसंख्यक आयोग (MC) एक वैधानिक निकाय बन गया और इसका नाम बदलकर राष्ट्रीयअल्पसंख्यक आयोग (NCM) कर दिया गया।
- वर्ष 1993 में पहला सांविधिक राष्ट्रीय आयोग स्थापित किया गया था और पांँच धार्मिक समुदायों अर्थात् मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया था।
- वर्ष 2014 में जैनियों को भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया था।