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डेली न्यूज़

  • 17 Jul, 2021
  • 43 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

फिट फॉर 55 पैकेज: यूरोपीय संघ

प्रिलिम्स के लिये 

यूरोपीय संघ, फिट फॉर 55 पैकेज, पेरिस समझौता

मेन्स के लिये

जलवायु परिवर्तन और जलवायु तटस्थता के संबंध में भारत द्वारा किये गए प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूरोपीय संघ (EU) ने एक नया जलवायु प्रस्ताव ‘फिट फॉर 55 पैकेज’ जारी किया है।

  • ज्ञात हो कि यूरोपीय संघ ने दिसंबर 2020 में पेरिस समझौते के तहत संशोधित ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (NDC) प्रस्तुत किया था।

European-Union

प्रमुख बिंदु

उद्देश्य

  • यूरोपीय संघ का यह नया पैकेज प्रस्तावित परिवर्तनों के माध्यम से NDC और कार्बन तटस्थता लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास करता है। ये प्रस्तावित परिवर्तन अर्थव्यवस्था, समाज और उद्योग को प्रभावित करेंगे तथा वर्ष 2030 तक निष्पक्ष, प्रतिस्पर्द्धी एवं ग्रीन ट्रांज़ीशन सुनिश्चित करेंगे।
    • जलवायु तटस्थता की स्थिति तब प्राप्त होती है जब किसी देश के उत्सर्जन को वहाँ के वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों के अवशोषण और उन्मूलन से संतुलित किया जाता है। इसे शुद्ध-शून्य उत्सर्जन की स्थिति के रूप में भी व्यक्त किया जाता है।
  • यह पैकेज नुकसान से बचते हुए ‘नियामक नीतियों’ और बाज़ार-आधारित कार्बन मूल्य निर्धारण के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है।

प्रमुख प्रस्ताव

  • नवीकरणीय स्रोत:
    • यह यूरोपीय संघ के ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय स्रोत के बाध्यकारी लक्ष्य को 40% (पहले 32%) तक बढ़ाने और वर्ष 2030 तक ऊर्जा दक्षता में 36% (पहले 32.5%) तक सुधार करने का प्रस्ताव करता है।
  • वाहनों संबंधी कार्बन उत्सर्जन:
    • इसे वर्ष 2030 तक 55% और वर्ष 2035 तक 100% तक कम किया जाना चाहिये, जिसका अर्थ वर्ष 2035 तक पेट्रोल और डीज़ल वाहनों के चरणबद्ध उन्मूलन से है।
    • इसमें ऑटो उद्योग को लाभांवित करने संबंधी प्रावधान भी शामिल हैं। इसके तहत सार्वजनिक धन का उपयोग प्रमुख राजमार्गों पर प्रत्येक 60 किलोमीटर पर चार्जिंग स्टेशन बनाने के लिये किया जाएगा, जिससे इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री को प्रोत्साहन मिलेगा।
    • यह हाइड्रोजन ईंधन भरने वाले स्टेशनों के नेटवर्क को भी वित्तपोषित करेगा।
  • उत्सर्जन व्यापार प्रणाली:
    • यह पैकेज वर्ष 2026 से कार्यान्वित होने वाले यूरोपीय संघ की वर्तमान ‘उत्सर्जन व्यापार प्रणाली’ (ETS) से अलग इमारतों और सड़क परिवहन के लिये एक अलग ‘उत्सर्जन व्यापार प्रणाली’ (ETS) के निर्माण का आह्वान करता है।
      • ‘उत्सर्जन व्यापार प्रणाली’ एक बाज़ार-आधारित उपकरण है, जो प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करने हेतु आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान कर प्रदूषण को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। 
  • सामाजिक जलवायु कोष:
    • कम आय वाले नागरिकों और छोटे व्यवसायों को नए ईटीएस में समायोजित करने में मदद के लिये यूरोपीय संघ एक सामाजिक जलवायु कोष (Social Climate Fund) के निर्माण का प्रस्ताव करता है, जो इमारतों के नवीनीकरण हेतु फंडिंग और कम कार्बन उत्सर्जन वाले परिवहन तक पहुँच से लेकर प्रत्यक्ष आय सहायता तक को शामिल करेगा।
    • वह नए ईटीएस से 25% राजस्व का उपयोग करके इस फंड का निर्माण करने की उम्मीद करते हैं। वर्तमान ईटीएस ने वर्ष 2023 और वर्ष 2025 के बीच समुद्री क्षेत्र को विस्तारित करने का प्रस्ताव किया है।
  • कार्बन सीमा समायोजन तंत्र::
    • अन्य बाज़ार आधारित तंत्रों में यूरोपीय संघ कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism) का प्रस्ताव कर रहा है, जो कार्बन गहन उत्पादन वाले स्थानों से आयात पर कर लगाएगा।
    • इसको व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (Conference on Trade and Development) द्वारा वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन पर छोटा प्रभाव माना गया है और इसका विकासशील देशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • सिंक क्षमता बढ़ाना:
    • इसने यूरोपीय संघ की कार्बन डाइआक्साइड (CO2) की सिंक क्षमता को 310 मिलियन टन तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, जिससे सदस्य देशों के विशेष राष्ट्रीय लक्ष्यों द्वारा प्राप्त किया जाएगा।

विश्लेषण:

  • यूरोपीय संघ का NDC लक्ष्य वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को वर्ष 1990 के स्तर से 55% कम करना है। इसने वर्ष 2050 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करने का दीर्घकालिक लक्ष्य भी निर्धारित किया है।
    • यूरोपीय संघ का लक्ष्य अमेरिका की तुलना में अधिक आक्रामक है, जो इसी अवधि में उत्सर्जन को 40% से 43% तक (परंतु ब्रिटेन से पीछे है जिसने 68% की कमी का वादा किया) कम करने के लिये प्रतिबद्ध है।
    • विश्व के सबसे बड़े उत्सर्जक चीन ने केवल इतना कहा है कि उसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक उत्सर्जन को चरम पर पहुँचाना है।
  • फिट फॉर 55 पैकेज, यूरोप को इलेक्ट्रिक कार बैटरी, अपतटीय पवन उत्पादन या हाइड्रोजन पर चलने वाले विमान इंजन जैसी नई तकनीकों में सबसे आगे रख सकता है।
  • परंतु कुछ उपभोक्ताओं और कंपनियों के लिये यह ट्रांज़ीशन काफी चुनौतीपूर्ण भी होगा, क्योंकि इससे विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं जैसे- चीन से आयातित वीडियो मॉनीटर, वायु यात्रा लागत तथा गैसोलीन टैंक आदि की लागत बढ़ जाएगी। 
    • कंपनियाँ जो नियत उत्पाद जैसे- आंतरिक दहन इंजन के लिये पुर्जे आदि का निर्माण करती हैं, उन्हें अनुकूलित किया जाना चाहिये या व्यवसाय से बाहर किया जाना चाहिये।
  • यह प्रस्ताव स्टीलमेकिंग जैसे प्रदूषणकारी उद्योगों को नया आकार दे सकता है, जो प्रत्यक्ष तौर पर यूरोपीय संघ में 330,000 लोगों को रोज़गार देता है।

भारत का INDC मुख्य रूप से वर्ष 2030 तक हासिल किया जाना है

  • सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को लगभग एक-तिहाई कम करना।
  • बिजली की कुल स्थापित क्षमता का 40% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त होगा।
  • भारत ने वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक (वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने का एक साधन) की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है।

जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध भारतीय पहल:

आगे की राह:

  • जलवायु न्याय के सिद्धांत पर बातचीत आधरित मार्गदर्शन प्रदान किया जाना चाहिये।
  • ‘फिट फॉर 55’ यूरोपीय संघ के डीकार्बोनाइज़ेशन में वृद्धि करता है, सभी यूरोपीय नागरिकों और कंपनियों के दैनिक जीवन में जलवायु नीति के दृश्य प्रवेश को चिह्नित करता है और वैश्विक व्यापार भागीदारों को भी प्रभावित करना शुरू कर देता है।
  • यह सुनिश्चित करना कि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संक्रमण सामाजिक रूप से निष्पक्ष है, इसे लंबे समय तक सफल बनाए रखना सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।

स्रोत- डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

G7 की बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड इनिशिएटिव

प्रिलिम्स के लिये: 

बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड, G7, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना

मेन्स के लिये: 

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना की चुनौतियाँ और समाधान, 'बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड’ का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में G7 (Group of Seven) देशों ने चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना (Belt and Road initiative- BRI) का मुकाबला करने के लिये 47वें G7 शिखर सम्मेलन में 'बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड’ (Build Back Better World- B3W) पहल का प्रस्ताव रखा।

ग्रुप ऑफ सेवन

  • यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसका गठन वर्ष 1975 में किया गया था।
  • वैश्विक आर्थिक शासन, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और ऊर्जा नीति जैसे सामान्य हित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिये इसकी सालाना बैठक होती है।
  • G7 देश यूके, कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान और अमेरिका हैं।
    • सभी G7 देश और भारत G20 का हिस्सा हैं।
  • G7 का कोई औपचारिक संविधान या कोई निश्चित मुख्यालय नहीं है। इसके वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान नेताओं द्वारा लिये गए निर्णय गैर-बाध्यकारी होते हैं।

प्रमुख बिंदु 

बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड के विषय में:

  • इसका उद्देश्य विकासशील और कम आय वाले देशों में बुनियादी ढाँचे के निवेश घाटे को दूर करना है, जहाँ चीन ने BRI के अंतर्गत लगभग 2,600 परियोजनाओं के माध्यम से अरबों डॉलर का निवेश किया है।
    • BRI परियोजनाओं को विश्व में व्यापार, विदेश नीति और भू-राजनीति में अपने रणनीतिक प्रभुत्व के लिये चीन द्वारा बिछाए गए ऋण जाल के रूप में माना जाता है।
    • इसका समग्र ध्यान परिवहन, रसद और संचार विकसित करने पर है, जो चीन के व्यापार लागत को कम करेगा, चीनी बाज़ारों तक अधिक पहुँच प्रदान करेगा तथा ऊर्जा एवं अन्य संसाधनों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करेगा।
  • इस योजना का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा है।
    • B3W पहल विकासशील देशों को वर्ष 2035 तक आवश्यक लगभग 40 ट्रिलियन डॉलर की मांग को पूरा करने के लिये एक पारदर्शी साझेदारी प्रदान करेगी।
  • यह जलवायु मानकों और श्रम कानूनों का पालन करते हुए निजी क्षेत्र के सहयोग से सैकड़ों अरबों डॉलर खर्च करने का आह्वान करती है।
  • हालाँकि इस विषय में अभी घोषणा नहीं की गई है कि योजना वास्तव में कैसे काम करेगी या अंततः कितनी पूंजी आवंटित करेगी।

चीन की BRI परियोजना:

  • इसे वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था। इसमें विकास और निवेश हेतु पहल शामिल हैं जो एशिया से यूरोप तथा उससे आगे तक विस्तृत हैं।
  • रेलवे, बंदरगाह, राजमार्ग और अन्य बुनियादी ढाँचे जैसी बीआरआई परियोजनाओं में सहयोग करने के लिये 100 से अधिक देशों ने चीन के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • BRI केज़रिये चीन का निवेश:
    • अपनी स्थापना के बाद से इसमें बाह्य निवेश अधिक हुआ है क्योंकि चीन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बहिर्वाह अनुपात 2001-10 के दौरान लगभग 0.34 से बढ़कर 1 हो गया।
    • मात्रा के लिहाज से FDI बहिर्वाह वर्ष 2016-19 में बढ़कर 140 अरब डॉलर हो गया, जो 2001-10 के दौरान वार्षिक औसत 25 अरब डॉलर था।
    • चीन व्यापक परिवहन नेटवर्क सुनिश्चित करने के लिये अफ्रीका में निवेश कर रहा है। चीन और आसियान देशों के बीच बेहतर एकीकरण हेतु चीन ने पूर्वी एशियाई क्षेत्र के साथ विभिन्न संपर्कों मार्गों हेतु भी हस्ताक्षर किये हैं, जिसमें ज़्यादातर परिवहन, रेलवे, सड़क मार्ग और जलमार्ग पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • महत्त्वपूर्ण परियोजनाएँ:
    • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), बांग्लादेश-चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारा (BCIM) और श्रीलंका में कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना अन्य महत्त्वपूर्ण BRI परियोजनाएँ हैं।
    • चीन की BRI के हिस्से के रूप में मध्य एशियाई क्षेत्र के भीतर 4,000 किलोमीटर रेलवे और 10,000 किलोमीटर राजमार्गों को पूरा करने की योजना है।
  • भारत की चिंता:
    • भारत ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के बारे में चिंता व्यक्त की है, क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (PoK) से होकर गुज़रता है।
      • बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजना चीन के झिंजियांग प्रांत को पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में ग्वादर बंदरगाह से जोड़ती है।
    • भारत ने अतीत में चीनी पहल में शामिल होने से इनकार कर दिया और BRI के खिलाफ आवाज़उठाई।
    • चीनी प्रतिस्पर्द्धा के कारण भारत अपने उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता, बाज़ार पहुँच, संसाधन निष्कर्षण आदि पर प्रतिकूल व्यापार प्रभाव भी देखता है।

‘बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड’ का महत्त्व:

  • वर्ष 1991 में सोवियत संघ के पतन और शीत शुद्ध की समाप्ति के बाद एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में चीन का फिर से उभरना हाल के समय की सबसे महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक घटनाओं में से एक है।
  • वर्ष 1979 में चीन की अर्थव्यवस्था इटली की तुलना में छोटी थी, किंतु विदेशी निवेश के लिये खोले जाने और बाज़ार सुधारों को शुरू करने के बाद से चीन, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है तथा यह नवीन प्रौद्योगिकियों के एक वैश्विक नेता के रूप में उभरा है।
  • हालाँकि ‘पारदर्शिता की कमी, खराब पर्यावरण और श्रम मानकों’ के प्रति चीन की सरकार के दृष्टिकोण के कारण वह पश्चिम में एक सकारात्मक विकल्प प्रस्तुत करने में विफल रहा है।

आगे की राह 

  • ‘बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड’ का प्रस्ताव निश्चित रूप से चीन की मेगा योजना के प्रतिकूल प्रभावों को रोकने के लिये एक स्वागत योग्य कदम है। हालाँकि ‘बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड’ में सुसंगत विचारों और उचित योजना का अभाव है लेकिन अभी भी इसमें देरी नहीं हुई है तथा इसे और अधिक बेहतर किया जा सकता है।
  • इसके अलावा यह देखना अभी शेष है कि भारत ‘बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड’ में क्या भूमिका निभाएगा, क्योंकि चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) का भारत प्रबल विरोधी रहा है।
  • चीन के प्रभाव को कम करने के लिये काउंटर-रणनीति आवश्यक है। संपूर्ण विश्व में ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ परियोजनाओं का एक वृहद् विश्लेषण (मात्रा और निवेश पैटर्न के आधार पर), स्पष्ट रूप से चीन-केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एकीकरण, उत्पादन नेटवर्क तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र एवं वैश्विक अर्थव्यवस्था में चीन के आधिपत्य को दर्शाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कृषि

‘किसान सारथी’ मंच

प्रिलिम्स के लिये

‘किसान सारथी’ मंच, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद

मेन्स के लिये

कृषि विकास हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद’ (ICAR) ने अपना 93वाँ स्थापना दिवस मनाया और इस अवसर पर ‘किसान सारथी’ मंच का शुभारंभ किया गया।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद

  • यह कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के ‘कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग’ (DARE) के तहत एक स्वायत्त संगठन है।
  • इसकी स्थापना जुलाई 1929 में हुई थी और इसे पूर्व में ‘इम्पीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च’ के नाम से जाना जाता था।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
  • यह पूरे देश में बागवानी, मत्स्य पालन और पशु विज्ञान सहित कृषि क्षेत्र में अनुसंधान एवं शिक्षा के समन्वय, मार्गदर्शन और प्रबंधन के लिये शीर्ष निकाय है।

प्रमुख बिंदु

किसान सारथी’ मंच:

  • इसे केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री और केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री द्वारा संयुक्त रूप से लॉन्च किया गया है।
  • यह किसानों को उनकी वांछित भाषा में 'सही समय पर सही जानकारी' प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करने हेतु एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है।
  • यह किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs) के वैज्ञानिकों से प्रत्यक्ष तौर कृषि और संबद्ध विषयों पर वार्ता करने एवं व्यक्तिगत सलाह लेने में मदद करेगा।
    • किसान इसका उपयोग कर खेती के नए तरीके भी सीख सकते हैं।

कृषि विज्ञान केंद्र:

  • यह भारत में एक कृषि विस्तार केंद्र है। ये केंद्र आमतौर पर एक स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय से जुड़े ICAR और किसानों के बीच अंतिम कड़ी के रूप में काम करते हैं तथा व्यावहारिक कृषि अनुसंधान को लागू करने का लक्ष्य रखते हैं।
  • यह राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (National Agricultural Research System- NARS) का अभिन्न अंग है।
    • पहला KVK वर्ष 1974 में पुद्दुचेरी में स्थापित किया गया था।
  • KVK का अधिदेश इसके अनुप्रयोग और क्षमता विकास के लिये प्रौद्योगिकी मूल्यांकन तथा प्रदर्शन है।
  • KVK भी गुणवत्तापूर्ण तकनीकी उत्पादों जैसे- बीज, रोपण सामग्री, पशुधन आदि का उत्पादन करते हैं और इसे किसानों को उपलब्ध कराते हैं।
  • KVK योजना भारत सरकार द्वारा 100% वित्तपोषित है और कृषि विश्वविद्यालयों, ICAR संस्थानों, संबंधित सरकारी विभागों तथा कृषि में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों (NGO) द्वारा स्वीकृत हैं।
  • KVK प्रयोगशालाओं और खेत के बीच एक सेतु का काम करते हैं। सरकार के अनुसार, ये वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

Krishi-Vigyan-Kendra

अन्य संबंधित पहलें:

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

स्कूल नवाचार दूत प्रशिक्षण कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये:

अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद

मेन्स के लिये:

स्कूल नवाचार दूत प्रशिक्षण और इसके लाभ तथा शिक्षा में क्षेत्र में भारत सरकार की अन्य पहलें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्री और केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री ने संयुक्त रूप से स्कूल नवाचार दूत प्रशिक्षण (School Innovation Ambassador Training Program- SIATP) की शुरुआत की।

  • जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने एक आदि-प्रशिक्षण पोर्टल लॉन्च किया है जो प्रशिक्षण इनपुट का भंडार भी है।

प्रमुख बिंदु:

परिचय:

  • स्कूली शिक्षकों के लिये अभिनव और अपनी तरह के अनूठे प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य 50,000 स्कूल शिक्षकों को नवाचार, उद्यमिता, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), डिज़ाइन थिंकिंग, उत्पाद विकास, विचार निर्माण आदि में प्रशिक्षण देना है।
  • यह छात्रों को भविष्य के लिये तैयार करने हेतु शिक्षकों को परिवर्तन-एजेंट और नवाचार दूत बनाएगा।

डिज़ाइन और सहयोग:

  • कार्यक्रम को शिक्षा मंत्रालय के इनोवेशन सेल और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) द्वारा स्कूली शिक्षकों के लिये "उच्च शैक्षिक संस्थान के संकाय सदस्यों हेतु नवाचार दूत प्रशिक्षण कार्यक्रम" के आधार पर डिज़ाइन किया गया है।
    • प्रशिक्षण केवल ऑनलाइन माध्यम से दिया जाएगा।
  • यह शिक्षा मंत्रालय के इनोवेशन सेल, जनजातीय मामलों के मंत्रालय, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) और AICTE का एक सहयोगी प्रयास है।

लाभ:

  • यह देश भर में बड़ी संख्या में आदिवासी स्कूलों के बच्चों में रचनात्मकता का विकास कर उन्हें लाभान्वित करेगा।
  • यह नवाचार क्षमताओं वाले लाखों छात्रों का पोषण करेगा, नवाचार की संस्कृति विकसित करेगा और एक नए एवं जीवंत भारत की नींव रखेगा।
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों के छात्रों को SIATP से बहुत लाभ होगा क्योंकि यह जनजातीय बच्चों को सर्वोत्तम संभव शिक्षा देने के लिये जनजातीय मामलों के मंत्रालय का एक प्रयास है।
    • जनजातीय बच्चों के लिये EMRS एक और महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम है जिसके तहत अगले तीन वर्षों में आदिवासी बहुल क्षेत्रों में 740 EMRS स्थापित किये जाएंगे।
    • इसकी शुरुआत वर्ष 1997-98 में दूरस्थ क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिये की गई थी।

अन्य महत्त्वपूर्ण संबंधित पहलें:

अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद

  • इस परिषद की स्थापना नवंबर 1945 में राष्ट्रीय स्तर के शीर्ष सलाहकार निकाय के रूप में की गई थी।
  • इसका उद्देश्य तकनीकी शिक्षा के लिये उपलब्ध सुविधाओं पर सर्वेक्षण करना और समन्वित तथा एकीकृत तरीके से देश में विकास को बढ़ावा देना है।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के अनुसार, AICTE में निहित हैं:
    • मानदंडों और मानकों के नियोजन, निर्माण और रखरखाव के लिये सर्वोच्च प्राधिकरण।
    • प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में वित्तपोषण, निगरानी और मूल्यांकन करना। 
    • प्रमाणन और पुरस्कारों की समानता बनाए रखना।
    • गुणवत्ता सुनिश्चित करना।
    • देश में तकनीकी शिक्षा का प्रबंधन।

इनोवेशन सेल

  • यह देश भर के सभी उच्च शिक्षा संस्थानों (HEI) में नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है।
    • इसे वर्ष 2018 में AICTE परिसर में स्थापित किया गया था।
  • इसका उद्देश्य युवा छात्रों को नए विचारों से अवगत कराकर उन्हें प्रोत्साहित करना है, जिसके परिणामस्वरूप उनके प्रारंभिक वर्षों में नवीन गतिविधियाँ होती हैं, जिन्हें HEI में नेटवर्क ऑफ  इनोवेशन क्लब (Network of Innovation Club) के माध्यम से बढ़ावा दिया जाता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

विदेशी कार्ड भुगतान नेटवर्क कंपनियों पर प्रतिबंध

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम- इंडिया

मेन्स के लिये:

भारत में विदेशी कार्ड भुगतान नेटवर्क कंपनियों से संबंधित RBI के दिशा-निर्देश एवं उनका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने तीन विदेशी कार्ड भुगतान नेटवर्क फर्मों- मास्टरकार्ड, अमेरिकन एक्सप्रेस और डाइनर्स क्लब को भारत में डेटा संग्रहण करने के मुद्दे पर नए ग्राहक बनाने से रोक दिया है।

  • RBI के इस निर्णय से एक्सिस बैंक, यस बैंक और इंडसइंड बैंक सहित निजी क्षेत्र के पाँच बैंक प्रभावित होंगे।
  • व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक में 'डेटा स्थानीयकरण' से संबंधित प्रावधान भी हैं।

MASTER of Credit

प्रमुख बिंदु:

डेटा संग्रहण पर RBI का परिपत्र- अप्रैल 2018:

  • सभी सिस्टम प्रोवाइडर्स को यह सुनिश्चित करने के लिये निर्देशित किया गया था कि भारत में छह महीने के भीतर उनके द्वारा संचालित भुगतान प्रणालियों से संबंधित संपूर्ण डेटा (पूरा लेन-देन विवरण, एकत्रित या संसाधित किया गया संदेश या भुगतान निर्देश के हिस्से के रूप में संपूर्ण डेटा) को एक तंत्र में संग्रहीत किया जाए। 
  • उन्हें RBI को अनुपालन की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के साथ ही ‘कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम - इंडिया’ (सीईआरटी-आईएन) पैनल में शामिल ऑडिटर द्वारा निर्धारित समय-सीमा के भीतर बोर्ड द्वारा अनुमोदित ‘सिस्टम ऑडिट रिपोर्ट’ प्रस्तुत करने की भी आवश्यकता है।

भुगतान फर्मों द्वारा किये गए गैर-अनुपालन का कारण:

  • उच्च लागत:
    • वीज़ा और मास्टरकार्ड जैसी भुगतान कंपनियाँ जो वर्तमान में देश के बाहर भारतीय लेन-देन संबंधी डेटा का भंडारण और उसे संसाधित करती हैं, ने कहा है कि उनके सिस्टम केंद्रीकृत हैं और उन्होंने आशंका व्यक्त की है कि डेटा स्टोरेज़ को भारत में स्थानांतरित करने के लिये उन्हें लाखों डॉलर खर्च करने होंगे।
  • अन्य देशों में स्थानीयकरण की मांग:
    • एक बार जब यह व्यवस्था भारत में लागू हो जाती है, तो अन्य देशों से भी इसी प्रकार की मांग की जा सकती है, जिससे उनकी योजनाएँ बाधित होंगी।
  • स्पष्टता का अभाव
    • यद्यपि वित्त मंत्रालय ने डेटा स्थानांतरित करने में मानदंडों में कुछ ढील देने का सुझाव दिया था, किंतु रिज़र्व बैंक ने यह कहते हुए बदलाव करने से इनकार कर दिया कि डिजिटल लेन-देन के बढ़ते उपयोग के मद्देनज़र भुगतान प्रणालियों की निगरानी की जानी आवश्यक है।

रिज़र्व बैंक के इस कदम का महत्त्व

  • संस्थाओं को नए ग्राहकों को शामिल करने से प्रतिबंधित किये जाने का रिज़र्व बैंक का निर्णय यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण होगा कि सभी भुगतान प्रणाली ऑपरेटर केवल भारत में अपने एंड-टू-एंड लेन-देन डेटा को स्टोर या स्थानीयकृत करें।
  • इस तरह के कदम का प्राथमिक उद्देश्य प्रभावी कानून प्रवर्तन आवश्यकताओं को पूरा करना है क्योंकि कानून प्रवर्तन उद्देश्यों के लिये डेटा एक्सेस सदैव एक चुनौती रही है।

भुगतान फर्मों का विनियमन:

  • मास्टरकार्ड, वीज़ा और नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) जैसी फर्में ‘भुगतान एवं निपटान प्रणाली (PSS) अधिनियम, 2007’ के तहत भारत में कार्ड नेटवर्क संचालित करने हेतु अधिकृत भुगतान प्रणाली ऑपरेटर हैं।
  • अधिनियम के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक भारत में भुगतान प्रणालियों के विनियमन और पर्यवेक्षण के लिये नामित प्राधिकरण है। रिज़र्व बैंक की भुगतान प्रणाली भुगतानकर्त्ता एवं लाभार्थी के बीच भुगतान को सक्षम बनाती है तथा इसमें समाशोधन, भुगतान या निपटान या वे सभी प्रक्रियाएंँ शामिल होती हैं।
    • इसमें पेपर-आधारित यथा- चेक, डिमांड ड्राफ्ट और डिजिटल जैसे- नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT), भीम एप, सेटलमेंट सिस्टम दोनों शामिल हैं।
  • रिज़र्व बैंक ने गैर-बैंक संस्थाओं जैसे- प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट (PPI) जारीकर्त्ता, कार्ड नेटवर्क, व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटरों, ट्रेड रिसीवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम (TReDS) प्लेटफॉर्म आदि को केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली का सदस्य बनने और ‘रियल टाइम टाइम ग्रॉस सेटलमेंट’ (RTGS) तथा नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) के माध्यम से फंड ट्रांसफर करने की अनुमति देने का फैसला किया है।

आगे की राह 

  • सभी संस्थाओं के लिये आरबीआई के स्थानीयकरण जनादेश का पालन करना आवश्यक है। साथ ही यह सच है कि कठिन स्थानीयकरण भारत के भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकता है।
  • भारत को कानून प्रवर्तन के लिये एक अधिक प्रभावी तंत्र हेतु म्यूचुअल लीगल असिस्टेंस ट्रीटी (Mutual Legal Assistance Treaty) से आगे बढ़कर यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और अमेरिका के साथ डेटा ट्रांसफर हेतु द्विपक्षीय संधियों पर आधारित प्रणाली को अपनाने की ज़रूरत है।
  • यह सुनिश्चित करने पर विचार किया जाना चाहिये कि डेटा तक पहुँच भारतीय कानून प्रवर्तन आवश्यकताओं के अनुसार समय पर पूरा हो, साथ ही तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र में नवाचार और व्यापार को बढ़ावा देने के लिये डेटा प्रवाह की अनुमति दी जाए।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

महिला आरक्षण विधेयक

प्रिलिम्स के लिये:

स्थायी समिति, राज्यसभा, लोकसभा

मेन्स के लिये:

संसद और विधानसभाओं में महिला अरक्षण की अवश्यकता एवं मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक राजनीतिक दल ने दीर्घ अवधि से लंबित महिला आरक्षण विधेयक (Women’s Reservation Bill to Parliament) को  मानसून सत्र से पहले संसद में लाने की मांग की है। 

  • इस विधेयक को मई 2008 में राज्यसभा में पेश किया गया था और एक स्थायी समिति (Standing Committee) के पास भेजा गया था। इसे वर्ष 2010 में सदन में पारित किया गया तथा अंत में लोकसभा को प्रेषित किया गया। हालाँकि यह बिल 15वीं लोकसभा के साथ लैप्स हो गया।

प्रमुख बिंदु 

पृष्ठभूमि:

  • इस बिल का मूल विचार एक संवैधानिक संशोधन से उत्पन्न हुआ था जिसे वर्ष 1993 में पारित किया गया था।
  • इस संविधान संशोधन द्वारा प्रावधान किया गया कि ग्राम पंचायत के सरपंचों की एक- तिहाई संख्या महिलाओं के लिये आरक्षित होनी चाहिये।
  • इस प्रकार के महिला आरक्षण को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं तक विस्तारित करने के लिये महिला आरक्षण विधेयक को दीर्घकालिक योजना के रूप में देखा गया था।

महिला आरक्षण विधेयक के विषय में:

  • यह विधयक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% सीटें आरक्षित करता है।
  • आरक्षित सीटों को राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में चक्रीय आधार पर आवंटित किया जा सकता है।
  • इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 वर्ष बाद महिलाओं के लिये सीटों का आरक्षण समाप्त हो जाएगा।

आवश्यकता:

  • ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 के अनुसार, राजनीतिक सशक्तीकरण सूचकांक में भारत के प्रदर्शन में गिरावट आई है और साथ ही महिला मंत्रियों की संख्या वर्ष 2019 के 23.1% से घटकर वर्ष 2021 में 9.1% तक पहुँच गई है।
  • सरकार के आर्थिक सर्वेक्षणों में भी यह माना जाता है कि लोकसभा और विधानसभाओं में महिला प्रतिनिधियों की संख्या बहुत कम है।
  • विभिन्न सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि पंचायती राज संस्थानों में महिला प्रतिनिधियों ने गाँवों में समाज के विकास और समग्र कल्याण में सराहनीय कार्य किया है तथा उनमें से कई निश्चित रूप से बड़े पैमाने पर काम करना चाहेंगी, हालाँकि उन्हें भारत में प्रचलित राजनीतिक संरचना में विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
    • इन चुनौतियों में उचित राजनीतिक शिक्षा की कमी, समाज में महिलाओं की कम वित्तीय शक्ति, यौन हिंसा, असुरक्षित पितृसत्ता की अभिव्यक्ति, पुरुषों और महिलाओं के बीच घरेलू कार्य का असमान वितरण आदि शामिल हैं।
    • कई ग्रामीण इलाकों में ‘पंचायत पति’ की अवधारणा यानी पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को प्रॉक्सी के रूप में प्रयोग करना भी काफी प्रचलित है।

महत्त्व

  • महिला राजनीतिक सशक्तीकरण तीन मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित है:
    • महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता।
    • महिलाओं को उनकी क्षमता के पूर्ण विकास का अधिकार।
    • महिलाओं के आत्म प्रतिनिधित्व और आत्मनिर्णय का अधिकार।
  • राजनीतिक निर्णयन प्रकिया में लैंगिककता संबंधी एक महत्त्वपूर्ण अंतर विद्यमान है, ऐसे में किशोर लड़कियों को राष्ट्र निर्माण में योगदान करने के लिये प्रेरित करने हेतु महिला नेताओं को आगे आने की आवश्यकता है।

    मुद्दे:

    • तर्क दिया गया है कि यह महिलाओं की असमान स्थिति को कायम रखेगा क्योंकि उन्हें योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्द्धी नहीं माना जाएगा।
    • यह भी तर्क दिया जाता है कि यह नीति चुनावी सुधार के बड़े मुद्दों जैसे- राजनीति के अपराधीकरण और आंतरिक पार्टी लोकतंत्र से ध्यान भटकाती है।
    • यह महिला उम्मीदवारों के लिये मतदाताओं की पसंद को प्रतिबंधित करता है।
    • प्रत्येक चुनाव में आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों के रोटेशन से एक सांसद का अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिये काम करने हेतु प्रोत्साहन कम हो सकता है क्योंकि वह उस निर्वाचन क्षेत्र से फिर से चुनाव लड़ने के लिये अपात्र हो सकता है।
      • कुछ विशेषज्ञों ने वैकल्पिक तरीकों को अपनाने/बढ़ावा देने का सुझाव दिया है, जैसे- राजनीतिक दलों और दोहरे सदस्य निर्वाचन क्षेत्रों में आरक्षण।

    आगे की राह:

    • पंचायती राज संस्थाओं ने महिला प्रतिनिधियों को ज़मीनी स्तर पर व्यवस्था में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई राज्यों ने चुनाव में महिला उम्मीदवारों के लिये 50% आरक्षण दिया है।
    • पार्टी स्तर पर मौलिक सुधार महिला आरक्षण विधेयक के लिये एक आवश्यक और रणनीतिक पूरक के रूप में काम करेंगे। भले ही महिला आरक्षण विधेयक भी पटरी से उतर गया हो, लेकिन राजनीति में महिलाओं के प्रवेश हेतु राजनीतिक दलों को अपने आंतरिक ढाँचे को और अधिक अनुकूल बनाने से नहीं रोकना चाहिये।
    • यहाँ ‘कोटा’ शब्द के भारतीय दृष्टिकोण को पश्चिम के दृष्टिकोण से रेखांकित करना और अलग करना महत्त्वपूर्ण है। पश्चिम के विपरीत जहाँ कोटा लगभग एक बुरा शब्द है, भारतीय प्रतिमान में ऐसे कोटा को सामाजिक लाभ के लिये अमूल्य उपकरण के रूप में देखा गया है।
      • यह सदियों से जारी उत्पीड़न को रोकने के लिये एक उपकरण है।
    • यहाँ तक ​​कि जब महिलाएँ राजनीति में पुरुषों के समान पदों पर होती हैं, तो उन्हें उल्लिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। भारत की जनता के बीच संस्थागत, सामाजिक और व्यवहारिक परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। लैंगिक समानता सतत् विकास लक्ष्यों का भी एक हिस्सा है।

    स्रोत- द हिंदू


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