उत्तराखंड Switch to English
उत्तराखंड में रणनीतिक सलाहकार समिति
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) ने नवाचार और प्रभावी कार्यान्वयन पर एक रणनीतिक सलाहकार समिति के गठन को मंज़ूरी दे दी है।
- इसके अलावा, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सामाजिक विकास, कौशल निर्माण और तकनीकी नवाचार को आगे बढ़ाने के लिये तीन प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
मुख्य बिंदु
- रणनीतिक सलाहकार समिति: शासन नवाचार और प्रभावी कार्यक्रम कार्यान्वयन को बढ़ावा देने के लिये मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में।
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टाटा ट्रस्ट के साथ त्रिपक्षीय समझौता: जल प्रबंधन, पोषण, टेलीमेडिसिन, ग्रामीण आजीविका और हरित ऊर्जा पर केंद्रित 10 वर्षीय साझेदारी।
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नैसकॉम के साथ कौशल विकास समझौता: उत्तराखंड को एक तकनीकी कौशल केंद्र के रूप में स्थापित करेगा, जिसमें AI, डाटा विज्ञान, साइबर सुरक्षा और पायथन में पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए जाएंगे।
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वाधवानी फाउंडेशन के साथ समझौता: सरकारी कॉलेजों में 1.2 लाख छात्रों के लिये AI-संचालित व्यक्तित्व विकास और कौशल प्रशिक्षण को एकीकृत करना।
राज्यपाल
- परिचय
- राज्यपाल भारत में किसी राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, जो राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रपति के समान भूमिका निभाता है।
- उनका पद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 से 162 के अंतर्गत परिभाषित है और वे दोहरी क्षमता में कार्य करते हैं:
- संवैधानिक प्रमुख के रूप में, राज्य की मंत्रिपरिषद की सलाह से बँधे हुए।
- संघ और राज्य सरकार के बीच एक कड़ी के रूप में, भारत के संघीय ढाँचे के भीतर समन्वय सुनिश्चित करना।
- नियुक्ति एवं कार्यकाल:
- भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त।
- 5 वर्ष का कार्यकाल होता है, हालाँकि त्यागपत्र या बर्खास्तगी से इसे कम किया जा सकता है।
- वह भारतीय नागरिक होना चाहिये, कम-से-कम 35 वर्ष का होना चाहिये तथा किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिये।
- शक्तियाँ एवं जिम्मेदारियाँ:
- कार्यकारी, विधायी और विवेकाधीन शक्तियाँ रखता है।
- राज्य शासन, कानून निर्माण और आपातकालीन प्रावधानों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- राज्य में संवैधानिक विफलता की स्थिति में अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करता है।
बिहार Switch to English
कैनाल बैंक सौर ऊर्जा परियोजना
चर्चा में क्यों?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना ज़िले में बिक्रम लॉक कैनाल बैंक सौर ऊर्जा परियोजना का उद्घाटन किया।
- यह पहल राज्य के जल जीवन हरियाली मिशन (JJHM) का एक हिस्सा है, जो पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिये नवीकरणीय और हरित ऊर्जा को प्रोत्साहित करता है।
मुख्य बिंदु
- परियोजना के बारे में:
- सौर ऊर्जा परियोजना पटना के बिक्रम में मुख्य नहर के 2 किमी. क्षेत्र में स्थित है।
- इसकी स्थापित क्षमता 2 मेगावाट है और यह जल संसाधन विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई 5.7 एकड़ भूमि पर बनी है।
- यह परियोजना RESCO (नवीकरणीय ऊर्जा सेवा कंपनी) मॉडल के तहत विकसित की गई है, जहाँ एक निजी फर्म (तीसरा पक्ष) प्रणाली को स्थापित, संचालित और रखरखाव करती है।
जल-जीवन-हरियाली मिशन (JJHM)
- परिचय
- JJHM एक स्वायत्त निकाय है जो सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत है और बिहार सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के अधीन कार्य करता है।
- वर्ष 2019 में लॉन्च किया गया, यह जलवायु स्थिरता और संसाधन संरक्षण के लिये एक बहु-हितधारक पहल के रूप में राज्य सरकार के नियंत्रण में कार्य करता है।
- ग्रामीण विकास विभाग इस मिशन के कार्यान्वयन हेतु विभिन्न सरकारी विभागों के समन्वय के साथ नोडल विभाग की भूमिका निभाता है।
- इसका आदर्श वाक्य है: "जल, जीवन और हरियाली – तभी होगी समृद्धि"।
- उद्देश्य और लक्षित क्षेत्र:
- यह मिशन जलवायु स्थिरता, जल संरक्षण, प्रदूषण-मुक्त पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु-लचीली कृषि को प्रोत्साहित करता है।
- यह नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग, ऊर्जा संरक्षण और सार्वजनिक जलवायु जागरूकता को भी बढ़ावा देता है।
- JJHM, नागरिकों को स्थायी पारिस्थितिक प्रभाव के लिये लक्षित, समयबद्ध कार्यों के माध्यम से हरित भविष्य का निर्माण करने के लिये सशक्त बनाता है।
- प्रमुख घटक (11 सूत्री एजेंडा):
- सार्वजनिक जल संरचनाओं की मरम्मत
- तालाबों/झीलों/कुओं/बावड़ियों का सर्वेक्षण और जीर्णोद्धार
- सार्वजनिक कुओं का जीर्णोद्धार
- नहरों/धाराओं के पास कुएँ/चेक डैम बनाना
- छोटी नदियों/पहाड़ी क्षेत्रों में चेक डैम बनाना
- अधिशेष जल को कमी वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित करना
- वर्षा जल संचयन संरचनाएँ बनाना
- पशुओं के पीने के पानी में सुधार करना
- वैकल्पिक फसलों और आधुनिक तकनीकों को बढ़ावा देना
- सौर ऊर्जा और संरक्षण को प्रोत्साहित करना
- जल जीवन हरियाली जागरूकता अभियान
बिहार Switch to English
संपूर्ण क्रांति की 50 वीं वर्षगाँठ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बिहार के पटना में जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के आह्वान की 50 वीं वर्षगाँठ मनाई गई।
मुख्य बिंदु
- संपूर्ण क्रांति के बारे में:
- प्रारंभ: 5 जून 1974 को जयप्रकाश नारायण ने गांधी मैदान, पटना में संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया।
- उद्देश्य: वर्ष 1974 के इस आंदोलन का उद्देश्य भूख, भ्रष्टाचार, अन्याय, आर्थिक कठिनाई और राजनीतिक उत्पीड़न को दूर करने के लिये सामाजिक सुधार की माँग करना था।
- प्रभाव: 1970 के दशक में इस आंदोलन ने सत्ताधारी व्यवस्था को चुनौती देने हेतु विभिन्न विपक्षी समूहों को एक मंच पर लाने का कार्य किया।
- गैर-चुनावी दृष्टिकोण और जन आंदोलनों ने भविष्य की राजनीतिक रणनीतियों और कार्यों को आकार दिया।
- संपूर्ण क्रांति ने एक व्यापक राजनीतिक परिवर्तन को प्रेरित किया, जो दिल्ली तक फैल गया और राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित किया।
- इस आंदोलन से उत्पन्न हुई अशांति ने वर्ष 1975 में आपातकाल की घोषणा में योगदान दिया।
जयप्रकाश नारायण
- लोकनायक के रूप में प्रसिद्ध, जयप्रकाश नारायण एक क्रांतिकारी, राजनीतिक चिंतक तथा जननेता थे।
- उनका जन्म 11 अक्तूबर 1902 को सिताबदियारा, बिहार में हुआ था। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ स्वतंत्रता के बाद लोकतांत्रिक पुनरुत्थान के प्रमुख नेता रहे।
- प्रारंभ में मार्क्सवाद से प्रभावित होने के बाद, उन्होंने गांधीवादी सर्वोदय विचारधारा को अपनाया, जिसमें अहिंसा, ग्राम स्वराज (गाँव आधारित आत्मनिर्भरता) तथा सामाजिक सुधारों पर विशेष ज़ोर था।
- उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई तथा बाद में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी जैसे समाजवादी संगठनों के गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- मार्च 1943 में जयप्रकाश नारायण ने राममनोहर लोहिया, फूलैना प्रसाद वर्मा, सुराज नारायण सिंह और योगेन्द्र शुक्ल जैसे नेताओं के साथ मिलकर नेपाल के तराई क्षेत्र के राजविलास वन में 'आज़ाद दस्ता' का गठन किया।
- आज़ाद दस्ता एक क्रांतिकारी गुरिल्ला संगठन था, जिसका उद्देश्य था—
- ब्रिटिश प्रशासनिक गतिविधियों में हस्तक्षेप कर उनकी सत्ता को कमज़ोर करना,
- तार और रेलवे जैसी संचार प्रणालियों को नष्ट कर ब्रिटिश ढाँचे को बाधित करना,
- ब्रिटिश विरोधी प्रचार प्रसार कर लोगों में औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध जनप्रतिरोध को प्रेरित करना।
- वर्ष 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और नागरिक स्वतंत्रता तथा नैतिक राजनीति के प्रबल पक्षधर रहे। उन्होंने भारत के लोकतांत्रिक आंदोलनों पर एक दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ा।
छत्तीसगढ़ Switch to English
न्यायालय की अवमानना
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मई 2025 में निर्णय दिया था कि न्यायालय के आदेश के बाद संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कानून को न्यायालय की अवमानना नहीं माना जा सकता।
- यह निर्णय सलवा जुडूम के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद छत्तीसगढ़ में सहायक बल के गठन पर वर्ष 2012 की अवमानना याचिका को खारिज करते हुए आया।
मुख्य बिंदु
- मामले की पृष्ठभूमि:
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 2011: छत्तीसगढ़ सरकार को सलवा जुडूम को समर्थन बंद करने और माओवादियों से लड़ने के लिये सशस्त्र विशेष पुलिस अधिकारियों (SPO) को भंग करने का निर्देश दिया गया।
- कथित अवमानना: राज्य ने निर्णय के बाद छत्तीसगढ़ सहायक सशस्त्र पुलिस बल अधिनियम, 2011 पारित किया, जिससे SPO को वैधानिकता और पुनर्गठन मिला।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- विधायी शक्तियाँ और अवमानना: न्यायालय ने माना कि न्यायालय के आदेश के बाद कानून बनाना अवमानना नहीं है, जब तक कि संवैधानिक न्यायालय द्वारा उसे असंवैधानिक घोषित न कर दिया जाए।
न्यायालय की अवमानना
- न्यायालय की अवमानना एक कानूनी तंत्र है, जिसका उपयोग न्यायपालिका के अधिकार, गरिमा और स्वतंत्रता को प्रेरित हमलों या अनुचित आलोचना से बचाने के लिये किया जाता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक संस्थाओं का सम्मान किया जाए और उनके आदेशों का पालन किया जाए।
वैधानिक आधार:
- अनुच्छेद 19(2): न्यायालय की अवमानना सहित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाता है।
- अनुच्छेद 129: सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं की अवमानना के लिये दंडित करने की शक्ति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 215: उच्च न्यायालयों को समान शक्ति प्रदान करता है।
- न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 अवमानना कार्यवाही के लिये वैधानिक ढाँचा प्रदान करता है।
अवमानना के प्रकार:
- सिविल अवमानना: न्यायालय के किसी निर्णय, आदेश या निर्देश की जानबूझकर अवज्ञा करना। इसमें न्यायालय को दिये गए निर्देशों का उल्लंघन भी शामिल है।
- आपराधिक अवमानना: न्यायालय को बदनाम करना, उसके अधिकार को कम करना या न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करना। इसमें न्याय प्रशासन में बाधा डालने वाला कोई भी कार्य भी शामिल है।
- नोट: न्यायालय की कार्यवाही की निष्पक्ष और सटीक रिपोर्टिंग तथा निपटारे के बाद निर्णयों की निष्पक्ष आलोचना को अवमानना नहीं माना जाएगा।
सज़ा
- न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत सज़ा में 6 महीने तक की कैद, 2,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों शामिल हो सकते हैं।
- 2006 का संशोधन सत्य और सद्भाव की रक्षा की अनुमति देता है।
- दंड केवल तभी दिया जाना चाहिये जब न्याय में पर्याप्त हस्तक्षेप हो।