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प्रश्न :
प्रश्न. “भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति समय के साथ आतंकवाद के बदलते स्वरुप के जवाब में विकसित हुई है”। भारत की वर्तमान आतंकवाद विरोधी रणनीति के प्रमुख घटकों पर चर्चा कीजिये तथा सीमा पार आतंकवाद को रोकने में इसकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
02 Jul, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति के बारे में जानकारी देकर उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत की वर्तमान आतंकवाद-रोधी रणनीति के प्रमुख विकासशील घटकों पर गहन विचार कीजिये
- सीमा पार आतंकवाद को रोकने में इसकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये
- एक उद्धरण के साथ निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत की आतंकवाद-रोधी रणनीति वैश्विक और क्षेत्रीय आतंकवाद की बदलती गतिशीलता के जवाब में (विशेष रूप से पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित सीमा-पार आतंकवाद के संदर्भ में) विकसित हुई है।
- भारत की विकसित होती रणनीति का एक हालिया उदाहरण पहलगाम आतंकवादी हमले के प्रतिशोध में मई 2025 में शुरू किया गया ऑपरेशन सिंदूर था।
मुख्य भाग:
भारत की वर्तमान आतंकवाद-रोधी रणनीति के प्रमुख घटक:
- अवरोधन की रणनीति में परिवर्तन (नकारात्मक प्रतिक्रिया से दंडात्मक प्रतिक्रिया की ओर): भारत ने सीमा पार आतंकवाद के प्रति अपने दृष्टिकोण को अधिक सक्रिय और सैन्य रूप में परिवर्तित किया है, जैसा कि ऑपरेशन सिंदूर और सर्जिकल स्ट्राइक (2016) जैसे प्रतिशोधात्मक उपायों में देखा गया।
- यह रणनीति यह संकेत देती है कि आतंकवादी कार्रवाइयों को अब युद्ध के कार्यों के रूप में लिया जाएगा और आवश्यकता पड़ने पर सैन्य स्तर पर उसका उत्तर दिया जाएगा।
- इसका उद्देश्य आतंकवादी गतिविधियों को बाधित करना और यह संदेश देना है कि भारत आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले शत्रु देशों को असमान और गंभीर क्षति पहुँचाएगा।
- यह रणनीति यह संकेत देती है कि आतंकवादी कार्रवाइयों को अब युद्ध के कार्यों के रूप में लिया जाएगा और आवश्यकता पड़ने पर सैन्य स्तर पर उसका उत्तर दिया जाएगा।
- बढ़ी हुई खुफिया और निगरानी क्षमताएँ: भारत ने एनआईए (NIA), रॉ (RAW), और आईबी (IB) जैसी एजेंसियों के माध्यम से सीमा पार आतंकवाद पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपने खुफिया तंत्र को मज़बूत किया है।
- नैटग्रिड (NatGrid) उन्नत डेटा विश्लेषण का उपयोग करके आतंकवाद के वित्तपोषण और नेटवर्क को पहचानने और बाधित करने में मदद करता है।
- विधायी ढाँचा विकसित करना: यूएपीए (UAPA) और एनएसए (NSA) जैसे कानूनों में किये गए संशोधन रोकथाम, संपत्ति जब्ती और आतंकी संगठनों को नामित करने की शक्ति प्रदान करते हैं।
- राष्ट्रीय स्तर की आतंकवाद-रोधी एजेंसियाँ: राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) अब आतंकवाद-रोधी अभियानों, उच्च जोखिम वाले खतरों के प्रबंधन और राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
- राज्य और केंद्रीय एजेंसियों के साथ उनका समन्वय आतंकवाद के प्रति एकीकृत प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है।
- NIA ने हाल ही में अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार करते हुए इसमें अंतर्राष्ट्रीय कार्यवाहियाँ भी शामिल की हैं, जिससे सीमा पार आतंकवाद से निपटने में भारत की क्षमता में सुधार हुआ है।
- बढ़ी हुई सीमा सुरक्षा: भारत ने विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर में संवेदनशील सीमाओं पर स्मार्ट फेंसिंग, ड्रोन, और यूएवी (UAVs) में निवेश किया है। ये उपाय सीमा पार घुसपैठ की घटनाओं को कम करते हैं और स्थितिगत जागरूकता को बढ़ाते हैं।
- प्रतिगामी सोच के विरुद्ध अभियान और सामुदायिक सहभागिता: भारत की कट्टरपंथ विरोधी पहल, वैचारिक उग्रवाद और स्थानीय शिकायतों सहित आतंकवाद के मूल कारणों को दूर करने पर केंद्रित है।
- समुदायों के साथ सहभागिता, विशेषकर कश्मीर जैसे संघर्ष क्षेत्रों में, युवाओं को आतंकवादी समूहों में शामिल होने से रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- उदाहरण: जम्मू और कश्मीर में ऑपरेशन सद्भावना का उद्देश्य विभिन्न कल्याणकारी गतिविधियों और विकास परियोजनाओं के माध्यम से स्थानीय आबादी का "दिल और दिमाग" जीतना है।
- कूटनीतिक और आर्थिक लाभ: आर्थिक प्रतिबंधों और समझौतों को रद्द करने सहित भारत के कूटनीतिक उपायों का लक्ष्य आतंकवादियों को पनाह देने वाले देश, विशेष रूप से पाकिस्तान हैं।
- हाल में, भारत ने सिंधु जल संधि (IWT) को निलंबित किया, जो यह दर्शाता है कि भारत अब राजनयिक साधनों का रणनीतिक उपयोग करके आतंकवाद का मुकाबला कर रहा है।
सीमा पार आतंकवाद पर अंकुश लगाने में प्रभावशीलता का मूल्यांकन:
- सफलता
- सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट हवाई हमलों जैसी भारत की त्वरित प्रतिक्रियाओं ने जवाबी कार्रवाई का स्पष्ट संदेश दिया है, जिससे आतंकवादी नेटवर्क ध्वस्त हो गए हैं तथा भविष्य में होने वाले हमलों पर रोक लगाई गई है।
- NIA और RAW जैसी एजेंसियों के माध्यम से खुफिया जानकारी साझा करने से भारत भर में सक्रिय कई आतंकवादी समूहों को सफलतापूर्वक नष्ट करने में मदद मिली है।
- भारत की रक्षा क्षमताएँ बुनियादी जमीनी बलों से लेकर S-400 जैसी उन्नत वायु रक्षा प्रणालियों तक विकसित हो चुकी हैं।
- इससे भारत की हवाई खतरों से निपटने की क्षमता बढ़ गई है, जिसमें ड्रोन और मिसाइलों का उपयोग करने वाले आतंकवादी संगठनों द्वारा उत्पन्न खतरे भी शामिल हैं।
- चुनौतियाँ
- भारत की सैन्य प्रतिक्रिया के बावजूद, पाकिस्तान अपनी सेना और खुफिया एजेंसियों के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद को समर्थन देना जारी रखे हुए है।
- लगातार कूटनीतिक दबाव के अभाव के कारण कभी-कभी पाकिस्तान को गंभीर परिणामों से बचने का मौका मिल जाता है।
- पुलवामा हमले (2019) जैसे आतंकवादी हमले दर्शाते हैं कि दंडात्मक कार्रवाई के बावजूद सीमापार आतंकवाद एक सतत् खतरा बना हुआ है।
- स्थानीय कट्टरपंथ और साइबर आतंकवाद लगातार बढ़ते खतरे उत्पन्न कर रहे हैं, जिनका मुकाबला केवल पारंपरिक सैन्य उपायों से करना कठिन है।
- भारत की सैन्य प्रतिक्रिया के बावजूद, पाकिस्तान अपनी सेना और खुफिया एजेंसियों के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद को समर्थन देना जारी रखे हुए है।
निष्कर्ष:
भारत की आतंकवाद-रोधी रणनीति में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है, जो अब आक्रामक प्रतिरक्षा और रक्षात्मक आक्रमण के संतुलन पर आधारित है, जिसे डोभाल सिद्धांत में समाहित किया गया है। भविष्य की रणनीति को "समूची सरकार के दृष्टिकोण" पर केंद्रित होना चाहिये, जिसमें सभी सरकारी विभाग, एजेंसियाँ और स्तर समन्वित रूप से कार्य करें। साथ ही, रणनीति को निरंतर परिवर्तनशील और अनुकूलनशील बनाए रखना आवश्यक है ताकि पारंपरिक आतंकवाद हो या साइबर युद्ध जैसे आधुनिक खतरे—हर प्रकार के आतंक को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सके। जैसा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सही कहा है,
"यह युद्ध का युग नहीं है, लेकिन आतंकवाद का भी नहीं है।" यह संदेश भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि वह हर स्वरूप में आतंकवाद का डटकर मुकाबला करेगा।
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