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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. चिकित्सा अनुप्रयोगों, विशेषकर दवा वितरण प्रणालियों में नैनो प्रौद्योगिकी की भूमिका की जाँच कीजिये। इसके व्यापक उपयोग से जुड़े संभावित स्वास्थ्य जोखिम और नियामक चुनौतियाँ क्या हैं? (250 शब्द)

    02 Jul, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • चिकित्सा में नैनो प्रौद्योगिकी के बारे में उदाहरण सहित संक्षिप्त जानकारी देकर उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • चिकित्सा अनुप्रयोगों में नैनो प्रौद्योगिकी की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
    • संभावित स्वास्थ्य जोखिमों और विनियामक चुनौतियों पर गहन विचार कीजिये।
    • चिकित्सा में नैनो प्रौद्योगिकी के जिम्मेदार उपयोग के लिये उपाय सुझाएँ
    • उपर्युक्त निष्कर्ष निकालें

    परिचय:

    नैनो प्रौद्योगिकी, विशेषकर दवा वितरण प्रणाली में, तेजी से आगे बढ़ रही है, जिससे स्वास्थ्य सेवा में परिवर्तनकारी संभावनाएँ उत्पन्न हो रही हैं। उदाहरण के लिये नैनोकण-आधारित कोविड-19 टीके (जैसे फाइजर-बायोएनटेक) mRNA पहुँचाने के लिये लिपिड नैनोकणों का उपयोग करते हैं, जिससे टीकों की दक्षता और लक्ष्यीकरण में काफी सुधार होता है।

    चिकित्सा अनुप्रयोगों में नैनो प्रौद्योगिकी की भूमिका

    • लक्षित दवा वितरण: नैनोकणों के माध्यम से दवाओं को सीधे प्रभावित क्षेत्रों तक पहुँचाया जा सकता है, जिससे प्रणालीगत दुष्प्रभाव कम हो जाते हैं।
      • उदाहरण के लिये डोक्सिल, जो कि कीमोथेरेपी दवा डोक्सोरूबिसिन का एक लिपोसोमल फार्मूलेशन है, कैंसर कोशिकाओं को अधिक कुशलता से लक्षित करता है तथा स्वस्थ कोशिकाओं को होने वाली हानि को न्यूनतम करता है।
    • उन्नत जैवउपलब्धता: नैनोकण अवशोषण और वितरण में सुधार करके खराब घुलनशील दवाओं की जैवउपलब्धता बढ़ाते हैं।
      • इसका एक उदाहरण पैक्लिटैक्सेल जैसी दवाओं के नैनोक्रिस्टल फॉर्मूलेशन हैं जो कैंसर उपचार की प्रभावकारिता में सुधार करते हैं।
    • नियंत्रित एवं सतत् विमोचन: नैनो प्रौद्योगिकी दवाओं को समय के साथ विमोचित करने में सक्षम बनाती है, जिससे निरंतर चिकित्सीय स्तर सुनिश्चित होता है।
      • चुंबकीय नैनोकणों का उपयोग ट्यूमर को लक्षित करने और नियंत्रित तरीके से दवा जारी करने के लिये किया जा सकता है, जिससे कैंसर के उपचार में सुधार होगा और बार-बार दवा देने की आवश्यकता कम होगी।
    • जीन थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी: जीन थेरेपी के लिये कोशिकाओं तक आनुवंशिक सामग्री पहुँचाने के लिये नैनोकणों का उपयोग किया जा सकता है।
      • इसके अलावा, नैनोकणों का उपयोग टीकों में सहायक के रूप में किया जा रहा है, जिससे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बढ़ती है। उदाहरण के लिये, नैनोकण-आधारित HIV टीके प्रतिरक्षा में सुधार करने में आशाजनक साबित होते हैं।
    • निदान और इमेजिंग: नैनोमटेरियल इमेजिंग को बढ़ाकर निदान तकनीकों में सुधार करते हैं। कैंसर जैसी बीमारियों के लिये परीक्षणों के रिज़ॉल्यूशन और संवेदनशीलता को बढ़ाने हेतु सीटी स्कैन और MRI जैसी इमेजिंग तकनीकों में सोने के नैनोकणों का उपयोग किया जा रहा है।

    संभावित स्वास्थ्य जोखिम

    • विषाक्तता: अपने छोटे आकार और उच्च सतह क्षेत्र के कारण, नैनोकण विषाक्त प्रभाव दिखा सकते हैं। उदाहरण के लिये, चांदी के नैनोकण शरीर में ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन उत्पन्न कर सकते हैं।
    • अनपेक्षित वितरण: नैनोकण यकृत, गुर्दे और तिल्ली जैसे अंगों में जमा हो सकते हैं, जिससे समय के साथ अंगों को नुकसान या शिथिलता हो सकती है। यदि नैनोकणों को शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता है, तो यह संचय अप्रत्याशित परिणाम भी उत्पन्न कर सकता है।
    • प्रतिरक्षा प्रणाली सक्रियण: नैनोकण प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय कर सकते हैं, जिससे सूजन या एलर्जी हो सकती है।
      • उदाहरण के लिये, कार्बन नैनोट्यूब को सांस के माध्यम से अंदर लेने पर फेफड़ों से जुड़ी समस्याओं से जोड़ा गया है, जिससे सांस के माध्यम से उपचार में उनके उपयोग को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
    • अज्ञात दीर्घकालिक प्रभाव: शरीर के भीतर नैनोकणों के दीर्घकालिक प्रभाव पूरी तरह से समझ में नहीं आये हैं।
      • जैविक प्रणालियों के साथ निरंतर संचय या अंतःक्रिया से दीर्घकालिक रोग या अन्य अप्रत्याशित स्वास्थ्य जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • पर्यावरणीय जोखिम: यदि नैनो कण पारिस्थितिक तंत्र में प्रवेश कर जाएँ तो वे पर्यावरणीय जोखिम भी उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे पौधों, पशुओं और मानव स्वास्थ्य पर संभावित रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

    विनियामक चुनौतियाँ:

    • स्पष्ट विनियमनों का अभाव: वर्तमान चिकित्सा विनियमन पारंपरिक दवाओं और उपकरणों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं तथा यह नैनोमटेरियल के अद्वितीय गुणों को ध्यान में रखकर तैयार नहीं किये गए हैं।
      • उदाहरण के लिये, विषाक्तता के परीक्षण के मौज़ूदा मानक आणविक स्तर पर नैनोकणों के व्यवहार को ध्यान में नहीं रख सकते हैं।
    • सुरक्षा और विषाक्तता परीक्षण: पारंपरिक सुरक्षा प्रोटोकॉल नैनोमटेरियल के जोखिमों को पूरी तरह से नहीं पकड़ पाते हैं।
      • जैविक प्रणालियों में नैनोकणों के विशिष्ट व्यवहार को ध्यान में रखते हुए नए परीक्षण प्रोटोकॉल विकसित किये जाने चाहिये, ताकि नैदानिक ​​उपयोग के लिये उन्हें अनुमोदित करने से पहले उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
    • असंगत वैश्विक मानक: नैनोमेडिसिन को विनियमित करने के लिये विभिन्न देशों के दृष्टिकोण अलग-अलग हैं।
      • इससे नैनोटेक्नोलॉजी आधारित उपचारों की वैश्विक स्वीकृति और मानकीकरण के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। असंगत नियमन इन उपचारों को व्यापक रूप से अपनाने में भी देरी कर सकते हैं।
    • नैतिक विचार: नैनो प्रौद्योगिकी नैतिक चिंताओं को जन्म (विशेष रूप से आणविक स्तर पर मानव जीव विज्ञान को बदलने की इसकी क्षमता के संबंध में) देती है।
      • सूचित सहमति, गोपनीयता और दुरुपयोग की संभावना (जैसे, जीन थेरेपी में) जैसे मुद्दों को व्यापक रूप से अपनाने से पहले सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।

    चिकित्सा में नैनो प्रौद्योगिकी के ज़िम्मेदार उपयोग के लिये उपाय:

    • कठोर सुरक्षा परीक्षण:
      • इन विवो और इन विट्रो परीक्षण: नैनोमटेरियल की विषाक्तता और दीर्घकालिक प्रभावों का आकलन करने के लिये विशेष प्रोटोकॉल विकसित करना और उन्हें लागू करना है।
        • यह सुनिश्चित करना कि नैनोकणों का मानव ऊतकों और जैविक प्रणालियों के साथ उनकी अंतःक्रिया का अनुकरण करने के लिये उन्नत परीक्षण मॉडलों का उपयोग करते हुए गहन सुरक्षा मूल्यांकन किया जाए।
      • नैनोटॉक्सिकोलॉजी अनुसंधान: जैविक वातावरण में नैनोमटेरियल के व्यवहार को समझने, अंगों में किसी भी संभावित हानिकारक अंतःक्रिया या संचय की पहचान करने पर केंद्रित अनुसंधान में निवेश करना।
    • मानकीकृत विनियामक ढाँचे
      • स्पष्ट, एकीकृत वैश्विक विनियम: सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों (जैसे, WHO, FDA, EMA) को चिकित्सा में नैनो प्रौद्योगिकी के लिये विशेष रूप से डिज़ाइन किये गए स्पष्ट और मानकीकृत विनियम विकसित करने की आवश्यकता है।
        • इसमें सुरक्षा प्रोटोकॉल, अनुमोदन प्रक्रिया तथा किसी भी प्रतिकूल प्रभाव की निगरानी के लिये बाज़ार में आने के बाद की निगरानी शामिल है।
      • अनुकूल विनियामक मार्ग: नियामकों को नैनो प्रौद्योगिकी में तेजी से हो रही प्रगति के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये अनुकूल और अनुकूली ढाँचे को अपनाना चाहिये।
        • इसमें अच्छी तरह से अध्ययन किये गए नैनोकणों के लिये तेजी से अनुमोदन प्रक्रिया और बाज़ार में आने के बाद उनकी निरंतर निगरानी शामिल हो सकती है।
    • नैतिक निरीक्षण
      • नैतिक समीक्षा बोर्ड: नैनोमेडिसिन अनुप्रयोगों को उनके निहितार्थों का आकलन करने के लिये नैतिक समीक्षा से गुजरना चाहिये, विशेष रूप से जीन थेरेपी जैसे क्षेत्रों में, जहां जैविक परिवर्तन शामिल हैं।
        • इन समीक्षाओं से यह सुनिश्चित होना चाहिये, कि संभावित उपचारों में रोगी के अधिकारों और स्वायत्तता का सम्मान किया जाए।
      • सूचित सहमति: मरीजों को नैनो-प्रौद्योगिकी आधारित उपचारों के संभावित जोखिमों और लाभों के बारे में पूरी जानकारी दी जानी चाहिये, विशेष रूप से नैनोकणों के उपयोग के संबंध में, जिनके दीर्घकालिक प्रभाव अज्ञात हो सकते हैं।
    • पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम करना:
      • सतत् उत्पादन: पारिस्थितिक प्रभावों को कम करने के लिये नैनोकणों और अन्य नैनो सामग्रियों के उत्पादन में पर्यावरण के अनुकूल सामग्रियों के उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिये।
        • इसमें जब भी संभव हो, बायोडिग्रेडेबल या गैर विषैले पदार्थों का उपयोग करना शामिल है।
      • अपशिष्ट निपटान विनियम: नैनो सामग्रियों के लिये उचित निपटान विधियाँ स्थापित करना साथ ही यह सुनिश्चित करना कि पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिये नैनोकणों वाले किसी भी अपशिष्ट को सावधानीपूर्वक संभाला जाए।
    • जन जागरूकता और शिक्षा
      • जनता को शामिल करना: सरकारों, विनियामक निकायों और शोध संस्थानों को नैनो प्रौद्योगिकी के लाभों और जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाते हुए जनता के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिये। यह पारदर्शिता विश्वास को कायम रखने में मदद करती है तथा रोगियों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा सूचित निर्णय लेने में सुविधा प्रदान करती है।
      • शैक्षिक कार्यक्रम: नैनोमेडिसिन के सुरक्षित और ज़िम्मेदार उपयोग में भावी स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित करने के लिये चिकित्सा और वैज्ञानिक पाठ्यक्रम में नैनो प्रौद्योगिकी को शामिल करना।

    निष्कर्ष:

    नैनोप्रौद्योगिकी चिकित्सा क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की अपार संभावनाएँ रखती है, विशेष रूप से दवा वितरण, नैदानिक प्रक्रियाओं, और इम्यूनोथेरेपी के क्षेत्र में। हालाँकि, इसके व्यापक उपयोग में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर जोखिम और नियामक चुनौतियाँ प्रमुख बाधाएँ हैं। इन चुनौतियों का समाधान एक सतर्क और संतुलित दृष्टिकोण से किया जाना चाहिये, जिसमें 3N शामिल हैं: नवाचार को पोषित करना (Nurturing Innovation), सुरक्षा की दिशा में मार्गदर्शन (Navigating Safety) और विनियमन को समझदारी से संभालना (Navigating Regulations)।

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