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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 15 May, 2025
  • 14 min read
रैपिड फायर

औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITIs) के उन्नयन हेतु राष्ट्रीय योजना

स्रोत: बीएस

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पाँच वर्षों में 1,000 सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITI) को उन्नत करने के लिये 60,000 करोड़ रुपए की योजना को मंजूरी दी है, साथ ही कौशल विकास के लिये पाँच राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र (NCOEs) भी स्थापित किए जाएंगे।

  • इसका वित्तपोषण केंद्र, राज्य और उद्योगों द्वारा किया जाएगा तथा ADB और विश्व बैंक केंद्रीय हिस्से का 50% सह-वित्तपोषण करेंगे।
  • यह हब-एंड-स्पोक मॉडल के तहत ITI को उद्योग-प्रासंगिक व्यवसायों से उन्नत बनाने पर केंद्रित है, साथ ही ऑटोमेशन, AI और उन्नत विनिर्माण जैसे पूंजी-गहन क्षेत्रों में 20 लाख युवाओं को नवयुगीन कौशल प्रदान करने को बढ़ावा देता है।
  • 50,000 प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिये भुवनेश्वर, चेन्नई, हैदराबाद, कानपुर और लुधियाना में मौजूदा राष्ट्रीय कौशल प्रशिक्षण संस्थानों (NSTI) में कौशल विकास के लिये पाँच राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये जाएंगे।
    • NSTI मुख्य रूप से प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हैं,  वर्तमान में संपूर्ण भारत में 33 NSTI हैं। 
  • उद्योग-नेतृत्व आधारित SPV मॉडल पाठ्यक्रम नियोजन, बुनियादी ढाँचे और प्रबंधन को संचालित करेगा, जो सरकारी एकाधिकार से सार्वजनिक-निजी सहयोग की ओर एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है।
  • औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र हैं जो विद्युत, यांत्रिकी, काष्ठकला (कारपेंटरी), प्लंबिंग और कंप्यूटर प्रौद्योगिकी जैसे व्यवसायों में प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।
    • कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) के अंतर्गत प्रशिक्षण महानिदेशालय (DGT) ITI की संबद्धता एवं मान्यता के लिये शीर्ष संगठन है।

और पढ़ें: कौशल भारत कार्यक्रम का पुनर्गठन  


रैपिड फायर

डोंगरिया कोंध जनजाति

स्रोत: TH

ओडिशा के नियामगिरि पहाड़ियों में निवासरत डोंगरिया कोंध एक विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG) हैं, जो प्रकृति के साथ अपने आध्यात्मिक बंधन और विशिष्ट संस्कृति के लिये जाने जाते हैं।

  • डोंगरिया कोंध जनजाति: वे पहाड़ियों के देवता नियम राजा की पूजा करते हैं और पोडु (स्थानांतरित) खेती जैसी परंपराओं का पालन करते हैं।
    • वे कुई नामक एक प्राचीन द्रविड़ भाषा बोलते हैं और पीढ़ियों से गीतों और नृत्य की मौखिक परंपराओं के माध्यम से अपने पूर्वजों का ज्ञान संजोते हैं (इस भाषा की कोई लिपि नहीं है)।
    • इस जनजाति की कई उप-जनजातियाँ हैं, जैसे कोवी, कुट्टिया, लंगुली, पेंगा, और झर्निया (झरनों की रक्षक)।
  • भूमि पर अधिकार: वर्ष 2000 के दशक में इस जनजाति ने वेदांता कंपनी की अपनी भूमि पर खनन परियोजनाओं का दृढ़ता से विरोध किया।
    • यह विरोध वर्ष 2013 में एक ऐतिहासिक सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में परिणत हुआ, जिसमें ग्राम सभा को अपनी भूमि पर खनन परियोजनाओं को अस्वीकार करने का संवैधानिक अधिकार दिया गया।
  • PVTG: यह अनुसूचित जनजातियों की एक उप-श्रेणी है, जिन्हें सामान्य अनुसूचित जनजातियों की तुलना में अधिक संवेदनशील माना जाता है।
    • भारत में कुल 75 PVTGs हैं, जिनमें सबसे अधिक (13) ओडिशा में हैं, इसके बाद आंध्र प्रदेश में 12 हैं।
  • नियमगिरि पर्वत शृंखला: यह ओडिशा के कालाहांडी और रायगढ़ ज़िलों में स्थित है, इसकी सीमा उत्तर-पश्चिम में करलापट वन्यजीव अभयारण्य और उत्तर-पूर्व में कोटगढ़ वन्यजीव अभयारण्य से लगती है।

PVTG

और पढ़ें: डोंगरिया कोंध जनजाति


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बॉण्ड फॉरवर्ड

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के बॉण्ड फॉरवर्ड्स संबंधी मानदंडों का उद्देश्य भारत में सरकारी प्रतिभूतियों में फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स के व्यापार के लिये एक विनियमित ढाँचा स्थापित करना है।

  • फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट दो पक्षों के बीच किसी परिसंपत्ति को किसी निर्दिष्ट भविष्य की तिथि पर पूर्व निर्धारित मूल्य पर खरीदने या बेचने के लिये किये गए अनुकूलित समझौते हैं।

Forward_Contracts

बॉण्ड फॉरवर्ड

  • परिचय: बॉण्ड फॉरवर्ड वित्तीय अनुबंध हैं, जिसमें दो पक्ष भविष्य की तिथि और पूर्व-निर्धारित मूल्य पर सरकारी बॉण्ड (केंद्रीय या राज्य) खरीदने या बेचने के लिये सहमत होते हैं, जो ब्याज दर जोखिमों के प्रबंधन हेतु एक नया उपकरण प्रदान करता है।
  • उद्देश्य: दीर्घकालिक निवेशकों (जैसे बीमा कंपनियाँ) को ब्याज दर जोखिम से बचाव में सहायता करना, नकदी प्रवाह नियोजन में सुधार करना तथा बॉण्ड डेरिवेटिव बाज़ार को गहन बनाना।
    • अविनियमित FRA (फॉरवर्ड रेट एग्रीमेंट) के विपरीत, जो केवल नकद निपटान की पेशकश करते हैं, जबकि बॉण्ड फॉरवर्ड में बॉण्ड की वास्तविक डिलीवरी शामिल होती है, जो ऐसे निवेशकों की आवश्यकताओं के साथ बेहतर ढंग से संरेखित होती है।
  • बाज़ार प्रभाव: बॉण्ड फॉरवर्ड से 10-15-वर्षीय राज्य विकास ऋण (SDL) की मांग बढ़ने की संभावना है, जो उच्चतर प्रतिफल प्रदान करते हैं (उदाहरण के लिये, SDL पर 6.71% बनाम केंद्रीय सरकार के बॉण्ड पर 6.41%), जो उन्हें फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स के लिये आकर्षक बनाता है।
  • प्रतिभागी: विदेशी मुद्रा प्रबंधन (ऋण उपकरण) विनियम, 2019 के तहत सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने के लिये पात्र निवासी और गैर-निवासी बॉण्ड फॉरवर्ड लेनदेन में भाग ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त गैर-खुदरा उपयोगकर्त्ता के रूप में वर्गीकृत किसी भी इकाई को उपयोगकर्त्ता के रूप में ऐसे लेनदेन करने की अनुमति है।

अधिक पढ़ें: बॉण्ड यील्ड 


रैपिड फायर

संशोधित शक्ति नीति 2025

स्रोत: पी.आई.बी

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने कोयले की उपलब्धता बढ़ाने और विद्युत क्षेत्र में कारोबार को आसान बनाने के लिये कोयला आवंटन हेतु संशोधित शक्ति नीति को स्वीकृति दी।

  • शक्ति नीति (वर्ष 2017) का उद्देश्य नामांकन-आधारित प्रणाली से नीलामी या टैरिफ-आधारित बोली-प्रक्रिया की ओर बढ़कर कोयला आवंटन को पारदर्शी बनाना है।
  • संशोधित नीति की मुख्य विशेषताएँ: इसमें कारोबार को आसान बनाने के लिये आठ पुरानी श्रेणियों के स्थान पर दो सुव्यवस्थित विंडो- विंडो-I और विंडो-II की शुरुआत की गई है।
    • विंडो-I (अधिसूचित मूल्य पर कोयला): संयुक्त उद्यमों (JV) और सहायक कंपनियों सहित सरकारी स्वामित्व वाले ताप विद्युत संयंत्रों के लिये कोयले की आपूर्ति निश्चित मूल्य पर की जाएगी।
    • विंडो-II (अधिसूचित मूल्य से अधिक प्रीमियम): विद्युत उत्पादक अधिसूचित मूल्य से अधिक प्रीमियम पर नीलामी के माध्यम से कोयला प्राप्त कर सकते हैं।
      • उन्हें दीर्घकालिक (25 वर्ष तक) या अल्पकालिक (12 महीने तक) अनुबंधों के माध्यम से विद्युत बेचने में लचीलापन प्रदान करना।
  • कोयला: भारत में विश्व का 5 वाँ सबसे बड़ा कोयला भंडार है और यह दूसरा सबसे बड़ा कोयला उपभोक्ता है। 
    • कोयला अभी भी महत्त्वपूर्ण है, जो भारत के ऊर्जा मिश्रण में 55% का योगदान देता है तथा 74% से अधिक विद्युत उत्पादन को शक्ति प्रदान करता है।
    • ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ भारत के शीर्ष तीन कोयला समृद्ध राज्य हैं , जिनके पास देश के कुल कोयला भंडार का लगभग 69% हिस्सा है।

और पढ़ें: कोकिंग कोल एक महत्त्वपूर्ण खनिज


रैपिड फायर

MSME क्षेत्र में अंतराल

स्रोत: द हिंदू

भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI) द्वारा जारी रिपोर्ट "भारतीय MSME क्षेत्र की समझ: प्रगति और चुनौतियाँ" में समय पर और पर्याप्त ऋण की कमी को भारत में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के लिये प्रमुख चुनौती के रूप में चिन्हित किया गया है।

  • मुख्य निष्कर्ष: अनौपचारिक उधारी अभी भी प्रचलित है, जहाँ 12% सूक्ष्म उद्यम, 3% लघु उद्योग, और कुल मिलाकर 2% MSME अब भी अनौपचारिक ऋण स्रोतों पर निर्भर हैं।
    • MSME क्षेत्र को 24% का ऋण अंतराल का सामना करना पड़ रहा है, जो लगभग 30 लाख करोड़ रुपए है। सेवा क्षेत्र में यह अंतराल 27% तक बढ़ गया है और महिलाओं के स्वामित्व वाले MSME के लिये यह 35% तक पहुँच गया है।
    • MSME में 25% इकाइयाँ कुशल मानव संसाधन की कमी, विशेष रूप से रक्षा, परिधान, होटल और सेनेटरीवेयर क्षेत्रों में, का सामना कर रही हैं।
  • SIDBI: यह एक वैधानिक निकाय है, जिसकी स्थापना सिडबी अधिनियम, 1989 के तहत की गई थी, और यह भारत में MSME क्षेत्र के संवर्द्धन, वित्तपोषण और विकास के लिये प्रमुख वित्तीय संस्था के रूप में कार्य करता है।
    • SIDBI, जिसका मुख्यालय लखनऊ, उत्तर प्रदेश में स्थित है, भारत सरकार की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक संस्था है।
  • भारत में MSME का वर्तमान परिदृश्य: MSME अब भारत के सकल मूल्य संवर्द्धन (GVA) (2022–23) में 30.1% का योगदान देते हैं, जो वर्ष 2020–21 में 27.3% था।
    • MSME से निर्यात ₹3.95 लाख करोड़ (2020–21) से बढ़कर ₹12.39 लाख करोड़ (2024–25) हो गया है, जिससे वर्ष 2024 तक कुल निर्यात में उनका हिस्सा 45.79% तक पहुँच गया है।

MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) का नया वर्गीकरण:

प्रकार

निवेश

टर्नओवर

वर्तमान

संशोधित

वर्तमान

संशोधित

सूक्ष्म उद्यम

₹1 करोड़

₹2.5 करोड़

₹5 करोड़

₹10 करोड़

लघु उद्यम

₹10 करोड़

₹25 करोड़

₹50 करोड़

₹100 करोड़

मध्यम उद्यम

₹50 करोड़

₹125 करोड़

₹250 करोड़

₹500 करोड़

स्रोत: बजट 2025-2026, निर्मला सीतारमण का भाषण, केंद्रीय वित्त मंत्री, 1 फरवरी 2025

और पढ़ें: केंद्रीय बजट 2025-26 में MSME को बढ़ावा देने के उपाय


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