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प्रिलिम्स फैक्ट्स

रैपिड फायर

डीज़ल के साथ आइसोब्यूटेनॉल सम्मिश्रण

स्रोत: द हिंदू

भारत अब इथेनॉल-डीज़ल परीक्षणों में असफलता के बाद डीज़ल के साथ आइसोब्यूटेनॉल सम्मिश्रण की संभावना तलाश रहा है, जो किसानों को समर्थन देने, तेल आयात को कम करने और सतत् ऊर्जा उपयोग सुनिश्चित करने हेतु जैव ईंधन के लिये सरकार के प्रयास को दर्शाता है।

  • आइसोब्यूटेनॉल: यह एक चार-कार्बन वाला अल्कोहल (C₄H₁₀O) है, जो ज्वलनशील, रंगहीन होता है तथा परंपरागत रूप से पेंट, कोटिंग्स एवं रासायनिक उद्योगों में विलायक के रूप में उपयोग किया जाता है। इसका उत्पादन पेट्रोकेमिकल प्रक्रियाओं तथा बायोमास के किण्वन दोनों से किया जाता है। 
  • गुण (इथेनॉल के विपरीत): इसमें इथेनॉल की तुलना में अधिक ऊर्जा घनत्व होता है (डीज़ल के अधिक निकट)। 
    • इसकी आर्द्रताग्राही क्षमता (Hygroscopicity) कम होती है (इथेनॉल की अपेक्षा कम पानी अवशोषित करता है), जिससे इंजनों और पाइपलाइनों में क्षरण का जोखिम घटता है। 
  • आइसोब्यूटेनॉल सम्मिश्रण परीक्षण: ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI) 10% आइसोब्यूटेनॉल–डीज़ल सम्मिश्रण का परीक्षण कर रही है। 
    • आइसोब्यूटेनॉल को एक वैकल्पिक ईंधन के रूप में तथा ट्रैक्टरों और कृषि-यंत्रों के लिये संपीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG)-आइसोब्यूटेनॉल फ्लेक्स-फ्यूल विकल्पों के रूप में भी खोजा जा रहा है। 
  • भारत के लिये लाभ: आइसोब्यूटेनॉल ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाता है और जीवाश्म ईंधनों के लिये एक स्वच्छ विकल्प को प्रोत्साहित करता है। यह भारत की राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति (2018) के ऊर्जा संक्रमण और किसान आय समर्थन के लक्ष्यों का भी समर्थन करता है।
और पढ़ें: भारत ने हासिल किया पेट्रोल में 20% इथेनॉल सम्मिश्रण का लक्ष्य 

रैपिड फायर

समुद्र प्रदक्षिणा

स्रोत: पी.आई.बी. 

रक्षा मंत्री ने विश्व के पहले तीनों सेनाओं की महिला नौकायन अभियान ‘समुद्र प्रदक्षिणा’ को हरी झंडी दिखाई, जो नारी शक्ति, सशस्त्र बलों की एकजुटता, आत्मनिर्भर भारत और भारत के समुद्री दृष्टिकोण का प्रतीक है। 

  • यह अभियान कैप्टन दिलीप डोंडे (2009-10), कमांडर अभिलाष टॉमी (2012-13), और भारतीय नौसेना की नाविका सागर परिक्रमा (2017-18) और नाविका सागर परिक्रमा-II (2024-25) द्वारा भारत की पूर्व की गई परिक्रमा यात्राओं पर आधारित है। 
  • अभियान: इस दल का नेतृत्व लेफ्टिनेंट कर्नल अनुजा वरुडकर कर रही हैं। इसमें 10 महिला अधिकारी शामिल हैं, जो स्वदेशी रूप से निर्मित भारतीय सेना नौकायन पोत (IASV) त्रिवेणी पर 9 माह तक नौकायन करेंगी और लगभग 26,000 समुद्री मील की दूरी तय करेंगी। 
    • उनका मार्ग दो बार भूमध्य रेखा (Equator) को पार करेगा तथा तीन महत्त्वपूर्ण केप (ल्यूविन (Leeuwin), हॉर्न (Horn) और गुड होप (Good Hope)) की परिक्रमा करेगा, जिसमें चुनौतीपूर्ण दक्षिणी महासागर और ड्रेक पैसेज (Drake Passage) भी शामिल हैं। 
    • वे फ्रेमेंटल (ऑस्ट्रेलिया), लिटलटन (न्यूज़ीलैंड), पोर्ट स्टेनली (कनाडा) और केप टाउन (दक्षिण अफ्रीका) में अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाहों पर रुकेंगी, जिससे भारत की समुद्री कूटनीति को सुदृढ़ता मिलेगी। 
    • इस अभियान का एक वैज्ञानिक आयाम भी है, जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (NIO) के सहयोग से माइक्रोप्लास्टिक, समुद्री जैव विविधता और महासागरीय स्वास्थ्य पर अध्ययन किया जाएगा। 
  • वैश्विक मानक: यह अभियान वर्ल्ड सेलिंग स्पीड रिकॉर्ड काउंसिल के नियमों का पालन करता है, जिसमें सभी देशांतर रेखाओं को पार करना, भूमध्य रेखा को पार करना और केवल पाल की सहायता से 21,600 समुद्री मील से अधिक की दूरी पूरी करना शामिल है। इसमें नहरों या यांत्रिक शक्ति वाले परिवहन का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे यह वास्तविक सहनशक्ति की परीक्षा बन जाता है।
और पढ़ें: नाविका सागर परिक्रमा II

रैपिड फायर

पश्चिमी घाट में ब्लैक एस्परगिलस

स्रोत: PIB

शोधकर्त्ताओं ने पश्चिमी घाट में एस्परगिलस सेक्शन निगरी (जिसे आमतौर पर ब्लैक एस्परगिलस के रूप में जाना जाता है) की दो नई प्रजातियों, एस्परगिलस ढाकेफाल्करी और एस्परगिलस पेट्रीसियाविल्टशायरी की पहचान की है, जो उन्नत पॉलीफेसिक टैक्सोनॉमी (कवक विज्ञान) का उपयोग करके इस समूह में भारत का पहला अध्ययन है।

  • पश्चिमी घाट यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है और जैव विविधता के आठ "सबसे गर्म हॉटस्पॉट्स" में से एक है। 

ब्लैक एस्परगिलस 

  • यह विभिन्न पारिस्थितिक स्थानों में सर्वत्र पाए जाने वाले तंतुमय कवकों (filamentous fungi) का एक विविध समूह है, जो चिकित्सकीय, औद्योगिक और पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • इन्हें ‘औद्योगिक अनुप्रयोगों के वर्कहॉर्स’ (workhorses of industrial application) के रूप में भी जाना जाता है, विशेषकर साइट्रिक अम्ल उत्पादन, खाद्य माइकोलॉजी, किण्वन प्रौद्योगिकी और कृषि में। 

विश्व के 8 सबसे गर्म जैवविविधता हॉटस्पॉट

  • अपनी असाधारण प्रजाति समृद्धि और स्थानिकता के कारण 8 को "सबसे गर्म स्थान" के रूप में मान्यता प्राप्त है। 
    • मेडागास्कर: यहाँ की 90% वन्य प्रजातियाँ पृथ्वी पर कहीं और नहीं पाई जाती, जिसमे लंगूर (लीमर), गिरगिट और बाओबाब वृक्ष शामिल है। 
    • फिलीपींस: 52,000 से अधिक प्रजातियाँ, समृद्ध वर्षावन, प्रवाल भित्तियाँ और मैंग्रोव वन, इसमें फिलीपीन ईगल और टार्सियर शामिल हैं। 
    • सुंडालैंड (दक्षिण-पूर्व एशिया): सबसे प्राचीन उष्णकटिबंधीय वर्षावन, ओरंगउटान, , सुमात्रा बाघ, पिग्मी हाथी पाए जाते हैं। 
    • ब्राज़ील के अटलांटिक वन:  केवल लगभग 12% शेष यहाँ गोल्डन लायन टैमरिन, स्लॉथ और विविध पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। 
    • कैरेबियन द्वीपसमूह: 7,000 से अधिक द्वीप; उष्णकटिबंधीय वन, प्रवाल भित्तियाँ, मैंग्रोव वन,  अद्वितीय पक्षी, सरीसृप और उभयचर। 
    • इंडो-बर्मा क्षेत्र: पूर्वोत्तर भारत से वियतनाम तक, यहाँ साओला पाई जाती है, जो अत्यधिक संकटग्रस्त है। 
    • पश्चिमी घाट और श्रीलंका – स्थानिक प्रजातियाँ जैसे शेरपूँछ मकाक, नीलगिरि तहर और श्रीलंकाई तेंदुआ। 
    • ईस्टर्न आर्क और तटीय वन (तंजानिया और केन्या) – प्राचीन वन, स्थानिक उल्लू, कोलोबस बंदर और विशिष्ट पौधे पाए जाते हैं।

Biodiversity Hotspot in India

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