प्रारंभिक परीक्षा
मलेरिया उन्मूलन में TR1 कोशिकाओं की भूमिका
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
एक नए अध्ययन से पता चला है कि मलेरिया के प्रति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के मुख्य प्रेरक TH1 कोशिकाएँ नहीं, बल्कि TR1 (टाइप-1 रेग्युलेटरी T-कोशिकाएँ) हैं, जिससे पहले के अनुमान को चुनौती मिली है।
TR1 कोशिकाएँ क्या हैं?
- परिचय: TR1 कोशिकाएँ या टाइप-1 रेग्युलेटरी कोशिकाएँ, CD4+ हेल्पर T-कोशिकाओं का एक विशेष समूह हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- अन्य T-कोशिकाओं के विपरीत जो मुख्य रूप से रोगजनकों (पैथोजेन्स) पर हमला करती हैं, TR1 कोशिकाएँ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को संतुलित और नियंत्रित करने में सहायता करती हैं। यह सूजन को कम करती हैं और अत्यधिक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को रोकती हैं।
- CD4+ कोशिकाएँ (हेल्पर T कोशिकाएँ) श्वेत रक्त कोशिकाओं (लिम्फोसाइट) का एक प्रकार हैं जो अनुकूलनशील प्रतिरक्षा में केंद्रीय भूमिका निभाती हैं। ये कोशिकाएँ अपनी सतह पर CD4 प्रोटीन प्रदर्शित करती हैं और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के समन्वय में सहायता करती हैं।
- मलेरिया उन्मूलन में भूमिका: जब शरीर प्लैजमोडियम फाल्सीपेरम (Plasmodium falciparum) संक्रमण से ग्रसित होता है, तो उसे परजीवी से लड़ने और अत्यधिक प्रतिरक्षा क्षति से बचने के बीच संतुलन बनाना पड़ता है।
- TR1 कोशिकाएँ सूजन को नियंत्रित करके प्रतिरक्षा सहिष्णुता को बढ़ावा देती हैं, जिससे परजीवी के साथ सह-अस्तित्व संभव हो पाता है और गंभीर बीमारी को रोकने वाली नैदानिक प्रतिरक्षा विकसित होती है।
- मूलतः TR1 कोशिकाएँ शांति रक्षक (Peacekeeper) की तरह कार्य करती हैं जो शरीर की रक्षा के लिये प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रित करती हैं।
मानव प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रमुख घटक क्या हैं?
- भौतिक अवरोध: इनमें त्वचा और श्लेष्म झिल्लियाँ (Mucous membranes) शामिल होती हैं, जो रोगजनकों को शरीर में प्रवेश करने से रोककर रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में कार्य करती हैं।
- जन्मजात प्रतिरक्षा: यह त्वरित एवं गैर-विशिष्ट रक्षा तंत्र है जिसमें भौतिक अवरोध, श्वेत रक्त कोशिकाएँ जैसे- न्यूट्रोफिल्स, मैक्रोफेज़ और नेचुरल किलर कोशिकाएँ, साथ ही सूजन की प्रतिक्रिया (जैसे- सूजन एवं बुखार) शामिल हैं।
- यह आक्रमणकारी रोगाणुओं के विरुद्ध त्वरित सुरक्षा प्रदान करता है।
- अनुकूलित प्रतिरक्षा: यह एक धीमा लेकिन अत्यंत विशिष्ट रक्षा तंत्र है जो विशेष रोगजनकों को लक्षित करता है और दीर्घकालिक सुरक्षा के लिये स्मृति विकसित करता है। इसमें विशेष प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें लिम्फोसाइट्स कहा जाता है, जिनमें मुख्य रूप से B-कोशिकाएँ और T-कोशिकाएँ शामिल हैं।
- B-कोशिकाएँ: B-कोशिकाएँ एंटीबॉडी बनाती हैं, जो प्रोटीन होते हैं जो विशेष रूप से एंटीजन (रोगजनकों पर पाए जाने वाले विजातीय अणु) से जुड़ते हैं ताकि उन्हें निष्प्रभावी किया जा सके या नष्ट करने के लिये चिह्नित किया जा सके।
- T-कोशिकाएँ: T-कोशिकाएँ थाइमस ग्रंथि में विकसित होती हैं और इनमें शामिल हैं:
- हेल्पर T कोशिकाएँ: B-कोशिकाओं को एंटीबॉडी बनाने के लिये सक्रिय करती हैं, मैक्रोफेज़ को सूक्ष्मजीवों को मारने में सहायता करती हैं और किलर T कोशिकाओं को उत्तेजित करती हैं।
- किलर T कोशिकाएँ: वायरस से संक्रमित कोशिकाओं, कैंसर कोशिकाओं और क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट करती हैं।
- रेग्युलेटरी T कोशिकाएँ: प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रित और संतुलित करने में सहायता करती हैं।
- लसिका तंत्र: लसिका ग्रंथियों से प्लीहा, थाइमस और अस्थि मज्जा जैसी अंग प्रतिरक्षा कोशिकाओं का उत्पादन होने के साथ उनके भंडारण की सुविधा मिलती है। ये अंग शरीर में प्रवेश करने वाले रोगजनकों को पृथक करते हैं तथा प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रित करते हैं।
- रासायनिक संदेशवाहक: साइटोकाइन्स जैसे अणु प्रतिरक्षा कोशिकाओं को संचारित करने और शरीर के प्रतिरक्षा तंत्रों को नियंत्रित करने में सहायता करते हैं।
मलेरिया क्या है?
- परिचय: मलेरिया एक जानलेवा वेक्टर जनित रोग है, जो परजीवी प्लैजमोडियम के कारण होता है और संक्रमित मादा एनोफिलीज़ मच्छरों के काटने से फैलता है।
- मनुष्यों में मलेरिया का कारण बनने वाली प्लैजमोडियम परजीवी की पाँच प्रजातियाँ होती हैं, जिनमें से दो प्रजातियाँ – पी. फाल्सीपेरम और पी. विवैक्स – सबसे खतरनाक हैं।
- संक्रमण: मच्छर किसी संक्रमित व्यक्ति को काटने के बाद स्वयं संक्रमित हो जाता है। इसके बाद, मच्छर जिस अगले व्यक्ति को काटता है, उसके रक्तप्रवाह में मलेरिया परजीवी प्रवेश कर जाते हैं।
- ये परजीवी यकृत तक पहुँचते हैं, वहाँ परिपक्व होते हैं और फिर लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं।
- उपचार:
- आर्टेमिसिनिन-आधारित संयोजन चिकित्सा (ACT): यह प्लैजमोडियम फाल्सीपेरम मलेरिया के लिये सबसे प्रभावी उपचार है, जिसमें आर्टेमिसिनिन को किसी अन्य मलेरिया-रोधी औषधि के साथ संयोजित किया जाता है।
- क्लोरोक्विन: इसका उपयोग मुख्य रूप से प्लैजमोडियम विवैक्स और अन्य गैर-फाल्सीपेरम मलेरिया के उपचार में किया जाता है, जहाँ प्रतिरोध मौजूद नहीं होता।
- प्राइमाक्विन: इसका उपयोग पी. विवैक्स और पी. ओवेल की यकृत में छिपी अवस्था (हाइप्नोज़ोइट्स) को समाप्त करने के लिये किया जाता है, जिससे मलेरिया की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
- अन्य औषधियाँ: जैसे कि क्वाइनिन, मेफ्लोक्विन और डॉक्सीसाइक्लिन, जिनका उपयोग विशेष मामलों या औषधि-प्रतिरोधी संक्रमणों में किया जाता है।
- टीका: RTS,S/AS01 मलेरिया वैक्सीन, जिसे मॉस्क्विरिक्स के नाम से जाना जाता है, विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनुशंसा प्राप्त करने वाला पहला मलेरिया टीका बना।
- सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII), ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सहयोग से, एक मलेरिया वैक्सीन R21/Matrix-M विकसित कर चुका है, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में उपयोग के लिये अनुशंसित किया है।
- भारत के मलेरिया नियंत्रण प्रयास: मलेरिया उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय फ्रेमवर्क 2016-2030, राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम, राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (NMCP), मलेरिया उन्मूलन अनुसंधान गठबंधन-भारत (MERA-India)।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. क्लोरोक्वीन जैसी दवाओं के प्रति मलेरिया परजीवी के व्यापक प्रतिरोध ने मलेरिया से निपटने के लिये मलेरिया का टीका विकसित करने के प्रयासों को प्रेरित किया है। मलेरिया का प्रभावी टीका विकसित करना क्यों कठिन है? (2010) (a) प्लैजमोडियम की कई प्रजातियों के कारण मलेरिया होता है। उत्तर: (b) |
प्रारंभिक परीक्षा
सिक्किम-भारत एकीकरण की 50वीं वर्षगाँठ
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने भारतीय संघ में सिक्किम के एकीकरण की 50वीं वर्षगाँठ पर बधाई दी, जो 16 मई, 1975 को भारत के 22वें राज्य के रूप में उसकी आधिकारिक मान्यता को चिह्नित करता है।
भारत में सिक्किम के एकीकरण से जुड़े प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- राजशाही पृष्ठभूमि: सिक्किम एक वंशानुगत राजतंत्र था, जहाँ वर्ष 1642 से 1975 तक चोग्याल वंश का शासन रहा था।
- सिक्किम की स्वायत्तता: ब्रिटिश शासन काल और स्वतंत्र भारत के प्रारंभिक वर्षों में सिक्किम ने अपनी स्वायत्तता बनाए रखी। इसके लिये कई संधियाँ हुईं:
- तुमलोंग संधि (1861): इस संधि के तहत सिक्किम ब्रिटिश भारत का एक संरक्षित राज्य बन गया।
- तितलिया संधि (1817): इसने ब्रिटिश अधिकारियों को सिक्किम में कई वाणिज्यिक और राजनीतिक अधिकार प्रदान किये।
- कलकत्ता संधि (1890): इसमें सिक्किम-तिब्बत सीमा का सीमांकन किया गया था, जिस पर वायसराय लॉर्ड लैंसडाउन और तिब्बत में किंग चीन के इंपीरियल एसोसिएट रेजीडेंट ने हस्ताक्षर किये थे।
- इसकी पुष्टि ल्हासा कन्वेंशन (1904) द्वारा की गई।
- भारत-सिक्किम संधि (1950): इस संधि के अनुसार सिक्किम एक भारतीय संरक्षित राज्य बन गया। भारत को रक्षा, विदेश नीति और संचार का नियंत्रण मिला, जबकि सिक्किम को आंतरिक स्वायत्तता प्राप्त रही।
- भारत के साथ विलय: वर्ष 1975 में एक जनमत संग्रह हुआ जिसमें पात्र मतदाताओं के दो-तिहाई ने भाग लिया और उनमें से 97% ने राजशाही को समाप्त कर भारत में शामिल होने के पक्ष में मतदान किया।
- 35वाँ संशोधन अधिनियम, 1974: सिक्किम का संरक्षक राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया गया और सिक्किम को भारत का 'सहयोगी राज्य' (Associate State) घोषित किया गया।
- 36वाँ संशोधन अधिनियम, 1975: इसने सिक्किम को भारत का पूर्ण राज्य बना दिया।
सिक्किम के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: सिक्किम गोवा के बाद भारत का सबसे छोटा राज्य है और यह भारत के पूर्वी हिमालय में पूर्वोत्तर भाग में स्थित है।
- यह उत्तर और पूर्वोत्तर में चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र, दक्षिण-पूर्व में भूटान, दक्षिण में पश्चिम बंगाल और पश्चिम में नेपाल से सीमाएँ साझा करता है।
- नवीनतम विकास: सिक्किम के सोरेंग ज़िले को भारत के पहले जैविक मत्स्य पालन क्लस्टर के रूप में विकसित किया जाएगा। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये पेलिंग रोपवे का उद्घाटन किया गया, जो सिक्किम को एक वैश्विक पर्यटन केंद्र बनाने के प्रयासों का हिस्सा है।
- उल्लेखनीय है कि सिक्किम वर्ष 2016 में विश्व का पहला पूर्णतः जैविक राज्य बन गया।
- भूगोल:
- पर्वत: भारत की सबसे ऊँची चोटी और विश्व का तीसरा सबसे ऊँचा पर्वत कंचनजंगा सिक्किम में स्थित है।
- नदियाँ: सिक्किम में तीस्ता नदी और उसकी सहायक नदियाँ जैसे- रंगीत, ल्होनक, तलुंग और लाचुंग बहती हैं। तीस्ता नदी ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी है।
- तीस्ता नदी जल विवाद भारत और बांग्लादेश के बीच सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक है।
- ग्लेशियर: ज़ेमू ग्लेशियर, ल्होनक ग्लेशियर, चांगसांग ग्लेशियर, बोकटोक ग्लेशियर आदि।
- झील: त्सोम्गो झील (चांगू झील), मेनमेचो झील, बिदांग चो झील, गुरुडोंगमार झील आदि।
- दर्रे: नाथू ला, जेलेप ला, डोंगखा ला, चिवाभंजंग दर्रा।
- जैवविविधता: सिक्किम देश के भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 0.2% भाग कवर करता है, जिसमें प्रचुर जैवविविधता है और इसे पूर्वी हिमालय में एक हॉटस्पॉट के रूप में पहचाना गया है।
- वनस्पति: ओक, चेस्टनट, रोडोडेंड्रोन, मैगनोलिया, जापानी देवदार, टूना, कैस्टानोप्सिस आदि।
- जीव-जंतु: हिमालयी गिलहरी, लार्ज पाम सिवेट, येलो थ्रोट मार्टन, फ्लाइंग स्कुइर्रेल, बार-हेडेड गीज़, भारतीय कछुआ, गोल्डन सैफायर, रेड पांडा, ब्लू शीप, गोरल, तिब्बती एंटलोप।
- संरक्षित क्षेत्र: कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान (विश्व धरोहर स्थल (वर्ष 2016), बायोस्फीयर रिज़र्व (वर्ष 2018)), फम्बोंग ल्हो अभयारण्य, वर्से रोडोडेंड्रोन अभयारण्य, मेनम अभयारण्य, पंगोलखा वन्यजीव अभयारण्य आदि ।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2019) ग्लेशियर नदी
उपर्युक्त में से कौन-से युग्म सही सुमेलित हैं? (a) 1, 2 और 4 उत्तर: (a) प्रश्न. तीस्ता नदी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) |
प्रारंभिक परीक्षा
पद्म पुरस्कार
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
भारत के राष्ट्रपति ने वर्ष 2025 के लिये पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री पुरस्कार 139 विशिष्ट व्यक्तियों को प्रदान किये, जिनके नाम 76वें गणतंत्र दिवस 2025 की पूर्व संध्या पर घोषित किये गए थे।
पद्म पुरस्कार क्या हैं?
- परिचय: वर्ष 1954 में स्थापित, पद्म पुरस्कार भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक हैं, जिनकी घोषणा प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) पर की जाती है।
- उनका उद्देश्य सार्वजनिक सेवा से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता को सम्मानित करना है।
- श्रेणियाँ: पुरस्कार 3 श्रेणियों में दिये जाते हैं:
- पद्म विभूषण: असाधारण और विशिष्ट सेवा (पदानुक्रम में सर्वोच्च)।
- पद्म भूषण: उच्चतर क्रम की विशिष्ट सेवा।
- पद्मश्री: विशिष्ट सेवा।
- पद्म पुरस्कारों में पद्म विभूषण सर्वोच्च है, उसके बाद पद्म भूषण और फिर पद्म श्री हैं।
- प्रस्तुति और मान्यता: पद्म पुरस्कार भारत के राष्ट्रपति द्वारा मार्च/अप्रैल माह में प्रदान किये जाते हैं। प्राप्तकर्त्ताओं को एक सनद (प्रमाण-पत्र), एक पदक तथा एक प्रतीक चिह्न (रिप्लिका) प्रदान किया जाता है, जिसका उपयोग औपचारिक अवसरों पर किया जाता है।
- क्षेत्र: ये पुरस्कार कला, सामाजिक कार्य, सार्वजनिक कार्य, विज्ञान और इंजीनियरिंग, व्यापार एवं उद्योग, चिकित्सा, साहित्य एवं शिक्षा, खेल, सिविल सेवा सहित विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान के लिये प्रदान किये जाते हैं।
- पात्रता: जाति, व्यवसाय, पद या लिंग के भेदभाव के बिना सभी व्यक्ति इन पुरस्कारों के लिये पात्र हैं।
- वर्ष 2014 से सरकार पद्म पुरस्कारों से "गुमनाम नायकों" को सम्मानित कर रही है और अब इन्हें "पीपुल्स पद्म" बना दिया गया है। इस वर्ष 30 ऐसे लोगों को सम्मानित किया गया।
- जूरी संरचना: सभी पद्म पुरस्कार नामांकनों की समीक्षा पद्म पुरस्कार समिति द्वारा की जाती है, जिसे प्रतिवर्ष प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त किया जाता है और कैबिनेट सचिव इसकी अध्यक्षता करते हैं ।
- समिति में गृह सचिव, राष्ट्रपति के सचिव तथा चार से छह प्रतिष्ठित व्यक्ति सदस्य के रूप में शामिल होते हैं।
- इसकी सिफारिशें अंतिम अनुमोदन के लिये प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को प्रस्तुत की जाती हैं।
- सीमाएँ: पद्म पुरस्कार आमतौर पर मरणोपरांत नहीं दिये जाते हैं और उच्च श्रेणी का पुरस्कार पाँच वर्ष के बाद ही प्रदान किया जाता है, जब तक कि पुरस्कार समिति कोई अपवाद न करे।
- यह पुरस्कार कोई उपाधि नहीं है और इसका उपयोग प्राप्तकर्त्ता के नाम के उपसर्ग या प्रत्यय के रूप में नहीं किया जा सकता।
- यह प्रतिवर्ष अधिकतम 120 पुरस्कारों तक सीमित है ( मरणोपरांत , अनिवासी भारतीयों (NRI), विदेशियों और भारत के विदेशी नागरिकता (OCI) प्राप्तकर्त्ताओं को छोड़कर)।
नोट: वर्ष 1978 और वर्ष 1979 तथा वर्ष 1993 से वर्ष 1997 के दौरान पद्म पुरस्कार प्रदान नहीं किये गए।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18(1) राज्य को सैन्य और शैक्षणिक उपाधियों को छोड़कर व्यक्तियों को उपाधियाँ प्रदान करने पर रोक लगाता है।
- भारत रत्न, पद्म विभूषण और पद्म श्री जैसे पुरस्कार अपवाद हैं क्योंकि ये असाधारण कार्य को सम्मानित करते हैं।
- बालाजी राघवन बनाम भारत संघ (1996) में, न्यायालय ने निर्णय दिया कि राष्ट्रीय पुरस्कार अनुच्छेद 18(1) के तहत शीर्षक नहीं हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत रत्न और पद्म पुरस्कारों के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही नहीं हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |
प्रारंभिक परीक्षा
प्राइमेट इन पेरिल
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
प्राइमेट्स इन पेरिल नामक एक हालिया रिपोर्ट में पूरे विश्व की 25 प्राइमेट प्रजातियों के समक्ष बढ़ते खतरों पर प्रकाश डाला गया है।
- इन 25 प्रजातियों में से 6 अफ्रीका से, 4 मेडागास्कर से, 9 एशिया से और 6 दक्षिण अमेरिका (नियोट्रॉपिक्स) से संबंधित हैं।
रिपोर्ट में चिह्नित प्रमुख प्राइमेट प्रजातियाँ कौन-सी हैं?
- सर्वाधिक संकटग्रस्त प्रजातियाँ: रिपोर्ट में क्रॉस रिवर गोरिल्ला और तापनुली ओरंगुटान को गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों के रूप में दर्शाया गया है।
- क्रॉस रिवर गोरिल्ला की संख्या कैमरून और नाइजीरिया में कम-से-कम 11 समूहों में बँटी हुई है, जबकि सर्वाधिक संकटग्रस्त ग्रेट एप, तपानुली ओरांगुटान की संख्या 800 से भी कम है।
- दोनों को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा गंभीर रूप से संकटग्रस्त की सूची में रखा गया है।
- भारत की प्राइमेट प्रजातियाँ: फेयर लंगूर और वेस्टर्न हूलॉक गिबन, जो पूर्वोत्तर भारत तथा बांग्लादेश में पाए जाते हैं, को इस रिपोर्ट में उनके सामने आने वाले खतरों के आधार पर मूल्यांकित किया गया था, लेकिन अंततः इन्हें अंतिम सूची में शामिल नहीं किया गया।
- फेयर लंगूर: यह प्राइमेट अपनी विशिष्ट ‘चश्मेदार’ (Spectacled) रूप-रंग के लिये जाना जाता है। यह मुख्य रूप से पूर्वी बांग्लादेश और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों विशेषकर असम, मिज़ोरम एवं त्रिपुरा में पाया जाता है।
- व्यवहार: वे वृक्षवासी (मुख्यतः वृक्षों पर रहते हैं), दिनचर (दिन में सक्रिय) तथा पर्णाहारी (मुख्यतः पत्तियों को भोजन के रूप में ग्रहण करने वाले) होते हैं व नई आई पत्तियों को विशेष प्राथमिकता देते हैं।
- संरक्षण स्थिति: इसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है और IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में भी सूचीबद्ध किया गया है।
- यह त्रिपुरा में तीन संरक्षित क्षेत्रों अर्थात् सिपाहीजाला, तृष्णा और गुमटी वन्यजीव अभयारण्यों में पाया जाता है।
- आवास स्थान: यह सदाबहार या अर्द्ध-सदाबहार वनों, मिश्रित नम पर्णपाती वनों, साथ ही बाँस-समृद्ध क्षेत्रों, हल्के वुडलैंड्स और चाय बागानों के पास के क्षेत्रों को पसंद करता है।
- फेयर लंगूर: यह प्राइमेट अपनी विशिष्ट ‘चश्मेदार’ (Spectacled) रूप-रंग के लिये जाना जाता है। यह मुख्य रूप से पूर्वी बांग्लादेश और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों विशेषकर असम, मिज़ोरम एवं त्रिपुरा में पाया जाता है।
- पश्चिमी हूलॉक गिब्बन ( हूलॉक हूलॉक ): यह भारत, बांग्लादेश और म्याँमार के उष्णकटिबंधीय वनों में पाया जाने वाला एक पूँछ रहित वानर है, जिसमें काले नर की आँखों के ऊपर एक सफेद पट्टी होती है जबकि मादा की आँखे हल्के रंग (बेज, भूरा, ग्रे) की होती है।
- ये प्रजाति अपनी ऊँची, सुरीली युगल आवाज़ (द्वैत स्वर) के लिये विख्यात है, जिसका प्रयोग नर-मादा जोड़े द्वारा अपने क्षेत्र को चिह्नित करने हेतु किया जाता है। दोनों लिंगों में स्वर प्रतिरूप (vocal patterns) समान होते हैं।
- व्यवहार: गिब्बन वृक्षीय प्राणी हैं और छलाँग लगाकर तथा झूलकर छतरी के ऊपर विचरण करते हैं तथा इनका सर्वाहारी आहार पौधे, अकशेरुकी तथा पक्षियों के अंडे होते हैं।
- वे एकल परिवार समूह में रहते हैं, एक ही संतान को जन्म देते हैं जो लगभग दो वर्षों तक माँ के साथ रहती है।
- आवास स्थान: वे नम पर्णपाती, सदाबहार, उपोष्णकटिबंधीय और निचले जंगलों में पनपते हैं, जिनका विस्तार पूर्वोत्तर भारत, बांग्लादेश और पश्चिमी/उत्तरी म्याँमार तक फैला हुआ है।
- संरक्षण स्थिति: इसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है और IUCN रेड सूची में इसे लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- भारत की एकमात्र वानर प्रजाति, पश्चिमी हूलॉक गिब्बन, असम के जोरहाट ज़िले में स्थित हूलोंगापार गिब्बन अभयारण्य में पाई जाती है।
भारत में पाई जाने वाली अन्य प्रमुख प्राइमेट प्रजातियाँ कौन-सी हैं?
- लोरिस:
- ग्रे स्लेंडर लोरिस (लोरिस लिडेकेरियानस): पतली, रात्रिचर प्राइमेट प्रजाति जिसमें एक सूक्ष्म मेरुदंडीय धारी होती है।
- दो उप-प्रजातियाँ: मैसूर (बड़ी, धूसर) और मालाबार (लाल-भूरी, गोल आँखों के धब्बे)।
- पश्चिमी और पूर्वी घाटों में पाई जाती है।
- बंगाल स्लो लोरिस (नाइक्टिसेबस बेंगालेंसिस): इसमें पूँछ नहीं होती है और इसकी आँखें बड़ी होती हैं।
- इसके बालों का रंग राख-धूसर से लेकर पीले-भूरे तक हो सकता है।
- यह भारत के पूर्वोत्तर भाग में, विशेष रूप से ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण में पाया जाता है।
- ग्रे स्लेंडर लोरिस (लोरिस लिडेकेरियानस): पतली, रात्रिचर प्राइमेट प्रजाति जिसमें एक सूक्ष्म मेरुदंडीय धारी होती है।
- लंगूर:
- जी का गोल्डन लंगूर (ट्रेचीपिथेकस जीई): मौसमी फर का रंग क्रीम/ऑफ-व्हाइट से बदलकर सुनहरा-नारंगी हो जाता है।
- काले चेहरे, हथेलियों और तलवों के साथ इसकी पहचान सुनहरे रंग की मूँछों से होती है।
- असम में मानस और संकोश नदियों के बीच पाया जाता है।
- नीलगिरी लंगूर (सेमनोपिथेकस जॉनी): इसके शरीर पर चमकदार काले रंग का कोट होता है, जिसमें पीले रंग के बालों की धारियाँ होती हैं।
- कोडागु से कन्याकुमारी पहाड़ियों तक पश्चिमी घाट में रहते हैं।
- कैप्ड लंगूर (ट्रेचीपिथेकस पाइलेटस): इसके सिर पर विशेष रंगीन "कैप" और लंबी पूँछ होती है।
- यह असम, मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में पाए जाते हैं।
- जी का गोल्डन लंगूर (ट्रेचीपिथेकस जीई): मौसमी फर का रंग क्रीम/ऑफ-व्हाइट से बदलकर सुनहरा-नारंगी हो जाता है।
- मकाक:
- सिंहपूँछ मकाक (मकाका सिलेनस): गहन, चमकदार रंग का शरीर; मुख के चारों ओर लंबा धूसर अयाल (गुच्छेदार रेखा) तथा पूँछ के सिरे पर गुच्छेदार बाल।
- यह कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के पश्चिमी घाट के वनों का स्वदेशी प्राणी है।
- बॉनेट मकाक (मकाका रेडिएटा): सर पर बालों की विशिष्ट घुमावदार “कैप” जैसा निशान होता है, जिससे इसे पहचाना जाता है।
- लंबी पूँछ, शरीर से भी लंबी, जो दक्षिण भारत में पाई जाती है।
- स्टंप-टेल्ड मैकाक (मकाका आर्कटोइड्स): भारत का सबसे बड़ा मैकाक, छोटी पूँछ, दाढ़ी जैसी बनावट वाला लाल-गुलाबी चेहरा।
- सिंहपूँछ मकाक (मकाका सिलेनस): गहन, चमकदार रंग का शरीर; मुख के चारों ओर लंबा धूसर अयाल (गुच्छेदार रेखा) तथा पूँछ के सिरे पर गुच्छेदार बाल।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन, किसी वृक्ष या लकड़ी के लट्ठे में बने छिद्र में से कीटों को खुरचने के लिये लकड़ी का औजार बनाता है? (2023) (a) मत्स्यन मार्जार (फिशिंग कैट) उत्तर: (b) |
रैपिड फायर
नोमेडिक एलीफैंट अभ्यास का 17वाँ संस्करण
स्रोत: पी.आई.बी.
भारत और मंगोलिया के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास, नोमैडिक एलीफेंट के 17वें संस्करण का आयोजन 31 मई से 13 जून, 2025 तक मंगोलिया के उलानबटार में किया जाएगा।
- यह वर्ष 2006 से भारत और मंगोलिया में क्रमिक रूप से आयोजित होने वाला एक द्विपक्षीय वार्षिक सैन्य अभ्यास है। इसका अंतिम संस्करण उमरोई, मेघालय (जुलाई 2024) में हुआ था।
- इसका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र अधिदेश - अध्याय VII के तहत अर्द्ध-शहरी/पहाड़ी इलाकों में अंतर-संचालनशीलता को बढ़ावा देना है।
- संयुक्त राष्ट्र के अध्याय VII के तहत अंतर्राष्ट्रीय शांति प्रवर्तन के क्रम में सैन्य/गैर-सैन्य कार्रवाइयों (प्रतिबंध, नाकाबंदी, सैन्य तैनाती) को अधिकृत किया गया है।
- भारत, मंगोलिया द्वारा आयोजित बहुराष्ट्रीय शांति स्थापना से संबंधित अभ्यास (खान क्वेस्ट) में भी सक्रिय रूप से भाग लेता है।
और पढ़ें: बहुपक्षीय अभ्यास खान क्वेस्ट 2024
रैपिड फायर
उदारीकृत विप्रेषण योजना
स्रोत: IE
उदारीकृत विप्रेषण योजना (LRS) के तहत भारत का बाहरी धन प्रेषण वित्त वर्ष 2025 में 29.56 बिलियन अमेरिकी डॉलर ( वित्त वर्ष 2024 में 31.74 बिलियन अमेरिकी डॉलर) तक कम हो गया, जो वैश्विक अनिश्चितताओं, धीमी घरेलू आय वृद्धि और पिछले वर्ष की तुलना में उच्च आधार प्रभाव के कारण भारतीय निवासियों द्वारा विदेशों में कम खर्च का संकेत देता है।
- इसका मुख्य कारण अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों में छात्र वीज़ा नियमों के सख्त होने के कारण छात्र धन प्रेषण में 16% की गिरावट है, जो 3.48 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 2.92 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
उदारीकृत धनप्रेषण योजना (LRS):
- LRS: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा वर्ष 2004 में प्रति वित्तीय वर्ष 25,000 अमेरिकी डॉलर की प्रारंभिक सीमा के साथ शुरू की गई LRS अब निवासी व्यक्तियों को स्वीकृत चालू या पूंजी खाता लेन-देन के लिये प्रतिवर्ष 250,000 अमेरिकी डॉलर तक धन भेजने की अनुमति देती है।
- पात्रता: केवल निवासी व्यक्ति ही पात्र हैं। इस योजना में कॉर्पोरेट, हिंदू अविभाजित परिवार (HUF), साझेदारी फर्म और ट्रस्ट शामिल नहीं हैं।
- निषिद्ध लेन-देन: लॉटरी टिकट, प्रतिबंधित पत्रिकाओं की खरीद , FTF का अनुपालन न करने वाले देशों के साथ लेन-देन, किसी अन्य भारतीय निवासी के विदेशी खाते में विदेशी मुद्रा में उपहार देना आदि।
- भारत में कोई विदेशी मुद्रा खाता नहीं: निवासी LRS के अंतर्गत भारत में विदेशी मुद्रा खाता नहीं खोल सकते।
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रैपिड फायर
मोसुरा फेंटोनी
स्रोत: द हिंदू
मोसुरा फेंटोनी, कनाडा के बर्जेस शेल से मिला एक कैम्ब्रियन-कालीन (541 मिलियन से 485.4 मिलियन वर्ष पूर्व) समुद्री जीव, आर्थ्रोपोड विकास के मौजूदा विचारों को चुनौती देता है। इसके उन्नत तैरने वाली विशेषता और श्वसन अनुकूलनों से आधुनिक कीटों और क्रस्टेशियन्स के उद्भव का संकेत मिलता है।
- परिचय: मोसुरा फेंटोनी एक छोटा परंतु अत्यधिक विशिष्ट रेडियोडॉन्ट है, जो आधुनिक आर्थ्रोपोड्स (कीटों, केकड़ों, मकड़ियों) का एक आदिम संबंधी है।
- शारीरिक संरचना: इस जीव का शरीर खंडों में बँटा हुआ था, जिसमें एक छोटी गर्दन, तैराकी के लिये छह चपटे-पंखे जैसे- फ्लैप और श्वसन के लिये गलफड़ों से युक्त एक पश्च-धड़ (पोस्टरोट्रंक) था।
- पश्च-धड़ (पोस्टरोट्रंक) एक विशिष्ट श्वसन खंड (टैग्मा) के रूप में कार्य करता था, जो हॉर्सशू क्रैब की ऑक्सीजन संग्रह करने वाली पूँछ के समान था।
- यह आर्थ्रोपोड विविधता के लिये महत्त्वपूर्ण, खंडीय विशिष्टीकरण के प्रारंभिक चरण को दर्शाता है।
- रेडियोडॉन्ट्स: रेडियोडॉन्ट्स कैम्ब्रियन काल के प्राचीन समुद्री शिकारी थे तथा कीटों एवं केकड़ों जैसे आर्थ्रोपोड्स के प्रारंभिक संबंधी थे, हालाँकि ये उनके प्रत्यक्ष पूर्वज नहीं थे।
- बर्जेस शेल कनाडा में स्थित एक प्रसिद्ध जीवाश्म स्थल है, जो कैम्ब्रियन काल से संबंधित है।
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रैपिड फायर
बर्च ग्लेशियर
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
स्विट्ज़रलैंड के बर्च ग्लेशियर में आए भीषण हिमस्खलन के कारण एक बड़ा भूस्खलन हुआ, जिससे आल्प्स क्षेत्र का ब्लैटन गाँव बर्फ, चट्टानों और मृदा के नीचे दब गया।
- हिमनद की अस्थिरता एक शृंखलाबद्ध आपदा का परिणाम थी, जिसमें भारी मात्रा में मलबे का दबाव, स्थायी हिम के पिघलने और बढ़ते तापमान जैसे कारक शामिल थे।
- इसका प्रभाव लोन्ज़ा नदी पर भी पड़ा, जहाँ मलबे के कारण बाढ़ की आशंका बढ़ गई।
- बर्च ग्लेशियर: बर्च ग्लेशियर स्विस आल्प्स में लोटशेन्टल घाटी में स्थित है।
- यह क्षेत्र की एक प्रमुख चोटी, बिएत्शॉर्न पर्वत के पास स्थित है।
- स्विस ग्लेशियर वर्ष 2000 के बाद से अपने आयतन का लगभग 40% खो चुके हैं; वर्ष 2022-2023 में रिकॉर्ड तापमान के कारण 10% की हानि हुई है।
- स्विस आल्प्स: स्विस आल्प्स स्विस पठार के दक्षिण में स्थित है। ऐतिहासिक रूप से यह उत्तरी और दक्षिणी यूरोप के बीच एक प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य करता है, जहाँ पहाड़ी दर्रे महत्त्वपूर्ण व्यापार मार्ग प्रदान करते हैं, विशेष रूप से इटली को उत्तर से जोड़ते हैं।
- आल्प्स के बारे में: आल्प्स यूरोप की सबसे ऊँची और सबसे विस्तृत पर्वत शृंखला (फोल्ड माउंटेन) है, जो आठ देशों यानी फ्राँस, स्विट्ज़रलैंड, इटली, लिकटेंस्टीन, ऑस्ट्रिया, जर्मनी, स्लोवेनिया और मोनाको में फैली हुई है। सबसे ऊँची पहाड़ी मोंट ब्लांक है, जो फ्राँस-इटली सीमा पर स्थित है।
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