प्रारंभिक परीक्षा
मलेरिया उन्मूलन में TR1 कोशिकाओं की भूमिका
- 02 Jun 2025
- 10 min read
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
एक नए अध्ययन से पता चला है कि मलेरिया के प्रति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के मुख्य प्रेरक TH1 कोशिकाएँ नहीं, बल्कि TR1 (टाइप-1 रेग्युलेटरी T-कोशिकाएँ) हैं, जिससे पहले के अनुमान को चुनौती मिली है।
TR1 कोशिकाएँ क्या हैं?
- परिचय: TR1 कोशिकाएँ या टाइप-1 रेग्युलेटरी कोशिकाएँ, CD4+ हेल्पर T-कोशिकाओं का एक विशेष समूह हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- अन्य T-कोशिकाओं के विपरीत जो मुख्य रूप से रोगजनकों (पैथोजेन्स) पर हमला करती हैं, TR1 कोशिकाएँ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को संतुलित और नियंत्रित करने में सहायता करती हैं। यह सूजन को कम करती हैं और अत्यधिक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को रोकती हैं।
- CD4+ कोशिकाएँ (हेल्पर T कोशिकाएँ) श्वेत रक्त कोशिकाओं (लिम्फोसाइट) का एक प्रकार हैं जो अनुकूलनशील प्रतिरक्षा में केंद्रीय भूमिका निभाती हैं। ये कोशिकाएँ अपनी सतह पर CD4 प्रोटीन प्रदर्शित करती हैं और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के समन्वय में सहायता करती हैं।
- मलेरिया उन्मूलन में भूमिका: जब शरीर प्लैजमोडियम फाल्सीपेरम (Plasmodium falciparum) संक्रमण से ग्रसित होता है, तो उसे परजीवी से लड़ने और अत्यधिक प्रतिरक्षा क्षति से बचने के बीच संतुलन बनाना पड़ता है।
- TR1 कोशिकाएँ सूजन को नियंत्रित करके प्रतिरक्षा सहिष्णुता को बढ़ावा देती हैं, जिससे परजीवी के साथ सह-अस्तित्व संभव हो पाता है और गंभीर बीमारी को रोकने वाली नैदानिक प्रतिरक्षा विकसित होती है।
- मूलतः TR1 कोशिकाएँ शांति रक्षक (Peacekeeper) की तरह कार्य करती हैं जो शरीर की रक्षा के लिये प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रित करती हैं।
मानव प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रमुख घटक क्या हैं?
- भौतिक अवरोध: इनमें त्वचा और श्लेष्म झिल्लियाँ (Mucous membranes) शामिल होती हैं, जो रोगजनकों को शरीर में प्रवेश करने से रोककर रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में कार्य करती हैं।
- जन्मजात प्रतिरक्षा: यह त्वरित एवं गैर-विशिष्ट रक्षा तंत्र है जिसमें भौतिक अवरोध, श्वेत रक्त कोशिकाएँ जैसे- न्यूट्रोफिल्स, मैक्रोफेज़ और नेचुरल किलर कोशिकाएँ, साथ ही सूजन की प्रतिक्रिया (जैसे- सूजन एवं बुखार) शामिल हैं।
- यह आक्रमणकारी रोगाणुओं के विरुद्ध त्वरित सुरक्षा प्रदान करता है।
- अनुकूलित प्रतिरक्षा: यह एक धीमा लेकिन अत्यंत विशिष्ट रक्षा तंत्र है जो विशेष रोगजनकों को लक्षित करता है और दीर्घकालिक सुरक्षा के लिये स्मृति विकसित करता है। इसमें विशेष प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें लिम्फोसाइट्स कहा जाता है, जिनमें मुख्य रूप से B-कोशिकाएँ और T-कोशिकाएँ शामिल हैं।
- B-कोशिकाएँ: B-कोशिकाएँ एंटीबॉडी बनाती हैं, जो प्रोटीन होते हैं जो विशेष रूप से एंटीजन (रोगजनकों पर पाए जाने वाले विजातीय अणु) से जुड़ते हैं ताकि उन्हें निष्प्रभावी किया जा सके या नष्ट करने के लिये चिह्नित किया जा सके।
- T-कोशिकाएँ: T-कोशिकाएँ थाइमस ग्रंथि में विकसित होती हैं और इनमें शामिल हैं:
- हेल्पर T कोशिकाएँ: B-कोशिकाओं को एंटीबॉडी बनाने के लिये सक्रिय करती हैं, मैक्रोफेज़ को सूक्ष्मजीवों को मारने में सहायता करती हैं और किलर T कोशिकाओं को उत्तेजित करती हैं।
- किलर T कोशिकाएँ: वायरस से संक्रमित कोशिकाओं, कैंसर कोशिकाओं और क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट करती हैं।
- रेग्युलेटरी T कोशिकाएँ: प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रित और संतुलित करने में सहायता करती हैं।
- लसिका तंत्र: लसिका ग्रंथियों से प्लीहा, थाइमस और अस्थि मज्जा जैसी अंग प्रतिरक्षा कोशिकाओं का उत्पादन होने के साथ उनके भंडारण की सुविधा मिलती है। ये अंग शरीर में प्रवेश करने वाले रोगजनकों को पृथक करते हैं तथा प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रित करते हैं।
- रासायनिक संदेशवाहक: साइटोकाइन्स जैसे अणु प्रतिरक्षा कोशिकाओं को संचारित करने और शरीर के प्रतिरक्षा तंत्रों को नियंत्रित करने में सहायता करते हैं।
मलेरिया क्या है?
- परिचय: मलेरिया एक जानलेवा वेक्टर जनित रोग है, जो परजीवी प्लैजमोडियम के कारण होता है और संक्रमित मादा एनोफिलीज़ मच्छरों के काटने से फैलता है।
- मनुष्यों में मलेरिया का कारण बनने वाली प्लैजमोडियम परजीवी की पाँच प्रजातियाँ होती हैं, जिनमें से दो प्रजातियाँ – पी. फाल्सीपेरम और पी. विवैक्स – सबसे खतरनाक हैं।
- संक्रमण: मच्छर किसी संक्रमित व्यक्ति को काटने के बाद स्वयं संक्रमित हो जाता है। इसके बाद, मच्छर जिस अगले व्यक्ति को काटता है, उसके रक्तप्रवाह में मलेरिया परजीवी प्रवेश कर जाते हैं।
- ये परजीवी यकृत तक पहुँचते हैं, वहाँ परिपक्व होते हैं और फिर लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं।
- उपचार:
- आर्टेमिसिनिन-आधारित संयोजन चिकित्सा (ACT): यह प्लैजमोडियम फाल्सीपेरम मलेरिया के लिये सबसे प्रभावी उपचार है, जिसमें आर्टेमिसिनिन को किसी अन्य मलेरिया-रोधी औषधि के साथ संयोजित किया जाता है।
- क्लोरोक्विन: इसका उपयोग मुख्य रूप से प्लैजमोडियम विवैक्स और अन्य गैर-फाल्सीपेरम मलेरिया के उपचार में किया जाता है, जहाँ प्रतिरोध मौजूद नहीं होता।
- प्राइमाक्विन: इसका उपयोग पी. विवैक्स और पी. ओवेल की यकृत में छिपी अवस्था (हाइप्नोज़ोइट्स) को समाप्त करने के लिये किया जाता है, जिससे मलेरिया की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
- अन्य औषधियाँ: जैसे कि क्वाइनिन, मेफ्लोक्विन और डॉक्सीसाइक्लिन, जिनका उपयोग विशेष मामलों या औषधि-प्रतिरोधी संक्रमणों में किया जाता है।
- टीका: RTS,S/AS01 मलेरिया वैक्सीन, जिसे मॉस्क्विरिक्स के नाम से जाना जाता है, विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनुशंसा प्राप्त करने वाला पहला मलेरिया टीका बना।
- सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII), ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सहयोग से, एक मलेरिया वैक्सीन R21/Matrix-M विकसित कर चुका है, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में उपयोग के लिये अनुशंसित किया है।
- भारत के मलेरिया नियंत्रण प्रयास: मलेरिया उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय फ्रेमवर्क 2016-2030, राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम, राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (NMCP), मलेरिया उन्मूलन अनुसंधान गठबंधन-भारत (MERA-India)।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. क्लोरोक्वीन जैसी दवाओं के प्रति मलेरिया परजीवी के व्यापक प्रतिरोध ने मलेरिया से निपटने के लिये मलेरिया का टीका विकसित करने के प्रयासों को प्रेरित किया है। मलेरिया का प्रभावी टीका विकसित करना क्यों कठिन है? (2010) (a) प्लैजमोडियम की कई प्रजातियों के कारण मलेरिया होता है। उत्तर: (b) |