भूगोल
एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन
प्रिलिम्स के लिये:सिंधु जल संधि, गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना मेन्स के लिये:प्रभावी नदी योजना, नदियों के प्रभावी प्रबंधन के लिये बहुपक्षीय संधियों की आवश्यकता, सिंधु जल संधि |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) तथा ऑस्ट्रेलियाई जल साझेदारी द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट में सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के प्रभावी एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन के लिये बहुपक्षीय संधियों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- एकीकृत नदी घाटी प्रबंधन:
- यह रिपोर्ट एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन के महत्त्व पर ज़ोर देती है, जिसमें नदी नियोजन के लिये घाटी-व्यापी दृष्टिकोण शामिल हैं, जो सभी हितधारकों के बीच जल की उपलब्धता, जैवविविधता तथा प्रदूषण पर गुणवत्ता डेटा साझा करने से समर्थित है।
- बहुपक्षीय संधियों की आवश्यकता:
- जल डेटा साझाकरण पर मौजूदा द्विपक्षीय संधियों एवं समझौतों के बावजूद, क्षेत्र में नदी प्रबंधन हेतु बहुपक्षीय समझौतों की अनुपस्थिति है, जो प्रभावी शासन के लिये एक चुनौती है।
- यह सिंधु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र नदियों के प्रभावी प्रबंधन हेतु बहुपक्षीय संधियाँ स्थापित करने की आवश्यकता पर ज़ोर देती है।
- जल डेटा साझाकरण पर मौजूदा द्विपक्षीय संधियों एवं समझौतों के बावजूद, क्षेत्र में नदी प्रबंधन हेतु बहुपक्षीय समझौतों की अनुपस्थिति है, जो प्रभावी शासन के लिये एक चुनौती है।
- महत्त्वपूर्ण नदियों पर निर्भरता:
- भारत, तिब्बत (चीन), पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल एवं भूटान में लाखों लोग भोजन तथा जल उपलब्धता हेतु सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों पर निर्भर हैं, जिससे व्यापक प्रबंधन रणनीतियाँ अनिवार्य हो गई हैं।
- सभी तीन घाटियाँ सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र (IGB) मैदान का भाग हैं, जो एक विशाल जलोढ़ मैदान है और भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा नेपाल के कुछ भागों तक विस्तृत है।
- गंगा नदी घाटी:
- इस बेसिन क्षेत्र में 600 मिलियन भारतीय, 29 मिलियन नेपाली लोगों के साथ-साथ लाखों की संख्या में बांग्लादेशी भी रहते हैं।
- इसको लेकर नेपाल, भारत एवं बांग्लादेश के बीच कोई समझौता नहीं है।
- सिंधु नदी घाटी:
- इसकी घाटी में रहने वाले 268 मिलियन लोगों के लिये जीवनरेखा है।
- ब्रह्मपुत्र नदी घाटी:
- जल, विद्युत, भोजन, कृषि एवं मछली पकड़ने के लिये लगभग 114 मिलियन लोग इस पर निर्भर हैं।
- भारत, तिब्बत (चीन), पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल एवं भूटान में लाखों लोग भोजन तथा जल उपलब्धता हेतु सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों पर निर्भर हैं, जिससे व्यापक प्रबंधन रणनीतियाँ अनिवार्य हो गई हैं।
- अनुशंसाएँ:
- प्रभावी संकट प्रबंधन के लिये स्थानीय समुदायों के ज्ञान को पहचानना और उसका उपयोग करना।
- स्थानीय समुदायों की समुत्थानशीलता बढ़ाने के लिये संसाधनों और प्रौद्योगिकी के साथ उन्हें सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
- बेहतर प्रबंधन और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के लिये नदी घाटियों में जल की उपलब्धता, जैवविविधता एवं प्रदूषण से संबंधित डेटा अंतराल को समाप्त करने की आवश्यकता है।
- एक समग्र 'संपूर्ण बेसिन' अनुसंधान दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता जो डेटा-साझाकरण, रणनीतिक योजना, जलवायु परिवर्तन प्रभावों को समझने और विश्वसनीय जल आपूर्ति सुनिश्चित करने की सुविधा प्रदान करता है।
- सीमा-पार जल मुद्दों पर विश्वास कायम करने और संवाद को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न देशों के शोधकर्त्ताओं के बीच 'हाइड्रो-सॉलिडैरिटी' एवं जलवायु कूटनीति को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- 'हाइड्रो-सॉलिडैरिटी' साझा जल संसाधनों के प्रबंधन में राष्ट्रों के बीच सहयोग और एकजुटता को बढ़ावा देने के बारे में है। इसमें जल संसाधनों के संबंध में देशों की परस्पर निर्भरता और जल संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिये सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता का अभिनिर्धारण शामिल है।
- इसमें निष्पक्ष जल-संधियों को लागू करना, सहयोगात्मक शासन को बढ़ावा देना, जल अवसंरचना में निवेश करना और जल-ऊर्जा-खाद्य गठजोड़ को प्रोत्साहित करना शामिल है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले जल तनाव को दूर करने में जलवायु कूटनीति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है और जल कूटनीति को जलवायु कूटनीति के साथ एकीकृत करने से जल की कमी एवं जलवायु परिवर्तन की परस्पर जुड़ी चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकती है।
- 'हाइड्रो-सॉलिडैरिटी' साझा जल संसाधनों के प्रबंधन में राष्ट्रों के बीच सहयोग और एकजुटता को बढ़ावा देने के बारे में है। इसमें जल संसाधनों के संबंध में देशों की परस्पर निर्भरता और जल संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिये सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता का अभिनिर्धारण शामिल है।
- प्रभावी संकट प्रबंधन के लिये स्थानीय समुदायों के ज्ञान को पहचानना और उसका उपयोग करना।
गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र नदी घाटी/बेसिन के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- गंगा नदी बेसिन:
- स्रोत और हेडवाटर्स:
- गंगा का उद्गम भागीरथी के रूप में उत्तराखंड के गंगोत्री ग्लेशियर (3,892 मीटर की ऊँचाई पर) से होता है।
- कई छोटी-छोटी धाराएँ गंगा की जलधाराओं में समाहित हैं। इनमें अलकनंदा, धौलीगंगा, पिंडर, मंदाकिनी और भिलंगना प्रमुख हैं।
- देवप्रयाग में जहाँ अलकनंदा नदी भागीरथी से मिलती है, वहाँ इसे गंगा के रूप में जाना जाता है। बंगाल की खाड़ी में बहने से पहले यह 2525 किमी. की दूरी तय करती है।
- मार्ग और प्रमुख सहायक नदियाँ
- बांग्लादेश में प्रवेश करने से पूर्व भारत में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों से होकर बहती है।
- गंगा नदी बेसिन का लगभग 80% भाग भारत में है, शेष भाग नेपाल, तिब्बत (चीन) और बांग्लादेश में है।
- प्रमुख सहायक नदियों में यमुना, गोमती, घाघरा, गंडक और कोसी नदियाँ शामिल हैं।
- यह अपने उपजाऊ जलोढ़ मैदानों के लिये प्रसिद्ध है, जहाँ सदियों से कृषि और मानव बस्तियों को सहारा मिला है।
- डेल्टा और बहिर्वाह
- लगभग 2,510 किलोमीटर की यात्रा के बाद, गंगा नदी बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र नदी में विलीन हो जाती है और इसे पद्मा नदी के नाम से जाना जाता है।
- पद्मा नदी बाद में मेघना नदी में मिलती है और मेघना मुहाना के माध्यम से बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
- लगभग 2,510 किलोमीटर की यात्रा के बाद, गंगा नदी बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र नदी में विलीन हो जाती है और इसे पद्मा नदी के नाम से जाना जाता है।
- स्रोत और हेडवाटर्स:
- सिंधु नदी बेसिन:
- उद्गम:
- सिंधु (तिब्बती-सेंगगे चू, 'लायन नदी'), दक्षिण एशिया की एक प्रमुख नदी, ट्रांस-हिमालय में मानसरोवर झील के पास तिब्बत से निकलती है।
- यह नदी तिब्बत, भारत और पाकिस्तान से होकर बहती है तथा इसके जल निकासी बेसिन के क्षेत्र में लगभग 200 मिलियन लोग निवास करते हैं।
- सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच एक संधि है जिस पर सिंधु नदी प्रणाली के पानी के उपयोग के संबंध में प्रत्येक देश के अधिकारों एवं ज़िम्मेदारियों को परिभाषित करने के लिये वर्ष 1960 में हस्ताक्षर किये गए थे। इस संधि की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी।
- मार्ग और प्रमुख सहायक नदियाँ:
- यह नदी लद्दाख के माध्यम से भारत में प्रवेश करती है और पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में पहुँचने से पहले जम्मू-कश्मीर से होकर बहती है।
- सिंधु नदी की प्रमुख बाएँ किनारे की सहायक नदियाँ ज़स्कर, सुरू, सोन, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, सतलज और पंजनाद नदियाँ हैं। इसके दाहिने किनारे की प्रमुख सहायक नदियाँ श्योक, गिलगित, हुंजा, स्वात, कुन्नार, कुर्रम, गोमल और काबुल नदियाँ हैं।
- सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियाँ इस क्षेत्र में कृषि और जल आपूर्ति के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, विशेष रूप से पाकिस्तान में जहाँ यह देश की अर्थव्यवस्था हेतु लाइफलाइन के रूप में कार्य करती है।
- डेल्टा और बहिर्वाह:
- सिंधु नदी दक्षिणी पाकिस्तान में कराची शहर के पास अरब सागर में गिरती है।
- यह नदी एक विशाल डेल्टा का निर्माण करती है जिसे सिंधु डेल्टा के नाम से जाना जाता है।
- डेल्टा अनेक खाड़ियों, दलदलों और मैंग्रोव वनों का आवास है।
- सिंधु नदी दक्षिणी पाकिस्तान में कराची शहर के पास अरब सागर में गिरती है।
- उद्गम:
- ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन:
- उद्गम:
- इसे उत्पत्ति स्थल पर सियांग या दिहांग के नाम से जाना जाता है, जिसका उद्गम मानसरोवर झील के पास कैलाश पर्वत के चेमायुंगडुंग (Chemayungdung) ग्लेशियर से होता है। औसत निर्वहन के मामले में ब्रह्मपुत्र दुनिया में पाँचवें स्थान पर है।
- यह बेसिन तिब्बत (चीन), भारत, भूटान और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में फैले लगभग 580,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करता है।
- ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियाँ क्षेत्र में कृषि, जल विद्युत उत्पादन एवं परिवहन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- मार्ग और प्रमुख सहायक नदियाँ:
- इसे तिब्बत में यारलुंग सांगपो (Yarlung Tsangpo) के नाम से जाना जाता है तथा यह हिमालय से होकर पूर्व की ओर प्रवाहित होते हुए भारत के अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है।
- भारत में असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से प्रवाहित होते हुए यह अंततः बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
- भारत में सुबनसिरी, कामेंग, मानस और धनसिरी जैसी नदियाँ तथा बांग्लादेश में तीस्ता नदी इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
- डेल्टा और बहिर्वाह:
- ब्रह्मपुत्र नदी बांग्लादेश में गंगा नदी से मिलकर पद्मा नदी बनाती है।
- पद्मा नदी अंततः मेघना नदी से मिल जाती है और मेघना ज्वारनदमुख (Estuary) के माध्यम से बंगाल की खाड़ी में प्रवाहित हो जाती है।
- ब्रह्मपुत्र नदी बांग्लादेश में गंगा नदी से मिलकर पद्मा नदी बनाती है।
- उद्गम:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. सिंधु नदी प्रणाली के संदर्भ में निम्नलिखित चार नदियों में से तीन नदियाँ इनमें से किसी एक नदी में मिलती हैं, जो सीधे सिंधु नदी से मिलती है। निम्नलिखित में से वह कौन-सी नदी है जो सिंधु नदी से सीधे मिलती है? (2021) (a) चेनाब उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-से युग्म सही सुमेलित हैं? (a) 1, 2 और 4 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. सिंधु जल संधि का एक विवरण प्रस्तुत कीजिये और बदलते हुए द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में उसके पारिस्थितिक, आर्थिक एवं राजनीतिक निहितार्थों का परीक्षण कीजिये। (2016) प्रश्न. नमामि गंगे एवं स्वच्छ गंगा का राष्ट्रीय मिशन (NMCG) कार्यक्रमों पर और इससे पूर्व की योजनाओं के मिश्रित परिणामों के कारणों पर चर्चा कीजिये। गंगा नदी के परिरक्षण में कौन-सी प्रमात्रा छलांगें, क्रमिक योगदानों की अपेक्षा ज़्यादा सहायक हो सकती हैं? (2015) |
सामाजिक न्याय
कोविड-19 संबंधित टीकाकरण व्यवधानों का स्वास्थ्य पर प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:कोविड-19 महामारी,खसरा, रूबेला, HPV (ह्यूमन पैपिलोमावायरस), हेपेटाइटिस B, डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस (DTP) वैक्सीन। मेन्स के लिये:कोविड-19 संबंधित टीकाकरण व्यवधानों के स्वास्थ्य प्रभाव, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
"वर्ष 2020-30 की अवधि में 112 देशों में कोविड-19 संबंधित टीकाकरण व्यवधानों के स्वास्थ्य प्रभावों का आकलन: एक मॉडलिंग अध्ययन" शीर्षक से एक हालिया अध्ययन द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। यह इस बात पर ज़ोर देता है कि कैसे कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक टीकाकरण में गिरावट आई, जिससे बीमारी का प्रकोप और बोझ बढ़ गया।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- वैश्विक टीकाकरण में गिरावट:
- कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक टीकाकरण कवरेज में गिरावट आई, जिससे विभिन्न देशों में बीमारी का बोझ एवं इसके विस्तार का खतरा बढ़ गया।
- यह अनुमान लगाया गया है कि खसरा, रूबेला, HPV (ह्यूमन पैपिलोमावायरस), हेपेटाइटिस B, मेनिनजाइटिस A तथा येलो फीवर के टीकाकरण में व्यवधान के कारण वर्ष 2020-2030 के दौरान लगभग 49,119 अतिरिक्त मौतें हो सकती हैं, इस मृत्यु दर की वृद्धि में खसरा मुख्य योगदानकर्त्ता है।
- वर्ष 2020-2030 के लिये सभी 14 रोगजनकों के टीकाकरण कवरेज में व्यवधान के परिणामस्वरूप दीर्घकालिक प्रभाव में 2.66% की कमी हो सकती है, जिससे होने वाली मौतों की संख्या 37,378,194 से घटकर 36,410,559 हो सकती है।
- कैच-अप टीकों का महत्त्व:
- सरकार द्वारा विशेष रूप से खसरा और येलो फीवर जैसी बीमारियों के लिये कैच-अप टीकों के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया है, जिनमें महामारी के बाद तत्काल वृद्धि देखी गई है।
- कैच-अप गतिविधियाँ मौतों को रोकने में प्रभावी पाई गईं, जिनमें खसरा, रूबेला, HPV, हेपेटाइटिस-B और येलो फीवर से संबंधित लगभग 79% मौतों को रोकने की क्षमता थी।
- DTP वैक्सीन कवरेज पर प्रभाव:
- इस महामारी ने डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस (DTP) टीकों के कवरेज को प्रभावित किया, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर 2021 में अतिरिक्त 6 मिलियन बच्चे टीकाकरण से वंचित रह गए।
- खसरे के मामलों का पुनरुत्थान:
- कई देशों में खसरे के मामले फिर से सामने आए हैं, जिनमें यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश भी शामिल हैं, जहाँ पहले खसरे को समाप्त माना गया था।
- वर्ष 2021 में 18 देशों में टीकाकरण अभियानों में कोविड-19 से संबंधित देरी के कारण लगभग 61 मिलियन खसरे के टीके की खुराक स्थगित कर दी गई।
- इसके अलावा वर्ष 2022 में वर्ष 2021 के स्तर की तुलना में वैश्विक स्तर पर खसरे के मामलों और मौतों में वृद्धि हुई, क्योंकि नाइजीरिया, पाकिस्तान एवं भारत जैसे देशों में लाखों बच्चों को टीके की खुराक नहीं मिली।
- कई देशों में खसरे के मामले फिर से सामने आए हैं, जिनमें यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश भी शामिल हैं, जहाँ पहले खसरे को समाप्त माना गया था।
- सिफारिशें:
- कैच-अप गतिविधियों की प्रभावशीलता: अध्ययन ने सुझाव दिया कि कैच-अप टीकाकरण गतिविधियों को लागू करने से कैलेंडर वर्ष 2023 और 2030 के बीच संभावित रूप से 78.9% अतिरिक्त मौतों को रोका जा सकता है।
- इसका मतलब यह है कि सक्रिय कैच-अप प्रयासों में वैक्सीन-कवरेज व्यवधानों के प्रतिकूल प्रभावों को महत्त्वपूर्ण रूप से कम करने की क्षमता है।
- कैच-अप गतिविधियों के कार्यान्वयन और लक्ष्य निर्धारण का महत्त्व: विशिष्ट समूहों और व्यवधानों से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों के अनुरूप कैच-अप टीकाकरण गतिविधियाँ समय पर कार्यान्वयन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- यह योजनाबद्ध दृष्टिकोण टीका कवरेज को बेहतर बनाने और अल्प प्रतिरक्षण के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है।
- टीकाकरण के निरंतर प्रयासों का महत्त्व: विशेष रूप से HPV जैसे टीकों के लिये निरंतर टीकाकरण प्रयास महत्त्वपूर्ण है जो गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर को रोकने में अहम भूमिका निभाते हैं।
- यह दीर्घकालिक सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ सुनिश्चित करने के लिये व्यवधानों की स्थिति में भी जारी टीकाकरण अभियान की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- कैच-अप गतिविधियों की प्रभावशीलता: अध्ययन ने सुझाव दिया कि कैच-अप टीकाकरण गतिविधियों को लागू करने से कैलेंडर वर्ष 2023 और 2030 के बीच संभावित रूप से 78.9% अतिरिक्त मौतों को रोका जा सकता है।
टीकाकरण से संबंधित प्रमुख पहल क्या हैं?
- वैश्विक:
- टीकाकरण प्रतिरक्षण एजेंडा 2030 (IA2030): यह 2021-2030 के दशक के लिये टीकों और प्रतिरक्षा के लिये एक महत्त्वाकांक्षी, व्यापक प्रतिरक्षण रणनीति- 2030,वैश्विक दृष्टि एवं रणनीति निर्धारित करता है।
- दशक के अंत तक IA2030 का लक्ष्य:
- किसी भी प्रकार का टीका प्राप्त न कर पाने वाले बच्चों की संख्या में 50% की कमी करना।
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 500 नए अथवा कम उपयोग किये जाने वाले टीकों की शुरुआत का लक्ष्य प्राप्त करना।
- बचपन के आवश्यक टीकों के लिये 90% कवरेज प्राप्त करना।
- दशक के अंत तक IA2030 का लक्ष्य:
- विश्व टीकाकरण सप्ताह: यह प्रत्येक वर्ष अप्रैल के अंतिम सप्ताह में मनाया जाता है।
- बिग कैच-अप पहल: इसे WHO, UNICEF, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा टीकाकरण एजेंडा 2030 एवं कई अन्य वैश्विक और राष्ट्रीय स्वास्थ्य भागीदारों की सहायता से लॉन्च किया गया था, जो कि कोविड 19 महामारी के बाद बच्चों के टीकाकरण में वृद्धि करने हेतु लक्षित एक वैश्विक प्रयास है।
- टीकाकरण प्रतिरक्षण एजेंडा 2030 (IA2030): यह 2021-2030 के दशक के लिये टीकों और प्रतिरक्षा के लिये एक महत्त्वाकांक्षी, व्यापक प्रतिरक्षण रणनीति- 2030,वैश्विक दृष्टि एवं रणनीति निर्धारित करता है।
- भारतीय पहल:
- सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (UIP):
- यह कार्यक्रम टीकाकरण के माध्यम से रोकी जा सकने वाली 12 व्याधियों के लिये मुफ्त टीकाकरण सुनिश्चित करता है।
- राष्ट्रीय स्तर पर 9 बीमारियों के खिलाफ: डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टेटनस, पोलियो, खसरा, रूबेला, बचपन के तपेदिक का गंभीर रूप, हेपेटाइटिस B और हेमोफिलस इन्फ्लूएंज़ा टाइप-B के कारण होने वाला मेनिनजाइटिस एवं निमोनिया।
- उप-राष्ट्रीय स्तर पर 3 बीमारियों के खिलाफ: रोटावायरस डायरिया, न्यूमोकोकल निमोनिया और जापानी इंसेफ्लाइटिस।
- UIP की दो प्रमुख उपलब्धियाँ: वर्ष 2014 में पोलियो का उन्मूलन और वर्ष 2015 में मातृ व नवजात टेटनस का उन्मूलन।
- मिशन इंद्रधनुष:
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MOHFW) द्वारा UIP के तहत सभी टीकाकरण से वंचित और आंशिक टीकाकरण वाले बच्चों का टीकाकरण करने के लिये वर्ष 2014 में मिशन इंद्रधनुष (MI) शुरू किया गया था।
- इसे कई चरणों में क्रियान्वित किया जा रहा है।
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MOHFW) द्वारा UIP के तहत सभी टीकाकरण से वंचित और आंशिक टीकाकरण वाले बच्चों का टीकाकरण करने के लिये वर्ष 2014 में मिशन इंद्रधनुष (MI) शुरू किया गया था।
- सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (UIP):
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. कोविड-19 महामारी के दौरान वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की भूमिका का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2020) |
शासन व्यवस्था
कॉटन कैंडी पर प्रतिबंध
प्रिलिम्स के लिये:कॉटन कैंडी, रोडामाइन B पर प्रतिबंध, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI), खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006। मेन्स के लिये:कॉटन कैंडी पर प्रतिबंध, खाद्य और पोषण असुरक्षा। |
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हिमाचल प्रदेश ने संभावित खतरनाक रंग एजेंट रोडामाइन B की उपस्थिति के बाद कॉटन कैंडी या कैंडी फ्लॉस के उत्पादन, बिक्री और भंडारण पर एक वर्ष का प्रतिबंध लगा दिया है।
- यह प्रतिबंध कर्नाटक, तमिलनाडु और गोवा जैसे राज्यों की तर्ज़ पर है, जिन्होंने हानिकारक रंजक एजेंटों पर समान प्रतिबंध लागू किये हैं।
- इन कृत्रिम रंगों से युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन से कैंसर सहित दीर्घकालिक स्वास्थ्य ज़ोखिम उत्पन्न हो सकता है।
कॉटन कैंडी क्या है?
- कॉटन कैंडी, जिसे कुछ क्षेत्रों में कैंडी फ्लॉस या फेयरी फ्लॉस के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रकार की स्पन शुगर कन्फेक्शनरी है जो आमतौर पर कार्निवल, मेलों और मनोरंजन पार्कों में बेची जाती है।
- इसे चीनी को गर्म करके और द्रवीभूत करके बनाया जाता है तथा फिर इसे छोटे छिद्रों के माध्यम से घुमाया जाता है, जहाँ यह लंबे तंतुओं के रूप में ठंडा होकर, फिर से जमता चला जाता है।
- इन तंतुओं को एक शंकु या छड़ी पर एकत्रित किया जाता है, जिससे एक फूली हुई, कपास/रूई के फाहे जैसी संरचना बनती है।
रोडामाइन B क्या है?
- परिचय:
- रोडामाइन B एक रंजक एजेंट है जिसका उपयोग आमतौर पर वस्त्र, कागज़ और चमड़ा उद्योगों में किया जाता है। यह कलरेंट/रंजक एजेंट कम लागत का होता है और कभी-कभी इसका प्रयोग लोकप्रिय स्ट्रीट फूड आइटम जैसे कि गोभी मंचूरियन तथा कॉटन कैंडी को चटक रंग देने के लिये किया जाता है।
- यह रंजक एजेंट उपभोग के लिये उपयुक्त नहीं है क्योंकि इससे तीव्र विषाक्तता हो सकती है। इस रसायन के संपर्क में आने से आँख को भी नुकसान हो सकता है और श्वास नली में जलन हो सकती है।
- जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कैंसर कारक एजेंटों की एक सूची तैयार की गई है, जिसके अनुसार इसे मनुष्यों के लिये कैंसरकारी के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है, किंतु चूहों पर कुछ अध्ययन हुए हैं जिन्होंने इसके कैंसरजन्य प्रभाव को दर्शाया है।
- खाद्य उत्पादों में उपयोग:
- इसे आमतौर पर खाद्य उत्पादों में नहीं मिलाया जाता है, रोडामाइन B के मामले अमूमन छोटे शहरों में सड़क के किनारे खड़े होने वाले छोटे विक्रेताओं से संबंधित होते हैं।
- इसका कारण खाद्य पदार्थों में स्वीकार्य रंगों के संबंध में ज्ञान का अभाव है। छोटे विक्रेताओं को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि यह डाई/रंग हानिकारक हो सकता है क्योंकि इसका प्रभाव हमेशा उपभोग के तुरंत बाद महसूस नहीं होता है।
- इसका उपयोग प्रायः "अवैध रूप से" गोभी मंचूरियन, आलू वेज, बटर चिकन, अनार के जूस, छोटे पैमाने पर उत्पादित आइसक्रीम अथवा कॉटन कैंडी जैसे खाद्य उत्पाद में किया जाता है।
- इसे आमतौर पर खाद्य उत्पादों में नहीं मिलाया जाता है, रोडामाइन B के मामले अमूमन छोटे शहरों में सड़क के किनारे खड़े होने वाले छोटे विक्रेताओं से संबंधित होते हैं।
- वैधानिकता:
- भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) ने खाद्य उत्पादों में रोडामाइन B के उपयोग पर विशेष रूप से प्रतिबंध लगा दिया है।
- भोजन की तैयारी, प्रसंस्करण एवं वितरण में इस रसायन का किसी भी प्रकार उपयोग करना खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत दंडनीय है।
खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2006 के तहत किन खाद्य रंगों के उपयोग की अनुमति है?
- FSSAI खाद्य पदार्थों में बहुत कम प्राकृतिक और कृत्रिम रंगों के उपयोग की अनुमति देता है। जो निम्नलिखित हैं:
- प्राकृतिक खाद्य रंग:
- कैरोटीन और कैरोटीनॉयड (पीला, नारंगी): ये प्राकृतिक रंगद्रव्य हैं जो कई फलों व सब्ज़ियों, जैसे गाजर, कद्दू और टमाटर में पाए जाते हैं। इन खाद्य पदार्थों इनके मिश्रण से पीला, नारंगी और लाल रंग प्राप्त होता है।
- क्लोरोफिल (हरा): क्लोरोफिल पादपों के हरे रंग के लिये उत्तरदायी वर्णक है। इसका उपयोग प्रायः प्राकृतिक खाद्य रंग एजेंट के रूप में किया जाता है।
- राइबोफ्लेविन (पीला): राइबोफ्लेविन, जिसे विटामिन B2 के रूप में भी जाना जाता है, एक पीले रंग का यौगिक है जो विभिन्न खाद्य पदार्थों में पाया जाता है। इसे कभी-कभी खाद्य रंग एजेंट के रूप में उपयोग किया जाता है।
- कैरेमल: कैरेमल एक प्राकृतिक खाद्य रंग एजेंट है जो चीनी को गर्म करने से प्राप्त होता है। कैरेमलाइज़ेशन की डिग्री के आधार पर इसका रंग हल्के पीले से लेकर गहरे भूरे तक हो सकता है।
- एन्नाट्टो (नारंगी-लाल): एन्नाट्टो एक प्राकृतिक खाद्य रंग है जो अचीओट पेड़ के बीजों से प्राप्त होता है। यह खाद्य पदार्थों को एक नारंगी-लाल रंग प्रदान करता है और आमतौर पर इसका उपयोग पनीर, मक्खन एवं अन्य डेयरी उत्पादों में किया जाता है।
- केसर: केसर एक मसाला है जो क्रोकस सैटाइवस पौधे के फूल से प्राप्त होता है। यह अपने गहरे पीले रंग के लिये जाना जाता है और दुनिया के सबसे महँगे मसालों में से एक है।
- करक्यूमिन (पीला, हल्दी से): करक्यूमिन हल्दी में पाया जाने वाला मुख्य सक्रिय यौगिक है। यह इस मसाले के पीले रंग के लिये ज़िम्मेदार है और इसका उपयोग प्राकृतिक खाद्य रंग एजेंट के रूप में किया जाता है।
- कृत्रिम रंग:
- पोंसेउ 4R: एक कृत्रिम लाल रंग जो आमतौर पर विभिन्न खाद्य तथा पेय उत्पादों में उपयोग किया जाता है।
- कार्मोइसिन: एक अन्य कृत्रिम लाल रंग जिसका प्रयोग प्राय: खाद्य पदार्थों को रंगने में किया जाता है।
- एरिथ्रोसिन: एक कृत्रिम लाल रंग जो आमतौर पर खाद्य पदार्थों को रंगने में उपयोग किया जाता है, विशेषकर मिठाइयों और कैंडी में।
- टार्ट्राज़िन तथा सनसेट येलो FCF: कृत्रिम पीले रंग व्यापक रूप से विभिन्न खाद्य उत्पादों में उपयोग किये जाते हैं।
- इंडिगो कारमाइन तथा ब्रिलियंट ब्लू FCF: खाद्य पदार्थों को रंगने में कृत्रिम नीले रंग का प्रयोग किया जाता है।
- फास्ट ग्रीन FCF: खाद्य उत्पादों में प्रयोग किया जाने वाला कृत्रिम हरा रंग।
- प्राकृतिक खाद्य रंग:
- हालाँकि, सभी खाद्य पदार्थों में स्वीकार्य खाद्य रंगों की भी अनुमति नहीं है। कुछ खाद्य पदार्थ जिनमें इन रंगों का उपयोग किया जा सकता है उनमें आइसक्रीम, बिस्कुट, केक, कन्फेक्शनरी, फलों के सिरप एवं क्रश, कस्टर्ड पाउडर, जेली क्रिस्टल तथा कार्बोनेटेड अथवा गैर-कार्बोनेटेड पेय शामिल हैं।
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण क्या है?
- परिचय:
- FSSAI, वर्ष 2006 के खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम के तहत स्थापित एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है।
- वर्ष 2006 का अधिनियम, भोजन से संबंधित विभिन्न कानूनों को समेकित करता है, जैसे कि खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954, फल उत्पाद आदेश, 1955, मांस खाद्य उत्पाद आदेश, 1973, के साथ-साथ अन्य अधिनियम, जिनकी निगरानी पहले विभिन्न मंत्रालयों और विभागों द्वारा की जाती थी।
- इस अधिनियम का उद्देश्य बहु-स्तरीय, बहु-विभागीय नियंत्रण से एकल कमांड लाइन की ओर बढ़ते हुए, खाद्य सुरक्षा एवं मानकों से संबंधित सभी मामलों के लिये एक एकल संदर्भ बिंदु स्थापित करना है।
- वर्ष 2006 का अधिनियम, भोजन से संबंधित विभिन्न कानूनों को समेकित करता है, जैसे कि खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954, फल उत्पाद आदेश, 1955, मांस खाद्य उत्पाद आदेश, 1973, के साथ-साथ अन्य अधिनियम, जिनकी निगरानी पहले विभिन्न मंत्रालयों और विभागों द्वारा की जाती थी।
- FSSAI, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंर्तगत कार्य करते हुए, भारत में खाद्य सुरक्षा एवं गुणवत्ता को विनिमयन के साथ पर्यवेक्षण करके सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा और बढ़ावा देने के लिये भी ज़िम्मेदार है।
- FSSAI का मुख्यालय नई दिल्ली में है और साथ ही देश भर में आठ क्षेत्रों में इसके क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं।
- FSSAI के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है। इसका अध्यक्ष भारत सरकार के सचिव के पद के सामान पद पर आसीन व्यक्ति होता है।
- FSSAI, वर्ष 2006 के खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम के तहत स्थापित एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है।
- कार्य एवं शक्तियाँ:
- खाद्य उत्पादों और योजकों के लिये विनियमों तथा मानकों का निर्धारण।
- खाद्य व्यवसायों को लाइसेंस और रजिस्ट्रीकरण प्रदान करना।
- खाद्य सुरक्षा कानूनों और विनियमों का प्रवर्तन।
- खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता की निगरानी तथा पर्यवेक्षण।
- खाद्य सुरक्षा मुद्दों पर जोखिम मूल्यांकन और वैज्ञानिक अनुसंधान का संचालन करना।
- खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता पर प्रशिक्षण तथा जागरूकता बढ़ाना।
- खाद्य सुदृढ़ीकरण और जैविक खाद्य पदार्थों को प्रोत्साहन।
- खाद्य सुरक्षा मामलों पर अन्य एजेंसियों और हितधारकों के साथ समन्वय करना।
- कार्यक्रम और अभियान:
- विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस
- ईट राईट इंडिया
- ईट राईट स्टेशन
- ईट राईट मेला
- राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक
- RUCO (प्रयुक्त खाद्य तेल का पुन: उपयोग)
- खाद्य सुरक्षा मित्र
- 100 फूड स्ट्रीट
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न.निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियों का सामना करने के लिये भारत सरकार द्वारा अपनाई गई नीतियों के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये। (2021) |