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डेली न्यूज़

  • 26 Mar, 2024
  • 73 min read
शासन व्यवस्था

सिनेमैटोग्राफ (प्रमाणन) नियम, 2024

प्रिलिम्स के लिये:

सिनेमैटोग्राफ (प्रमाणन) नियम, 2024, सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) अधिनियम, 2023, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC)।

मेन्स के लिये:

भारत में फिल्म उद्योग का विनियमन, भारतीय फिल्म बाज़ार और अर्थव्यवस्था के लिये इसका महत्त्व, वैश्विक फिल्म बाज़ार में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता।

स्रोत: पी. आई. बी.

चर्चा में क्यों?

सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) अधिनियम, 2023 के अनुसरण में केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सिनेमैटोग्राफ (प्रमाणन) नियम, 1983 के स्थान पर सिनेमैटोग्राफ (प्रमाणन) नियम, 2024 को अधिसूचित किया है।

  • सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) अधिनियम, 2023 ने सिनेमैटोग्राफ अधिनियम 1952 में संशोधन किया, जो भारत में फिल्मों के प्रमाणन, प्रदर्शन और सेंसरशिप को नियंत्रित करता है।

सिनेमैटोग्राफ (प्रमाणन) नियम, 2024 क्या हैं?

  • उद्देश्य :
    • नियमों का उद्देश्य प्रासंगिकता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिये फिल्म क्षेत्र में उभरती प्रौद्योगिकियों तथा प्रगति के साथ तालमेल बनाए रखना है।
  • सिनेमैटोग्राफ (प्रमाणन) नियम, 2024 में मुख्य पहलू:
    • ऑनलाइन प्रमाणन प्रक्रियाओं के साथ संरेखण:
      • ऑनलाइन प्रमाणन प्रक्रियाओं को अपनाने के साथ इसे पूरी तरह से संरेखित करने हेतु नियमों में व्यापक संशोधन किया गया है, जो फिल्म उद्योग के लिये बढ़ी हुई पारदर्शिता, दक्षता और व्यापार सुगमता सुनिश्चित करेगा।
    • प्रमाणन समय-सीमा में कमी:
      • फिल्म प्रमाणन की प्रक्रिया के लिये समय-सीमा में कमी और काम करने के समय में लगने वाले विलंब को खत्म करने हेतु पूर्ण डिजिटल प्रक्रियाओं को अपनाना।
    • फिल्मों के लिये अभिगम्यता सुविधाएँ:
      • समय-समय पर इस संबंध में जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, फिल्मों/फीचर फिल्मों में प्रमाणन के लिये पहुँच संबंधी विशेषताएँ होनी चाहिये, ताकि इसमें दिव्यांगजनों को भी शामिल किया जा सके।
    • आयु-आधारित प्रमाणीकरण का परिचय:
      • मौजूदा UA (Universal Adult) श्रेणी को तीन श्रेणियों में उप-विभाजित करके प्रमाणन की आयु आधारित श्रेणियों को शुरू किया जा रहा है, यानी बारह वर्ष के बजाय सात वर्ष (UA 7+), तेरह वर्ष (UA 13+) और सोलह वर्ष (UA 16+)
      • ये आयु आधारित मार्कर केवल अनुशंसात्मक होंगे, जो माता-पिता या अभिभावकों हेतु इस बात पर विचार करने हेतु होंगे कि क्या उनके बच्चों को ऐसी फिल्म देखनी चाहिये। साथ ही यह सुनिश्चित करना कि युवा दर्शकों को आयु-उपयुक्त सामग्री उपलब्ध हो।
    • उन्नत लिंग प्रतिनिधित्व:
      • नियम केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) बोर्ड और सलाहकार पैनलों में महिलाओं के अधिक प्रतिनिधित्व को निर्धारित करते हैं, बोर्ड में एक-तिहाई सदस्य एवं अधिमानतः आधी महिलाएँ होंगी।
    • फिल्मों की प्राथमिकता स्क्रीनिंग के लिये प्रणाली:
      • प्रमाणन प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिये फिल्मों की प्राथमिकता स्क्रीनिंग का प्रावधान शुरू किया गया है, विशेषकर फिल्म रिलीज़ से संबंधित तत्काल प्रतिबद्धताओं का सामना करने वाले फिल्म निर्माताओं के लिये।
    • प्रमाण-पत्रों की स्थायी वैधता:
      • केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) द्वारा जारी प्रमाण-पत्रों की स्थायी वैधता सुनिश्चित करते हुए प्रमाण-पत्रों की वैधता पर केवल 10 वर्षों के लिये प्रतिबंध हटा दिया गया है।
    • टेलीविज़न प्रसारण के लिये पुनः प्रमाणीकरण:
      • टेलीविज़न प्रसारण हेतु संपादित फिल्मों के लिये पुन: प्रमाणन आवश्यक है, जिससे केवल अप्रतिबंधित सार्वजनिक प्रदर्शनी श्रेणी प्रमाणन वाली फिल्मों को टेलीविज़न पर दिखाए जाने की अनुमति मिलती है।
  • महत्त्व:
    • नियमों में बदलाव पिछले चार दशकों में फिल्म प्रौद्योगिकी और दर्शकों की जनसांख्यिकी में प्रगति को अद्यतन किया गया है।
    • वर्ष 2023 में सिनेमैटोग्राफ अधिनियम में संशोधन को लागू करते हुए नए नियम प्रमाणन प्रक्रिया को सरल बनाते हैं, जिससे यह समकालीन और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बन जाता है।

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC)

  • CBFC सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत संचालित एक वैधानिक निकाय है, जिसे सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के अनुसार फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन को विनियमित करने का कार्य सौंपा गया है।
    • वैधानिक आवश्यकताओं और मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए, CBFC से प्रमाणन प्राप्त करने के बाद ही फिल्मों को भारत में सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जा सकता है।
  • CBFC में गैर-आधिकारिक सदस्य और एक अध्यक्ष शामिल होते हैं, जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है तथा इसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है।
  • इसके अतिरिक्त, यह पूरे भारत में नौ क्षेत्रीय कार्यालय संचालित करता है, जिनमें से प्रत्येक फिल्मों की जाँच में सहायता के लिये सलाहकार पैनल होते हैं।
  • सलाहकार पैनल में केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न पृष्ठभूमियों से नामित सदस्य शामिल होते हैं, जो 2 वर्ष की अवधि के लिये सेवारत होते हैं।

भारत में फिल्म उद्योग

  • निर्मित फिल्मों की संख्या के मामले में भारतीय फिल्म उद्योग विश्व में सबसे बड़ा है और 40 से अधिक भाषाओं में सालाना 3,000 से अधिक फिल्मों का निर्माण करने वाला विश्व में सबसे बड़ा उद्योग है।
    • भारत में तीन सबसे बड़े फिल्म उद्योग हिंदी, तेलुगू और तमिल हैं।
  • भारतीय फिल्म उद्योग अपने जीवंत और विविध सिनेमा के लिये जाना जाता है जिसका बाज़ार मूल्य वर्ष 2022 में 172 बिलियन भारतीय रुपए से अधिक था। यह आँकड़ा फिल्म उद्योग के मूल्य में हुए सुधार को इंगित करता है हालाँकि उद्योग अभी भी कोविड-19 महामारी के प्रभावों का सामना करते हुए वीडियो ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म के तीव्र विकास से होने वाली चुनौतियों का सामना कर रहा है।
    • भारत में महामारी और लॉकडाउन के दौरान लोग अपने घरों तक ही सीमित थे जिस दौरान OTT प्लेटफाॅर्मों सहित वीडियो स्ट्रीमिंग सेवाओं नें लोकप्रियता हासिल की।
    • भारत में ऑनलाइन वीडियो बाज़ार में वैश्विक और स्थानीय अभिकर्त्ताओं की संयुक्त भागीदारी है, जो 400 मिलियन से अधिक उपयोगकर्त्ताओं के लिये प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
  • वित्तीय वर्ष 2022 में समग्र देश में टेलीविज़न और फिल्म उद्योग द्वारा सृजित नौकरियों का अनुमान 4.12 मिलियन था, जो वित्तीय वर्ष 2017 में लगभग 2.36 मिलियन नौकरियों से अधिक था।

और पढ़ें…सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2023

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हाल ही में बना ‘द मैन हू न्यू इन्फिनिटी’ (The Man Who Knew Infinity) शीर्षक वाला चलचित्र किसके जीवनचरित पर आधारित है? (2016)

(a) एस. रामानुजन
(b) एस. चंद्रशेखर
(c) एस.एन. बोस
(d) सी.वी. रमन

उत्तर: (a)

  • 'द मैन हू न्यू इनफिनिटी' भारतीय गणितज्ञ एस. रामानुजन (1887-1920) के जीवनचरित पर आधारित चलचित्र है, जो गणितीय विश्लेषण में अपने बहुमूल्य योगदान के लिये जाने जाते हैं।
  • वह रॉयल सोसाइटी के सदस्य थे।

अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।


सामाजिक न्याय

स्वास्थ्य और देखभाल के लिये उचित अंश रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), स्वास्थ्य और देखभाल के लिये उचित अंश रिपोर्ट, देखभाल का अवमूल्यन, लिंग वेतन अंतर, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC)

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य और देखभाल के लिये उचित अंश रिपोर्ट, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं मानव संसाधन से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास तथा प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वैश्विक स्वास्थ्य सेवा में लैंगिक अंतर को समाप्त करने की दिशा में एक नई रिपोर्ट जारी की, जिसका शीर्षक है- Fair Share for Health and Care report अर्थात् स्वास्थ्य और देखभाल के लिये उचित अंश रिपोर्ट।

रिपोर्ट के मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • स्वास्थ्य और देखभाल कार्यबल में लैंगिक असमानताएँ:
    • भुगतान प्राप्त वैश्विक स्वास्थ्य एवं देखभाल कार्यबल में 67% महिलाएँ शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, वे सभी अवैतनिक देखभाल गतिविधियों का अनुमानित 76% प्रदर्शन करते हैं।
    • यह वैतनिक और अवैतनिक देखभाल कार्य दोनों में महत्त्वपूर्ण लैंगिक असमानताओं को उजागर करता है।
    • निम्न या मध्यम आय वाले देशों में महिलाओं की आय 9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर बेहतर हो सकती है यदि उनका वेतन और वैतनिक काम तक पहुँच पुरुषों के बराबर हो।
  • निर्णय लेने पर अपर्याप्त प्रतिनिधित्व:
    • निर्णायक मामलों में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। महिलाओं को निचले दर्जे की भूमिकाओं में अधिक प्रतिनिधित्व दिया गया है, इनमें अधिकांश नर्सें और मिडवाइफ शामिल हैं।
    • हालाँकि नेतृत्वकारी भूमिकाओं में उनका प्रतिनिधित्व कम है। चिकित्सा विशिष्टताओं में अभी भी पुरुषों का वर्चस्व है। रिपोर्ट के अनुसार 35 देशों में डॉक्टरों में 25% से 60% महिलाएँ हैं, लेकिन नर्सिंग स्टाफ में 30% से 100% के बीच महिलाएँ हैं।
  • स्वास्थ्य प्रणालियों में कम निवेश:
    • स्वास्थ्य और देखभाल क्षेत्र में लगातार कम निवेश के कारण अवैतनिक देखभाल कार्यों का एक दुष्चक्र शुरू हो गया है, जिससे वैतनिक श्रम बाज़ारों में महिलाओं की भागीदारी कम हो गई है, इससे आर्थिक सशक्तीकरण एवं लैंगिक समानता में बाधा उत्पन्न हुई है।

  • देखभाल का अवमूल्यन:
    • मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा की जाने वाली देखभाल को कम महत्त्व दिया जाता है, जिससे कम वेतन, खराब कामकाजी स्थिति, उत्पादकता में कमी और संबद्ध क्षेत्र पर नकारात्मक आर्थिक प्रभाव पड़ता है।
  • लैंगिक वेतन अंतर के निहितार्थ:
    • वेतन अंतराल महिलाओं की अपने परिवार और समुदाय में निवेश करने की क्षमता को सीमित करता है।
    • विश्व स्तर पर औसतन महिलाओं द्वारा अर्जित आय के 90% का व्यय अपने परिवार की देखभाल के लिये किया जाता है जबकि पुरुषों की आय का केवल 30-40% ही उक्त संबंध में व्यय किया जाता है।
  • हिंसा का उच्च स्तर:
    • स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में महिलाओं को असमान रूप से लैंगिक हिंसा के उच्च स्तर का सामना करना पडा।
    • अनुमानों के अनुसार विश्व के सभी क्षेत्रों में कार्यस्थल पर होने वाली हिंसा में स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में होने वाली हिंसा का योगदान एक-चौथाई है।
      • स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के सभी कर्मचारियों में से कम-से-कम आधे कर्मचारियों को कार्यस्थल पर किसी न किसी क्षण पर हिंसा का सामना करना पड़ा।
  • भारतीय परिदृश्य:
    • भारत में महिलाएँ अपने कुल दैनिक कार्य समय का लगभग 73% (अर्थात् राष्ट्रीय दैनिक समय-उपयोग सर्वेक्षणों के माध्यम से दर्ज किये गए अवैतनिक और भुगतान किये गए कार्यों हेतु नियोजित किया गया संयुक्त औसत समय) अवैतनिक कार्यों पर खर्च करती हैं जबकि पुरुषों के दैनिक कार्य समय में अवैतनिक कार्य का अंश केवल 11% है।
    • यूनाइटेड किंगडम में लगभग 4.5 मिलियन लोगों ने कोविड-19 के दौरान अवैतनिक कार्य किया, जिनमें महिलाओं की भागीदारी 59% अर्थात् लगभग 3 मिलियन थी।
  • स्वास्थ्य देखभाल का वैश्विक संकट:
    • रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य और देखभाल कार्यों में निवेश दशकों से अपर्याप्त रहा जिससे विश्व स्तर पर संबद्ध क्षेत्र अत्यधिक प्रभावित हुआ।
    • यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (UHC) की दिशा में प्रगति में बाधा के कारण अरबों लोग आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने से वंचित रहे, जिससे महिलाओं पर अवैतनिक देखभाल कार्य का बोझ बढ़ गया।
  • प्रमुख अनुशंसाएँ:
    • सभी प्रकार के स्वास्थ्य और देखभाल कार्यों, विशेष रूप से अत्यधिक नारीवादी व्यवसायों के लिये कार्य स्थितियों में सुधार करना।
    • वेतनभोगी श्रम कार्यबल में महिलाओं को अधिक न्यायसंगत रूप से शामिल करना।
    • स्वास्थ्य और देखभाल कार्यबल में कार्य स्थिति में सुधार कर वेतन वृद्धि करना एवं समान कार्य के लिये समान वेतन सुनिश्चित करना।
    • स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में लैंगिक अंतराल का समाधान करते हुए गुणवत्तापूर्ण देखभाल कार्य का अनुसमर्थन करना और देखभाल कर्मियों के अधिकारों का संरक्षण कर उनका कल्याण सुनिश्चित करना।
    • राष्ट्रीय आँकड़ों में सभी स्वास्थ्य और देखभाल कार्यों का लेखा-जोखा, मापन एवं मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करना।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों में निवेश करना।

लैंगिक असमानता का समाधान करने के लिये सरकार की पहल क्या हैं?

  • आर्थिक भागीदारी और स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता:
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ: यह बालिकाओं की सुरक्षा, अस्तित्त्व और शिक्षा सुनिश्चित करने में मदद करता है।
    • महिला शक्ति केंद्र: इसका उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को कौशल विकास और रोज़गार के अवसरों के साथ सशक्त बनाना है।
    • महिला पुलिस स्वयंसेवक: इसमें राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में महिला पुलिस स्वयंसेवकों की भागीदारी की परिकल्पना की गई है जो पुलिस और समुदाय के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करती हैं तथा संकट में महिलाओं की सहायता करती हैं।
    • राष्ट्रीय महिला कोष: यह एक शीर्ष सूक्ष्म-वित्त संगठन है जो गरीब महिलाओं को विभिन्न आजीविका और आय सृजन गतिविधियों के लिये रियायती शर्तों पर सूक्ष्म ऋण प्रदान करता है।
    • सुकन्या समृद्धि योजना: इस योजना के तहत लड़कियों के बैंक खाते खुलवाकर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया गया है।
    • महिला उद्यमिता: महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने स्टैंड-अप इंडिया और महिला ई-हाट (महिला उद्यमियों/SHG/NGO का समर्थन करने हेतु ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म), उद्यमिता तथा कौशल विकास कार्यक्रम (ESSDP) जैसे कार्यक्रम शुरू किये हैं।
    • कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय: इन्हें शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लॉकों (EBB) में खोला गया है।
  • राजनीतिक आरक्षण: सरकार ने महिलाओं के लिये पंचायती राज संस्थाओं में 33% सीटें आरक्षित की हैं।
    • निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों का क्षमता निर्माण: यह महिलाओं को शासन प्रक्रियाओं में प्रभावी ढंग से भाग लेने के लिये सशक्त बनाने के उद्देश्य से आयोजित किया जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन, विश्व के देशों के लिये सार्वभौम लैंगिक अंतराल सूचकांक का श्रेणीकरण प्रदान करता है? (2017)

  1. विश्व आर्थिक मंच
  2. UN मानव अधिकार परिषद
  3. UN वीमेन
  4. विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: (a)


प्रश्न. 2 'डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (Médecins Sans Frontières)' जो प्रायः समाचारों में देखा जाता है, है: (2016)

  1. विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक प्रभाग
  2. एक गैर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन
  3. यूरोपीय संघ द्वारा प्रायोजित एक अंत:सरकारी एजेंसी
  4. संयुक्त राष्ट्र की एक विशिष्ट एजेंसी

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में समय और स्थान के विरुद्ध महिलाओं के लिये निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं? (2019)


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जल शुद्धिकरण प्रक्रियाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

जल की शुद्धिकरण प्रक्रियाएँ, रिवर्स ऑस्मोसिस (RO), TDS (कुल घुले हुए ठोस पदार्थ), मृत जल, WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन), भारतीय मानक ब्यूरो (BIS)

मेन्स के लिये:

जल शुद्धिकरण प्रक्रियाएँ।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में रिवर्स ऑस्मोसिस (RO) द्वारा न केवल जल से अशुद्धियों एवं रोगजनको को समाप्त करने की क्षमता हेतु लोकप्रियता प्राप्त की है, बल्कि TDS (संपूर्ण घुलनशील ठोस पदार्थ), के स्तर को भी कम करने की क्षमता भी प्राप्त की है, हालाँकि कैल्शियम एवं मैग्नीशियम जैसे आवश्यक खनिजों की हानि के कारण चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।

RO जल शुद्धिकरण विधि क्या है?

  • परिचय:
    • RO एक जल शुद्धिकरण प्रक्रिया है जो अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली का उपयोग करके जल से दूषित पदार्थों को निकालती है।
      • एक सामान्य RO प्रक्रिया में एक अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली होती है, जिसके छिद्रों का आकार 0.0001 से 0.001 माइक्रोन होता है।
    • इस विधि में जल का प्रवाह दबाव युक्त झिल्ली के माध्यम से किया जाता है, जबकि घुले हुए ठोस पदार्थ, रसायन, सूक्ष्मजीव एवं अन्य अशुद्धियाँ जैसे प्रदूषक अलग हो जाते हैं।
    • यह झिल्ली बड़े अणुओं एवं आयनों को अवरुद्ध करते हुए जल के अणुओं को गुज़रने देती है।
    • RO प्रक्रिया प्रभावी ढंग से लवण, भारी धातुओं, बैक्टीरिया, वायरस एवं कार्बनिक यौगिकों सहित अशुद्धियों की एक विस्तृत शृंखला को हटा देती है, जिससे स्वच्छ और शुद्ध जल प्राप्त होता है।
      • प्राप्त जल, खाना पकाने के साथ-साथ विभिन्न अनुप्रयोगों हेतु जल की गुणवत्ता में सुधार के लिये आवासीय तथा औद्योगिक दोनों प्रक्रिया में इस तकनीक का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

  • RO जल की बढ़ती मांग के कारण:
    • खराब जल गुणवत्ता: कई क्षेत्र, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र, खराब गुणवत्ता वाले भूजल अथवा नल के जल की चुनौतियों का सामना करते हैं। खारा स्वाद, अप्रिय गंध एवं क्लोरीन या भारी धातुओं जैसे प्रदूषकों से संदूषण जैसे मुद्दे लोगों को स्वच्छ पेयजल के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करने हेतु प्रेरित करते हैं।
    • अनुमानित स्वास्थ्य लाभ: उपभोक्ताओं के बीच एक सामान्य धारणा है कि अनुपचारित अथवा नगरपालिका द्वारा आपूर्ति किये गए जल की तुलना में RO जल पीने के लिये अधिक स्वास्थ्यवर्द्धक और सुरक्षित है
      • इस विश्वास का समर्थन करने वाले सीमित वैज्ञानिक प्रमाणों के बावजूद, RO जल की खपत से जुड़े बेहतर स्वास्थ्य परिणामों की धारणा इसकी लोकप्रियता में योगदान करती है।
    • सुविधा और पहुँच: जल शोधन संयंत्रों और उपयोग योग्य घरेलू RO सिस्टम के माध्यम से स्वच्छ जल आसानी से उपलब्ध है।
      • यह सुविधा, स्थापना और रखरखाव में आसानी के साथ स्वच्छ पेयजल तक निर्बाध पहुँच के चलते उपभोक्ताओं के लिये इसे एक पसंदीदा विकल्प बनाती है।
    • बढ़ता शहरीकरण: तेज़ी से शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण साफ जल की मांग बढ़ गई है, खासकर शहरी क्षेत्रों में जहाँ भूजल संदूषण तथा नगरपालिका जल की गुणवत्ता के मुद्दे प्रचलित हैं।
      • परिणामस्वरूप, शहरी आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये RO जल शोधन प्रणालियों की मांग बढ़ जाती है।
    • प्रौद्योगिकी प्रगति: RO प्रौद्योगिकी में निरंतर प्रगति से अधिक कुशल और लागत प्रभावी जल शोधन प्रणालियों का विकास हुआ है।
      • ये नवाचार RO जल को उपभोक्ताओं की एक विस्तृत शृंखला के लिये अधिक सुलभ और आकर्षक बनाते हैं।

RO प्रक्रिया से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?

  • आवश्यक खनिजों की हानि:
    • RO सिस्टम जल से कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे खनिजों सहित अशुद्धियों तथा रोगजनकों को हटाने में अत्यधिक प्रभावी हैं।
    • जबकि यह शुद्धिकरण प्रक्रिया स्वच्छ जल सुनिश्चित करती है, इससे आवश्यक खनिजों में भी कमी आती है जो मानव स्वास्थ्य के लिये फायदेमंद होते हैं।
      • खनिजों की यह हानि, विशेष रूप से कैल्शियम और मैग्नीशियम, संभावित रूप से सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी में योगदान कर सकती है तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये खतरा उत्पन्न कर सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ लोग पहले से ही ऐसी कमियों से परेशान हैं।
  • अत्यधिक कम TDS स्तर:
    • कई अध्ययनों में यह पाया गया कि कई स्थानों पर कुल घुलनशील ठोस (TDS) का स्तर 50 मिलीग्राम/लीटर से नीचे था, जो कैल्शियम और मैग्नीशियम के स्तर में महत्त्वपूर्ण कमी का संकेत देता है।
      • देश भर में लगभग 4,000 स्थानों पर किये गए एक अध्ययन में TDS का स्तर 25 से 30 मिलीग्राम/लीटर तक देखा गया, जो जल में आवश्यक खनिजों की कमी का संकेत देता है।
    • विभिन्न मामलों में RO जल में TDS का स्तर 18 से 25 मिलीग्राम/लीटर पाया गया जो आवश्यक खनिजों की कमी का संकेत देता है। इसे "मृत जल" (Dead Water) कहा जाता है जो बैटरी के उपयोग जैसे उद्देश्यों के लिये उपयुक्त होता है किंतु मानव द्वारा उपभोग के लिये उपयुक्त नहीं है।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव:
    • किये गए शोध के अनुसार RO सिस्टम महत्त्वपूर्ण मात्रा में जल के लाभकारी कैल्शियम और मैग्नीशियम का न्यूनीकरण कर सकता है जिससे जोड़ों का दर्द, कोरोनरी हृदय रोग, पीठ दर्द एवं विटामिन B12 की कमी जैसी संभावित स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • इसके अतिरिक्त विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने ऐसे मामलों पर प्रकाश डाला है जहाँ लोगों ने RO सिस्टम का उपयोग करने के बाद हृदय संबंधी विकारों और मांसपेशियों में ऐंठन सहित स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव किया जो मैग्नीशियम की अत्यधिक कमी का संकेत देता है।

जल के शुद्धिकरण से संबंधित अन्य विधियाँ क्या हैं?

   

सुरक्षित पेयजल के लिये TDS हेतु अनुशंसित सीमाएँ क्या हैं?

  • भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के अनुसार सुरक्षित पेयजल के लिये TDS की अधिकतम सीमा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर (ppm) है।
  • हालाँकि किसी वैकल्पिक जल स्रोत के अभाव में 2,000 मिलीग्राम/लीटर की TDS सीमा स्वीकार्य है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा वर्ष 2017 में जारी पेयजल मानकों के अनुसार पीने के जल में TDS की मात्रा 600 से 1,000 मिलीग्राम/लीटर के बीच होनी चाहिये।
  • यूरोप, अमेरिका और कनाडा के देशों ने TDS मानक 500 से 600 मिलीग्राम/लीटर निर्धारित किये हैं।

RO सिस्टम के अंतर्गत खनिज-संबंधित मुद्दों के समाधान के लिये कौन-सी तकनीकें उपलब्ध हैं?

  • TDS से संबंधित चिंताओं का समाधान करने के लिये, RO निर्माताओं ने वाणिज्यिक और आवासीय मशीनों के लिये TDS नियंत्रक (अथवा मॉड्यूलेटर) एवं मिनरल इन्फ्यूज़ंन कार्ट्रिज (अथवा मिनरलाइज़र) पेश किये। TDS नियंत्रक शुद्ध जल में TDS स्तर निर्धारित करने में मदद करते हैं, जबकि मशीन के अंदर मौजूद मिनरल कार्ट्रिज शुद्धिकरण के दौरान जल में विशिष्ट खनिज का अंतर्वाह करते हैं।
  • TDS स्तर कम होने से pH भी कम हो जाता है, जिससे जल की अम्लता बढ़ जाती है। इसलिये जल में बाइकार्बोनेट और हाइड्रोजन ऑक्साइड जैसे यौगिकों को शामिल करने के लिये नए RO सिस्टम में एल्कलाइन/क्षारीय कार्ट्रिज होते हैं।

आगे की राह

  • RO की आवश्यकता का आकलन करते समय क्षेत्र और जल की स्थिति पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
  • RO केवल उन क्षेत्रों में आवश्यक है जहाँ सतह या भू-जल कठोर है। कई स्थानों पर जहाँ सतही जल पीने के जल का स्रोत है, जल शुद्धिकरण के लिये कैंडल्स, सक्रिय कार्बन और UV फिल्टर का संयोजन पर्याप्त है।
  • जबकि RO आर्सेनिक और फ्लोराइड जैसे विषाक्त पदार्थों को समाप्त करता है, लेकिन अगर ये ज़हरीले तत्त्व ही एकमात्र चिंता का विषय हैं तो यह सबसे उपयुक्त समाधान नहीं हो सकता है।
    • झारखंड और ओडिशा जैसे क्षेत्रों में, जहाँ आर्सेनिक या फ्लोराइड संदूषण प्रचलित है, इन संदूषकों को विशेष रूप से लक्षित करने के लिये वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों को नियोजित किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये ऐसे क्षेत्रों में हैंडपंप अभी भी आमतौर पर उपयोग किये जाते हैं। हालाँकि एक बार जब पाइप से जल हर घर तक उपलब्ध होता है, तो यह सुनिश्चित करना स्थानीय अधिकारियों जैसे- नगर निगम या पंचायत, की ज़िम्मेदारी बन जाती है कि आपूर्ति किया जाने वाला जल BIS मानकों के अनुरूप हो।

और पढ़ें… 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. जैव ऑक्सीजन मांग (BOD) किसके लिये एक मानक मापदंड है ? (2017)

(a) रक्त में ऑक्सीजन स्तर मापने के लिये
(b) वन पारिस्थितिक तंत्रों में ऑक्सीजन स्तरों के अभिकलन के लिये
(c) जलीय पारिस्थितिक तंत्रों में प्रदूषण के आमापन के लिये
(d) उच्च तुंगता क्षेत्रों में ऑक्सीजन स्तरों के आकलन के लिये

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. सूक्ष्मजैविक ईंधन कोशिकाओं को स्थायी ऊर्जा का एक स्रोत माना जाता है। क्यों? (2011)

  1. वे कुछ पदार्थों से विद्युत उत्पादन के लिये सजीवों को उत्प्रेरक के रूप में उपयोग करते हैं।
  2. वे विभिन्न प्रकार की अकार्बनिक पदार्थों को सब्सट्रेट के रूप में उपयोग करते हैं।
  3. इन्हें अपशिष्ट जल शोधन संयंत्रों में स्थापित किया जा सकता है ताकि जल को शुद्ध किया जा सके और विद्युत का उत्पादन किया जा सके।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. भूमि एवं जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन से मानवीय दुखों में भारी कमी आएगी। विवेचना कीजिये। (2016)


कृषि

भारत का बासमती चावल का कृषि विवाद और चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, चावल, हरित क्रांति, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण, विश्व व्यापार संगठन, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR)

मेन्स के लिये:

बौद्धिक संपदा संरक्षण को नियंत्रित करने वाले विनियम, चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पूसा-1121 और पूसा-1509 बासमती जैसी भारत की बेशकीमती बासमती चावल की किस्में पाकिस्तान में नए नामों के साथ पाई गई हैं, जिससे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों के बीच इसको लेकर चिंता बढ़ गई है और उन्होंने भारतीय किसानों तथा निर्यातकों की सुरक्षा के लिये कानूनी कार्रवाई किये जाने का आग्रह किया है।

  • यह भारतीय किसानों की सुरक्षा और न्यायसंगत व्यापार प्रथाओं को बनाए रखने के लिये एकीकृत कार्रवाई की तात्कालिकता पर प्रकाश डालता है।
  • फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्रीज़ ऑफ इंडिया (FSII) और सथगुरु कंसल्टेंट्स ने चावल की कृषि में सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है, जिसमें चावल के प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR) तकनीकों पर विशेष ध्यान दिया गया है।

पाकिस्तान में भारतीय बासमती किस्मों की अवैध खेती कैसे की जाती है?

  • अवैध खेती:
    • पाकिस्तान में भारतीय बासमती किस्मों की खेती पूसा बासमती-1121 (PB-1121) से शुरू हुई, जो आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान में 'PK-1121 एरोमैटिक' के रूप में पंजीकृत है।
      • पूसा बासमती-6 (PB-6) और PB-1509 जैसी अन्य लोकप्रिय IARI-प्रजनित किस्मों को भी पाकिस्तान में उगाया गया है और उनका नाम बदल दिया गया है, जो भारतीय कृषि अधिकारियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करती है।
    • पूसा बासमती-1847 (PB-1847), PB-1885 और PB-1886 जैसी हालिया किस्मों की पहचान भी पाकिस्तानी खेतों में की गई है, जो बैक्टीरियल ब्लाइट एवं चावल ब्लास्ट फंगल संक्रमण का प्रतिरोध करने के लिये तैयार की गई हैं।
  • आशय:
    • पाकिस्तान में भारतीय बासमती किस्मों की अनधिकृत कृषि बीज अधिनियम, 1966 और पौधों की किस्मों तथा कृषक अधिकार संरक्षण (PPV एवं FR अधिनियम) अधिनियम, 2001 के तहत संरक्षित भारतीय किसानों तथा प्रजनकों के अधिकारों को कमज़ोर करती है।
      • भारत में अधिनियमित पौधों की किस्मों और कृषक अधिकारों का संरक्षण अधिनियम 2001, पंजीकृत किस्मों से उत्पादित बीज/अनाज को बोने, बचाने, दोबारा बोने, विनिमय करने या साझा करने के भारतीय किसानों के अधिकारों की रक्षा करता है।
        • यह अधिनियम प्रजनक की सहमति के बिना संरक्षित किस्मों के बीजों को ब्रांड लेबल लगाकर बेचने पर रोक लगाता है।
        • IARI-प्रजनित की उन्नत बासमती किस्में इस अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं।
      • बीज अधिनियम 1996, भारत के भीतर बासमती चावल के केवल आधिकारिक रूप से सीमांकित भौगोलिक संकेत (GI) क्षेत्र में IARI किस्मों की कृषि की अनुमति देता है।
        • IARI द्वारा उत्पन्न की गई सभी बासमती किस्मों को कृषि के लिये बीज अधिनियम, 1966 के तहत आधिकारिक तौर पर अधिसूचित किया गया है।
        • इन किस्मों को भारत में बासमती चावल के आधिकारिक रूप से सीमांकित भौगोलिक संकेत क्षेत्र के भीतर कृषि के लिये नामित किया गया है, जो 7 उत्तरी राज्यों (पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश (पश्चिम) और इसके अलावा जम्मू-कश्मीर (जम्मू एवं कठुआ) के दो ज़िलों में फैला हुआ है।
        • यहाँ तक कि भारतीय किसानों को ब्रांडेड, संवेष्टित या लेबल वाले रूप में बीज बेचकर ब्रीडर के अधिकारों का उल्लंघन करने से भी प्रतिबंधित किया गया है।इन विनियमों का उद्देश्य प्रजनकों के बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा करना और संरक्षित बासमती किस्मों की कृषि एवं व्यापार करने के लिये भारतीय किसानों के विशेष अधिकारों को सुनिश्चित करना है।
        • पाकिस्तान में संरक्षित बासमती किस्मों की खेती संभावित रूप से बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) का उल्लंघन होगी और भारत द्वारा इसे प्रासंगिक द्विपक्षीय मंचों एवं विश्व व्यापार संगठन में उठाया जा सकता है।

पौध किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001:

  • अधिनियम के तहत अधिकार:
    • प्रजनकों के अधिकार:
      • प्रजनकों को संरक्षित किस्मों का उत्पादन, बिक्री, विपणन, वितरण, आयात या निर्यात करने का विशेष अधिकार दिया जाता है।
      • ब्रीडर के अधिकारों में एजेंटों या लाइसेंसधारियों को नियुक्त करने और उल्लंघन के लिये नागरिक उपचार प्राप्त करने की क्षमता शामिल है।
    • शोधकर्त्ताओं के अधिकार:
      • शोधकर्त्ता प्रयोग या अनुसंधान उद्देश्यों के लिये पंजीकृत किस्मों का उपयोग कर सकते हैं।
      • किसी अन्य किस्म को विकसित करने के लिये किसी किस्म के प्रारंभिक प्रयोग की अनुमति है, लेकिन बार-बार प्रयोग के लिये पंजीकृत ब्रीडर से पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है।
    • किसानों के अधिकार:
      • जिन किसानों ने
      • किस्में विकसित की हैं, वे प्रजनकों के समान पंजीकरण और सुरक्षा के हकदार हैं।
      • किसान कुछ शर्तों के अधीन संरक्षित किस्मों के माध्यम से कृषि उपज को बचा सकते हैं, प्रयोग कर सकते हैं, विनिमय कर सकते हैं, साझा कर सकते हैं या बेच सकते हैं।
      • पादप आनुवंशिक संसाधनों से संबंधित किसानों के संरक्षण प्रयासों के लिये मान्यता और पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं।
      • संरक्षित किस्मों के गैर-प्रदर्शन के मामलों में किसानों के लिये मुआवज़े के प्रावधान मौजूद हैं।
      • किसानों को संबंधित अधिकारियों या न्यायालयों के समक्ष अधिनियम के तहत कार्यवाही में शुल्क का भुगतान करने से छूट दी गई है।

यह बासमती चावल वैश्विक बाज़ार को किस-प्रकार प्रभावित करता है?

  • वर्ष 2022-23 में, भारत ने 4.79 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के 45.61 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया। भारत का बासमती चावल निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचने के कगार पर है, अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में 5.5 अरब डॉलर मूल्य के 50 लाख टन निर्यात का संकेत दिया गया है।
    • विशेष रूप से, खरीफ वर्ष 2023 के दौरान बोए गए अनुमानित 21.35 लाख हेक्टेयर बासमती क्षेत्र का 89% IARI-प्रजनित किस्मों के अंतर्गत था, जिसमें PB-1121, PB-1718, PB-1885, PB-1509, PB-1692, PB-1847, PB-1, PB-6, और PB-1886 जैसी विशिष्ट किस्मों के तहत महत्त्वपूर्ण हिस्से थे जो निर्यात मात्रा एवं राजस्व पर अवैध कृषि के प्रभाव के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करते हैं।
  • हालाँकि भारत की तुलना में पाकिस्तान का बासमती निर्यात कम है, पाकिस्तानी रुपए के मूल्यह्रास के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धी मूल्य निर्धारण को सक्षम करने के कारण वृद्धि हुई है।
  • पाकिस्तान द्वारा भारतीय बासमती किस्मों की चोरी प्रमुख निर्यात बाज़ारों, विशेषकर यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम में भारत के प्रभुत्व के लिये समस्याएँ उत्पन्न करती है।
    • अपनी सस्ती मुद्रा के कारण पाकिस्तान की यूरोपीय संघ-यूनाइटेड किंगडम बाज़ार में 85% हिस्सेदारी है, जिससे वह इन बाज़ारों पर हावी हो गया है।
  • हालाँकि, भारत ईरान, सऊदी अरब और अन्य पश्चिम एशियाई देशों जैसे बाज़ारों में प्रभुत्व बनाए हुए है, जहाँ उपभोक्ता सख्त दाने वाले उसना/परबॉयल्ड चावल पसंद करते हैं जिसकी भोजन पकाने के दौरान टूटने की कम संभावना होती है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान:

  • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) कृषि विज्ञान में अनुसंधान, उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण में भारत का सबसे बड़ा एवं अग्रणी संस्थान है।
  • इसने हरित क्रांति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, वैज्ञानिक प्रगति और उपयुक्त कृषि प्रौद्योगिकियों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1905 में उत्तरी बिहार के पूसा गाँव में की गई थी जिसे वर्ष 1936 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद नई दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया।
  • IARI, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कार्य करता है जो सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 के तहत स्थापित एक स्वायत्त संस्था है।

डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) तकनीक क्या है?

  • परिचय:
    • डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) चावल की खेती की एक विधि है, जहाँ पारंपरिक पौधशाला (नर्सरी) तैयार करने और रोपाई की आवश्यकता नहीं होती है तथा बीजों का प्रत्यक्ष रूप से खेत में रोपण किया जाता है।
  • DSR के लाभ:
    • श्रम और लागत बचत:
      • इस विधि में श्रम-केंद्रित नर्सरी तैयार करने और रोपाई की आवश्यकता समाप्त हो जाती है जिससे उत्पादन की कुल लागत कम हो जाती है।
      • यह मैन्युअल श्रम आवश्यकताओं और संबंधित लागतों को कम करता है, जिससे संभावित रूप से अधिक उपज होती है और किसानों को अधिक लाभ मिलता है।
    • जल संरक्षण:
      • इस तकनीक के उपयोग से पारंपरिक विधियों की तुलना में जल की खपत लगभग 40% कम हो जाती है जिससे मृदा अपरदन और मीथेन उत्सर्जन कम हो जाता है।
      • पारंपरिक रोपाई की तुलना में इसमें जल की आवश्यकता कम होती है, जो इसे जल की कमी वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त बनाता है।
    • फसल की प्रारंभिक परिपक्वता: फसलें सामान्य (115-120 दिन) की तुलना में 7-10 दिन पूर्व पक जाती हैं, जिससे क्रमिक फसल की समय पर बुवाई संभव हो जाती है।
  • DSR की विधियाँ:
    • ड्राय सीडिंग: इसमें बीजों का रोपण शुष्क मृदा में किया जाता है जो सुनिश्चित वर्षा अथवा सिंचाई सुविधाओं वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।
    • वेट सीडिंग: इसमें बीजों का रोपण पोखर वाली मृदा में किया जाता है जो रोपाई की स्थितियों के समान है, जो सुनिश्चित पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।
  • चुनौतियाँ:
    • खरपतवार:
      • खरपतवार अपनी तीव्र विकास और जल की परतों की अनुपस्थिति में प्रारंभिक संक्रमण के कारण DSR के लिये एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती हैं, जिससे उपज की संभावित हानि 20% से 85% तक हो सकती है।
      • DSR से लेकर पडल्ड ट्रांसप्लांटेड राइस (PTR) तक खरपतवारों की विविधता एवं संरचना में बदलाव के कारण खरपतवार प्रबंधन की रणनीतियाँ और अधिक जटिल हो गई हैं।
      • खरपतवारयुक्त चावल, आनुवंशिक रूप से खेती किये गए चावल के समान, उन क्षेत्रों में एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है, जहाँ DSR का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है जिससे उपज की हानि और गुणवत्ता में कमी होती है।
    • शाकनाशी प्रतिरोध का विकास:
      • DSR में शाकनाशी (Herbicide) के उपयोग में वृद्धि के कारण शाकनाशी-प्रतिरोधी खरपतवार बायोटाइप की उत्पत्ति हुई है, जिससे खरपतवार नियंत्रण के प्रयास प्रभावित हुए हैं।
      • रूट-नॉट नेमाटोड, DSR के उपज में गंभीर बाधा उत्पन्न करते हैं जिससे फसल, विशेषकर PTR से DSR में संक्रमण वाले क्षेत्रों में, की पैदावार प्रभावित होती है।
        • रूट-नॉट नेमाटोड जीनस मेलोइडोगाइन के पादप-परजीवी नेमाटोड हैं। ये प्रायः ऊष्म जलवायु अथवा कम सर्दियों वाले क्षेत्रों में मृदा में पाए जाते हैं और ये विभिन्न पादपों को नुकसान पहुँचाने में सक्षम होते हैं।
    • स्थिर उपज:
      • रिपोर्टों के अनुसार, DSR में उपज में गिरावट आई है, जिसका कारण मृदा रुग्णता, पादपों की ऑटोटॉक्सिसिटी और सही रोटेशन के बिना निरंतर कृषि करना है।
    • लॉजिंग:
      • पडल्ड ट्रांसप्लांटिंग सिस्टम (PTR) की तुलना में DSR में लॉजिंग की संभावना अधिक होती है, जिससे फसल की गुणवत्ता और फसल दक्षता दोनों प्रभावित होती हैं, जिससे लॉजिंग-प्रतिरोधी किस्मों को प्राथमिकता देना आवश्यक हो जाता है।
    • रोग और कीट-पीड़क:
      • DSR विभिन्न बीमारियों जैसे राइस ब्लास्ट और शीथ ब्लाइट के साथ-साथ कीट-पीड़क (Insect Pests) के प्रति संवेदनशील होता है, जो फसल के स्वास्थ्य एवं उपज क्षमता को प्रभावित करता है।
    • अन्य चुनौतियाँ:
      • चावल के बीजों का पक्षियों एवं चूहों के संपर्क में आना, बीज बोने के बाद अचानक होने वाली वर्षा के प्रतिकूल प्रभाव के साथ असमान फसल की स्थिति जैसी चुनौतियाँ DSR कृषि की जटिलताओं को और बढ़ा देती हैं।
  • संभावित समाधान:
    • एकीकृत एवं व्यवस्थित खरपतवार निगरानी कार्यक्रम तथा सूत्रकृमि नियंत्रण के लिये बायोसाइड का उपयोग।
    • हिल सीडिंग, लॉजिंग प्रतिरोधी खेती से लॉजिंग पर नियंत्रण प्राप्त करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
    • एकीकृत प्रबंधन के साथ-साथ जैव-तकनीकी एवं आनुवंशिक दृष्टिकोण, कीट और बीमारी के मुद्दों को हल करने में सहायता प्रदान कर सकते हैं।
  • उद्योग परिप्रेक्ष्य:
    • इसे चावल की खेती में एक तकनीकी प्रगति के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो बीज, उर्वरक, कीटनाशकों तथा कृषि मशीनरी से जुड़े व्यवसायों हेतु अवसर सृजित कर रही है।
    • यह वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों के अनुरूप उन हितधारकों से अपील करता है जो पर्यावरणीय विषय पर चिंतित हैं।
    • इसके अंर्तगत किसानों एवं कृषि मूल्य शृंखला हेतु आर्थिक व्यवहार्यता का मूल्यांकन किया जाता है।
  • सरकारी सहायता एवं नीतियाँ:
    • सरकारी नीतियों एवं खरीद प्रणालियों से सहायता महत्त्वपूर्ण है।
    • DSR में प्रभावी परिवर्तन के लिये केंद्र एवं राज्य सरकार की नीतियों के बीच तालमेल की आवश्यकता है।

नोट:

FSII अनुसंधान एवं विकास आधारित पादप विज्ञान उद्योग का एक निकाय है, जो भारत में भोजन, चारा एवं फाइबर के लिये उच्च प्रदर्शन गुणवत्ता वाले बीजों के उत्पादन में लगा हुआ है।

चावल:

  • तापमान: उच्च आर्द्रता के साथ 22-32 डिग्री सेल्सियस के बीच।
  • वर्षा: लगभग 150-300 सेंटीमीटर।
  • मृदा का प्रकार: गहरी चिकनी मृदा और दोमट मृदा।
  • शीर्ष चावल उत्पादक राज्य: पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और बिहार।
  • यह बहुसंख्यक भारतीय लोगों की मुख्य खाद्य फसल है।
  • चीन के बाद भारत दुनिया में चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • असम, पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा जैसे राज्यों में एक वर्ष में धान की तीन फसलें उगाई जाती हैं। ये हैं औस, अमन एवं बोरो।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. कृषि में शून्य-जुताई (Zero-Tillage) का/के क्या लाभ है/हैं? (2020)

  1. पिछली फसल के अवशेषाें को जलाए बिना गेहूँ की बुवाई संभव है।
  2. चावल की नई पौध की नर्सरी बनाए बिना धान के बीजाें का नम मृदा में सीधे रोपण संभव है।
  3. मृदा में कार्बन पृथक्करण संभव है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. विज्ञान हमारे जीवन में गहराई तक कैसे गुथा हुआ है? विज्ञान-आधारित प्रौद्योगिकियों द्वारा कृषि में उत्पन्न हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तन क्या हैं? (2020)


प्रश्न. सिक्किम भारत में प्रथम ‘जैविक राज्य’ है। जैविक राज्य के पारिस्थितिक एवं आर्थिक लाभ क्या-क्या होते हैं? (2018)


प्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस.) किस सीमा तक कृषि उत्पादन को संधारित करने में सहायक है? (2019)


शासन व्यवस्था

दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामला

प्रिलिम्स के लिये:

दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति 2021-22, प्रवर्तन निदेशालय (ED), कोविड-19 महामारी, संविधान का अनुच्छेद 361, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951।

मेन्स के लिये:

दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति 2021-22, प्रवर्तन निदेशक, इसके कार्य और संबंधित मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली की एक मजिस्ट्रेट न्यायालय ने उत्पाद शुल्क नीति मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री को प्रवर्तन निदेशालय (ED) की हिरासत में भेज दिया है।

  • ED ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पर दिल्ली उत्पाद शुल्क घोटाले का "मुख्य साजिशकर्त्ता" होने का आरोप लगाया है।

क्या है दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामला?

    • परिचय:
      • दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामला दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति 2021-22 के निर्माण और कार्यान्वयन से जुड़े मामले को संदर्भित करता है।
    • यह नीति, जो नवंबर 2021 में लागू हुई, बाद में प्रक्रियात्मक खामियों, भ्रष्टाचार और सरकारी कोष को वित्तीय नुकसान के आरोपों के कारण जुलाई 2022 में रद्द कर दी गई।
    • प्रमुख आरोप:
      • मनमाने निर्णय: दिल्ली के मुख्य सचिव की रिपोर्ट में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और उत्पाद शुल्क मंत्री द्वारा किये गए मनमाने एवं एकतरफा निर्णयों को उजागर किया गया, जिसके कारण कथित तौर पर 580 करोड़ रुपए से अधिक का वित्तीय नुकसान हुआ।
      • साजिश और रिश्वत: प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने आरोप लगाया है कि शराब कारोबार में कुछ निजी कंपनियों को 12% लाभ मार्जिन प्रदान करने की साजिश के तहत नई उत्पाद शुल्क नीति लागू की गई थी।
        • यह आरोप लगाया गया है कि इस व्यवस्था में 6% की रिश्वत शामिल थी।
        • किकबैक (Kickback) एक प्रकार की रिश्वतखोरी या भ्रष्ट भुगतान को संदर्भित करता है, जो किकबैक प्रदान करने वाले व्यक्ति के पक्ष में लेनदेन या निर्णय को सुविधाजनक बनाने या प्रभावित करने के बदले में किसी को, आमतौर पर एक सार्वजनिक अधिकारी या व्यवसायी को दिया जाता है।
      • कार्टेल गठन और पक्षपातपूर्ण/अधिमान्य व्यवहार: ED का आरोप है कि नीति को कार्टेल गठन को बढ़ावा देने और आम आदमी पार्टी (AAP) के नेताओं को लाभ पहुँचाने के लिये जानबूझकर कमियों के साथ तैयार किया गया था।
        • शराब व्यवसाय मालिकों और ऑपरेटरों को रिश्वत के बदले में छूट, लाइसेंस शुल्क में विस्तार, जुर्माने में छूट और कोविड-19 महामारी के कारण हुए व्यवधानों के कारण राहत जैसे अधिमान्य उपचार प्रदान किये गए।
      • चुनावों पर प्रभाव: आरोप है कि इस योजना के माध्यम से प्राप्त रिश्वत का इस्तेमाल वर्ष 2022 की शुरुआत में पंजाब और गोवा में विधानसभा चुनावों को प्रभावित करने के लिये किया गया था।
  • नई दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति 2021-22, जिसमें राज्य सरकार के लिये अधिकतम राजस्व सुनिश्चित करने और नकली या अवैध शराब की बिक्री का विरोध करने की मांग की गई थी, पर "प्रक्रियात्मक कमियों" के व्यापक आरोप लगे। इसने सरकार को 1 अगस्त, 2022 से इसे समाप्त करने के लिये मजबूर कर दिया है।
  • नई नीति के तहत, दिल्ली में शराब की सभी निजी स्वामित्व वाली और संचालित दुकानों की संख्या लगभग 630 से बढ़कर 850 हो जानी थी। कोई व्यक्ति एकाधिक शराब खुदरा लाइसेंस रख सकता था और व्यापार के लिये "भारी विनियमित" उत्पाद शुल्क व्यवस्था को आसान बनाया जाना था।
  • संशोधित उत्पाद शुल्क नीति विवादों में आ गई क्योंकि राजधानी में निजी शराब की दुकानें खुल रही थीं। इनमें से कई दुकानों को गैर-अनुरूप क्षेत्रों से संबंधित विभिन्न उल्लंघनों के लिये MCD द्वारा सील कर दिया गया था, जहाँ शराब खुदरा जैसे कुछ व्यवसायों की अनुमति नहीं है।

क्या कोई निवर्तमान मुख्यमंत्री जेल से राज्य/केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन चला सकता है?

  • संवैधानिक नैतिकता और सुशासन:
    • भारतीय संविधान इस मुद्दे का स्पष्ट रूप से निराकरण नहीं करता है कि क्या कोई मुख्यमंत्री (CM) जेल में रहकर सरकार चला सकता है।
    • हालाँकि, विभिन्न न्यायालयों के निर्णयों ने सार्वजनिक पद धारण करने में संवैधानिक नैतिकता, सुशासन एवं सार्वजनिक विश्वास के महत्त्व पर ज़ोर दिया है।
  • राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल के रूप में मुख्यमंत्री प्रतिरक्षित नहीं:
    • भारत के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल ही एकमात्र ऐसे संवैधानिक पदधारक हैं, जिन्हें कानून के अनुसार अपना कार्यकाल समाप्त होने तक नागरिक तथा आपराधिक कार्यवाही से छूट प्राप्त है।
    • संविधान के अनुच्छेद 361 में कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति तथा राज्यों के राज्यपाल "अपने आधिकारिक कर्त्तव्यों के निर्वहन में किये गए किसी भी कार्य" के लिये किसी भी न्यायालयो के प्रति जवाबदेह नहीं हैं।
    • अनुच्छेद 361, राज्यपाल तथा राष्ट्रपति के विपरीत, किसी केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासक या उपराज्यपाल (LG) को छूट नहीं देता है।
    • लेकिन यह छूट उन प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्रियों को नहीं प्राप्त है जिन्हें संविधान के अंर्तगत समान माना जाता है जो कानून के समक्ष समानता के अधिकार की वकालत करता है।
    • फिर भी, केवल गिरफ्तारी के लिये वे अयोग्य नहीं हो जाते।
  • कानूनी ढाँचा:
    • कानून के अनुसार, किसी मुख्यमंत्री को केवल तभी अयोग्य ठहराया जा सकता है अथवा पद से हटाया जा सकता है, जब वह किसी मामले में दोषी ठहराया जाता है।
      • अरविंद केजरीवाल के मामले में उन्हें अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है।
      • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में कुछ अपराधों के लिये अयोग्यता के प्रावधान हैं, लेकिन पद संभालने वाले किसी भी व्यक्ति को दोषी पाया जाना अनिवार्य है।
      • मुख्यमंत्री केवल दो स्थितियों में शीर्ष पद से हटाया जा सकता है- विधानसभा में बहुमत का समर्थन खो देने पर अथवा सरकार के विरुद्ध एक सफल अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री करते हैं।
  • सार्वजनिक पद धारण करने हेतु बुनियादी मानदंड:
    • जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने मनोज नरूला बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामला, वर्ष 2014 में उल्लेख किया है, सार्वजनिक पद संभालने के बुनियादी मानदंडों में संवैधानिक नैतिकता, सुशासन तथा संवैधानिक विश्वास शामिल हैं।
    • सार्वजनिक अधिकारियों से इन सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करने की अपेक्षा की जाती है।
      • न्यायालय ने माना है कि नागरिक सत्ता में बैठे व्यक्तियों से नैतिक आचरण के उच्च मानकों को बनाए रखने की अपेक्षा करते हैं।
      • यह अपेक्षा विशेषकर मुख्यमंत्री जैसे पदों के लिये बहुत अधिक है, जिन्हें जनता के विश्वस्त के रूप में देखा जाता है।
  • जेल से कार्य करने की व्यावहारिक कठिनाइयाँ:
    • जेल से सरकार चलाने वाले एक मुख्यमंत्री की व्यावहारिक चुनौतियाँ महत्त्वपूर्ण हैं।
      • उदाहरण के लिये, उन्हें आधिकारिक दस्तावेज़ों तक पहुँचने अथवा सरकारी अधिकारियों के साथ संचार करने पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है।
      • इस बारे में भी प्रश्न उठ सकता है कि क्या हिरासत में रहते हुए वे प्रभावी ढंग से अपने कर्त्तव्यों को पूर्ण कर सकते हैं।
  • उदाहरण तथा कानूनी मामले:
    • एस.रामचंद्रन बनाम वी. सेंथिल बालाजी केस, 2023 में मद्रास उच्च न्यायालय ने वित्तीय घोटाले के आरोपी मंत्री द्वारा पद धारण करने के अपने अधिकार की समाप्ति के संबंध में विचार किया।
    • मद्रास HC के निर्णय ने हिरासत में रहते हुए मंत्री का पद धारण करने की व्यावहारिक कठिनाइयों पर प्रकाश डाला।
      • न्यायालय के निर्णय के अनुसार किसी मुख्यमंत्री के लिये कारावास से सरकार का संचालन करना तकनीकी रूप से संभव हो सकता है, किंतु ऐसी परिस्थितियों में उसके नेतृत्व की वैधता और प्रभावशीलता एक चिंता का विषय है।
    • उच्च न्यायालय ने किसी व्यक्ति द्वारा अपने संबंधित कर्त्तव्यों का अनुपालन किये बिना सार्वजनिक पद पर रहते हुए सरकारी खज़ाने से वेतन प्राप्त करने के संबंध में प्रश्न किया।
  • राष्ट्रपति शासन:
    • चूँकि किसी भी मुख्यमंत्री के लिये कारावास से सरकार का संचालन करना अव्यावहारिक है इसलिये उपराज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 239AB के तहत दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिये 'राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता' का हवाला दे सकते हैं, जिसमें मुख्यमंत्री के इस्तीफे की प्रक्रिया शामिल होती है।
      • राष्ट्रपति शासन के तहत संबद्ध राष्ट्रीय राजधानी पर केंद्र सरकार का प्रत्यक्ष नियंत्रण हो जाएगा।

ED क्या है?

  • परिचय:
    • प्रवर्तन निदेशालय (ED) एक बहुअनुशासनिक संगठन है जो धन शोधन के अपराध और विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन की जाँच के लिये अधिदेशित है।
    • यह वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अंतर्गत कार्य करता है।
    • भारत सरकार की एक प्रमुख वित्तीय जाँच एजेंसी के रूप में ED भारत के संविधान और कानूनों के सख्ती से अनुपालन हेतु कार्य करती है।
  • संरचना:
    • मुख्यालय: ED का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है जिसकी अध्यक्षता प्रवर्तन निदेशक द्वारा की जाती है।
      • मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़, कोलकाता और दिल्ली में ED के पाँच क्षेत्रीय कार्यालय स्थित हैं जिनकी अध्यक्षता विशेष प्रवर्तन निदेशक द्वारा की जाती है।
    • भर्ती: इसमें अधिकारियों की भर्ती प्रत्यक्ष रूप से और अन्य अन्वेषण एजेंसियों में कार्यरत अधिकारियों में से की जाती है।
      • इसमें IRS (भारतीय राजस्व सेवा), IPS (भारतीय पुलिस सेवा) और IAS (भारतीय प्रशासनिक सेवा) जैसे आयकर अधिकारी, उत्पाद शुल्क अधिकारी, सीमा शुल्क अधिकारी तथा पुलिस के अधिकारी शामिल हैं।
    • कार्यकाल: इसका कार्यकाल दो वर्ष का होता है, किंतु निदेशकों का कार्यकाल तीन वार्षिक विस्तार के साथ दो से पाँच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है
  • कार्य:
    • COFEPOSA: विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी निवारण अधिनियम (Conservation of Foreign Exchange and Prevention of Smuggling Activities Act- COFEPOSA), 1974 के तहत, निदेशालय को FEMA के उल्लंघन के संबंध में निवारक निरोध के मामलों को प्रायोजित करने का अधिकार है।
    • विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा): यह बाहरी व्यापार और भुगतान को सुविधाजनक बनाने तथा भारत में विदेशी मुद्रा बाज़ार के व्यवस्थित विकास एवं रखरखाव को बढ़ावा देने से संबंधित कानूनों को समेकित व संशोधित करने हेतु अधिनियमित एक नागरिक कानून है।
      • ED को विदेशी मुद्रा कानूनों और विनियमों के संदिग्ध उल्लंघनों की जाँच करने, कानून का उल्लंघन करने वालों पर निर्णय लेने तथा ज़ुर्माना लगाने की ज़िम्मेदारी दी गई है।
    • धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA): वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) की सिफारिशों के बाद भारत ने PMLA लागू किया।
      • ED को अपराध की आय से प्राप्त संपत्ति का पता लगाने, संपत्ति को अस्थायी रूप से संलग्न करने तथा विशेष न्यायालय द्वारा अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाने और संपत्ति की ज़ब्ती सुनिश्चित करने के लिये जाँच करके PMLA के प्रावधानों को क्रियान्वित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
    • भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (FEOA): विदेशों में शरण लेने वाले आर्थिक अपराधियों से संबंधित मामलों की संख्या में वृद्धि के साथ, भारत सरकार ने भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (FEOA) पेश किया और ED को इसके प्रवर्तन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।
      • यह कानून आर्थिक अपराधियों को भारतीय न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहकर भारतीय कानून की प्रक्रिया से बचने से रोकने के लिये बनाया गया था।
      • इस कानून के तहत, ED को उन भगोड़े आर्थिक अपराधियों की संपत्तियों को कुर्क करने और केंद्र सरकार को उनकी संपत्तियों को ज़ब्त करने का प्रावधान करने का आदेश दिया गया है, जो गिरफ्तारी के डर से भारत से भाग गए हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:  

प्रश्न. भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में निम्नलिखित में से कौन-सा एक मद समूह सम्मिलित है? (2013)

(a)विदेशी मुद्रा संपत्ति, विशेष आहरण अधिकार और विदेशों से ऋण
(b)विदेशी मुद्रा संपत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा धारित स्वर्ण और विशेष आहरण अधिकार
(c)विदेशी मुद्रा संपत्ति, विश्व बैंक से ऋण और विशेष आहरण अधिकार
(d)विदेशी मुद्रा संपत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा धारित स्वर्ण और विश्व बैंक से ऋण

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • विदेशी मुद्रा भंडार का आशय केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा में आरक्षित संपत्ति से होता है।
  • RBI के अनुसार, भारत में विदेशी मुद्रा भंडार में शामिल हैं:
    • विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ
    • स्वर्ण भंडार
    • विशेष आहरण अधिकार (SDR)
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास रिज़र्व ट्रेंच

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


मेन्स:

प्रश्न. चर्चा कीजिये कि किस प्रकार उभरती प्रौद्योगिकियाँ और वैश्वीकरण मनी लॉन्ड्रिंग में योगदान करते हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मनी लॉन्ड्रिंग की समस्या से निपटने के लिये किये जाने वाले उपायों को विस्तार से समझाइए। (2021)


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