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डेली न्यूज़

  • 06 Jun, 2020
  • 52 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

यमन की सहायता राशि में कटौती

प्रीलिम्स के लिये

यमन की भौगोलिक स्थिति, हाउथी विद्रोही 

मेन्स के लिये  

निर्णय से यमन व मध्य-पूर्व पर पड़ने वाला प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (United Nation) ने युद्धग्रस्त यमन में दी जाने वाली सहायता राशि में कटौती करने का निर्णय लिया है यह निर्णय ऐसे समय में किया गया है जब यमन कोरोना वायरस व गृहयुद्ध जैसी दोहरी समस्याओं से जूझ रहा है

प्रमुख बिंदु

  • युद्धग्रस्त यमन में कार्यरत सहायता संगठनों ने ऐसे समय में यमन की सहायता राशि में कटौती करने के निर्णय पर हैरानी व्यक्त करते हुए इसे तत्काल जारी करने की अपील की है
  • सहायता राशि में कटौती करने के निर्णय से यमन में चल रहे संयुक्त राष्ट्र संघ के 75 प्रतिशत कार्यक्रम बंद हो सकते हैं या उनका परिचालन प्रभावित हो सकता है
  • संयुक्त राष्ट्र संघ ने यमन में वैश्विक खाद्य कार्यक्रम के तहत मिलने वाले खाद्यान्न में कटौती कर दी है साथ ही अस्पतालों को दी जा रही स्वास्थ्य सेवाओं में भी कमी करने का निर्णय लिया है

यमन संकट 

  • अरब क्षेत्र के लोकतांत्रिक आंदोलन; जिसे अरब स्प्रिंग(Arab Spring) के रूप में जाना जाता है, के बाद यमन के शासक ने सत्तासीन मंसूर हादी के विरुद्ध शिया मुसलमानों (हाउथी) को सत्ता स्थानांतरित कर दी। हाउथी विद्रोहियों को ईरान का समर्थन है, जबकि सऊदी अरब हाउथी के विरुद्ध है।
  • वर्ष 2014 के अंत में सना में मंसूर हादी की सरकार को सत्ता से बेदखल करने के बाद से यमन हिंसा में घिर गया है जिसने सऊदी के नेतृत्त्व वाले गठबंधन को हस्तक्षेप करने के लिये प्रेरित किया।
  • इस विद्रोह को सऊदी अरब और ईरान के बीच छद्म युद्ध के रूप में देखा जा रहा है।

कटौती का कारण   

  • संयुक्त राष्ट्र संघ के समन्वयक के अनुसार, यमन को दी जाने वाली सहायता राशि में कमी करने के कई कारण है, जिनमें यमन की राजधानी सना और अन्य औद्योगिक महत्त्व के केंद्रों पर हाउथी विद्रोहियों (Houthi rebels) का नियंत्रण होना प्रमुख है
  • इसके अतिरिक्त, सहायता राशि में सबसे बड़े दानदाता संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा दी जाने वाली सहायता में कमी करना भी एक कारण है
  • हाउथी विद्रोहियों द्वारा नियंत्रित किये जाने वाले शहरों में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों की पहुँच व पर्यवेक्षण पर प्रतिबंध लगाया गया है

प्रभाव   

  • कोरोना वायरस के प्रसार के बीच स्वास्थ्य सेवाओं को प्रदान की जा रही सहायता राशि में कटौती से स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता अत्यधिक प्रभावित हुई है
  • यमन के पास पर्याप्त मात्र में N-95 मास्क, पीपीई किट और वेंटिलेटर का अभाव है, परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग व स्वास्थ्यकर्मी वायरस से संक्रमित हो रहे हैं
  • सहायता राशि में कटौती से डॉक्टर समेत अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को वेतन इत्यादि नहीं मिल पाएगा, जिससे वे इस महामारी के दौरान कार्य करने हेतु प्रोत्साहित नहीं हो पाएंगे
  • युद्धग्रस्त यमन में खाद्य संकट उत्पन्न हो जाएगा और लोग भुखमरी की कगार पर पहुँच जाएंगे  
  • यमन को कोरोना वायरस के संक्रमण से संबंधित जानकारियाँ छिपाने के कारण वैश्विक बिरादरी के समक्ष अपमान का भी सामना करना पड़ रहा है  

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-भूटान पर्यावरणीय समझौता

प्रीलिम्स के लिये: 

समझौते के मुख्य प्रावधान 

मेन्स के लिये: 

भारत-भूटान संबंधों पर इस समझौते का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में  भारत सरकार द्वारा भारत एवं भूटान के मध्य पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के क्षेत्र में सहयोग के लिये एक समझौता ज्ञापन  (Memorandum of Understanding) पर हस्ताक्षर को मंज़ूरी दी गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह समझौता हस्ताक्षर करने की तारीख से 10 वर्षों तक के लिये लागू होगा।
  • दोनो देशों के द्विपक्षीय हित  तथा पारस्परिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए इस समझौते में वायु, अपशिष्ट, रासायनिक प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय क्षेत्रों को शामिल किया गया है। 
  • यह समझौता दोनों देशों में लागू कानूनों तथा कानूनी प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए इक्विटी, पारस्परिकता तथा पारस्परिक लाभों के आधार पर दोनों देशों को पर्यावरण के संरक्षण तथा प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में निकट और दीर्घकालिक सहयोग को स्थापित और संवर्द्धित करने में सक्षम है । 

समझौते की पृष्ठभूमि:

  • 11 मार्च, 2013 को भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ( Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) और भूटान सरकार के राष्ट्रीय पर्यावरण आयोग (National Environment Commission- NEC) के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • पूर्व में लागू इस  समझौते की अवधि 10 मार्च, 2016 को समाप्त हो गई थी अतः इसके पूर्व के समझौता ज्ञापनों के लाभों को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों द्वारा पर्यावरण के क्षेत्र में सहयोग और समन्वय को जारी रखने का निर्णय लिया गया है।

बैठक की व्यवस्था :

  • प्रस्तावित समझौते के वित्तीय निहितार्थ द्विपक्षीय बैठकों/संयुक्त कार्य समूह की बैठकों तक ही सीमित हैं।
  • ये बैठकें भारत और भूटान में वैकल्पिक रूप से संपन्न की जाएगी।   
    प्रतिनिधिमंडल भेजने वाला पक्ष उनकी यात्रा लागत को वहन करेगा, जबकि अगवानी करने वाला पक्ष बैठकों और अन्य व्यवस्थाओं के आयोजन की लागत को वहन करेगा। 

महत्त्व:

  • इस समझौता ज्ञापन के तहत सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के माध्यम से अनुभवों, सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों और तकनीकी जानकारियों के आदान-प्रदान के साथ-साथ सतत् विकास को भी बढ़ावा मिलेग[
  • यह समझौता पारस्परिक हितों को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों की संयुक्त परियोजनाओं के लिये एक सुनहरा अवसर प्रदान करता है।
  • दोनों देशों के भू- राजनीतिक एवं सामरिक संबंधों में और अधिक मज़बूती कायम होगी।  

स्रोत: पीआईबी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

UNSC चुनावों से पूर्व भारत का 'प्राथमिकता पत्र' अभियान

प्रीलिम्स के लिये:

UNSC के स्थायी तथा गैर-स्थायी सदस्य, गैर-परिषद सदस्य देश, सुरक्षा परिषद में सुधार की प्रक्रिया

मेन्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

चर्चा में क्यों?

विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs- MEA) ने 17 जून, 2020 को होने वाले ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (United Nations Security Council- UNSC) के चुनावों में निर्वाचित सीट जीतने के लिये भारत की ‘प्राथमिकताओं की रूपरेखा’ तैयार कर इसे एक अभियान के रूप में शुरू किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • ये चुनाव ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (UNSC) के 5 गैर-स्थायी सदस्यों (Non-Permanent Member) के आगामी कार्यकाल (वर्ष 2021-22) के लिये होने हैं।
  • भारत G-4 समूह (भारत, जापान, ब्राज़ील और जर्मनी) के देशों के साथ UNSC में स्थायी सदस्यता के लिये भी मांग कर रहा है।

प्राथमिकता सूची (Priorities List):

  • 'प्राथमिकता पेपर' (Priorities Paper) के अनुसार, भारत की प्रमुख प्राथमिकताओं की सूची निम्नानुसार है:
    1. प्रगति के नवीन अवसर;
    2. अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी प्रतिक्रिया;
    3. बहुपक्षीय प्रणाली में सुधार;
    4. अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण;
    5. समस्याओं के समाधान के लिये मानव स्पर्श (Human Touch) को ध्यान में रखकर प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना।
  • अभियान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा निर्धारित पाँच 'एस' अर्थात सम्मान, संवाद, सहयोग, शांति, समृद्धि के आधार पर प्रचारित किया जाएगा। 

UNSC के स्थायी तथा गैर-स्थायी सदस्य:

  • UNSC 15 सदस्यों से मिलकर बनी होती है, जिसमे पाँच स्थायी सदस्य; चीन, फ्रांँस, रूसी संघ, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। दस गैर-स्थायी सदस्य महासभा द्वारा दो वर्ष के लिये चुने जाते हैं। गैर-स्थायी सदस्यों बेल्जियम, डोमिनिकन गणराज्य, एस्टोनिया, जर्मनी, इंडोनेशिया, नाइजर, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस, दक्षिण अफ्रीका, ट्यूनीशिया, वियतनाम। 
  • दस गैर-स्थायी सीटों को क्षेत्रीय आधार पर वितरित किया गया है: 
    • पाँच सीट अफ्रीकी और एशियाई देशों के लिये;
    • एक सीट पूर्वी यूरोपीय देशों के लिये; 
    • लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों के लिये दो सीट;
    • पश्चिमी यूरोपीय और अन्य देशों के लिये दो सीट।

गैर-परिषद सदस्य देश (Non-Council Member States):

  • 50 से अधिक संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश कभी भी सुरक्षा परिषद के सदस्य नहीं रहे हैं।
  • एक देश जो संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है, लेकिन सुरक्षा परिषद का नहीं है। वोटिंग के अधिकार के बिना चर्चा में भाग ले सकता है।

भारत की अब तक UNSC में सदस्यता:

  • भारत को यदि इस बार भी UNSC की गैर-स्थायी सीट के लिये चुना जाता है तो भारत गैर-स्थायी सीट पर आठवीं बार चुना जाने वाला देश होगा। अंतिम बार वर्ष 2011-2012 में भारत को गैर-स्थायी सदस्य के रूप में चुना गया था। 
  • भारत को पहले ही सात बार वर्ष 1950-1951, वर्ष 1967-1968, वर्ष 1972-1973, वर्ष 1977-1978, वर्ष 1984-1985, वर्ष 1991-1992 और वर्ष 2011-2012 की अवधि के लिये गैर-स्थायी सदस्य के रूप में चुना गया था।

भारत की जीत की संभावना:

  • भारत वर्ष 2013 से वर्ष 2021-22 के लिये UNSC के लिये चुने जाने के लिये तैयारी कर रहा है क्योंकि वर्ष 2022 को भारत स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ के रूप में मनाएगा। 
  • भारत को गैर-स्थायी सदस्य के रूप में चुने जाने की पूरी उम्मीद है क्योंकि अब तक एशिया-प्रशांत क्षेत्र से भारत ही एकमात्र उम्मीदवार देश है। 
  • भारत को जीत के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193 सदस्यों का दो-तिहाई अर्थात 129 मत पक्ष में चाहिये।
  • अंतिम बार जब वर्ष 2010 में भारत को वर्ष 2011-12 के लिये UNSC गैर स्थायी सदस्य के रूप में चुना गया था तब भारत ने 190 में से 187 वोट के साथ भारी जीत दर्ज की थी।
  • हालाँकि अधिकारियों का मानना है कि इस बार भारत के लिये चुनाव जीतना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि तुर्की तथा मलेशिया जैसे इस्लामिक देशों के अलावा 'इस्लामिक सहयोग संगठन' (Organisation of Islamic Cooperation- OIC) सरकार के ‘अनुच्छेद 370 हटाने’ तथा नागरिकता संशोधन अधिनियम लाने जैसे निर्णयों से नाराज हैं। 

सुरक्षा परिषद में सुधार की प्रक्रिया:

  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 108 के अनुसार, चार्टर में संशोधन वाले प्रस्ताव को महासभा के दो तिहाई सदस्यों द्वारा अनुमोदित तथा अनुसमर्थन किया जाना चाहिये। इसके अलावा सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है। अत: सुरक्षा परिषद की संरचना परिवर्तन भी चार्टर के अनुच्छेद- 108 के अनुसार बताई गई प्रणाली के अनुसार ही किया जा सकता है। 

आगे की राह: 

  • भारत लंबे समय से UNSC के स्थायी और गैर-स्थायी सदस्यों की संख्या में विस्तार की मांग कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से वैश्विक भू-राजनीति और वैश्विक मुद्दों में परिवर्तन आया है, इसलिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने नए मुद्दे अधिक प्रासंगिक हो गए हैं अतः संयुक्त राष्ट्र की संरचना और कार्यशैली में भी परिवर्तन होना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

चीन से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों का विकास

प्रीलिम्स के लिये:

सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम 

मेन्स के लिये:

चीन से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘गृह मंत्रालय’ (Ministry of Home Affairs- MHA) ने ‘सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ (Border Area Development Programme- BADP) के तहत चीन से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों को सुदृढ़ करने हेतु नए दिशा-निर्देश जारी किये हैं।  

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में ‘सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ हेतु 784 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं। 
  • राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से लगने वाली अंतर्राष्ट्रीय सीमा की लंबाई और जनसंख्या जैसे विभिन्न मानदंडों के तहत इस धनराशि को वितरित किया जाएगा।
  • भारत और चीन के बीच हालिया घटनाक्रम के मद्देनज़र सीमावर्ती क्षेत्रों के बेहतर प्रबंधन के लिये बुनियादी ढाँचे का निर्माण एक रणनीतिक कदम है।
  • ध्यातव्य है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में ‘सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ हेतु 825 करोड़ रुपए आवंटित किये गए थे।

सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम 

(Border Area Development Programme-BADP)

  • ‘सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ की शुरुआत सातवीं पंचवर्षीय योजना (वर्ष 1985–90) के दौरान की गई थी।
  • वर्तमान में इस कार्यक्रम के तहत 17 राज्यों के 111 सीमावर्ती ज़िलों के 394 सीमा खंड शामिल हैं।
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य सीमावर्ती क्षेत्र में रह रहे लोगों की सामाजिक तथा आर्थिक खुशहाली और उन्हें कनेक्टिविटी संबंधी सुविधाएँ, स्वच्छ पेयजल, विद्यालय, अस्पताल तथा अन्य सुविधाएँ सुलभ कराना।

गृह मंत्रालय द्वारा जारी नए दिशा-निर्देश:

  • नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, ‘सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ की 10%  (कुल धनराशि में से 78.4 करोड़ रुपए) धनराशि लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम में परियोजनाओं पर खर्च की जाएगी। साथ ही चीन से लगने वाली 3488 किलोमीटर सीमावर्ती क्षेत्रों को भी सुदृढ़ किया जाएगा।ये दिशा-निर्देश 1 अप्रैल, 2020 से प्रभावी हैं।
  • इन राज्यों के सीमावर्ती क्षेत्रों में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण गांवों और कस्बों को सीमा सुरक्षा बलों द्वारा चिह्नित कर परियोजनाओं पर खर्च किया जाना है।

extra-attention

  • ‘सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ की 10% धनराशि बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों के लिये प्रोत्साहन के रूप में आरक्षित किया जाएगा।
  • ‘सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ की शेष 80% धनराशि में से 255.28 करोड़ रुपए पूर्वोत्तर राज्यों जैसे- अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम में खर्च की जाएगी।
  • बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को लगभग 382.9 करोड़ रुपए की धनराशि आवंटित की जाएगी।
  • ‘सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ कोष से सीमावर्ती क्षेत्रों के 10 किलोमीटर के भीतर सड़क, पुल, पुलिया, प्राथमिक विद्यालय, स्वास्थ्य ढाँचा, खेल के मैदान, सिंचाई कार्य, मिनी-स्टेडियम, बास्केटबॉल के लिये इनडोर कोर्ट, बैडमिंटन और टेबल टेनिस का निर्माण किया जाएगा।

उद्देश्य:

  • अवसंरचना विकास संबंधी यह परियोजना सीमावर्ती क्षेत्रों को आंतरिक क्षेत्रों से जोड़ने में सहायक होगा।
  • देश की सुरक्षा को लेकर लोगों के बीच एक सकारात्मक धारणा बनेगी।
  • लोगों को सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने के लिये प्रोत्साहित करना।
  • सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों तथा सैन्य उपकरणों को शीघ्रता से पहुँचाना।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कोहाला जलविद्युत परियोजना

प्रीलिम्स के लिये

कोहाला जलविद्युत परियोजना के बारे में

मेन्स के लिये: 

परियोजना का भारत-चीन संबंधों पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन भारत की आपत्ति के बावज़ूद चीन -पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (China–Pakistan Economic Corridor- CPEC) के तहत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (Pakistan-occupied Kashmir-PoK) में 1124 मेगावाट वाली ‘कोहाला जल विद्युत परियोजना’ (Kohala Hydropower Project) को स्थापित करने की योजना बना रहा है। 

प्रमुख बिंदु:

  • चीन द्वारा इस जलविद्युत परियोजना का ब्यौरा पाकिस्तान की ‘प्राइवेट पावर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर बोर्ड’ (Private Power and Infrastructure Board- PPIB) की 127वीं बैठक के दौरान पेश किया गया है।
  • चीन द्वारा इस परियोजना को झेलम नदी पर निर्मित किया जाएगा। 
  • परियोजना का उद्देश्य पाकिस्तान में उपभोक्ताओं के लिये पाँच बिलियन यूनिट से अधिक स्वच्छ और कम लागत वाली बिजली उपलब्ध कराना है।
  • स्वतंत्र बिजली उत्पादक (Independent Power Producer- IPP) के क्षेत्र में  2.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का यह एक बड़ा निवेश है।

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC):

  • 3,000 किलोमीटर लंबे सीईपीसी का उद्देश्य चीन तथा पाकिस्तान को रेल, सड़क, पाइपलाइन और ऑप्टिकल केबल फाइबर नेटवर्क से जोड़ना है। 
  • यह गलियारा चीन के शिनजियांग प्रांत को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ता है, जो चीन को अरब सागर तक पहुँच प्रदान करता है। 
  • सीईपीसी, PoK से भी होकर गुजरता है, जिसपर भारत द्वारा लगातार यह कहते हुए विरोध किया जा रहा है कि PoK में यह आर्थिक गलियारा भारत की संप्रभुता का हनन करता है।

सीईपीसी में भारत का विरोध:

  • कुछ समय पहले ही पाकिस्तान द्वारा चीन को गिलगित-बाल्टिस्तान में एक बांध बनाने का मेगा कॉन्ट्रैक्ट दिये जाने का विरोध भारत द्वारा किया गया था। 
  • भारत का तर्क है कि पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर में ऐसी परियोजनाओं को मंज़ूरी देना उचित नहीं है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये:

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश, राइट्स इश्यू 

मेन्स के लिये:

पूंजी बाज़ार पर COVID-19 का प्रभाव, विदेशी निवेश से संबंधित प्रश्न  

चर्चा में क्यों? 

जून माह के पहले सप्ताह में ‘इक्विटी बाज़ार’ (Equity Market) में 'विदेशी पोर्टफोलियो निवेश' (Foreign Portfolio Investment- FPI) में भारी वृद्धि देखी गई है। एक ही सप्ताह में FPI के रूप में प्राप्त हुआ यह निवेश वर्ष 2020 में अब तक किसी माह में हुआ सबसे अधिक निवेश है।

प्रमुख बिंदु:

  • जून 2020 के पहले सप्ताह में 5 दिनों के व्यापार के दौरान विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा लगभग 21,000 करोड़ के शेयर की खरीद की गई है।
  • इससे पहले वर्ष 2020 में सबसे अधिक मई माह में FPI में कुल 14,569 रुपए का निवेश हुआ था।  
  • 'विदेशी पोर्टफोलियो निवेश’ में हुई यह वृद्धि रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (Reliance Industries Limited- RIL) द्वारा जारी राइट्स इश्यू (Rights Issue), कोटक महिंद्रा बैंक (Kotak Mahindra Bank) में हिस्सेदारी की बिक्री और वर्तमान महामारी के बीच भी बाज़ार के प्रति लोगों की सकारात्मक सोच में वृद्धि को भी माना जा सकता है।  
    • इस दौरान RIL द्वारा राइट्स इश्यू के माध्यम से 53,124.20 करोड़ रुपए जुटाए गए, जो भारत में राइट्स इश्यू  के तहत प्राप्त हुई सबसे अधिक/बड़ी पूंजी है। 
    • 4 जून को कोटक महिंद्रा बैंक के निदेशक उदय कोटक ने बैंक में 2.8% हिस्सेदारी (लगभग 6,800 करोड़ के शेयर) बेच दी, जो ‘गवर्नमेंट ऑफ सिंगापुर इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन’, ओपेनहाइमर डेवेलपिंग मार्केट फंड और टी.रो प्राइस (T. Rowe Price) जैसे कई विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा खरीदे गए।  
  • इस दौरान ऑटोमोबाइल, निजी बैंक (Private Bank) और फार्मास्यूटिकल्स (Pharmaceuticals) जैसे क्षेत्रों के निवेश में वृद्धि देखने को मिली है। 
  • हालाँकि जून माह में FPI में हुई इस वृद्धि के बावजूद भी मार्च और अप्रैल में विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय बाज़ार से बड़ी मात्रा में पूंजी निकालने के कारण वर्तमान वर्ष में इक्विटी बाज़ार का कुल संचयी विदेशी प्रवाह (Cumulative Foreign Flow) ऋणात्मक (-19,531 करोड़ रुपए) ही बना हुआ है। 
  • गौरतलब है कि COVID-19 महामारी के कारण इक्विटी बाज़ार में मार्च माह में 61,973 करोड़ रुपए और अप्रैल में 6,884 करोड़ रुपए का बहिर्वाह (Outflow) देखा गया था।   

क्या है 'विदेशी पोर्टफोलियो निवेश'

(Foreign Portfolio Investment- FPI)?

  • FPI किसी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा किसी दूसरे देश की कंपनी में किया गया वह निवेश है,  जिसके तहत वह संबंधित कंपनी के शेयर या बाॅण्ड खरीदता है अथवा उसे ऋण उपलब्ध कराता है। 
  • FPI में निवेशक ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ (Foreign Direct Investment- FDI) के विपरीत कंपनी के प्रबंधन (उत्पादन, विपणन आदि) में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होता है।
  • FPI के तहत निवेशक शेयर के लाभांश या ऋण पर मिलने वाले ब्याज के रूप में लाभ प्राप्त करते हैं।
  • FPI  का विनियमन ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ (Securities and Exchange Board of India-SEBI) द्वारा किया जाता है। 

राइट्स इश्यू (Rights Issue):  

  • राइट्स इश्यू किसी कंपनी द्वारा पूंजी जुटाने का वह माध्यम है, जिसके तहत वह अपने मौजूदा शेयरधारकों को कंपनी में अतिरिक्त शेयर खरीदने का अधिकार (Right) प्रदान करती है।
  • सामान्यतः राइट्स इश्यू एक शेयर धारक को कंपनी में उसके मौजूदा शेयर के अनुपात में और बाज़ार की तुलना में कम मूल्य पर जारी किये जाते हैं।  
  • मौजूदा शेयरधारकों को कंपनी द्वारा राइट्स इश्यू के तहत दिये गए शेयरों को  खरीदने की बाध्यता नहीं होती है।  
  • कंपनियों द्वारा ऋण में वृद्धि किये बगैर पूंजी जुटाने के लिये राइट्स इश्यू का प्रयोग किया जाता है।       

स्रोत:  द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

विदेशज़ जानवरों के आयात पर एडवाइज़री

प्रीलिम्स के लिये:

आक्रामक प्रजातियाँ, स्थानिक प्रजातियाँ, विदेशज़ प्रजातियाँ

मेन्स के लिये:

विदेशज़ जानवरों के आयात का नियमन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ (Union Ministry of Environment, Forest and Climate Change-  MoEF&CC) ने विदेशज़ जानवरों के आयात को विनियमित करने के संबंध में एक एडवाइज़री जारी की है।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्तमान में COVID-19 महामारी ने ‘वन्यजीवों के माध्यम से ज़ूनोटिक रोगों के प्रसार’ को पुन: चर्चा का मुद्दा बना दिया है। अत: वन्य-जीवों के व्यापार को विनियमित करने के उद्देश्य से सरकार यह एडवाइज़री लेकर आई है।
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भारत में अनेक विदेशज़ प्रजातियों का आयात वाणिज्यिक प्रयोजन के लिये किया जाता है, जिनके साथ अनेक जोखिम जुड़े होते हैं। 

विदेशज़ प्रजातियों (Exotic Species) की सूची: 

  • जानवरों की वे प्रजातियाँ जो भारत के विभिन्न हिस्सों में पाई जाती है तथा जिनको ‘वन्यजीवों तथा वनस्पतियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’ ( Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora- CITES) के तहत लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में शामिल किया गया है लेकिन ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972‘ (Wild Life (Protection) Act, 1972) के तहत शामिल नहीं किया गया है। 
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि CITES समझौते के तहत संकटापन्न प्रजातियों को तीन परिशिष्टों में शामिल किया जाता है। जिनमें परिशिष्ट (I) में ऐसी प्रजातियों को शामिल किया गया है जो ‘लुप्तप्राय’ हैं तथा जिन्हें व्यापार से और भी अधिक खतरा हो सकता है।
  • ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में छ: अनुसूचियों को शामिल किया गया है ताकि देश के वन्य जीवों तथा वनस्पतियों के अवैध व्यापार को नियंत्रित किया जा सके। 

प्रजातियों का उनकी स्थानिकता या आवास क्षेत्र के आधार पर वर्गीकरण:

  • स्थानिक प्रजातियाँ (Endemic species):
    • ऐसी प्रजातियाँ जो भौगोलिक रूप से पृथक क्षेत्रों में पाई जाती हैं तथा विश्व में अन्यत्र कहीं प्राकृतिक रूप से नहीं पाई जाती हैं। उदाहरणत: कंगारू मूल रूप से ऑस्ट्रेलिया के लिये स्थानिक प्रजाति है।
  • विदेशज़ प्रजातियाँ (Exotic Species):
    • विदेशज़ को सामान्यत: गैर-स्थानिक, बाहरी (Alien) प्रजातियों के रूप में जाना जाता है। ये प्रजातियाँ सामान्यत: उनकी प्राकृतिक भौगोलिक सीमा के बाहर के क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
  • आक्रामक प्रजातियाँ (Invasive Species):
    • इन्हें विदेशज़ प्रजातियों का एक उप प्रकार माना जा सकता है। आक्रामक प्रजातियों में ऐसे पौधे या जानवर शामिल किये जाते हैं जो मनुष्य द्वारा, दुर्घटनावश या जानबूझकर, उनकी प्राकृतिक भौगोलिक सीमा के बाहर ऐसे क्षेत्र जहाँ वे प्राकृतिक रूप से नहीं पाए जाते हैं, स्थानांतरित कर दिये जाते हैं परंतु ये स्थानिक प्रजातियों के लिये नुकसानदायक होते हैं।

विदेशज़ प्रजातियों के व्यापार का नियमन: 

  • भारत में अनेक पक्षियों, सरीसृपों तथा उभयचरों की विदेशी प्रजातियाँ वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिये आयात की जाती हैं।
  • अब तक इन प्रजातियों का आयात ‘विदेश व्यापार महानिदेशक’ (Director General of Foreign Trade- DGFT) के तहत किया जाता था, जो वन विभाग के दायरे से बाहर था।

नवीन एडवाइज़री के प्रमुख प्रावधान:

  • एडवाइज़री में विदेशज़ जानवरों के आयात तथा प्रकटीकरण संबंधी प्रावधान शामिल किये गए हैं।  ये प्रावधान उन जानवरों पर भी लागू होंगे जिनकी आयातित प्रजातियाँ भारत में पहले से ही मौजूद हैं।
  • किसी भी विदेशज़ जानवर का आयात करने से पूर्व व्यक्ति को DGFT से लाइसेंस प्राप्ति के लिये एक आवेदन प्रस्तुत करना होगा।
  • आयातक को आवेदन के साथ संबंधित राज्य के ‘मुख्य वन्यजीव वार्डन’ को 'अनापत्ति प्रमाण पत्र' (No Objection Certificate- NOC) भी संलग्न करना होगा।
  • वे लोग जो पहले से ही विदेशी जानवरों का आयात कर चुके हैं, उन्हें 6 माह के भीतर जानवर के मूल आयातित स्थान की जानकारी देनी होगी। अगर आयातक 6 माह में यह जानकारी देने तथा घोषणा करने में असमर्थ रहते हैं तो उन्हे आवश्यक दस्तावेज़ जमा कराने होंगे। 

नवीन एडवाइज़री का महत्त्व:

  • भारत में विदेशज़ जानवरों के व्यापार के उचित नियमन का अभाव पाया जाता है। अत: नवीन एडवाइज़री इन जानवरों के व्यापार का उचित विनियमन करने में मदद करेगी।
  • एडवाइज़री देश में मौजूद विदेशज़ जानवरों की जानकारी जुटाने में मदद करेगी।

संभावित चुनौतियाँ:

  • अनेक वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है एडवाइज़री ज़ूनोटिक रोगों के प्रसार को रोकने में अप्रभावी रहेगी। इसमें आक्रामक प्रजातियों (Invasive Species) के माध्यम से ज़ूनोटिक रोगों के प्रसार पर ध्यान नहीं दिया गया था।
  • भारत में वर्तमान में विदेशज़ प्रजातियों के घरेलू व्यापार में लगातार वृद्धि हो रही है। अनेक प्रजातियों यथा 'शुगर ग्लाइडर्स' (Sugar Gliders) मकई सर्प (Corn Snakes) आदि को CITES के तहत सूचीबद्ध नहीं किया गया है।
  • ऐसे लोग जो वन्यजीवों की ‘कैप्टिव ब्रीडिंग’ (Captive Breeding) करते हैं एडवाइज़री में उसके लिये रखरखाव मानकों का कोई उल्लेख नहीं किया गया है।
    • कैप्टिव ब्रीडिंग वह परिकीय है जिसमें वनस्पति तथा वन्य जीवों को नियंत्रित वातावरण यथा वन्यजीव भंडार, चिड़ियाघर, वनस्पति उद्यान आदि में रखा जाता है। 
  • पशुओं के रख-रखाव तथा देखभाल संबंधी मानकों के अभाव के कारण अलग-अलग प्रजातियों के मध्य भी रोगों के प्रसार की पूरी संभावना रहती है।
  • एडवाइज़री को कानूनी समर्थन का अभाव है, अत: यह वन्य जीवों के अवैध व्यापार को बढ़ावा दे सकता है। 

निष्कर्ष:

  •  विदेशज़ जानवारों के व्यापार के नियमन के लिये उचित नियमों के निर्माण की आवश्यकता है जिसमें विदेशज़ प्रजातियों के साथ जुड़े वास्तविक जोखिमों तथा लागतों को ध्यान में रखा जाए। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

163348(2002 NN4) क्षुद्रग्रह

प्रीलिम्स के लिये:

संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह, नियर अर्थ ऑब्जेक्ट

मेन्स के लिये:

क्षुद्रग्रह  तथा उनसे संबंधित विभिन्न तथ्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration-NASA) ने घोषणा की है कि एक विशाल क्षुद्रग्रह के पृथ्वी (सुरक्षित दूरी पर) से गुजरने की उम्मीद है। इस विशाल क्षुद्रग्रह को ‘163348(2002 NN4)’ नाम दिया गया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि ‘163348(2002 NN4)’ क्षुद्रग्रह की खोज जुलाई 2002 में की गई थी।
  • इस क्षुद्रग्रह को ‘संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह’ (Potentially Hazardous Asteroid- PHA) और ‘नीयर अर्थ ऑब्जेक्ट (Near Earth Object)’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। 
  • नासा की ‘जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी’ (Jet Propulsion Laboratory- JPL) के अनुसार, ‘163348(2002 NN4)’ क्षुद्रग्रह का व्यास 250-570 मीटर के बीच हो सकता है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा ‘163348(2002 NN4)’ क्षुद्रग्रह के घूर्णन का अवलोकन किया गया है। यह प्रत्येक 14.50 दिनों में अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करता है। 
  • वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह क्षुद्रग्रह 5.2 किमी प्रति सेकंड या 11,200 मील प्रति घंटे की गति से पृथ्वी की कक्षा के पास से गुजरेगा। इसके पृथ्वी से 5.1 मिलियन किलोमीटर दूरी से गुजरने का अनुमान है।

संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह

(Potentially Hazardous Asteroid-PHA):

  • संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह ऐसे क्षुद्रग्रह होते हैं जिनके पृथ्वी के करीब से गुजरने से पृथ्वी पर खतरा उत्पन्न होने की संभावना बनी रहती है। 
  • संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह की श्रेणी में उन क्षुद्रग्रह को रखा जाता है जिनकी  ‘मिनिमम ऑर्बिट इंटरसेक्शन डिस्टेंस’ (Minimum Orbit Intersection Distance- MOID) 0.05AU या इससे कम हो। साथ ही ‘एब्सोल्यूट मैग्नीट्यूड’ (Absolute Magnitude-H) 22.0 या इससे कम हो। पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी को AU से इंगित करते हैं।

नियर अर्थ ऑब्जेक्ट (Near Earth Object):

  • ‘नियर अर्थ ऑब्जेक्ट’ ऐसी पिंड/क्षुद्रग्रह या धूमकेतु होते हैं जो पृथ्वी पर खतरा उत्पन्न करते हुए उसकी कक्षा के करीब से गुजरते हैं। ये क्षुद्रग्रह ज्यादातर बर्फ और धूल के कण से मिलकर बने होते हैं।
  • गौरतलब है कि पृथ्वी पर जीवन के विलुप्त होने के उन सभी कारणों में से एक पृथ्वी से क्षुद्रग्रह का टकराना माना जाता है।
  • वैज्ञानिकों ने क्षुद्रग्रह से बचाव हेतु निम्नलिखित तरीके सुझाए हैं-  
    • पृथ्वी पर पहुँचने से पहले ही क्षुद्रग्रह को नष्ट कर देना।
    • एक अंतरिक्ष यान की सहायता से क्षुद्रग्रह को पृथ्वी की कक्षा से अलग कर देना।

क्षुद्रग्रह (Asteroid):

  • क्षुद्रग्रह सूर्य की परिक्रमा करने वाले छोटे चट्टानी पिंड होते हैं। क्षुद्रग्रह द्वारा सूर्य की परिक्रमा ग्रहों के समान ही की जाती है लेकिन इनका आकार ग्रहों की तुलना में बहुत छोटा होता है। 
  • हमारे सौरमंडल में बहुत सारे क्षुद्रग्रह हैं। उनमें से ज़्यादातर क्षुद्रग्रह मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट (Main Asteroid Belt) में पाए जाते हैं। यह मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट मंगल और बृहस्पति ग्रहों की कक्षाओं के बीच के क्षेत्र में स्थित है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, अगले 100 वर्षों तक 140 मीटर से बड़े किसी भी क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने की संभावना नहीं है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

भुगतान अवसंरचना विकास कोष

प्रीलिम्स के लिये

भुगतान अवसंरचना विकास कोष

मेन्स के लिये

भुगतान अवसंरचना विकास कोष की आवश्यकता और महत्त्व, भारत में डिजिटल भुगतान की स्थिति

चर्चा में क्यों?

देश भर में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने हाल ही में 500 करोड़ रुपए का ‘भुगतान अवसंरचना विकास कोष’ (Payments Infrastructure Development Fund-PIDF) स्थापित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) 250 करोड़ रुपए के प्रारंभिक योगदान के साथ इस कोष की शुरुआत करेगा, जोकि कुल राशि का आधा हिस्सा होगा और शेष आधा हिस्सा कार्ड जारी करने वाले बैंकों और देश में परिचालित कार्ड नेटवर्कों (Card Networks Operating) द्वारा वहन किया जाएगा। 
  • RBI द्वारा इस कोष का गठन उद्देश्य मुख्यतः टियर-III से टियर-VI शहरों तथा पूर्वोत्तर राज्यों में अधिग्राहकों को पॉइंट ऑफ सेल (Point of Sale-PoS) से संबंधित अवसंरचना स्थापित करने हेतु प्रोत्साहित करना है।
  • RBI द्वारा गठित इस कोष को एक सलाहकार परिषद (Advisory Council) के माध्यम से शासित किया जाएगा, हालाँकि इसका प्रबंधन भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा स्वयं किया जाएगा।

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा भारतीय शहरों को उनकी जनसंख्या के आधार पर विभिन्न टियर में विभाजित किया गया है-
1. टियर I - 1,00,000 या उससे अधिक 
2. टियर II - 50,000 से 99,999
3. टियर III -  20,000 से 49,999
4. टियर IV - 10,000 से 19,999
5. टियर V - 5,000 से 9,999 
6. टियर VI - 5000 से कम

उद्देश्य

  • इस कोष के गठन का प्रमुख उद्देश्य देश भर के छोटे व्यापारियों को डिजिटल भुगतान स्वीकार करने हेतु सक्षम बनाना है।
  • यह कदम देश में डिजिटल भुगतान स्वीकार करने वाले व्यापारियों की संख्या को बढ़ाने में काफी मददगार साबित होगा।

आवश्यकता 

  • विदित हो कि बीते कुछ वर्षों में देश में भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र (Payments Ecosystem) विभिन्न प्रकार के विकल्पों के साथ विकसित हुआ है, जिसमें बैंक खाते, मोबाइल फोन, कार्ड इत्यादि शामिल हैं।
  • ऐसे में देश में भुगतान प्रणालियों के डिजिटलीकरण के लिये और अधिक उत्साह प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • देश में अधिकांश PoS टर्मिनल टियर I और टियर II शहरों में स्थित हैं और अन्य सभी शहरों तथा क्षेत्रों में इस प्रकार की अवसंरचना का अभाव है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, मार्च 2020 तक देश भर में लगभग 5.14 मिलियन सक्रिय PoS डिवाइस हैं। 

महत्त्व

  • विशेषज्ञों ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के इस कदम की सराहना करते हुए कहा कि यह कोष देश के पिछड़े इलाकों में भुगतान अवसंरचना (Payments Infrastructure) की पहुँच सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
  • इस कोष से दीर्घकाल में उन कंपनियों को भी लाभ प्राप्त होगा, जो कि देश में डिजिटल भुगतान सेवाएँ प्रदान करती हैं।

संबंधित चिंताएँ

  • कई विश्लेषकों ने यह चिंता ज़ाहिर की है कि देश भर के उन क्षेत्रों में PoS उपकरण स्थापित करना एक कारगर कदम नहीं होगा, जहाँ न्यूनतम व्यापारिक लेनदेन 10000 रुपए से भी कम होता है, क्योंकि इस प्रकार के उपकरण के रखरखाव की लागत ही काफी अधिक होती है।
  • वहीं नीति निर्माताओं के लिये आम लोगों को इस प्रकार के उपकरण के प्रयोग के प्रति जागरूक करना भी एक चुनौती होगी।

पॉइंट ऑफ सेल (Point of Sale-PoS)

  • पॉइंट ऑफ सेल (PoS) वह स्थान होता है, जहाँ ग्राहक द्वारा वस्तुओं या सेवाओं हेतु भुगतान किया जाता है। यहाँ पर बिक्री कर भी देय हो सकता है।
  • यह कोई बाह्य स्टोर हो सकता है जहाँ पर भुगतान के लिये कार्ड पेमेंट या वर्चुअल सेल्स पॉइंट, जैसे- कंप्यूटर या मोबाइल इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का उपयोग किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 06 जून, 2020

रूसी भाषा दिवस 

प्रतिवर्ष 6 जून को संयुक्त राष्ट्र द्वारा रूसी भाषा दिवस मनाया जाता है। रूसी भाषा दिवस को अलेक्सांद्र पुश्किन के जन्म दिवस पर मनाया जाता है। वह एक रूसी कवि थे और उन्हें आधुनिक रूसी साहित्य का जनक माना जाता है। फरवरी 2010 में सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद को मनाने के लिये  संयुक्त राष्ट्र ने भाषा दिवस का शुभारंभ किया गया। संयुक्त राष्ट्र, भाषा दिवस संगठन की 6 आधिकारिक भाषाओं को संरक्षित करता है। संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाएँ अंग्रेजी, अरबी, चीनी, स्पेनिश, रूसी और फ्रेंच हैं।

TULIP इंटर्नशिप कार्यक्रम 

4 जून, 2020 को आवास और शहरी विकास मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ‘TULIP’ नामक एक इंटर्नशिप कार्यक्रम शुरू किया। इस कार्यक्रम को नए इंजीनियरिंग स्नातकों के लिये लॉन्च किया गया है। इस कार्यक्रम के तहत, उन्हें भारत में 4,400 शहरी स्थानीय निकायों और 100 स्मार्ट शहरों के साथ काम करने के अवसर मिलेंगे। इंटर्नशिप एक वर्ष के लिये आयोजित की जाएगी। इस कार्यक्रम में शामिल हितों के क्षेत्र वित्तपोषण, शहरी नियोजन, पर्यावरण नियोजन, स्वच्छता और बुनियादी ढाँचे, पर्यावरण इंजीनियरिंग हैं। यह कार्यक्रम भारत को कई सरकारी योजनाओं को लागू करने में अपनी जनशक्ति की कमी की समस्या को हल करने में मदद करेगा।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम


वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने घोषणा की है कि वह ‘द ग्रेट रिसेट’ (The Great Reset) थीम के तहत दावोस में अपने अगले शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करेगा। फोरम ने शिखर सम्मेलन को ‘अ यूनिक ट्विन समिट’ (A Unique Twin Summit) नाम दिया है। विश्व आर्थिक मंच का 51 वाँ वार्षिक शिखर सम्मेलन विभिन्न वैश्विक नेताओं, नागरिक समाज और बहु-​​हितधारकों को एकत्रित करेगा। इस शिखर सम्मेलन की योजना दुनिया भर के लाखों युवाओं को आकर्षित करना और उन्हें नेताओं के साथ चर्चा करने के लिये एक शक्तिशाली वर्चुअल हब उपलब्ध करवाना है। विदित है कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जिसकी स्थापना वर्ष 1971 में क्लाउस श्वाब (Klaus Schwab) के द्वारा की गई थी। इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा में स्थित है। यह एक गैर-लाभकारी संगठन है, यह संगठन अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य करता है।


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