मुख्य परीक्षा
WHO की विश्व मानसिक स्वास्थ्य रिपोर्ट
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने दो महत्त्वपूर्ण रिपोर्टें- 'वर्ल्ड मेंटल हेल्थ टुडे' और 'मेंटल हेल्थ एटलस 2024' जारी की हैं। इन रिपोर्टों के अनुसार, विश्व भर में 1 अरब से अधिक लोग मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों से ग्रसित हैं, और 100 में से 1 व्यक्ति की मृत्यु आत्महत्या के कारण होती है।
- भारत के लिये जहाँ मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सामाजिक कलंक और सुविधाओं की पहुँच में अब भी भारी अंतर है, यह आँकड़ा न केवल स्वास्थ्य नीति की चिंता उत्पन्न करता है, बल्कि एक नैतिक ज़िम्मेदारी भी दर्शाता है।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य पर WHO की रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- वैश्विक बोझ: विश्व की 13.6% आबादी वर्तमान में मानसिक विकार (आयु-मानकीकृत व्यापकता) से ग्रस्त है। वर्ष 2011-2021 के बीच वैश्विक जनसंख्या वृद्धि की तुलना में इस व्यापकता में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
- सबसे आम विकार: चिंता//एंग्जायटी (Anxiety) और अवसाद (Depression) से संबंधित विकार संयुक्त रूप से दो-तिहाई से अधिक मामलों के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- चिंता विकार (Anxiety Disorders) आमतौर पर बचपन या किशोरावस्था में शुरू होते हैं, जबकि अवसाद (Depression) 40 वर्ष की आयु के बाद अधिक सामान्य हो जाता है और 50 से 69 वर्ष की आयु के बीच यह चरम पर होता है।
- जनसांख्यिकीय प्रवृत्तियाँ: युवा वयस्कों (20–29 वर्ष) में मानसिक विकारों की प्रचलन दर में वर्ष 2011 से सबसे अधिक वृद्धि (1.8%) देखी गई है।
- विश्व स्तर पर, पुरुषों में ध्यान अभाव/अधिक्रियाशीलता विकार (ADHD), ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार और बौद्धिक अक्षमताओं की दरें अधिक पाई जाती हैं।
- महिलाओं में चिंता, अवसाद और ईटिंग डिसऑर्डर (Eating Disorder) की दर अधिक पाई जाती है।
- आत्महत्या: वैश्विक स्तर पर हर 100 में से 1 मृत्यु आत्महत्या के कारण होती है। युवा लोगों में आत्महत्या मृत्यु का प्रमुख कारण है।
- SDG चिंता: वर्तमान गति से वर्ष 2030 तक आत्महत्या मृत्यु दर में केवल 12% की गिरावट आने का अनुमान है, जो संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य (SDG) के एक तिहाई कमी के लक्ष्य से बहुत कम है।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य
- प्रचलन: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NMHS) 2015-16 के अनुसार, लगभग 10.6% भारतीय वयस्क मानसिक विकारों से पीड़ित हैं, जिसमें शहरी क्षेत्रों में यह प्रचलन (13.5%) ग्रामीण क्षेत्रों (6.9%) की तुलना में अधिक है।
- उपचार में कमी: 70 से 92% लोग स्टिग्मा, जागरूकता की कमी और विशेषज्ञों की कमी के कारण उचित उपचार प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
- भारत में प्रति 100,000 व्यक्तियों पर केवल 0.75 मनोरोग विशेषज्ञ (psychiatrists) उपलब्ध हैं, जबकि WHO की सिफारिश प्रति 100,000 लोगों पर 3 मनोरोग विशेषज्ञों की है।
मानसिक स्वास्थ्य अवसंरचना
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP, 1982): मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को सामान्य स्वास्थ्य देखभाल में एकीकृत करता है।
- आयुष्मान भारत: मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिये उप स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को उन्नत किया गया।
- NIMHANS अधिनियम, 2012: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया, प्रशिक्षण एवं अनुसंधान का विस्तार किया गया।
- RPwD अधिनियम, 2016: विकलांगता से संबंधित व्यक्ति (अधिकार) अधिनियम, 2016 (RPwD Act, 2016): इस अधिनियम में मानसिक बीमारी को विकलांगता के रूप में मान्यता दी गई है, यह कानूनी सुरक्षा को मज़बूत करता है और संयुक्त राष्ट्र के विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर सम्मेलन (UNCRPD), 2006 के साथ संरेखित करता है।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार की गारंटी देता है, आत्महत्या को अपराध नहीं मानता और सम्मान की रक्षा करता है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017: इस नीति में मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में शामिल किया गया है और मानव संसाधनों को सशक्त बनाने पर बल दिया गया है।
- राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (NSPS, 2022): इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक आत्महत्या से होने वाली मौतों को 10% तक कम करना है। यह रणनीति प्रारंभिक हस्तक्षेप, संकट प्रबंधन, और मानसिक स्वास्थ्य संवर्द्धन पर केंद्रित है। इसके तहत उच्च जोखिम वाले समूहों जैसे कि छात्र, किसान और युवा वयस्कों को विशेष लक्ष्य बनाया गया है।
- डिजिटल पहल:
- iGOT-Diksha (2020): यह कार्यक्रम स्वास्थ्य पेशेवरों और सामुदायिक कार्यकर्त्ताओं को मानसिक स्वास्थ्य में प्रशिक्षण प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय टेली मेंटल हेल्थ कार्यक्रम (Tele MANAS), 2022: यह कार्यक्रम 20 भाषाओं में टोल-फ्री हेल्पलाइन के माध्यम से मुफ्त 24/7 मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करता है।
मानसिक स्वास्थ्य एक नैतिक मुद्दा क्यों है?
- समान मानसिक स्वास्थ्य तक पहुँच: मानसिक स्वास्थ्य, अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार का एक आवश्यक हिस्सा है। इसकी उपेक्षा करना मानव गरिमा और सार्थक जीवन जीने की क्षमता को कमज़ोर करता है।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच अक्सर असमान होती है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों को सबसे कम सहयोग मिलता है। नैतिक ज़िम्मेदारी यह मांग करती है कि सभी, विशेषकर सबसे कमज़ोर लोगों के कल्याण की रक्षा के लिये संसाधनों का समान वितरण किया जाए।
- स्वायत्तता और चयन की स्वतंत्रता: दुर्व्यवहार, भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार व्यक्तियों को देखभाल लेने या सूचित निर्णय लेने से रोकते हैं।
- एक नैतिक दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि लोग स्वतंत्र रूप से अपनी स्वायत्तता का प्रयोग कर सकें और बिना भय या पूर्वाग्रह के सहायता प्राप्त कर सकें।
- नुकसान को रोकने का कर्त्तव्य: कार्यस्थलों, स्कूलों और सरकारों का नैतिक दायित्व है कि वे हानिकारक तनावों को कम करें और आत्महत्या या काम से संबंधित मानसिक संकट जैसी अपरिहार्य पीड़ाओं को रोकें। इन ज़िम्मेदारियों की अनदेखी करना नैतिक रूप से गलत है।
- करुणा और सहानुभूति: सम्मान, समावेशन और दयालुता के रोज़मर्रा के कार्य नैतिक कर्तव्य हैं जो सीधे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
- दूसरों की पीड़ा को पहचानना और उसका उत्तर देना एक नैतिक समाज का केंद्रीय तत्व है।
- सामूहिक कल्याण: अनुपचारित मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पादकता, सामाजिक एकता और सार्वजनिक सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। इनका समाधान केवल दान नहीं बल्कि एक सामाजिक दायित्व है।
मेन्स के लिये संबंधित की-वर्ड
- "चुप रहना, न बात करना और मदद न लेना ही सबसे बड़ी समस्या है": उपचार की बाधाओं को तोड़ना
- “दूरसंचार आधारित देखभाल, कहीं भी उपलब्ध” या “टेली-केयर, हर जगह": ग्रामीण और शहरी भारत के लिये टेली मानस जैसे डिजिटल समाधान।
- "सामुदायिक उपचार": स्थानीय, समावेशी और सामूहिक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल।
- "मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल, जीवन की रक्षा":आत्महत्या रोकथाम एक राष्ट्रीय मिशन।
- "प्रशिक्षण, उपचार, परिवर्तन": मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के लिये क्षमता निर्माण।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ):
मेन्स:
प्रश्न. सकारात्मक अभिवृत्ति एक लोक सेवक अनिवार्य विशेषता माना जाती है जिसे प्राय: नितान्त दबाव में कार्य करना पड़ता है। एक व्यक्ति की सकारात्मक अभिवृत्ति में क्या योगदान देता है? (2020))
प्रश्न. "हम बाहरी दुनिया में तब तक शांति प्राप्त नहीं कर सकते जब तक हम अपने भीतर शांति प्राप्त नहीं कर लेते।" - दलाई लामा (2021)


भारतीय अर्थव्यवस्था
बैंकिंग क्षेत्र: भारत की आर्थिक वृद्धि का एक स्तंभ
प्रिलिम्स के लिये: अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ, एकीकृत भुगतान इंटरफेस, इनिशियल पब्लिक ऑफर, फ्री-एआई
मेन्स के लिये: समावेशी विकास और आर्थिक विकास में बैंकिंग क्षेत्र की भूमिका, कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में बैंकों की भूमिका
चर्चा में क्यों?
- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत के बैंकिंग क्षेत्र की आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) का समर्थन करने, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने तथा वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में भूमिका पर प्रकाश डाला।
भारत की बैंकिंग प्रणाली का आर्थिक विकास में क्या योगदान है?
- ऋण वृद्धि और आर्थिक गतिविधि: अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (Scheduled Commercial Banks - SCBs) द्वारा मार्च 2024 तक बैंक ऋण वितरण 164.3 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गया, जो वित्त वर्ष 2023 की तुलना में 20.2% (वित्त वर्ष 2023 में 15% की तुलना में) की वार्षिक वृद्धि है।
- कृषि ऋण वित्त वर्ष 2021 में 13.3 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 20.7 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जिससे 7.4 करोड़ से अधिक सक्रिय किसान क्रेडिट कार्ड खातों का समर्थन प्राप्त हुआ।
- बैंक आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने वाले क्षेत्रों को रणनीतिक रूप से ऋण प्रदान करते हैं।
- वित्तीय स्थिरता और परिसंपत्ति गुणवत्ता: सरस्वत सहकारी बैंक (SCB) के सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (GNPA) मार्च 2024 में 12 वर्षों के निचले स्तर 2.8% पर आ गई, जो वित्त वर्ष 2018 में 11.2% थी। यह बेहतर ऋणग्राही चयन और वसूली तंत्र में सुधार को दर्शाता है।
- शीर्ष 10 भारतीय बैंकों के ऋण कुल परिसंपत्तियों का 50% से अधिक हैं, जो बढ़ती ब्याज दरों के प्रति लचीलापन सुनिश्चित करता है।
- MSME और उद्यमिता समर्थन: बैंक उद्यमिता और समावेशी विकास के प्रमुख सहायक के रूप में कार्य करते हैं। उन्होंने MSME और औद्योगिक क्षेत्रों को कम लागत पर ऋण उपलब्ध कराकर रोज़गार, नवाचार और औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया है।
- उधार लेने वाले ग्राहकों के मामले में भारत, चीन के बाद, विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा बाजार है।
- औद्योगिक ऋण वृद्धि वित्त वर्ष 23 में 5.2% से बढ़कर वित्त वर्ष 24 में 8.5% हो गई।
- डिजिटल परिवर्तन और वित्तीय समावेशन: अब 77% से अधिक वयस्कों के पास औपचारिक वित्तीय संस्थानों में खाते हैं, जिससे आय और लिंग के आधार पर वित्तीय पहुँच में अंतर कम हुआ है।
- यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) लेनदेन वित्त वर्ष 2017 में 0.07 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 200 लाख करोड़ रुपये हो गया।
- मार्च 2024 तक भारत में 116.5 करोड़ स्मार्टफोन ग्राहक हैं, जो डिजिटल बैंकिंग की पहुँच को सुलभ बनाने में सहायक हैं।
- पूंजी बाज़ार विकास: प्राथमिक बाज़ार से जुटाई गई धनराशि वित्त वर्ष 2024 में 10.9 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गई। प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (Initial Public Offerings- IPO) वित्त वर्ष 2023 के 164 से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 272 हो गए। कॉर्पोरेट बॉण्ड निर्गम वित्त वर्ष 2024 में बढ़कर 8.6 लाख करोड़ रुपये हो गए, जो अब तक का सर्वोच्च स्तर है।
- बैंक पूंजी बाज़ार और निवेशकों को जोड़ते हैं, तथा कॉर्पोरेट वित्तपोषण और दीर्घकालिक विकास को समर्थन देते हैं।
- सामाजिक एवं कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन: प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY) के अंतर्गत खातों की संख्या 56 करोड़ से अधिक हो चुकी है, जिनमें से 67% खाते ग्रामीण/अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में हैं और 56% खाताधारक महिलाएँ हैं।
- आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत अब तक 34.2 करोड़ स्वास्थ्य कार्ड जारी किये जा चुके हैं, जिनमें से 49.3% कार्ड महिलाओं के नाम पर हैं।
- राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) और अटल पेंशन योजना (APY) के तहत कुल सदस्यता बढ़कर 735.6 लाख हो गई है, जो वार्षिक आधार पर 18% की वृद्धि दर्शाती है। इनमें महिलाओं की भागीदारी बढ़कर 48.5% हो गई है।
भारत के बैंकिंग क्षेत्र के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- ऋण-जमा संतुलन और तरलता जोखिम: ऋण वृद्धि ने जमा संग्रह (डिपॉजिट मोबिलाइजेशन) को पीछे छोड़ दिया है, जिससे संरचनात्मक तरलता दबाव की संभावनाएँ उत्पन्न हो रही हैं।
- परिवार तेज़ी से अपनी बचत को म्यूचुअल फंड, बीमा और पेंशन योजनाओं की ओर स्थानांतरित कर रहे हैं, जिससे बैंकों के पारंपरिक कम लागत वाले जमा आधार में कमी आ रही है।
- बैंक इस अंतर को शॉर्ट-टर्म उधार और जमा प्रमाणपत्रों के माध्यम से पूरा कर रहे हैं, जिससे वे ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए हैं।
- साइबर सुरक्षा और तृतीय-पक्ष जोखिम: बढ़ते डिजिटलीकरण के कारण साइबर हमलों, सिस्टम विफलताओं और आउटसोर्स संचालन से होने वाले जोखिमों में वृद्धि हुई है।
- इन क्षेत्रों में कमज़ोर प्रबंधन से परिचालन में व्यवधान, वित्तीय हानि और प्रतिष्ठा को नुकसान हो सकता है।
- सोशल इंजीनियरिंग हमलों और म्यूल अकाउंट्स (Mule Accounts) के बढ़ते उपयोग से बैंकों को वित्तीय और प्रतिष्ठा संबंधी जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
- खुदरा ऋण और असुरक्षित ऋण: खुदरा, असुरक्षित, और निजी ऋण के तेज़ी से विस्तार से डिफॉल्ट, ऋण भार (लेवरेज) जोखिम और प्रणालीगत कमज़ोरियों का जोखिम बढ़ जाता है। इससे बैंकों को अपने जोखिम आकलन, निगरानी तथा संचालन ढाँचे को मज़बूत करना आवश्यक हो जाता है।
आर्थिक विकास को गति देने हेतु भारत के बैंकिंग क्षेत्र को मज़बूत करने हेतु कौन से उपाय किये जा सकते हैं?
- पूँजी और जोखिम प्रबंधन को सुदृढ़ करना: भारत को बेसल-III दिशा-निर्देशों और नरसिंहम समिति (1991) की सिफारिशों के अनुरूप पर्याप्त पूँजी भंडार सुनिश्चित करते हुए जोखिम प्रबंधन को मजबूत करना होगा।
- बैंकों को खुदरा और असुरक्षित ऋणों के लिये उन्नत जोखिम-आधारित मूल्यांकन मॉडलों को अपनाना चाहिए, ताकि पूँजी पर्याप्तता (capital adequacy) में वृद्धि हो और डिफॉल्ट की दर घटे।
- इन उपायों से एक अधिक लचीला और सतत् बैंकिंग क्षेत्र विकसित होगा।
- डिजिटल परिवर्तन और साइबर सुरक्षा: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (FREE-AI) के ज़िम्मेदार और नैतिक उपयोग हेतु ढाँचे के अनुरूप, बैंकों को फिनटेक साझेदारी और एआई-आधारित जोखिम विश्लेषण को प्रोत्साहित करना चाहिये ताकि पहुँच और दक्षता को बढ़ाया जा सके।
- म्यूलहंटर एआई (MuleHunter AI) और अकाउंट एग्रीगेटर ढाँचा जैसी पहलें नवाचार को प्रोत्साहित करती हैं, साथ ही सुरक्षा और अनुपालन को भी सुनिश्चित करती हैं।
- शासन और निष्पक्ष आचरण: उपभोक्ता संरक्षण मानदंडों को लागू करना, पारदर्शी ऋण अनुबंध और उचित मूल्य निर्धारण तंत्र, विशेषकर माइक्रोफाइनेंस में, भरोसा बनाने में सहायक हो सकते हैं।
- वित्तीय समावेशन और ऋण विस्तार को बढ़ावा: प्राथमिकता क्षेत्र ऋण का विस्तार, सह-ऋण मॉडल और नवीन डिजिटल क्रेडिट प्लेटफॉर्म, उपेक्षित आबादी को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में ला सकते हैं।
- पीएमजेडीवाई (PMJDY), पीएम-सूर्य घर और पीएम-कुसुम जैसी योजनाएँ बैंकिंग को सामाजिक और अवसंरचना विकास से जोड़ती हैं, जिससे समावेशी विकास को प्रोत्साहन मिलता है।
- जलवायु और संक्रमण वित्तपोषण: दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता के लिये ऋण वितरण में स्थिरता और जलवायु जोखिम आकलन को शामिल करना अत्यंत आवश्यक है।
- सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड्स, ग्रीन डिपॉजिट्स और आरबीआई का मसौदा जलवायु प्रकटीकरण ढाँचा जैसी पहलें बैंकों को संक्रमण वित्तपोषण उपलब्ध कराने के लिये प्रोत्साहित करती हैं, साथ ही ग्रीनवॉशिंग जोखिमों को भी कम करती हैं।
- नियामक और नीतिगत उपाय: त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA), उन्नत पर्यवेक्षण और जोखिम-आधारित ऑडिट जैसे मजबूत नियामक ढाँचे वित्तीय प्रणाली की लचीलापन (resilience) को बढ़ाते हैं।
नरसिम्हम समिति
- डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत के बैंकिंग क्षेत्र का विश्लेषण करने और सुधारों की सिफारिश करने के लिये वर्ष 1991 में नरसिंहम समिति का गठन किया। इसके बाद वर्ष 1998 में दूसरी समिति बनी, जिसे नरसिंहम समिति-II के नाम से जाना जाता है।
नरसिम्हम समिति-I सिफारिशें:
- भारतीय बैंकिंग प्रणाली के लिये एक चार-स्तरीय पदानुक्रम जिसमें शीर्ष पर 3 या 4 प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और सबसे निचले स्तर पर कृषि गतिविधियों के लिये ग्रामीण विकास बैंक होंगे।
- बैंकों और वित्तीय संस्थानों की निगरानी के लिये RBI के अधीन एक अर्द्ध-स्वायत्त निकाय।
- वैधानिक तरलता अनुपात में कमी
- पूंजी पर्याप्तता अनुपात 8% तक पहुँचना
- परिसंपत्ति पुनर्निर्माण निधि की स्थापना
नरसिम्हम समिति- II सिफारिशें:
- समिति ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय की सिफारिश की। हालाँकि, समिति ने मज़बूत बैंकों का कमज़ोर बैंकों के साथ विलय करने के खिलाफ चेतावनी दी।
- समिति ने बैंकिंग क्षेत्र में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका में सुधार की भी सिफारिश की। समिति का मानना था कि चूँकि आरबीआई नियामक है, इसलिये उसे किसी भी बैंक में स्वामित्व नहीं रखना चाहिये।
- इसके साथ ही समिति ने एसेट रिकंस्ट्रक्शन फंड्स या एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों के गठन की भी सिफारिश की।
निष्कर्ष:
- संक्रमणकालीन वित्तपोषण, जलवायु-सचेत ऋण और डिजिटल ऋण विस्तार को अपनाकर, बैंक एक साथ स्थिरता और आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकते हैं। इस क्षेत्र की स्थिरता निवेशकों के विश्वास, घरेलू बचत जुटाने और वैश्विक वित्तीय बाज़ारों के साथ एकीकरण को भी बढ़ावा देती है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: वित्तीय स्थिरता बनाए रखते हुए ऋण वृद्धि और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में भारत के बैंकिंग क्षेत्र की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। |
प्रश्न. भारत में ‘शहरी सहकारी बैंकों’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
- राज्य सरकारों द्वारा स्थापित स्थानीय मंडलों द्वारा उनका पर्यवेक्षण एवं विनियमन किया जाता है।
- वे इक्विटी शेयर और अधिमान शेयर जारी कर सकते हैं।
- उन्हें वर्ष 1966 में एक संशोधन द्वारा बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के कार्य-क्षेत्र में लाया गया था।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा भारत के सभी ATM को जोड़ता है? (2018)
(a) भारतीय बैंक संघ
(b) राष्ट्रीय प्रतिभूति निक्षेपागार लिमिटेड
(c) भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम
(d) भारतीय रिज़र्व बैंक
उत्तर: (c)
मेन्स:
प्रश्न. प्रधानमंत्री जन धन योजना (पी.एम.जे.डी.वाई.) बैंकरहितों को संस्थागत वित्त में लाने के लिये आवश्यक है। क्या आप सहमत हैं कि इससे भारतीय समाज के गरीब तबके का वित्तीय समावेश होगा? अपने मत की पुष्टि के लिये तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2016)

