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सामाजिक न्याय

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017

  • 16 Feb 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

NHRC, MHIs, धारा 19, SDG 3.4, WHO की व्यापक मानसिक कार्ययोजना 2013-2020, MANAS एप।

मेन्स के लिये:

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 और संबंधित चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों? 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम (MHA), 2017 का उल्लंघन करने वाले भारत में कई मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों (MHIs) की दयनीय स्थिति पर चिंता व्यक्त की।

  • NHRC के अनुसार, MHIs रोगियों के ठीक होने के बाद भी लंबे समय तक उन्हें "अवैध रूप से" रख रहे हैं, जो न केवल अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है, बल्कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों के तहत दायित्त्वों का निर्वहन करने में सरकारों की विफलता को भी उज़ागर करता है, जिन्हें भारत द्वारा अनुमोदित किया गया है।

मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम (MHA), 2017 की पृष्ठभूमि: 

  • मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम (MHA), 2017 से पूर्व, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 1987 अस्तित्त्व में था, जो मानसिक रोगियों के संस्थागतकरण को प्राथमिकता देता था और रोगी को कोई अधिकार नहीं देता था।
  • अधिनियम ने न्यायिक अधिकारियों और मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों को लंबे समय तक रहने हेतु प्रवेशों को प्राधिकृत करने के लिये अक्सर व्यक्ति की सूचित सहमति और इच्छाओं के विरुद्ध असंगत अधिकार प्रदान किया।
  • नतीजतन, कई व्यक्तियों को भर्ती किया जाना जारी है और उनकी इच्छा के खिलाफ मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों में रखा गया है। 
  • इसने वर्ष 1912 के औपनिवेशिक युग के भारतीय पागलपन अधिनियम के लोकाचार को मूर्त रूप दिया, जो आपराधिकता और पागलपन को जोड़ता था।
    • शरण स्थल एक ऐसा स्थान है जहाँ "असामान्य" और "अनुत्पादक" व्यवहार जो कि व्यक्ति को समाज से अलग करता था, का एक व्यक्तिगत घटना के रूप में अध्ययन किया जाता था। हस्तक्षेप का उद्देश्य अंतर्निहित कमी या "असामान्यता" को ठीक करना है, जिसके परिणामस्वरूप "स्वास्थ्य लाभ" होता है। 
  • वर्ष 2017 में MHA ने शरण से जुड़ी नैदानिक विरासत को समाप्त कर दिया। 

मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम (MHA) 2017: 

  • परिचय: 
    • इस अधिनियम ने मानसिक बीमारी को "सोच, मनोदशा, धारणा, अभिविन्यास या स्मृति का एक पर्याप्त विकार के रूप में परिभाषित किया है जो क्षमता निर्णय, वास्तविकता, जीवन की सामान्य मांगों को पूरा करने के लिये व्यवहार को पहचानने की क्षमता या शराब और ड्रग्स के दुरुपयोग से जुड़ी मानसिक स्थितियों को बाधित करता है।  
    • यह मरीजों को उन सुविधाओं तक पहुँच का भी अधिकार प्रदान करता है जिनमें समुदाय और घर, आश्रय एवं समर्थित आवास तथा चिकित्सालय में पुनर्वास सेवाएँ भी शामिल हैं।
    • यह PMI (मानसिक बीमारी वाले व्यक्ति) पर शोध और न्यूरोसर्जिकल उपचार के उपयोग को नियंत्रित करता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के तहत अधिकार:
    • अग्रिम निर्देश का अधिकार (रोगी यह बता सकता है कि मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के दौरान बीमारी का इलाज कैसे किया जाए या नहीं किया जाए)।
    • स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का अधिकार।
    • निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाओं का अधिकार।
    • समुदाय में रहने का अधिकार।
    • क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार से सुरक्षा का अधिकार।
    • निषिद्ध उपचार के तहत इलाज न करने का अधिकार।
    • समानता और गैर-भेदभाव का अधिकार।
    • सूचना का अधिकार।
    • गोपनीयता का अधिकार।
    • कानूनी सहायता और शिकायत का अधिकार।
  • आत्महत्या करने का प्रयास अपराध नहीं: 
    • कोई व्यक्ति जो आत्महत्या करने का प्रयास करता है, यह माना जाएगा कि वह "गंभीर तनाव से पीड़ित" है और किसी भी जाँच अथवा अभियोजन के अधीन नहीं होगा। 
  • इस अधिनियम में केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की स्थापना की परिकल्पना की गई है।

Mental-Healthcare

इस कार्यान्वयन से संबद्ध चुनौतियाँ: 

  • मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड (MHRBs) की अनुपस्थिति: 
    • अधिकांश राज्यों में राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड (MHRBs) नहीं हैं तथा कई राज्यों ने MHI की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये न्यूनतम मानकों को अधिसूचित नहीं किया है।
      • MMHRBs ऐसे निकाय हैं जो मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों के लिये मानकों का मसौदा तैयार कर सकते हैं, उनके कामकाज़ की देख-रेख करने के साथ ही यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे अधिनियम का अनुपालन करते हैं अथवा नहीं।
    • MHRB के अभाव में लोग अपने अधिकारों का प्रयोग करने अथवा अधिकारों के हनन के मामलों में समाधान प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं।
  • खराब बजटीय आवंटन: 
    • खराब बजटीय आवंटन और धन का उपयोग एक ऐसे परिदृश्य का निर्माण करता है जिसमें आश्रयगृह में आवश्यक वस्तुओं का अभाव होता है, प्रतिष्ठान में कर्मचारियों की संख्या कम होती है और पेशेवर तथा सेवा प्रदाता मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिये पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं होते हैं।
  • लांछन की भावना: 
    • इन स्थानों में जो भी लोग रहते हैं, वे या तो अपने परिवार वालों द्वारा लाए जाते हैं अथवा पुलिस और न्यायपालिका इसके लिये उत्तरदायी होती है।
    • कई मामलों में परिवार वाले कैद से जुड़े कलंक अथवा ऐसे ही किसी विचार के कारण उन्हें ले जाने से मना कर देते हैं कि वह व्यक्ति अब समाज में कोई योगदान नहीं दे सकता है।
      • "पारिवारिक मतभेद, वैवाहिक असहमति और व्यक्तिगत संबंधों में हिंसा के कारण महिलाओं का परित्याग किये जाने की अधिक संभावना होती है, जो कुल मिलाकर इस परिस्थिति में लैंगिक भेदभाव में योगदान देते हैं।
  • समुदाय आधारित सेवाओं का अभाव: 
    • जबकि धारा 19 जो लोगों के "समाज में रहने, हिस्सा बनने और समाज से अलग न होने" के अधिकार को मान्यता प्रदान करती  है, के कार्यान्वयन हेतु कोई ठोस प्रयास नहीं किये गए हैं।
    • वैकल्पिक समुदाय-आधारित सेवाओं की कमी के कारण पुनर्वास तक पहुँच और जटिल हो जाती है, जैसे कि सहायता प्राप्त या स्वतंत्र रहने हेतु घर, समुदाय-आधारित मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ एवं सामाजिक-आर्थिक अवसर।

मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित पहल 

आगे की राह

  • यह सुनिश्चित करने हेतु अधिनियम की नियमित रूप से समीक्षा की जानी चाहिये कि यह व्यक्तियों की मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों की बदलती ज़रूरतों को पूरा करने में प्रभावी है।
  • इसके अतिरिक्त यह सुनिश्चित करने हेतु संसाधन उपलब्ध कराए जाने चाहिये कि अधिनियम को पर्याप्त रूप से लागू किया गया है।
  • मानसिक बीमारी से जुड़े कलंक/स्टिग्मा को दूर करने, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने और मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण को बढ़ावा देने हेतु निरंतर प्रयास किये जाने चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू

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