भारतीय राजव्यवस्था
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
- 14 Oct 2021
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प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, मानवाधिकार दिवस मेन्स के लिये:राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्य और शक्तियाँ |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की 28वीं वर्षगाँठ 12 अक्तूबर, 2021 को मनाई गई।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह देश में मानवाधिकारों का प्रहरी है, यानी भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत या अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों में शामिल और भारत में अदालतों द्वारा लागू कानून के तहत व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा से संबंधित अधिकार शामिल हैं।
- स्थापना:
- मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (PHRA), 1993 के प्रावधानों के तहत 12 अक्तूबर, 1993 को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) की स्थापना की गई। इसे मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 और मानवाधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा संशोधित किया गया था।
- यह पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप स्थापित किया गया था, जिसे पेरिस (अक्तूबर 1991) में मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण के लिये अपनाया गया था तथा दिसंबर 1993 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा अनुमोदित किया गया था।
- संरचना:
- प्रमुख सदस्य:
- यह एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसमें एक अध्यक्ष और चार सदस्य होते हैं। एक व्यक्ति जो भारत का मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो, वह अध्यक्ष होता है।
- नियुक्ति:
- इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय समिति, जिसमें प्रधानमंत्री सहित लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा का उप-सभापति, संसद के दोनों सदनों के मुख्य विपक्षी नेता तथा केंद्रीय गृहमंत्री शामिल होते हैं, की सिफारिशों के आधार पर की जाती है।
- कार्यकाल:
- राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष या वे 70 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक पद धारण करते हैं।
- राष्ट्रपति कुछ परिस्थितियों में अध्यक्ष या किसी सदस्य को पद से हटा सकता है।
- प्रमुख सदस्य:
- भूमिका और कार्य:
- आयोग के पास दीवानी अदालत की सभी शक्तियाँ हैं और इसकी कार्यवाही एक न्यायिक विशेषता है।
- यह मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों की जाँच के उद्देश्य से केंद्र सरकार या राज्य सरकार के किसी अधिकारी या जाँच एजेंसी की सेवाओं का उपयोग करने के लिये अधिकृत है।
- यह किसी मामले को उसके घटित होने के एक वर्ष के भीतर देख सकता है, अर्थात् आयोग को मानवाधिकारों का उल्लंघन किये जाने की तारीख से एक वर्ष की समाप्ति के बाद किसी भी मामले की जाँच करने का अधिकार नहीं है।
- आयोग के कार्य मुख्यतः सिफारिशी प्रकृति के हैं।
- इसके पास मानवाधिकारों के उल्लंघन करने वालों को दंडित करने की शक्ति नहीं है और न ही पीड़ित को आर्थिक सहायता सहित कोई राहत देने की शक्ति है।
- सशस्त्र बलों के सदस्यों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के संबंध में इसकी भूमिका, शक्तियाँ और अधिकार क्षेत्र सीमित हैं।
- जब निजी पार्टियों के माध्यम से मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है तो उसे कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।