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डेली न्यूज़

सामाजिक न्याय

मानसिक स्वास्थ्य और पुरुष

  • 11 Feb 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, सितंबर 2020 में लॉन्च किये गए 'किरण हेल्पलाइन' (Kiran Helpline) पर काॅल करने वालों में 70% कॉलर पुरुष थे। इनमे से ज़्यादातर कॉल युवा वयस्कों (Young Adults) से प्राप्त हुईहैं।

किरण 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन है जिसके माध्यम से ’चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचारों और अन्य मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं का सामना कर रहे लोगों को काउंसलिंग सेवा प्रदान की जाती है।

प्रमुख बिंदु:

  • डेटा विश्लेषण:
    • लैंगिक आधार पर मानसिक स्वास्थ्य: प्राप्त 13,550 नई कॉल्स में से, 70.5% काॅल पुरुषों द्वारा जबकि 29.5% काॅल महिलाओं द्वारा की गई थी।
    • कमज़ोर/सुभेद्य आयु समूह: कॉल करने वालों से 15 से 40 वर्ष आयु वर्ग का प्रतिशत सबसे अधिक रहा जिनसे कुल 75.5% काॅल्स प्राप्त हुई , जबकि 41 से 60 आयु वर्ग में 18.1% काॅल्स प्राप्त हुई।
    • प्रमुख मुद्दे: कॉल करने वालों की सबसे प्रमुख समस्या चिंता और अवसाद से संबंधित थीं जबकि कुछ अन्य मामलों में महामारी, आत्मघाती प्रवृत्ति, मादक द्रव्यों के सेवन जैसे अन्य मुद्दे शामिल थे।
  • पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे:
    • पारंपरिक लैंगिक भूमिका: सामाजिक अपेक्षाएँ और समाज में अपनी महत्त्वपूर्ण पारंपरिक लैंगिक भूमिका के कारण पुरुष अपने मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में ज़्यादा चर्चा नहीं कर पाते है।
    • चेतावनी के लक्षणों की अनदेखी: पुरुषों में मानसिक विकार के संकेतों या लक्षणों में चिड़चिड़ापन, ध्यान केंद्रित करने में परेशानी, थकान या बेचैनी, सिर-दर्द, शराब या नशीली दवाओं का अधिक मात्रा में सेवन करना शामिल है।लेकिन प्राय: इन लक्षणों की अनदेखी कर दी जाती है।
    • उचित ध्यान न देना: पुरुषों के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर अनुसंधान को अपेक्षाकृत कम प्राथमिकता दी गई है। धन का अभाव और उचित ध्यान न देने के कारण स्थिति और गंभीर हो जाती है।
    • आत्महत्या के मामलों में वृद्धि: वर्ष 2018 में प्रतिदिन लगभग 250 भारतीय पुरुषों ने आत्महत्या की जो महिलाओं द्वारा की गई आत्महत्याओं के मामलों की कुल संख्या के दोगुने से भी अधिक थी।

मानसिक स्वास्थ्य

  • मानसिक स्वास्थ्य के बारे में:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य स्वस्थ की एक स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी क्षमताओं का एहसास करता है, जीवन में सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, उत्पादक तरीके से कार्य कर सकता है और अपने समुदाय में अपना योगदान देने में सक्षम होता है। '
    • शारीरिक स्वास्थ्य की तरह, मानसिक स्वास्थ्य भी जीवन के प्रत्येक चरण अर्थात् बचपन और किशोरावस्था से वयस्कता के दौरान महत्त्वपूर्ण होता है।
  • चुनौतियाँ:
    • उच्च सार्वजनिक स्वास्थ्य भार: भारत के नवीनतम राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, पूरे देश में अनुमानत: 150 मिलियन लोगों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता है।
    • संसाधनों का अभाव: भारत में प्रति 100,000 जनसंख्या पर मानसिक स्वास्थ्य कर्मचारियों की संख्या का अनुपात काफी कम है जिनमें मनोचिकित्सक (0.3), नर्स (0.12), मनोवैज्ञानिक (0.07) और सामाजिक कार्यकर्ता (0.07) शामिल हैं।
    • स्वास्थ्य सेवा पर जीडीपी का 1 प्रतिशत से भी कम वित्तीय संसाधन पर आवंटित किया जाता है जिसके चलते सस्ती मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंँच में सार्वजनिक बाधा उत्पन्न हई है।
    • अन्य चुनौतियाँ: मानसिक बीमारी के लक्षणों के प्रति जागरूकता का अभाव, इसे एक सामाजिक कलंक के रूप में देखना और विशेष रूप से बूढ़े और निराश्रित लोगों में मानसिक बीमार के लक्षणों की अधिकता,रोगी के इलाज हेतु परिवार के सदस्यों में इच्छा शक्ति का अभाव इत्यादि के कारण एक सामाजिक अलगाव की स्थिति उत्पन्न होती है।
    • इसके परिणामस्वरूप उपचार में एक बड़ा अंतर देखा गया है। उपचार में आया यह अंतर किसी व्यक्ति की वर्तमान मानसिक बीमारी को और अधिक खराब स्थिति में पहुँचा देता है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP)
    • सरकार द्वारा वर्ष 1982 से राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (National Mental Health Program- NMHP) का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में योग्य पेशेवरों की कमी को दूर कर मानसिक विकारों के बोझ को कम करना है।
    • वर्ष 2003 में दो योजनाओं को शामिल करने हेतु इस कार्यक्रम को सरकार द्वारा पुनः रणनीतिक रूप से तैयार किया गया, जिसमे राजकीय मानसिक अस्पतालों का आधुनिकीकरण और मेडिकल कॉलेजों/सामान्य अस्पतालों की मानसिक विकारो से संबंधित इकाईयों का उन्नयन शामिल था।
  • मानसिक स्वास्थ्यकर अधिनियम, 2017:
    • यह अधिनयम प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को सरकार द्वारा संचालित या वित्तपोषित मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और उपचार तक पहुँच की गारंटी देता है।
    • अधिनयम ने आईपीसी की धारा 309 (Section 309 IPC) के उपयोग को काफी कम कर दिया है और केवल अपवाद की स्थिति में आत्महत्या के प्रयास को दंडनीय बनाया गया है।
    • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 की धारा 115 (1) के अनुसार, भारतीय दंड संहिता की धारा 309 में सम्मिलित किसी भी प्रावधान के बावजूद कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करने का प्रयास करेगा, उसके संबंध में तब तक, यह माना जाएगा कि वह गंभीर तनाव में जब तक कि यह अन्यथा साबित न हो, और साथ ही उसके विरुद्ध मुकदमा नहीं चलाया जाएगा और न ही उसे दंडित किया जाएगा।

आगे की राह:

  • कई शोधों में राष्ट्रव्यापी अभियानों के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित विषयों से जुड़ी सामाजिक कलंक की भावना को समाप्त करने पर ज़ोर दिया गया है।
  • यह सुनिश्चित करने के लिये सभी लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लिया जा रहा है तथा मानसिक स्वास्थ्य गंभीरतापूर्ण एवं सम्मानजनक तरीका से संबोधित किया जा रहा है, एक संवाद शुरु करके, उस संवाद को जारी रखकर पुरातन सामाजिक रिवाजों को चुनोती देने तथा बहिष्कार और भय के बिना लोगों को साथ देने की आवश्यकता है।
  • आधुनिक तकनीक जैसे कि वेब-आधारित हस्तक्षेप और इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य (ई-स्वास्थ्य) उपकरण विकसित किये जा सकते हैं ये उन लोगों तक पहुंँचने में उपयोगी साबित हो सकते हैं जो अन्यथा मदद नहीं मांग सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू

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