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WHO की विश्व मानसिक स्वास्थ्य रिपोर्ट

  • 05 Sep 2025
  • 55 min read

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने दो महत्त्वपूर्ण रिपोर्टें- 'वर्ल्ड मेंटल हेल्थ टुडे' और 'मेंटल हेल्थ एटलस 2024' जारी की हैं। इन रिपोर्टों के अनुसार, विश्व भर में 1 अरब से अधिक लोग मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों से ग्रसित हैं, और 100 में से 1 व्यक्ति की मृत्यु आत्महत्या के कारण होती है। 

  • भारत के लिये जहाँ मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सामाजिक कलंक और सुविधाओं की पहुँच में अब भी भारी अंतर है, यह आँकड़ा न केवल स्वास्थ्य नीति की चिंता उत्पन्न करता है, बल्कि एक नैतिक ज़िम्मेदारी भी दर्शाता है। 

विश्व मानसिक स्वास्थ्य पर WHO की रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं? 

  • वैश्विक बोझ: विश्व की 13.6% आबादी वर्तमान में मानसिक विकार (आयु-मानकीकृत व्यापकता) से ग्रस्त है। वर्ष 2011-2021 के बीच वैश्विक जनसंख्या वृद्धि की तुलना में इस व्यापकता में तेज़ी से वृद्धि हुई है। 
  • सबसे आम विकार: चिंता//एंग्जायटी (Anxiety) और अवसाद (Depression) से संबंधित विकार संयुक्त रूप से दो-तिहाई से अधिक मामलों के लिये ज़िम्मेदार हैं। 
    • चिंता विकार (Anxiety Disorders) आमतौर पर बचपन या किशोरावस्था में शुरू होते हैं, जबकि अवसाद (Depression) 40 वर्ष की आयु के बाद अधिक सामान्य हो जाता है और 50 से 69 वर्ष की आयु के बीच यह चरम पर होता है। 
  • जनसांख्यिकीय प्रवृत्तियाँ: युवा वयस्कों (20–29 वर्ष) में मानसिक विकारों की प्रचलन दर में वर्ष 2011 से सबसे अधिक वृद्धि (1.8%) देखी गई है। 
    • विश्व स्तर पर, पुरुषों में ध्यान अभाव/अधिक्रियाशीलता विकार (ADHD), ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार और बौद्धिक अक्षमताओं की दरें अधिक पाई जाती हैं। 
    • महिलाओं में चिंता, अवसाद और ईटिंग डिसऑर्डर (Eating Disorder) की दर अधिक पाई जाती है। 
  • आत्महत्या: वैश्विक स्तर पर हर 100 में से 1 मृत्यु आत्महत्या के कारण होती है। युवा लोगों में आत्महत्या मृत्यु का प्रमुख कारण है। 
  • SDG चिंता: वर्तमान गति से वर्ष 2030 तक आत्महत्या मृत्यु दर में केवल 12% की गिरावट आने का अनुमान है, जो संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य (SDG) के एक तिहाई कमी के लक्ष्य से बहुत कम है।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य 

  • प्रचलन: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NMHS) 2015-16 के अनुसार, लगभग 10.6% भारतीय वयस्क मानसिक विकारों से पीड़ित हैं, जिसमें शहरी क्षेत्रों में यह प्रचलन (13.5%) ग्रामीण क्षेत्रों (6.9%) की तुलना में अधिक है। 
  • उपचार में कमी: 70 से 92% लोग स्टिग्मा, जागरूकता की कमी और विशेषज्ञों की कमी के कारण उचित उपचार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। 
    • भारत में प्रति 100,000 व्यक्तियों पर केवल 0.75 मनोरोग विशेषज्ञ (psychiatrists) उपलब्ध हैं, जबकि WHO की सिफारिश प्रति 100,000 लोगों पर 3 मनोरोग विशेषज्ञों की है। 

मानसिक स्वास्थ्य अवसंरचना 

  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP, 1982): मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को सामान्य स्वास्थ्य देखभाल में एकीकृत करता है। 
  • आयुष्मान भारत: मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिये उप स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को उन्नत किया गया। 
  • NIMHANS अधिनियम, 2012: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया, प्रशिक्षण एवं अनुसंधान का विस्तार किया गया। 
  • RPwD अधिनियम, 2016: विकलांगता से संबंधित व्यक्ति (अधिकार) अधिनियम, 2016 (RPwD Act, 2016): इस अधिनियम में मानसिक बीमारी को विकलांगता के रूप में मान्यता दी गई है, यह कानूनी सुरक्षा को मज़बूत करता है और संयुक्त राष्ट्र के विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर सम्मेलन (UNCRPD), 2006 के साथ संरेखित करता है। 
  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार की गारंटी देता है, आत्महत्या को अपराध नहीं मानता और सम्मान की रक्षा करता है। 
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017: इस नीति में मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में शामिल किया गया है और मानव संसाधनों को सशक्त बनाने पर बल दिया गया है। 
  • राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (NSPS, 2022): इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक आत्महत्या से होने वाली मौतों को 10% तक कम करना है। यह रणनीति प्रारंभिक हस्तक्षेप, संकट प्रबंधन, और मानसिक स्वास्थ्य संवर्द्धन पर केंद्रित है। इसके तहत उच्च जोखिम वाले समूहों जैसे कि छात्र, किसान और युवा वयस्कों को विशेष लक्ष्य बनाया गया है। 
  • डिजिटल पहल: 
    • iGOT-Diksha (2020): यह कार्यक्रम स्वास्थ्य पेशेवरों और सामुदायिक कार्यकर्त्ताओं को मानसिक स्वास्थ्य में प्रशिक्षण प्रदान करता है। 
    • राष्ट्रीय टेली मेंटल हेल्थ कार्यक्रम (Tele MANAS), 2022: यह कार्यक्रम 20 भाषाओं में टोल-फ्री हेल्पलाइन के माध्यम से मुफ्त 24/7 मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करता है। 

मानसिक स्वास्थ्य एक नैतिक मुद्दा क्यों है? 

  • समान मानसिक स्वास्थ्य तक पहुँच: मानसिक स्वास्थ्य, अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार का एक आवश्यक हिस्सा है। इसकी उपेक्षा करना मानव गरिमा और सार्थक जीवन जीने की क्षमता को कमज़ोर करता है। 
    • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच अक्सर असमान होती है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों को सबसे कम सहयोग मिलता है। नैतिक ज़िम्मेदारी यह मांग करती है कि सभी, विशेषकर सबसे कमज़ोर लोगों के कल्याण की रक्षा के लिये संसाधनों का समान वितरण किया जाए। 
  • स्वायत्तता और चयन की स्वतंत्रता: दुर्व्यवहार, भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार व्यक्तियों को देखभाल लेने या सूचित निर्णय लेने से रोकते हैं। 
  • एक नैतिक दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि लोग स्वतंत्र रूप से अपनी स्वायत्तता का प्रयोग कर सकें और बिना भय या पूर्वाग्रह के सहायता प्राप्त कर सकें। 
  • नुकसान को रोकने का कर्त्तव्य: कार्यस्थलों, स्कूलों और सरकारों का नैतिक दायित्व है कि वे हानिकारक तनावों को कम करें और आत्महत्या या काम से संबंधित मानसिक संकट जैसी अपरिहार्य पीड़ाओं को रोकें। इन ज़िम्मेदारियों की अनदेखी करना नैतिक रूप से गलत है। 
  • करुणा और सहानुभूति: सम्मान, समावेशन और दयालुता के रोज़मर्रा के कार्य नैतिक कर्तव्य हैं जो सीधे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। 
  • दूसरों की पीड़ा को पहचानना और उसका उत्तर देना एक नैतिक समाज का केंद्रीय तत्व है। 
  • सामूहिक कल्याण: अनुपचारित मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पादकता, सामाजिक एकता और सार्वजनिक सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। इनका समाधान केवल दान नहीं बल्कि एक सामाजिक दायित्व है। 

मेन्स के लिये संबंधित की-वर्ड 

  • "चुप रहना, न बात करना और मदद न लेना ही सबसे बड़ी समस्या है": उपचार की बाधाओं को तोड़ना 
  • “दूरसंचार आधारित देखभाल, कहीं भी उपलब्ध” या “टेली-केयर, हर जगह": ग्रामीण और शहरी भारत के लिये टेली मानस जैसे डिजिटल समाधान। 
  • "सामुदायिक उपचार": स्थानीय, समावेशी और सामूहिक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल। 
  • "मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल, जीवन की रक्षा":आत्महत्या रोकथाम एक राष्ट्रीय मिशन। 
  • "प्रशिक्षण, उपचार, परिवर्तन": मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के लिये क्षमता निर्माण।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ): 

मेन्स:

प्रश्न. सकारात्मक अभिवृत्ति एक लोक सेवक  अनिवार्य विशेषता माना जाती है जिसे प्राय: नितान्त दबाव में कार्य करना पड़ता है। एक व्यक्ति की सकारात्मक अभिवृत्ति में क्या योगदान देता है? (2020)) 

प्रश्न. "हम बाहरी दुनिया में तब तक शांति प्राप्त नहीं कर सकते जब तक हम अपने भीतर शांति प्राप्त नहीं कर लेते।" - दलाई लामा (2021) 

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