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गिग वर्कर्स: अदृश्य कार्यबल

  • 04 Sep 2025
  • 85 min read

प्रिलिम्स के लिये: गिग एंड प्लेटफॉर्म इकोनॉमी, विश्व आर्थिक मंच, ई-श्रम पोर्टल। 

मेन्स के लिये: भारत की आर्थिक वृद्धि में गिग इकोनॉमी की भूमिका, भारत में गिग इकोनॉमी से जुड़े प्रमुख मुद्दे।

स्रोत: TH 

चर्चा में क्यों? 

भारत की गिग और प्लेटफॉर्म इकोनॉमी तेज़ी से बढ़ रही है, जिसके 2024-25 में 1 करोड़ कर्मचारियों से बढ़कर 2029-30 तक 2.35 करोड़ हो जाने का अनुमान है। हालाँकि यह अनुकूलता और नए अवसर प्रदान करती है, लेकिन गिग वर्कर्स काफी हद तक अदृश्य श्रम करते हैं, फिर भी उन्हें कम वेतन, नौकरी की असुरक्षा और एल्गोरिथम-संचालित प्रबंधन के दबाव का सामना करना पड़ता है।

गिग इकोनॉमी क्या है? 

  • परिचय: विश्व आर्थिक मंच (WEF) के अनुसार गिग इकोनॉमी वह व्यवस्था है, जिसमें श्रम का आदान-प्रदान धन के बदले व्यक्तियों या कंपनियों के बीच डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से होता है। ये प्लेटफॉर्म सेवा प्रदाताओं को ग्राहकों से अल्पकालिक और प्रति-कार्य भुगतान (payment-by-task) के आधार पर सक्रिय रूप से जोड़ते हैं। 
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के अनुसार गिग वर्कर वह व्यक्ति है, “जो पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंध से बाहर किसी कार्य का निष्पादन करता है या किसी कार्य व्यवस्था में भाग लेता है और ऐसी गतिविधियों से आय अर्जित करता है। 
  • गिग वर्कर्स के प्रकार: 
    • प्लेटफॉर्म-आधारित कर्मचारी: डिजिटल ऐप या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से कार्य करते हैं। जैसे- फूड डिलीवरी (ज़ोमैटो, स्विगी), राइडशेयरिंग (ओला, उबर), ई-कॉमर्स डिलीवरी (अमेज़न, डंज़ो)। 
    • नॉन-प्लेटफॉर्म कर्मचारी: पारंपरिक क्षेत्रों में अंशकालिक या पूर्णकालिक, अस्थायी या स्व-नियोजित कर्मचारी। उदाहरणों में अंशकालिक ट्यूटर, फ्रीलांस डिज़ाइनर, स्व-नियोजित घरेलू सहायक, अस्थायी निर्माण श्रमिक शामिल हैं। 
  • गिग इकोनॉमी के लाभ: 
    • श्रमिकों के लिये: अनुकूल कार्य समय अवधि, आय के अनेक स्रोत, स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अवसर, कौशल विकास। 
    • उपभोक्ताओं के लिये: तीव्र सेवाएँ, सुविधा, प्रतिस्पर्द्धी मूल्य निर्धारण, व्यापक विकल्प। 
    • व्यवसायों/प्लेटफॉर्म्स के लिये: विस्तार योग्य कार्यबल तक पहुँच, निम्न परिचालन लागत, बदलती मांग को प्रभावी ढंग से पूरा करने की क्षमता। 

गिग इकोनॉमी के विकास चालक क्या हैं? 

  • डिजिटल पहुँच का विस्तार: डिजिटल इंडिया के तहत, भारत में इंटरनेट कनेक्शन वर्ष 2014 में 25.15 करोड़ से बढ़कर 2024 में 96.96 करोड़ हो गए, जिसमें 85.5% घरों में स्मार्टफोन है। डिजिटल पहुँच में इस वृद्धि ने श्रमिकों और नियोक्ताओं को जोड़कर गिग इकोनॉमी के विकास को बढ़ावा दिया है। 
  • ई-कॉमर्स और स्टार्टअप बूम: ऑनलाइन व्यवसायों और स्टार्टअप्स के बढ़ने से लॉजिस्टिक्स, डिलीवरी, मार्केटिंग और कंटेंट निर्माण में गिग वर्कर्स की मांग बढ़ रही है। 
  • सुविधा के लिये शहरी मांग: उपभोक्ता तेज़ी से सेवाओं की अपेक्षा कर रहे हैं, जिससे खाद्य वितरण, राइडशेयरिंग और ग्राहक सहायता के अवसर बढ़ रहे हैं। 
  • कम लागत वाले श्रम की उपलब्धता: बढ़ती बेरोज़गारी और अर्द्ध-कुशल श्रमिकों की अधिकता के कारण कई लोग आय के स्रोत के रूप में गिग कार्य को स्वीकार करने लगे हैं। 
  • बदलती कार्य प्राथमिकताएँ: युवा पीढ़ी अनुकूलता, दूरस्थ कार्य और परियोजना-आधारित कार्यों को महत्त्व देती हैं, जिससे गिग भूमिकाएँ अधिक आकर्षक हो जाती हैं।

गिग इकोनॉमी के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • कम वेतन और आय अस्थिरता: गिग वर्कर्स को कम, अप्रत्याशित वेतन का सामना करना पड़ता है, उन्हें निश्चित वेतन के बजाय प्रति कार्य कमाई होती है, अक्सर लंबे समय तक काम करना पड़ता है तथा लक्ष्यों को पूरा करने के लिये दबाव का सामना करना पड़ता है जो "अनुकूलता" और पूर्णकालिक रोज़गार के बीच की रेखा को कर देता है। 
  • सीमित कानूनी और सामाजिक सुरक्षा: न्यूनतम कानूनी सहायता और श्रम कानूनों में अपर्याप्त मान्यता के कारण गिग वर्कर्स असुरक्षित हो जाते हैं।  
  • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 गिग वर्कर्स को स्वीकार करती है, लेकिन न्यूनतम मज़दूरी की गारंटी और विनियमित कार्य घंटे जैसे पूर्ण श्रम अधिकार प्रदान करने में विफल रहती है।   
  • गर्मी, बीमारी या दुर्घटनाओं जैसे संकटों के दौरान, जब कोई औपचारिक सुरक्षा व्यवस्था नहीं होती, कमजोरियां बढ़ जाती हैं । 
    • गिग वर्कर्स को कर्मचारी नहीं बल्कि "स्वतंत्र ठेकेदार" माना जाता है, जिससे उन्हें नियमित घंटों और सवेतन अवकाश से वंचित रहना पड़ता है, जबकि वे अक्सर पूर्णकालिक कार्य करते हैं। 
  • एल्गोरिथम नियंत्रण और निगरानी: डिजिटल प्लेटफॉर्म श्रमिकों के स्थान को ट्रैक करते हैं, प्रदर्शन की निगरानी करते हैं तथा कभी-कभी सेवा के दौरान उपयोग किये जाने वाले प्रत्येक उत्पाद की स्कैनिंग की भी आवश्यकता होती है। 
    • एल्गोरिदम कठोर कार्यक्रम निर्धारित करते हैं, देरी पर दंड लगाते हैं तथा बिना किसी मानवीय निगरानी के कर्मचारियों के ब्लॉक कर सकते हैं। इससे लगातार दबाव बनता है, जिससे कर्मचारियों पर अनुपालन करने का दबाव बनता है, अन्यथा उनकी आय कम होने का जोखिम रहता है। 
  • सामाजिक सुरक्षा और लाभों का अभाव: गिग श्रमिकों को आमतौर पर स्वास्थ्य बीमा, दुर्घटना कवर, मातृत्व लाभ, भविष्य निधि और पेंशन जैसे लाभों से वंचित रखा जाता है । 
    • गर्मी की लहरों, बीमारी या दुर्घटनाओं जैसी आपदाओं के समय, उनके पास कोई औपचारिक सुरक्षा तंत्र न होने के कारण उनकी संवेदनशीलता और बढ़ जाती है। 
  • लिंग-विशिष्ट कमज़ोरियाँ: महिलाओं को, विशेष रूप से सफाई या सौंदर्य सेवाओं जैसी भूमिकाओं में, ग्राहकों से उत्पीड़न और घर पर घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है। 
    • कार्य के लिये निजी घरों में प्रवेश करने से असुरक्षित परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। प्लेटफॉर्म की रेटिंग और दंड प्रणाली अक्सर महिलाओं को असुरक्षित बना देती है तथा उनके पास कानूनी सहारा बहुत कम होता है। 
  • शारीरिक दबाव: गिग कार्य का कोई निश्चित समय नहीं होता; "अनुकूलता" (flexibility) का अर्थ अक्सर 24 घंटे कार्य पर उपलब्ध रहना होता है। 
    • इससे लंबे कार्य घंटे, सख्त समय-सीमाएँ (deadlines) और निरंतर लक्ष्य-आधारित दबाव उत्पन्न होता है, जो शारीरिक और मानसिक थकान का कारण बनता है। 

भारत गिग इकोनॉमी की चुनौतियों का समाधान कैसे कर रहा है? 

  • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020: इसमें गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को कानूनी मान्यता दी गई है तथा उन्हें सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान किये गए हैं। इस संहिता में गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के कल्याण के लिये राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड गठित करने का प्रावधान भी है। 
  • नीति आयोग का RAISE फ्रेमवर्क गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है। यह पाँच मुख्य बिंदुओं पर केंद्रित है: 
    • R – Recognise: कार्य विविधता को मान्यता देना 
    • A – Augment: वित्तीय सहयोग बढ़ाना 
    • I – Incorporate: प्लेटफॉर्म और वर्कर्स के हितों को शामिल करना 
    • S – Support: जागरूकता को समर्थन देना
    • E – Ensure: लाभ तक पहुँच सुनिश्चित करना 
  • ई-श्रम पोर्टल (e-Shram Portal): वर्ष 2021 में शुरू किया गया यह पोर्टल असंगठित और गिग वर्कर्स का एक राष्ट्रीय डाटाबेस तैयार करता है। इसके माध्यम से श्रमिकों को यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (UAN) प्रदान किया जाता है तथा उन्हें सरकारी कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँच उपलब्ध कराई जाती है। इस पोर्टल का उद्देश्य कार्यबल का औपचारिकरण (formalisation) करना और सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच में सुधार लाना है। 
    • अगस्त 2025 तक 3.37 लाख से अधिक प्लेटफॉर्म और गिग वर्कर्स इस पोर्टल पर पंजीकृत हो चुके हैं। 
  • राज्य-स्तरीय उपाय: राजस्थान के प्लेटफॉर्म-आधारित गिग श्रमिक अधिनियम (2023) के तहत नियोक्ताओं को कल्याण उपकर जमा करना आवश्यक है। 
    • कर्नाटक ने गिग वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड (2024) का प्रस्ताव रखा है तथा तेलंगाना ने गिग वर्कर्स के पंजीकरण, सामाजिक सुरक्षा और कल्याण के लिये एक विधेयक का मसौदा तैयार किया है।

कौन से उपाय भारत की गिग अर्थव्यवस्था को मज़बूत कर सकते हैं?

  • व्यापक कानूनी ढाँचा: गिग वर्कर्स के अधिकारों और ज़िम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना। न्यूनतम वेतन, विनियमित कार्य घंटे, अनुचित बर्खास्तगी से सुरक्षा और सामूहिक सौदेबाजी के प्रावधान शामिल किये जाए। 
  • महिला-केंद्रित उपाय: सुनिश्चित करना कि महिलाएँ सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के तहत मातृत्व लाभ प्राप्त कर सकें। देखभाल और घरेलू ज़िम्मेदारियों को समायोजित करने के लिये दूरस्थ और परियोजना-आधारित भूमिकाओं को बढ़ावा देना। 
    • ऐप्स पर पैनिक बटन, ग्राहकों और डिलीवरी पॉइंट्स का बैकग्राउंड सत्यापन तथा महिला गिग वर्कर्स के लिये समर्पित हेल्पलाइन शुरू करना। 
  • एल्गोरिदम संबंधी निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना: मनमाने ढंग से आय की हानि को रोकने के लिये कार्य आवंटन, रेटिंग और दंड निर्धारित करने वाले प्लेटफॉर्म एल्गोरिदम को विनियमित करना। 
    • स्वचालित निर्णयों से प्रभावित श्रमिकों के लिये शिकायत निवारण, मानवीय निरीक्षण और अपील तंत्र को अनिवार्य बनाना। 
  • डिजिटल साक्षरता और सशक्तीकरण को बढ़ावा देना: गिग अर्थव्यवस्था में भागीदारी को सक्षम करने के लिये ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में डिजिटल पहुँच का विस्तार करना। 
  • अस्पष्ट कॉर्पोरेट नीतियों पर निर्भरता कम करने के लिये श्रमिकों को अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और सुरक्षित मंच प्रथाओं के बारे में शिक्षित करना। 
  • प्लेटफॉर्म अनुपालन को प्रोत्साहित करना: कर छूट, सब्सिडी या अधिमान्य सरकारी अनुबंध जैसे प्रोत्साहनों को कल्याणकारी कानूनों और निष्पक्ष भुगतान प्रथाओं के पालन से जोड़ना। 
    • प्लेटफार्मों को स्वेच्छा से अनुपालन करने और एक स्थायी गिग पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहित करना। 
  • ई-श्रम पोर्टल के माध्यम से औपचारिकता: गिग श्रमिकों को डिजिटल पहचान और कल्याणकारी योजनाओं, रोज़गार बीमा और स्वास्थ्य कवरेज तक पहुँच प्रदान करने के लिये ई-श्रम पोर्टल एकीकरण का विस्तार करना।  
  • सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में समावेशन सुनिश्चित करने के लिये गिग श्रमिकों पर औपचारिक रूप से नज़र रखना। 

निष्कर्ष

भारत की गिग और प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020) और ई-श्रम पोर्टल जैसी पहलों के साथ श्रम बाज़ार को तेज़ी से नया रूप दे रही है। गिग कर्मचारियों को सम्मान, सुरक्षा और उचित अवसर के साथ कार्य करने में सक्षम बनाने के लिये निरंतर समर्थन तथा प्रभावी नीतियाँ अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत की गिग और प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था के विकास तथा श्रमिकों, उपभोक्ताओं व व्यवसायों पर इसके प्रभावों की चर्चा कीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में नियोजित अनियत मज़दूरों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-(2021)   

  1. सभी अनियत मज़दूर, कर्मचारी भविष्य निधि सुरक्षा के हकदार हैं। 
  2.  सभी अनियत मज़दूर नियमित कार्य-समय एवं समयोपरि भुगतान के हकदार हैं।  
  3.  सरकार अधिसूचना के द्वारा यह विनिर्दिष्ट कर सकती है कि कोई प्रतिष्ठान या उद्योग केवल अपने बैंक खातों के माध्यम से मज़दूरी का भुगतान करेगा। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? 

(a) केवल 1 और 2             
(b)  केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3   
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. भारत में महिलाओं के सशक्तीकरण की प्रक्रिया में 'गिग इकॉनमी' की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (2021)

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