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भारतीय अर्थव्यवस्था

गिग इकॉनमी

  • 17 May 2025
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

गिग वर्कर्स, नीति आयोग, ई-कॉमर्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020

मेन्स के लिये:

भारत की आर्थिक वृद्धि में गिग इकॉनमी की भूमिका, भारत में गिग इकॉनमी से जुड़े प्रमुख मुद्दे और आगे की राह।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

गिग वर्कर्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित "वर्तमान विकास, चुनौतियाँ एवं आगे की राह" विषय पर गिग वर्कर्स की बैठक में भारत की गिग इकॉनमी (अर्थव्यवस्था) के महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला गया और गिग तथा प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिये न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा और कानूनी संरक्षण की स्थापना की सिफारिश की गई।  

  • इसमें राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर श्रमिकों, नियोक्ताओं और सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए त्रिपक्षीय कल्याण बोर्ड की स्थापना का भी आह्वान किया गया।

गिग इकॉनमी क्या है?

  • परिचय: वर्ष 2019 के नए श्रम संहिता में गिग वर्कर को इस प्रकार परिभाषित किया गया है: “ऐसा व्यक्ति जो किसी कार्य को करता है या कार्य व्यवस्था में भाग लेता है और पारंपरिक नियोक्ता-कर्मी संबंध के बाहर ऐसे कार्यों से आय अर्जित करता है।”
    • यह अल्पकालिक अनुकूल नौकरियों का श्रम बाज़ार है, जो अक्सर डिजिटल प्लेटफार्मों द्वारा सक्षम होता है।
    • फ्रीलांसर या स्वतंत्र ठेकेदार के रूप में कार्य करने वाले श्रमिकों को पूर्णकालिक अनुबंधों के बजाय प्रति कार्य के आधार पर भुगतान किया जाता है। आम गतिविधियों में फ्रीलांस सेवाएँ, खाद्य वितरण और डिजिटल कार्य शामिल हैं।
  • भारत की गिग इकॉनमी की स्थिति: नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020–21 में भारत में लगभग 77 लाख गिग श्रमिक थे, जिनकी संख्या वर्ष 2029–30 तक बढ़कर लगभग 2.35 करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है। इनमें अधिकांश श्रमिक मध्यम कौशल वाले कार्यों में लगे होंगे।
  • विकास के प्रमुख कारक:
    • डिजिटल पहुँच में वृद्धि: भारत में 936 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं, जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों में तेज़ी से वृद्धि हुई है। गिरती कीमतों के कारण लगभग 650 मिलियन स्मार्टफोन उपयोगकर्त्ता पहुँच का विस्तार कर रहे हैं, जिससे गिग इकॉनमी मज़बूत हो रही है।
    • ई-कॉमर्स बूम: स्टार्टअप और ई-कॉमर्स की वृद्धि से कंटेंट निर्माण, मार्केटिंग, लॉजिस्टिक्स और डिलीवरी में अनुकूल गिग वर्कर्स की मांग बढ़ रही है।
    • सुविधा की बढ़ती मांग: शहरी उपभोक्ताओं की खाद्य वितरण और ई-कॉमर्स जैसी त्वरित सेवाओं की मांग से वितरण तथा ग्राहक सहायता में अवसरों में वृद्धि होती है।
    • कम लागत वाला श्रम: अर्ध-कुशल श्रम की अधिकता, उच्च बेरोज़गारी और कमज़ोर सामाजिक सुरक्षा के कारण कई लोग जीवित रहने की रणनीति के रूप में कम वेतन वाले अस्थायी कार्य करने को मज़बूर हैं।
    • कार्य संबंधी प्राथमिकताओं में बदलाव: युवा पीढ़ी अनुकूल और कार्य-जीवन संतुलन के पक्ष में है तथा परियोजना-आधारित, दूरस्थ एवं अनुकूल विकल्पों के कारण गिग कार्य को आकर्षक मानती है।

खंड

गिग इकॉनमी का महत्त्व क्या है?

  • गिग वर्कर्स के लिये अवसर: गिग इकॉनमी अनुकूल कार्य प्रदान करती है, जो व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन के संतुलन में सहायता करते हैं, विशेष रूप से महिलाओं को लाभ पहुँचाती है, साथ ही कौशल एवं आय क्षमता को भी बढ़ाती है।
  • व्यवसाय के अनुकूल: व्यवसायों को लागत प्रभावी, स्केलेबल श्रम बल प्राप्त होता है और वे अल्पकालिक परियोजनाओं के लिये कुशल श्रमिकों को नियुक्त कर सकते हैं, जिससे दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं के बिना उत्पादकता बढ़ती है।
  • आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन: वर्ष 2030 तक, भारत की गिग इकॉनमी 90 मिलियन नौकरियों का समर्थन कर सकती है, 250 अरब अमेरिकी डॉलर के कार्य भार को संभाल सकती है, GDP में 1.25% का योगदान दे सकती है और कुल कार्यबल का 4.1% हिस्सा बन सकती है।
  • समावेशी विकास: प्रारंभ में उच्च आय वाले पेशेवरों द्वारा नियंत्रित, गिग इकॉनमी अब प्रवेश स्तर के कर्मचारियों और फ्रेशर्स को वैकल्पिक आय एवं अनुकूल नौकरियों का अवसर प्रदान कर रही है, विशेष रूप से तेज़ी से विकसित हो रहे टियर-2 एवं टियर-3 शहरों में।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण के साथ भविष्य की संभावनाएँ: गिग इकॉनमी आर्थिक वृद्धि और रोज़गार सृजन को गति देने के लिये तैयार है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स और डिजिटल नवाचार गिग कार्य की दक्षता एवं पहुँच को बढ़ा रहे हैं।
  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का समर्थन: भारत में कई गिग वर्कर, जिनमें कृषि जैसे अनौपचारिक क्षेत्रों से ड्राइवर और डिलीवरी कर्मचारी शामिल हैं, ज़ोमैटो तथा स्विगी जैसे प्लेटफॉर्म के माध्यम से अतिरिक्त कार्य अवसर प्राप्त करते हैं।

भारत में गिग इकॉनमी को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • कानूनी सुरक्षा का अभाव: गिग वर्कर्स को स्वतंत्र ठेकेदार के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जिसके कारण उन्हें न्यूनतम वेतन, सवेतन अवकाश और स्वास्थ्य लाभ जैसी बुनियादी अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है, जिससे वे शोषण के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
    • ठेका श्रम अधिनियम, 1970 और कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम, 1923 जैसे कानून प्लेटफॉर्म आधारित कार्य की लचीली और विकेंद्रीकृत प्रकृति के कारण गिग वर्कर्स के लिये अपर्याप्त हैं।
  • रोज़गार में अस्थिरता: गिग वर्कर्स को नौकरी की अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनके कार्य, वेतन और रोज़गार का निर्धारण अपारदर्शी एल्गोरिदम और ग्राहक रेटिंग्स के आधार पर होता है, जिससे आय अनियमित और अस्थिर हो जाती है।
    • वर्ष 2024 की नीति आयोग की एक रिपोर्ट में पाया गया कि 90% गिग वर्कर्स के पास बचत नहीं है और वे अत्यधिक असुरक्षा का सामना करते हैं, जबकि वर्ष 2023 की फेयर वर्क इंडिया स्टडी में बताया गया कि गिग वर्कर्स की औसत मासिक आय केवल ₹15,000 से ₹20,000 के बीच है।
  • अपर्याप्त सरकारी प्रतिक्रिया: सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 गिग वर्कर्स के कल्याण हेतु एक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड के गठन का प्रावधान करती है, लेकिन धीमी क्रियान्वयन प्रक्रिया और कमज़ोर प्रवर्तन के कारण अधिकांश श्रमिक लाभ और सुरक्षा से वंचित रह जाते हैं।
    • "प्रिज़नर्स ऑन व्हील्स" रिपोर्ट में पाया गया कि 83% कैब चालक प्रतिदिन 10 घंटे से अधिक काम करते हैं।
  • लैंगिक असमानता: महिला गिग वर्कर्स को अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, उन्हें शिकायत निवारण का पर्याप्त समर्थन नहीं मिलता, और वे प्रायः कम पारिश्रमिक, सीमित अवसरों और असुरक्षित परिस्थितियों का सामना करती हैं, जिससे लैंगिक असमानता और गहरी होती है।
  • समय पर भुगतान: 25% से अधिक गिग वर्कर्स भुगतान में देरी के कारण नौकरी से असंतुष्ट हैं, जो वित्तीय दबाव से बचने के लिये समयबद्ध, पारदर्शी और कम अवधि वाले भुगतान चक्रों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • एल्गोरिदमिक नियंत्रण: एल्गोरिदमिक प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही के अभाव से एक गंभीर शक्ति असंतुलन उत्पन्न होता है, जिसमें श्रमिकों को बिना स्पष्ट कारण के अकाउंट निष्क्रिय करने जैसे मनमाने निर्णयों का सामना करना पड़ता है और उनके पास कोई स्पष्ट शिकायत निवारण का साधन नहीं होता, जिससे प्लेटफॉर्म शोषण के जोखिम बढ़ जाते हैं।

भारत गिग इकॉनमी को सशक्त और सुदृढ़ बनाने के लिये क्या कदम उठा सकता है?

  • कानूनी सुधार: गिग अर्थव्यवस्था के लिये श्रम संहिता का शीघ्र लागू होना आवश्यक है, जिसमें स्पष्ट और लागू करने योग्य नियम हों, त्रिपक्षीय कल्याण बोर्डों की स्थापना हो, सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जाए और मौजूदा ढाँचों के साथ ओवरलैप से बचा जाए।
    • भारत नीदरलैंड्स, UK और कैलिफोर्निया जैसे देशों का अनुसरण करते हुए गिग वर्कर्स को कर्मचारियों के रूप में पुनर्वर्गीकृत कर सामाजिक सुरक्षा लाभों की गारंटी दे सकता है।
  • पोर्टेबल बेनेफिट्स सिस्टम: एक पोर्टेबल बेनेफिट्स सिस्टम जो स्वास्थ्य बीमा, सेवानिवृत्ति और बेरोज़गारी लाभ प्लेटफार्मों के पार प्रदान करे, गिग कार्यकर्त्ताओं की स्थिरता और आर्थिक सुरक्षा को बढ़ाएगा।
  • बेहतर कार्य परिस्थितियाँ: भारत को गिग प्लेटफॉर्म्स को पारदर्शी शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करने के लिये बाध्य करना चाहिये, जिससे कार्यकर्त्ता अन्यायपूर्ण प्रथाओं की शिकायत कर सकें और श्रम प्राधिकरण की निगरानी में समय पर समाधान सुनिश्चित हो।
    • अमेज़न, फ्लिपकार्ट, ज़ोमैटो, और स्विगी जैसी कंपनियाँ सुरक्षा उपकरण, आराम के क्षेत्र, और जल सुविधाओं के साथ कर्मचारियों की कार्य स्थितियों में सुधार कर रही हैं। कल्याण पर निरंतर ध्यान देने से एक सतत् गिग अर्थव्यवस्था सुनिश्चित होगी।
  • कौशल विकास और उन्नयन: गिग वर्कर्स को उच्च वेतन वाली भूमिकाओं और उद्यमिता प्रयासों में संक्रमण के लिये आवश्यक कौशल से लैस करने हेतु कौशल निर्माण पहलों और व्यावसायिक संस्थानों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम शुरू करना चाहिये और गिग प्लेटफॉर्म्स के साथ मिलकर विशेष प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिये, ताकि कार्यकर्त्ताओं को सशक्त बनाया जा सके और शोषण को कम किया जा सके।
  • गिग अर्थव्यवस्था का औपचारिकीकरण: भारत गिग वर्कर्स को बेहतर ढंग से शामिल करने के लिये ई-श्रम पोर्टल का विस्तार और सुधार कर सकता है, ताकि उन्हें डिजिटल पहचान प्रदान की जा सके जो कल्याण योजनाओं, लाभों और रोज़गार अवसरों से जुड़ी हो।

निष्कर्ष

भारत की गिग अर्थव्यवस्था, विशेषकर महिलाओं और युवाओं के लिये रोज़गार सृजन, आर्थिक वृद्धि और समावेशी अवसरों की एक सशक्त प्रेरक शक्ति है। हालाँकि, इसकी दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु समग्र कानूनी संरक्षण, पारदर्शी एल्गोरिदमिक शासन, और सुदृढ़ सामाजिक सुरक्षा उपायों की तत्काल आवश्यकता है, जिन्हें लक्षित कौशल विकास एवं नीति सुधारों द्वारा समर्थन प्राप्त होना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में गिग अर्थव्यवस्था के महत्त्व एवं गिग श्रमिकों द्वारा सामना की जाने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में नियोजित अनियत मज़दूरों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. सभी अनियत मज़दूर, कर्मचारी भविष्य निधि सुरक्षा के हकदार हैं।
  2. सभी अनियत मज़दूर नियमित कार्य-समय एवं समयोपरि भुगतान के हकदार हैं।
  3. सरकार अधिसूचना के द्वारा यह विनिर्दिष्ट कर सकती है कि कोई प्रतिष्ठान या उद्योग केवल अपने बैंक खातों के माध्यम से मज़दूरी का भुगतान करेगा।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न: भारत में महिलाओं के सशक्तीकरण की प्रक्रिया में 'गिग इकॉनमी’ की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (2021)

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