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सामाजिक न्याय

सामाजिक सुरक्षा सहिंता 2020 एवं गिग वर्कर्स

  • 27 Apr 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

गिग वर्कर्स, सामाजिक सुरक्षा, कर्मचारी भविष्य निधि, गरीब कल्याण रोज़गार अभियान, ई-श्रम पोर्टल, वेतन संहिता अधिनियम, 2019।

मेन्स के लिये:

सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में श्रम और रोज़गार राज्य मंत्रालय ने लोकसभा को बताया कि सामाजिक सुरक्षा संहिता (SS), 2020 में पहली बार 'गिग वर्कर्स' और 'प्लेटफॉर्म वर्कर्स' की परिभाषा प्रदान की गई है।

सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के तहत प्रावधान:

  • उद्देश्य:
    • इस संहिता का उद्देश्य संगठित/असंगठित (या किसी अन्य) क्षेत्रों को विनियमित करना और विभिन्न संगठनों के सभी कर्मचारियों और श्रमिकों को बीमारी, मातृत्त्व, विकलांगता आदि के दौरान सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना है।
  • श्रम कानूनों का एकीकरण: यह संहिता, सामाजिक सुरक्षा से संबंधित निम्नलिखित 9 श्रम कानूनों को एकीकृत करने का कार्य करती है:
    • कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम, 1923
    • कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948
    • कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952
    • कर्मचारी विनिमय (रिक्तियों की अनिवार्य अधिसूचना) अधिनियम, 1959
    • मातृत्त्व लाभ अधिनियम, 1961
    • ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972
    • सिनेमा कर्मकार कल्याण निधि अधिनियम, 1981
    • भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार उपकर अधिनियम, 1996
    • असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008
  • कवरेज और प्रयोज्यता:
    • संहिता ने अनुबंध कर्मचारियों के अलावा असंगठित क्षेत्र, निश्चित अवधि के कर्मचारियों और गिग वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्कर्स, अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों को शामिल करके कवरेज को बढ़ाया है।
    • यह संहिता प्रतिष्ठान में मज़दूरी पाने वाले सभी लोगों पर लागू होती है, भले ही उनका व्यवसाय कुछ भी हो।
  • संशोधित परिभाषा:
    • कर्मचारियों के संबंध में: 'कर्मचारी' शब्द के अंतर्गत अब अनुबंध के माध्यम से नियोजित कर्मचारी भी शामिल हैं।
    • अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों के संबंध में: इसमें दूसरे राज्य से पलायन कर चुके स्व-नियोजित श्रमिक भी शामिल हैं।
    • गिग वर्कर्स: घंटे के हिसाब से अथवा अस्थायी काम करने वाले फ्रीलांसर और स्वतंत्र ठेकेदार आदि को गिग वर्कर्स के रूप में समूहीकृत किया गया है जो एक गैर-पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंध साझा करते हैं।
    • प्लेटफॉर्म वर्कर्स: वे कर्मचारी जो अपने ग्राहकों से जुड़ने के लिये एप अथवा वेबसाइट का उपयोग करते हैं, उन्हें प्लेटफॉर्म वर्कर्स के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
    • चूँकि कई प्रकार के व्यवसाय इस दृष्टिकोण का उपयोग करना शुरू कर रहे हैं, इसलिये श्रम मंत्रालय इस संहिता के तहत और श्रेणियाँ शामिल करने पर विचार कर रहा है।
  • डिजिटाइज़ेशन:
    • सभी रिकॉर्ड और रिटर्न इलेक्ट्रॉनिक रूप से बनाए रखने होंगे। डेटा के डिजिटलीकरण से सरकार द्वारा स्थापित विभिन्न हितधारकों/फंडों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान में मदद मिलेगी, अनुपालन सुनिश्चित होगा एवं शासन को भी सुविधा मिलेगी।
  • मातृत्त्व लाभ:
    • मातृत्त्व लाभ के प्रावधान को सार्वभौमिक नहीं बनाया गया है और वर्तमान में यह 10 अथवा उससे अधिक श्रमिकों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठानों पर लागू है।
    • प्रस्तावित संहिता में 'स्थापना' की परिभाषा में असंगठित क्षेत्र को शामिल नहीं किया गया है।
    • इसलिये असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाएँ मातृत्त्व लाभ के दायरे से बाहर होंगी।
  • कठोर दंड:
    • कर्मचारियों के योगदान को जमा करने में विफल रहने की स्थिति में न केवल 100,000 रुपए के ज़ुर्माना का प्रावधान है, बल्कि 1-3 वर्ष की कैद भी होती है। बार-बार किये जाने वाले अपराध के मामले में दंड एवं अभियोजन दोनों हीं गंभीर हैं और इस प्रकार के अपराधों के लिये किसी भी प्रकार के समझौते की अनुमति नहीं है।

SS संहिता से संबंधित चिंताएंँ:

  • कुछ लाभों को अनिवार्य बनाने के लिये स्थापना के आकार के आधार पर संहिता में अभी भी सीमाएँ हैं।
    • इसका मतलब यह है कि पेंशन और चिकित्सा बीमा जैसे कुछ लाभ केवल निश्चित न्यूनतम संख्या में कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों के लिये अनिवार्य हैं, इस प्रकार बड़ी संख्या में श्रमिकों को छोड़ दिया जाता है।
  • इसके अतिरिक्त संहिता कर्मचारियों को एक ही प्रतिष्ठान के भीतर उनके वेतन के आधार पर अलग तरह से मानते हैं। केवल एक निश्चित सीमा से अधिक आय अर्जित करने वाले कर्मचारियों को ही अनिवार्य लाभ प्राप्त होंगे।
  • सामाजिक सुरक्षा लाभों का वितरण अभी भी केंद्रीय न्यासी बोर्ड, कर्मचारी राज्य बीमा निगम और सामाजिक सुरक्षा बोर्ड जैसे कई निकायों द्वारा खंडित तथा प्रशासित है। यह श्रमिकों के लिये उन लाभों को प्राप्त करना भ्रमित एवं कठिन बना सकता है जिनके वे हकदार हैं।

भारत में गिग इकॉनमी की स्थिति:

  • परिचय:
    • गिग इकॉनमी एक श्रम बाज़ार है जो पूर्णकालिक स्थायी कर्मचारियों के बजाय स्वतंत्र ठेकेदारों और फ्रीलांसरों द्वारा भरे गए अस्थायी और अंशकालिक पदों पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
  • गिग इकॉनमी और भारत:
    • भारत में गिग इकॉनमी हाल के वर्षों में तेज़ी से बढ़ रही है, डिजिटल प्लेटफॉर्म की बढ़ती उपलब्धता के साथ जो व्यक्तियों को फ्रीलांस या पार्ट-टाइम आधार पर अपनी सेवाएंँ देने की अनुमति देता है।
    • बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के गिग वर्कफोर्स में सॉफ्टवेयर, साझा सेवाओं और पेशेवर सेवाओं जैसे उद्योगों में कार्यरत 15 मिलियन कर्मचारी शामिल हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की गिग इकॉनमी वर्ष 2025 तक 23% बढ़ने की उम्मीद है।
  • गिग इकॉनमी के ग्रोथ ड्राइवर्स/संवृद्धि कारक:
    • इंटरनेट और मोबाइल प्रौद्योगिकी का प्रसार
    • आर्थिक उदारीकरण
    • लचीले काम की बढ़ती मांग
    • ई-कॉमर्स का विकास
    • बढ़ती युवा, शिक्षित और महत्वाकांक्षी जनसंख्या जो अतिरिक्त आय सृजन के साथ आजीविका में सुधार करना चाहती है
  • चुनौतियांँ:
    • नौकरी की सुरक्षा का अभाव, अनियमित वेतन और अनिश्चित रोज़गार की स्थिति
    • उपलब्ध कार्य और आय में नियमितता से जुड़ी अनिश्चितता के कारण तनाव
    • संविदात्मक संबंध के कारण कार्यस्थल अधिकारों का अभाव
    • इंटरनेट और डिजिटल तकनीक तक सीमित पहुंच
  • गिग अर्थव्यवस्था और महिलाएंँ:
    • गिग रोज़गार अंशकालिक काम और लचीले कामकाजी घंटों की अनुमति देता है जिससे महिलाएंँ रोज़गार के साथ अपनी पारंपरिक भूमिकाओं को संतुलित कर सकती हैं।
    • यह महिलाओं को बिना मांग के काम प्रदान करता है जिससे वे अपनी इच्छा के अनुसार वर्कफोर्स में शामिल हो सकती हैं और छोड़ सकती हैं।
    • गिग रोज़गार महिलाओं को अतिरिक्त आय अर्जित करने में मदद करता है, आत्मविश्वास बढ़ाता है और इस प्रकार निर्णय लेने की शक्ति देता है साथ ही महिला सशक्तीकरण के सभी महत्त्वपूर्ण घटकों को एकीकृत करता है।
    • वर्क फ्रॉम होम (WFH) और प्रौद्योगिकी पूरक गिग रोज़गार ने यात्रा और रात की पाली के दौरान सुरक्षा के मुद्दे को संबोधित किया है।

आगे की राह

  • SS संहिता 2020 अनौपचारिक श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के तहत लाने की कोशिश करती है, लेकिन यह सामाजिक सुरक्षा को सार्वभौमिक बनाने के अपने लक्ष्य को पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर पाता है। भारत उचित सामाजिक सुरक्षा के बिना वृद्ध जनसंख्या का सामना कर रहा है, और वर्तमान कार्यबल भविष्य में इसका समर्थन करने में सक्षम नहीं होगा। सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने से कार्यबल को औपचारिक बनाने में मदद मिल सकती है।
  • नियोक्ताओं को अपने श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये क्योंकि वे उनकी उत्पादकता से लाभान्वित होते हैं। जबकि सरकार की एक भूमिका है, नियोक्ताओं की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है।
  • जबकि गिग इकॉनमी व्यक्तियों को आजीविका अर्जित करने और काम में लचीलापन हासिल करने के कई अवसर प्रदान करती है, भारत में गिग वर्कर्स के लिये बेहतर विनियमन और सुरक्षा की आवश्यकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में महिलाओं के सशक्तीकरण की प्रक्रिया में 'गिग इकॉनमी' की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (2021)

स्रोत: पी.आई.बी

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