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डेली न्यूज़

  • 04 Aug, 2022
  • 74 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत मालदीव संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

मालदीव का भूगोल, ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट, भारत मालदीव संबंध, हिंद महासागर क्षेत्र

मेन्स के लिये:

भारत-मालदीव संबंध, भारत और इसके पड़ोसी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने मालदीव के राष्ट्रपति के साथ द्विपक्षीय वार्ता की।

  • प्रधानमंत्री ने हिंद महासागर में अंतर्राष्ट्रीय अपराध, आतंकवाद, मादक पदार्थों की तस्करी के खतरे पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शांति तथा स्थिरता के लिये रक्षा एवं सुरक्षा के क्षेत्र में भारत एवं मालदीव के बीच समन्वय महत्त्वपूर्ण है।

Maldives

द्विपक्षीय वार्ता:

  • सुरक्षा:
    • हिंद महासागर क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय अपराध, आतंकवाद, मादक पदार्थों की तस्करी के खतरे का मुकाबला करने के लिये भारत मालदीव सुरक्षा बल को 24 वाहन एवं एक नौसैनिक नाव उपलब्ध कराएगा, साथ ही द्वीपीय राष्ट्र के सुरक्षा कर्मियों को प्रशिक्षित करने में मदद करेगा।
    • भारत मालदीव के 61 द्वीपों में पुलिस सुविधाओं के निर्माण में भी सहयोग करेगा।
  • माले कनेक्टिविटी परियोजना:
    • दोनों नेताओं ने ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट, नई दिल्ली द्वारा वित्तपोषित 500 मिलियन अमेरिकी डाॅलर की परियोजना के का भी स्वागत किया।
      • दोनों नेताओं ने भारत से प्राप्त अनुदान और रियायती ऋण सहायता के तहत बनाए जा रहे 500 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के वर्चुअल आधारशिला समारोह में भाग लिया।
  • समझौते:
    • मालदीव के विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार करने के लिये दोनों देशों ने छह समझौतों पर हस्ताक्षर किये, जिनमें शामिल हैं:
      • साइबर सुरक्षा
      • क्षमता निर्माण
      • आवास
      • आपदा प्रबंधन
      • आधारभूत संरचना का विकास
        • भारत ने द्वीपीय राष्ट्र को कुछ आधारिक संरचना परियोजनाओं को पूरा करने में मदद करने के लिये 100 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के वित्तीय सहायता की घोषणा की।

भारत-मालदीव संबंध :

  • सुरक्षा सहयोग:
    • हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री द्वारा मालदीव की अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान नेशनल कॉलेज फॉर पुलिसिंग एंड लॉ एन्फोर्समेंट (National College for Policing and Law Enforcement- NCPLE) का उद्घाटन किया गया।
  • पुनर्वास केंद्र:
    • अड्डू रिक्लेमेशन एंड शोर प्रोटेक्शन प्रोजेक्ट (Addu Reclamation and Shore Protection Project) हेतु 80 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
    • अड्डू में एक ‘ड्रग डिटॉक्सिफिकेशन एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर’ (Drug Detoxification And Rehabilitation Centre) का निर्माण भारत की मदद से किया गया है।
      • यह सेंटर स्वास्थ्य, शिक्षा, मत्स्यपालन, पर्यटन, खेल और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में भारत द्वारा कार्यान्वित की जा रही 20 उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाओं में से एक है।
  • आर्थिक सहयोग:
    • पर्यटन, मालदीव की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। वर्तमान में मालदीव कुछ भारतीयों के लिये एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और बहुत से भारतीय वहाँ रोज़गार के लिये जाते हैं।
    • अगस्त 2021 में एक भारतीय कंपनी, ‘एफकॉन’ (Afcons) ने मालदीव में अब तक की सबसे बड़ी बुनियादी अवसंरचना परियोजना- ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) हेतु एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये थे।
    • भारत मालदीव का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
      • महामारी संबंधी चुनौतियों के बावज़ूद वर्ष 2021 में, द्विपक्षीय व्यापार में पिछले वर्ष की तुलना में 31% की वृद्धि दर्ज की गई।

भारत-मालदीव संबंधों में विद्यमान चुनौतियाँ:

  • राजनैतिक अस्थिरता:
    • भारत की प्रमुख चिंता इसकी सुरक्षा और विकास पर पड़ोसी देशों की राजनीतिक अस्थिरता का प्रभाव रहा है।
    • फरवरी 2015 में मालदीव के विपक्षी नेता मोहम्मद नशीद की आतंकवाद के आरोपों में गिरफ्तारी और उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न हुए राजनीतिक संकट ने भारत की पड़ोस नीति के समक्ष एक वास्तविक कूटनीतिक परीक्षा जैसी स्थिति उत्पन्न की है।
  • कट्टरता:
    • पिछले एक दशक में, इस्लामिक स्टेट (IS) और पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूहों का मालदीव में प्रभाव बढ़ता दिखाई दे रहा है।
      • यह पाकिस्तान स्थित आतंकी समूहों द्वारा भारत और भारतीय हितों के खिलाफ आतंकी हमलों के लिये लॉन्च पैड के रूप में मालदीव के द्वीपों का उपयोग करने की आशंका को जन्म देता है।
  • चीनी पक्ष:
    • हाल के वर्षों में भारत के पड़ोसी देशों में चीन के सामरिक दखल में वृद्धि देखने को मिली है। मालदीव दक्षिण एशिया में चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ (String of Pearls) रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक बनकर उभरा है।
    • चीन-भारत संबंधों की अनिश्चितता को देखते हुए मालदीव में चीन की रणनीतिक उपस्थिति चिंता का विषय है।
    • इसके अलावा मालदीव ने भारत के साथ समझौते के लिये 'चाइना कार्ड' का उपयोग शुरू कर दिया है।

आगे की राह

  • यद्यपि भारत मालदीव का एक महत्त्वपूर्ण भागीदार है, किंतु भारत को अपनी स्थिति पर संतुष्ट नहीं होना चाहिये और मालदीव के विकास के प्रति अधिक ध्यान देना चाहिये।
  • दक्षिण एशिया और आसपास की समुद्री सीमाओं में क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये भारत को इंडो-पैसिफिक सुरक्षा क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिये।
    • इंडो-पैसिफिक सुरक्षा क्षेत्र को भारत के समुद्री प्रभाव क्षेत्र में अतिरिक्त-क्षेत्रीय शक्तियों (विशेषकर चीन की) की वृद्धि प्रतिक्रिया के रूप में विकसित किया गया है।
  • वर्तमान में 'इंडिया आउट' अभियान को सीमित आबादी का समर्थन प्राप्त है, लेकिन इसे भारत सरकार द्वारा समर्थन प्रदान नहीं किया जा सकता है।
    • यदि 'इंडिया आउट' के समर्थकों द्वारा उठाए गए मुद्दों को सावधानी से हल नहीं किया जाता है और भारत, मालदीव के लोगों को द्वीप राष्ट्र पर परियोजनाओं के पीछे अपने इरादों के बारे में प्रभावी ढंग से नहीं समझाता है, तो यह अभियान मालदीव में घरेलू राजनीतिक स्थिति को बदल सकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

  1. 'द स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' नीति से आप क्या समझते हैं? यह भारत को कैसे प्रभावित करती है? इसका मुकाबला करने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदमों का संक्षेप में वर्णन कीजिये। (2013)
  2. पिछले दो वर्षों में मालदीव में राजनीतिक विकास पर चर्चा कीजिये। क्या वे भारत के लिये चिंता का कोई कारण हो सकते हैं? (2013)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2021

प्रिलिम्स के लिये:

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, CITES

मेन्स के लिये:

वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा ने वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 पारित किया, जो वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES)  के कार्यान्वयन का प्रावधान करता है।

वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2021:

  • परिचय:
    • इसे 17 दिसंबर, 2021 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री द्वारा लोकसभा में प्रस्तावित किया गया था।
    • यह वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन करता है।
    • विधेयक संरक्षित प्रजातियों की संख्या में वृद्धि और CITES को लागू करने का प्रयास करता है।
  • विशेषताएँ:
    • CITES:
      • वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora-CITES) एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका पालन राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठन स्वैच्छिक रूप से करते हैं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वन्य जीवों एवं वनस्पतियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण उनके अस्तित्त्व पर संकट न हो।
      • कन्वेंशन में शामिल विभिन्न प्रजातियों के आयात, निर्यात, पुनः निर्यात एवं प्रवेश संबंधी प्रक्रियाओं को लाइसेंसिंग प्रणाली के माध्यम से अधिकृत किया जाना आवश्यक है। यह जीवित जानवरों के नमूनों को संरक्षित और विनियमित करने का भी प्रयास करता है।
        • विधेयक CITES के इन प्रावधानों को लागू करने का प्रयास करता है।
    • प्राधिकरण:
      • विधेयक केंद्र सरकार को एक प्राधिकरण के गठन का प्रावधान करता है:
        • प्रबंधन प्राधिकरण, जो नमूनों के व्यापार के लिये निर्यात या आयात परमिट देता है।
          • अधिसूचित नमूने के व्यापार में संलग्न प्रत्येक व्यक्ति को लेनदेन का विवरण प्रबंधन प्राधिकरण को देना चाहिये।
          • विधेयक किसी भी व्यक्ति को नमूने की पहचान, चिह्न को संशोधित करने या हटाने से रोकता है।
        • वैज्ञानिक प्राधिकरण, जो व्यापार किए जा रहे नमूनों के अस्तित्व के प्रभाव से संबंधित पहलुओं पर सलाह देता है।
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972:
    • वर्तमान में इस अधिनियम में विशेष रूप से संरक्षित पौधों (I), विशेष रूप से संरक्षित जानवरों (IV), और वार्मिन प्रजातियों (I) के लिये छह अनुसूचियाँ शामिल हैं।
      • यह विधेयक अनुसूचियों की कुल संख्या को छः से घटाकर चार कर देता है:
        • अनुसूची I में उन प्रजातियों को शामिल किया गया है, जिन्हें उच्चतम स्तर की सुरक्षा की आवश्यकता है।
        • अनुसूची II में उन प्रजातियों को शामिल किया गया है जिन्हें अपेक्षाकृत कम सुरक्षा की आवश्यकता है।
        • अनुसूची III सभी प्रकार के पौधों को शामिल किया गया है।
        • इस विधेयक में वर्मिन प्रजातियों को अनुसूची से हटा दिया गया है।
          • वर्मिन प्रजाति से तात्पर्य उन छोटे जानवरों से है जो बीमारियों का प्रसार करते हैं तथा खाद्य पदार्थों को नष्ट कर देते हैं
        • यह CITES के परिशिष्टों में सूचीबद्ध प्रजातियों हेतु एक नवीन  कार्यक्रम को भी सम्मिलित करता है।
  • आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ:
    • यह केंद्र सरकार को आक्रामक विदेशी प्रजातियों के आयात, व्यापार या प्रसार को विनियमित या प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है।
      • आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ पौधों या जानवरों की प्रजातियों को संदर्भित करती हैं जो भारत की मूल प्रजातियाँ नहीं हैं और जिनकी उपस्थिति से वन्यजीव या इसके आवास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है
    • केंद्र सरकार किसी अधिकारी को आक्रामक प्रजातियों को ज़ब्त करने और उनका निपटान करने के लिये अधिकृत कर सकती है।
  • अभयारण्यों का नियंत्रण:
    • अधिनियम मुख्य वन्यजीव अधिकारी को एक राज्य में सभी अभयारण्यों को नियंत्रित करने, प्रबंधित करने और बनाए रखने का कार्य सौंपता है।
    • मुख्य वन्यजीव अधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
      • यह विधेयक निर्दिष्ट करता है कि मुख्य अधिकारी की कार्रवाई अभयारण्य के लिये निर्धारित प्रबंधन योजनाओं के अनुसार होनी चाहिये।
        • इन योजनाओं को केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार और मुख्य वन्यजीव अधिकारी द्वारा दिये गए अनुमोदन के अनुसार तैयार किया जाएगा।
        • विशेष क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले अभयारण्यों के लिये, संबंधित ग्राम सभके साथ उचित परामर्श के बाद प्रबंधन योजना तैयार की जानी चाहिये।
        • विशेष क्षेत्रों में अनुसूचित क्षेत्र या वे क्षेत्र शामिल हैं जहाँ अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 लागू है।
        • अनुसूचित क्षेत्र आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्र हैं, जहाँ मुख्य रूप से आदिवासी आबादी रहती है, जिसे संविधान की पाँचवीं अनुसूची के तहत अधिसूचित किया गया है।
  • संरक्षण रिज़र्व:
    • अधिनियम के तहत राज्य सरकारें वनस्पतियों और जीवों तथा उनके आवास की रक्षा के लिये राष्ट्रीय उद्यानों व अभयारण्यों के आस-पास के क्षेत्रों को संरक्षण रिज़र्व के रूप में घोषित कर सकती हैं।:
      • विधेयक केंद्र सरकार को भी एक संरक्षण रिज़र्व को अधिसूचित करने का अधिकार देता है।
  • दंड:
    • WPA अधिनियम,1972 अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर कारावास की सज़ा तथा जुर्माने का प्रावधान करता है।
      • विधेयक दंड के प्रावधानों में भी वृद्धि करता है।

उल्लंघन के प्रकार 

अधिनियम, 1972

विधेयक, 2021

सामान्य उल्लंघन

25,000 रुपए तक

1,00,000 रुपए तक

विशेष रूप से संरक्षित जानवर

कम-से-कम 10,000 रुपए

कम-से-कम 25,000 रुपए

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन एवं विनियमन तथा जंगली जानवरों, पौधों व उनसे बने उत्पादों के व्यापार पर नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • अधिनियम में पौधों और जानवरों को भी सूचीबद्ध किया गया है, जिन्हें सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की सुरक्षा प्रदान कर निगरानी की जाती है।
  • इस अधिनियम में कई बार संशोधन किया गया है, अंतिम संशोधन वर्ष 2006 में किया गया था।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न : यदि किसी विशेष पौधे की प्रजाति को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची VI के तहत रखा गया है, तो इसका क्या निहितार्थ है? (2020)

(a) उस पौधे की खेती के लिये लाइसेंस की आवश्यकता होती है।
(b) ऐसे पौधे की खेती किसी भी परिस्थिति में नहीं की जा सकती है।
(c) यह आनुवंशिक रूप से संशोधित फसल का पौधा है।
(d) ऐसा पौधा पारिस्थितिकी तंत्र के लिये आक्रामक और हानिकारक है।

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 पौधों और जानवरों की प्रजातियों के संरक्षण के लिये अधिनियमित किया गया है। अधिनियम में जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा का प्रावधान है। इसमें छह अनुसूचियाँ हैं, जो अलग-अलग सुरक्षा प्रदान करती हैं।
    • अनुसूची I और अनुसूची II के भाग II पूर्ण संरक्षण प्रदान करते हैं, इनके तहत अपराधों को उच्चतम दंड निर्धारित किया जाता है।
    • अनुसूची III और अनुसूची IV में सूचीबद्ध प्रजातियाँ भी संरक्षित हैं, लेकिन उलंघन करने पर दंड का प्रावधान बहुत कम है।
    • अनुसूची V में वे जानवर शामिल हैं जिनका शिकार किया जा सकता है।
    • अनुसूची VI में निर्दिष्ट स्थानिक पौधों को खेती और रोपण से प्रतिबंधित किया गया है।
  • अनुसूची VI में पौधे:
    • बेडडोम्स साइकैड (साइकस बेडडोमी),
    • ब्लू वांडा (वांडा सोरुलेक),
    • कुथ (सौसुरिया लप्पा),
    • लेडीज़ स्लिपर ऑर्किड (पैपिओपेडिलम एसपीपी)
    • पिचर प्लांट (नेपेंथेस खासियाना),
    • रेड वांडा
  • हालाँकि आगे यह भी कहा गया है कि बिना लाइसेंस के निर्दिष्ट पौधों की खेती प्रतिबंधित है। अधिनियम की धारा 17सी के अनुसार, कोई भी व्यक्ति निर्दिष्ट पौधे की खेती नहीं करेगा, जब तक मुख्य वन्य जीव वार्डन या इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा अधिकृत किसी अन्य अधिकारी द्वारा दिये गए लाइसेंस उपलब्ध न हो।

अतः विकल्प (a) सही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

ABDM के साथ स्वास्थ्य अनुप्रयोगों का एकीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA), आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM), ABDM सैंडबॉक्स,  सतत् विकास लक्ष्य, विशिष्ट स्वास्थ्य ID, आभा मोबाइल ऐप।

मेन्स के लिये:

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) और देश में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने में इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 52 डिजिटल स्वास्थ्य अनुप्रयोगों के सफल एकीकरण के साथ राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) ने अपनी प्रमुख योजना आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) के तहत स्थापित किये जा रहे डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र के विस्तार की घोषणा की है।

  • ये एकीकरण ABDM सैंडबॉक्स के माध्यम से प्राप्त किये जाते हैं।
  • पिछले दो महीनों में, अतिरिक्त 12 स्वास्थ्य सेवा अनुप्रयोगों को ABDM सैंडबॉक्स वातावरण के विभिन्न महत्त्वपूर्ण हिस्सों से जोड़ा गया है।
    • इस सूची में अब 20 सरकारी और 32 निजी क्षेत्र के अनुप्रयोग शामिल हो गए हैं।

नए एकीकृत ऐप:

  • ABDM साझेदार परितंत्र में जोड़े गए 12 नए अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं -
    • केंद्र सरकार अस्पताल योजना (CGHS) के लिये HMIS (अस्पताल प्रबंधन सूचना प्रणाली)
    • NICE-HMS . द्वारा अस्पताल प्रबंधन प्रणाली।
    • राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अनमोल अनुप्रयोग।
    • ई-संजीवन
    • धनुष इंफोटेक प्राइवेट लिमिटेड द्वारा उत्तराखंड सरकार के लिये यूके टेलीमेडिसिन सेवा।
    • इन्फिनिटी आइडेंटिटी टेक्नोलॉजीज़ प्राइवेट लिमिटेड द्वारा स्वास्थ्य तकनीक समाधान जैसे समान अनुप्रयोग।
    • IHX द्वारा IHX लेम मैनेजमेंट प्लेटफॉर्म।
    • कार्किनोस हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड द्वारा कार्किनोस एप्लीकेशन सूट।
    • फिंगूले टेक्नोलॉजीज़ प्राइवेट लिमिटेड द्वारा मेरा-अधिकार अनुप्रयोग।
    • NICT द्वारा nPe बिल और सर्विसज़ ऐप।
    • पेपरप्लेन कम्युनिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा पेपरप्लेन व्हाट्सएप क्लिनिक।
    • सोसाइटी फॉर हेल्थ इंफॉर्मेशन सिस्टम प्रोग्राम (HISP इंडिया) द्वारा HISP-EMR ।

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) और ऐप्स के एकीकरण का महत्त्व:

  • परिचय:
    • ABDM राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र है जो सूचना और बुनियादी ढाँचा सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला के प्रावधान के माध्यम से कुशल, सुलभ, समावेशी और किफायती तरीके से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का समर्थन करता है।
    • इसका उद्देश्य देश के एकीकृत डिजिटल स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे का समर्थन करने के लिये आवश्यक संसाधनों का विकास करना है।
    • यह डिजिटल राजमार्गों के माध्यम से हेल्थकेयर पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न हितधारकों के बीच मौजूदा अंतर को समाप्त करेगा।
  • एकीकरण का महत्त्व:
    • जैसे-जैसे अधिक मौजूदा स्वास्थ्य अनुप्रयोग पारिस्थितिकी तंत्र में शामिल होते हैं, नवाचार की संभावना बढ़ती है जिससे प्रणाली बहुत तेज़ी से विकसित होती है।
    • यह एकीकरण दर्शाता है कि कैसे सार्वजनिक और निजी क्षेत्र एक साथ आ सकते हैं और देश के लिये डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करने हेतु सहयोग कर सकते हैं।
    • स्वास्थ्य सेवा वितरण के डिजिटलीकरण की दिशा में यह सहयोगात्मक दृष्टिकोण भारत को सबसे प्रभावी, कुशल और किफायती तरीके से सभी के लिये स्वास्थ्य सेवा के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा।

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM)

  • उद्देश्य:
    • अत्याधुनिक डिजिटल स्वास्थ्य प्रणाली स्थापित करना, कोर डिजिटल स्वास्थ्य डेटा का प्रबंधन करना और इसके निर्बाध आदान-प्रदान के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचा तैयार करना।
    • नैदानिक प्रतिष्ठानों, स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों, स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं, दवाओं और फार्मेसियों का एकीकरण करने  लिये उचित स्तर पर पंजीकरण  करना।
    • सभी राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य हितधारकों द्वारा खुले मानकों को अपनाने हेतु लागू करना।
    • व्यक्तियों और स्वास्थ्य पेशेवरों तथा सेवा प्रदाताओं के लिये आसानी से सुलभ अंतर्राष्ट्रीय मानकों तथा व्यक्तियों की सूचित सहमति के आधार पर व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड की एक प्रणाली विकसित करना।
    • स्वास्थ्य के लिये सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने पर विशेष ध्यान देने के साथ उद्यम-श्रेणी के स्वास्थ्य अनुप्रयोग प्रणालियों के विकास को बढ़ावा देना।
  • एबीडीएम के बिल्डिंग ब्लॉक्स: आयुष्मान भारत मिशन 4 मुख्य बिल्डिंग ब्लॉक्स पर आधारित है:
    • स्वास्थ्य आईडी:
      • ABDM प्रणाली के प्रत्येक व्यक्तिगत उपयोगकर्ता को एक विशिष्ट स्वास्थ्य आईडी बनाना होगा जिसे सत्यापित किया जाएगा और उनकी पहचान से जोड़ा जाएगा।
      • इस विशिष्ट स्वास्थ्य आईडी पर उपयोगकर्ता की चिकित्सा जानकारी संग्रहीत की जाएगी।
    • हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स रजिस्ट्री
      • यह स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों का एक पूरा डेटाबेस है जो देश भर में स्वास्थ्य सेवाओं की तैनाती से जुड़े हैं।
      • पंजीयन पर अपना पंजीकरण कराकर, रोगियों को स्वास्थ्य पेशेवरों के डेटा और अन्य लाभों तक आसान और त्वरित पहुँच प्राप्त हो सकती है।
    • स्वास्थ्य सुविधा रजिस्ट्री
      • यह देश भर में सभी स्वास्थ्य सुविधाओं का एक व्यापक डेटाबेस है। इनमें निजी और सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ, जैसे- अस्पताल, डायग्नोस्टिक लैब, छोटे क्लीनिक, नर्सिंग होम आदि शामिल हैं।
    • आभा (ABHA) मोबाइल ऐप
      • ABHA मोबाइल ऐप का उपयोग रोगियों द्वारा अपनी चिकित्सा ज़ानकारी को नियंत्रित करने और एक्सेस करने के साथ-साथ इसे स्वास्थ्य पेशेवरों के साथ साझा करने के लिये किया जाता है।
      • ऐप सुरक्षित पर्सनल हेल्थ रिकॉर्ड (PHR) प्रणाली द्वारा समर्थित है।

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन सैंडबॉक्स:

  • यह डिजिटल स्वास्थ्य उत्पाद को वास्तविक उपयोग के लिये लाइव किये जाने से पहले एकीकरण प्रक्रियाओं के परीक्षण हेतु बनाए गए प्रयोग के लिये डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म है।
  • कोई भी डिजिटल स्वास्थ्य सेवा प्रदाता/डेवलपर ABDM ऐप्लिकेशन प्रोग्राम इंटरफेस (API) के साथ अपने सॉफ्टवेयर सिस्टम को एकीकृत और मान्य करने की पूर्व-निर्धारित प्रक्रिया का पालन करके ABDM सैंडबॉक्स पर पंजीकरण कर सकता है।
  • वर्तमान में, 919 सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के इंटीग्रेटर्स ने योजना के तहत अपने सॉफ्टवेयर समाधानों को एकीकृत और मान्य करने के लिये एबीडीएम सैंडबॉक्स के तहत नामांकन किया है।

भारत के स्वास्थ्य देखभाल पारिस्थितिकी तंत्र के डिजिटलीकरण में हालिया विकास:

  • राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM):
    • यह एक पूर्ण डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र है। डिजिटल प्लेटफॉर्म को चार प्रमुख विशेषताओं के साथ लॉन्च किया जाएगा- स्वास्थ्य आईडी, व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड, डिजी डॉक्टर और स्वास्थ्य सुविधा रजिस्ट्री
  • स्वास्थ्य डेटा प्रबंधन नीति:
    • दिसंबर 2020 में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने योजना की डिजिटल सेवाओं का उपयोग करने वाले रोगियों के व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा और प्रबंधन के लिये NDHM के तहत स्वास्थ्य डेटा प्रबंधन नीति को मंज़ूरी प्रदान की।
    • यह नीति राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र (NDHE) में एक मार्गदर्शन दस्तावेज के रूप में कार्य करती है।
    • NDHE में एकत्र किये गए डेटा को केंद्रीय स्तर, राज्य/केंद्रशासित प्रदेश स्तर और स्वास्थ्य सुविधा स्तर पर संग्रहित किया जाएगा।
  • अन्य पहल:
    • डेटा माइनिंग, डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड् और डिजिटल स्वास्थ्य अवसंरचना।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

Q. भारत में 'सभी के लिये स्वास्थ्य' प्राप्त करने के लिये उपयुक्त स्थानीय समुदाय-स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेप एक पूर्वापेक्षा है। व्याख्या कीजिये। (2018, मेन्स:)

स्रोत:पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0

प्रिलिम्स के लिये:

सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0, एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS), किशोर लड़कियों के लिये योजना (SAG) राष्ट्रीय शिशु गृह योजना, सतत् विकास लक्ष्य, पोषण वाटिका।

मेन्स के लिये:

पोषण 2.0 और समाज में वंचित बच्चों और महिलाओं को प्रदान करने में इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0 के कार्यान्वयन के संबंध में परिचालन दिशानिर्देश जारी किये हैं।

  • यह लाभार्थियों के आधार सीडिंग को भी बढ़ावा देगा ताकि ‘टेक-होम’ राशन की अंतिम ट्रैकिंग और गर्भवती महिलाओं एवं स्तनपान कराने वाली माताओं के प्रवास पर नज़र रखी जा सके।

सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0

  • परिचय:
  • वित्तीयन:
    • पोषण 2.0 केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच लागत बँटवारे के अनुपात के आधार पर राज्य सरकारों / केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन के माध्यम से लागू किया जा रहा केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है।
  • दृष्टिकोण
    • यह 6 वर्ष तक के बच्चों, किशोरियों (14-18 वर्ष) और गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के बीच कुपोषण की चुनौतीपूर्ण स्थिति का समाधान करेगा।
    • यह भारत के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत की आबादी में महिलाओं और बच्चों की संख्या दो- तिहाई से अधिक है।
    • सतत् विकास लक्ष्यों की उपलब्धि इस कार्यक्रम के रुपरेखा में सबसे आगे है।
    • यह SDGs विशेष रूप से जीरो हंगर पर SDG 2 और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर SDG 4 में योगदान देगा।
    • मिशन बच्चों के स्वास्थ्य और वयस्क उत्पादकता के विकास हेतु पोषण और बचपन की देखभाल तथा मौलिक शिक्षा के महत्त्व पर ध्यान केंद्रित करेगा।
  • उद्देश्य:
    • आँगनबाडी सेवाओं के तहत पूरक पोषाहार कार्यक्रम के माध्यम से कुपोषण की चुनौती से निपटने के लिये व्यापक रणनीति तैयार करना।
    • किशोरियों के लिये योजना और पोषण अभियान को पोषण 2.0 के तहत एकीकृत पोषण सहायता कार्यक्रम के रूप में जोड़ा गया है।
    • पोषण 2.0 के उद्देश्य इस प्रकार हैं:
      • देश के मानव पूंजी विकास में योगदान देना।
      • कुपोषण की चुनौतियों का समाधान करना।
      • स्थायी स्वास्थ्य और कल्‍याण के लिये पोषण जागरूकता और खाने की अच्छी आदतों को बढ़ावा देना।
      • प्रमुख रणनीतियों के माध्यम से पोषण संबंधी कमियों को दूर करना।
      • स्वास्थ्य और पोषण के लिये आयुष प्रणालियों को पोषण 2.0 के तहत एकीकृत किया जाएगा।
  • घटक:
    • आकांक्षी ज़िलों और पूर्वोत्‍तर क्षेत्रों (एनईआर) में 06 माह से 6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं (PWLM) और 14 से 18 वर्ष की आयु वर्ग की किशोरियों के लिये पूरक पोषण कार्यक्रम (SNP) के माध्यम से पोषण सहायता।
      • प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा [3-6 वर्ष] और प्रारंभिक प्रोत्‍साहन (0-3 वर्ष);
      • आधुनिक, उन्नत सक्षम आँगनबाडी सहित आँगनबाडी बुनियादी ढाँचा; तथा
      • पोषण अभियान

दिशानिर्देश:

  • यह योजना सभी पात्र लाभार्थियों के लिये खुली है, पूर्व शर्त केवल यह है कि लाभार्थी को आधार पहचान के साथ निकटतम आँगनबाडी केंद्र में पंजीकृत होना होगा।
  • इस योजना की लाभार्थी 14-18 आयु वर्ग की किशोर बालिकाएँ होंगी, जिनकी पहचान संबंधित राज्यों द्वारा की जाएगी।
  • आयुष लाभार्थियों को योग का अभ्यास करने और स्वस्थ रहने के लिये प्रोत्साहित करने के लिये 'घर पर योग, परिवार के साथ योग' और आँगनवाड़ी केंद्रों और परिवारों के अभियानों का प्रचार करेगा।
  • आयुष मंत्रालय इस योजना के कार्यान्वयन के लिये तकनीकी सहायता प्रदान करेगा।
  • इसके अंतर्गत बच्चों में पोषण के स्तर को मापने का प्रयास किया जाएगा।
  • यह गुड़ के उपयोग, मोरेंग (सहजन) जैसे स्वदेशी पौधों के साथ फोर्टीफिकेशन और भोजन की कम मात्रा में उच्च ऊर्जा प्रदान करने वाली सामग्री को बढ़ावा देता है।

आगे की राह:

  • भारत में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत के लगभग 68 प्रतिशत मामलों के लिये बच्चों और माँ में कुपोषण की स्थिति को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
    • इसका मूल रूप से तात्पर्य यह है कि एक समय में एक बीमारी बचाने के उपाय करने के बजाय, कुपोषण से समग्र रूप से निपटना, हमारे बच्चों को अधिक सुरक्षित रखेगा और उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाएगा।
  • पोषण 2.0 योजना उचित दिशा में अग्रसर है और इसके लाभ को न्यूनतम लीकेज साथ के वंचितों तक पहुँचाना चाहिये।

AatmaNirbharBharat

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

Q निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के बारे में ज़ागरूकता पैदा करना।
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया के मामलों को कम करना।
  3. बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये चावल की खपत को बढ़ावा देना।
  4. पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a)  केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d)  केवल 3 और 4

उत्तर: A

व्याख्या:

  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (पोषण अभियान) महिला और बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जो आंँगनवाड़ी सेवाओं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, स्वच्छ-भारत मिशन आदि जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के साथ अभिसरण सुनिश्चित करता है।
  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (एनएनएम) का लक्ष्य 2017-18 से शुरू होकर अगले तीन वर्षों के दौरान 0-6 वर्ष के बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की पोषण स्थिति में समयबद्ध तरीके से सुधार करना है। अतः कथन 1 सही है।
  • एनएनएम का लक्ष्य स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों के बीच) को कम करना और बच्चों के जन्म के समय कम वज़न की समस्या को कम करना है। अत: कथन 2 सही है।
  • एनएनएम के तहत बाजरा, बिना पॉलिश किये चावल, मोटे अनाज और अंडों की खपत से संबंधित ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। अत: कथन 3 और 4 सही नहीं हैं।

अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में गन्ना और चीनी उद्योग हेतु एफआरपी

प्रिलिम्स के लिये:

गन्ने की फसल, उचित और लाभकारी मूल्य, इथेनॉल सम्मिश्रण

मेन्स के लिये:

भारत में गन्ना क्षेत्र, इसका महत्त्व और चुनौतियाँ खाद्य सुरक्षा के लिये चुनौतियों के रूप में इथेनॉल सम्मिश्रण।

चर्चा में क्यों?

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने चीनी मौसम 2022-23 (अक्तूबर-सितंबर) के लिये गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) में 15 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की है।

  • चीनी की 10.25 प्रतिशत रिकवरी के लिय प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की वृद्धि के लिये 3.05 रुपये/ क्विंटल का प्रीमियम मिलेगा और रिकवरी में प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की कमी के लिये 3.05 रुपये प्रति/क्विंटल की दर से उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में कमी होगी।
  • रिकवरी दर गन्ने से प्राप्त होने वाली चीनी की मात्रा है और गन्ने से प्राप्त चीनी की मात्रा जितनी अधिक होती है, उतनी ही अधिक कीमत बाज़ार में मिलती है।

गन्ने की खेती:

  • तापमान : उष्ण और आर्द्र जलवायु के साथ 21-27 डिग्री सेल्सियस के बीच।
  • वर्षा: लगभग 75-100 सेमी.।
  • मिट्टी का प्रकार: गहरी समृद्ध दोमट मिट्टी।
  • शीर्ष गन्ना उत्पादक राज्य: महाराष्ट्र>उत्तर प्रदेश> कर्नाटक
  • इसे बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी तक सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, क्योंकि इसके लिये अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है।
  • इसमें बुवाई से लेकर कटाई तक शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है। यह चीनी, गुड़, खांडसारी और राब का मुख्य स्रोत है।
  • चीनी उद्योग को समर्थन देने हेतु सरकार की दो पहलें हैं- चीनी उपक्रमों को वित्तीय सहायता देने की योजना (SEFASU) और जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति गन्ना उत्पादन योजना।

गन्ने का मूल्य निर्धारण:

  • गन्ने का मूल्य केंद्र सरकार (संघीय सरकार) और राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित किया जाता है।
  • केंद्र सरकार : उचित और लाभकारी मूल्य (FRP)
    • केंद्र सरकार उचित और लाभकारी मूल्यों की घोषणा करती है जो कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश पर निर्धारित होते हैं तथा आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) द्वारा घोषित किये जाते हैं।
      • CCEA की अध्यक्षता भारत का प्रधानमंत्री करता है।
    • FRP, गन्ना उद्योग के पुनर्गठन पर बनी रंगराजन समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।
  • राज्य सरकार: राज्य परामर्श मूल्य (SAP)
    • प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों की सरकारों द्वारा SAP की घोषणा की जाती है।
    • SAP आमतौर पर FRP से अधिक होता है।

भारत में गन्ना क्षेत्र की स्थिति:

  • सबसे बड़ा उत्पादक:
    • भारत विश्व में गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक है।
      • भारत ने चालू चीनी सीज़न 2021-22 में चीनी उत्पादन के मामले में ब्राज़ील को पीछे छोड़ दिया है।
    • न्यूनतम मूल्य, गन्ने की गारंटीकृत बिक्री और चीनी के सार्वजनिक वितरण सहित उत्पादन को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों ने भारत को सबसे बड़ा उत्पादक बनने में सहायता की है
    • हालाँकि वर्षा की कमी, भूजल स्तर में गिरावट, गन्ना किसानों को भुगतान में देरी, अन्य फसलों की तुलना में कम शुद्ध आय (किसान के लिये), श्रम की कमी और श्रम की बढ़ती लागत, इसके बाद कोविड -19 महामारी जैसे कारक समग्र रूप से चीनी क्षेत्र के लिये चुनौती उत्पन्न कर रहे हैं।
  • दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक:
    • ब्राज़ील के बाद भारत चीनी का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।
    • भारत ने घरेलू खपत के लिये अपनी आवश्यकता को पूरा करने के अलावा चीनी का निर्यात भी किया है जिससे राजकोषीय घाटे को कम करने में सहायता मिली है।
    • चालू चीनी सीज़न 2021-22 में अगस्त 2022 तक लगभग 100 LMT चीनी का निर्यात किया गया है, जिसके 112 LMT तक पहुँचने की संभावना है।
  • आत्मनिर्भर बनना:
    • इससे पहले चीनी मिलें राजस्व उत्पन्न करने के लिये मुख्य रूप से चीनी के विक्रय पर निर्भर थीं। किसी भी मौसम में अधिशेष उत्पादन उनकी तरलता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है जिससे किसानों का गन्ना मूल्य बकाया हो जाता है।
    • हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में चीनी उद्योग ने आत्मनिर्भरता की स्थिति प्राप्त कर ली है।
      • वर्ष 2013-14 में तेल विपणन कंपनियों (OMCs) को इथेनॉल की बिक्री से चीनी मिलों को लगभग 49,000 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ।
      • चालू चीनी सीन 2021-22 में चीनी मिलों द्वारा OMCs को इथेनॉल की बिक्री से अब तक लगभग 20,000 करोड़ रुपए के राजस्व की प्राप्ति हुई है;
    • केंद्र सरकार द्वारा किये गए उपायों और FRP में वृद्धि ने किसानों को गन्ने की खेती के लिये प्रोत्साहित किया है और चीनी के घरेलू निर्माण के लिये चीनी कारखानों के निरंतर संचालन की सुविधा प्रदान की है।

सरकार द्वारा चीनी उत्पादन को प्रोत्साहित करने के कारण:

  • भारत सरकार कच्चे तेल के आयात पर देश की निर्भरता को कम करने, कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (EBP) को बढ़ावा दे रही है।
    • वर्तमान में भारत अपनी ज़रूरत का 85 फीसदी तेल आयात करता है।
  • इसके अलावा कच्चे तेल पर आयात बिल को कम करने, प्रदूषण को कम करने और देश को पेट्रोलियम क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये, सरकार पेट्रोल के साथ इथेनॉल मिश्रित कार्यक्रम के तहत इथेनॉल के उत्पादन तथा पेट्रोल के साथ इथेनॉल के मिश्रण को बढ़ाने के मार्ग पर सक्रिय रूप से आगे बढ़ रही है।
    • वर्तमान चीनी सीज़न वर्ष 2021-22 में लगभग 35 LMT चीनी को इथेनॉल में बदले जाने का अनुमान है, और वर्ष 2025-26 तक 60 LMT से अधिक चीनी को इथेनॉल में बदलने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जो अतिरिक्त गन्ने की समस्या के साथ-साथ विलंब से होने वाले भुगतान का भी समाधान करेगा, क्योंकि गन्ना किसानों को समय पर भुगतान प्राप्त होगा।
  • सरकार ने वर्ष 2022 तक पेट्रोल के साथ ईंधन ग्रेड इथेनॉल के 10 प्रतिशत मिश्रण का और वर्ष 2025 तक 20 प्रतिशत मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया है ।

चीनी उद्योग से जुड़ी चुनौतियाँ

  • मूल्य निर्धारण नियंत्रण: मांग-आपूर्ति असंतुलन को रोकने के लिये केंद्र और राज्य सरकारें विभिन्न नीतिगत हस्तक्षेपों जैसे- निर्यात शुल्क, चीनी मिलों पर स्टॉक सीमा लगाना, मौसम विज्ञान नियम में बदलाव आदि के माध्यम से चीनी की कीमतों को नियंत्रित कर रही हैं।
    • हालाँकि मूल्य निर्धारण के लिये सरकारी नियंत्रण प्रकृति में लोक-लुभावन है और इससे अक्सर मूल्य विकृति उत्पन्न होती है।
    • इससे चीनी चक्र का बड़े पैमाने पर अधिशेष और गंभीर कमी के बीच दोलन शुरू हो गया है।
  • उच्च आगत और कम उत्पादन लागत: गन्ने की कीमतों में निरंतर वृद्धि की पृष्ठभूमि में हाल के वर्षों में चीनी की गिरती/स्थिर कीमत पिछले कुछ वर्षों में चीनी उद्योग के सामने आने वाली समस्याओं का मुख्य कारण है।
    • इसकी वजह से सरकार को बड़े स्तर पर गन्ना अधिशेष की स्थिति से जूझना पड़ा, जबकि यह उद्योग समय-समय पर सरकार द्वारा वित्तपोषित बेल-आउट पैकेज और सब्सिडी पर जीवित रहा है।
    • व्यवसाय की अव्यवहार्यता के कारण चीनी उद्योग में कोई नया निजी निवेश नहीं किया जा रहा है।
  • चीनी निर्यात अव्यवहार्यता: भारतीय निर्यात अव्यावहारिक है क्योंकि चीनी उत्पादन की लागत अंतर्राष्ट्रीय चीनी मूल्य से काफी अधिक है।
    • सरकार ने निर्यात सब्सिडी प्रदान करके मूल्य अंतर को समाप्त करने की मांग की, लेकिन विश्व व्यापार संगठन में अन्य देशों द्वारा इसका तुरंत विरोध किया गया।
    • इसके अलावा कृषि पर विश्व व्यापार संगठन के समझौते के तहत भारत को दिसंबर, 2023 तक सब्सिडी जारी रखने की अनुमति दी गई है। लेकिन यह समस्या है कि वर्ष 2023 के बाद क्या होगा।
  • भारत के इथेनॉल कार्यक्रम का निराशाजनक प्रदर्शन: ऑटो ईंधन के रूप में उपयोग के लिये पेट्रोल के साथ इथेनॉल का मिश्रण, पहली बार वर्ष 2003 में घोषित किया गया था, लेकिन समस्या कभी समाप्त नहीं हुई।
    • जैसे,सम्मिश्रण के लिये आपूर्ति किये गए इथेनॉल की खराब मूल्य निर्धारण, चीनी की आवधिक कमी और पीने योग्य शराब क्षेत्र से प्रतिस्पर्द्धि मांग।

आगे की राह

  • गन्ना क्षेत्रों के मानचित्रण के लिये सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों को तैनात करने की आवश्यकता है।
    • भारत में जल, खाद्य और ऊर्जा क्षेत्रों में गन्ने के महत्त्व के बावजूद हाल के वर्षों और समय शृंखला में गन्ने का कोई विश्वसनीय रोडमैप नहीं है।
  • गन्ने में अनुसंधान और विकास कम उपज तथा कम चीनी प्रतिलाभ दर जैसे मुद्दों को हल करने में मदद कर सकता है।
  • रंगराजन समिति ने चीनी और अन्य उप-उत्पादों की कीमत में गन्ना मूल्य कारक तय करने के लिये एक राजस्व बँटवारा फॉर्मूला सुझाया है।
    • इसके अलावा यदि गन्ने का मूल्य फॉर्मूला द्वारा निकाला जाता है, जिसे सरकार उचित या निर्धारित भुगतान के रूप में मानती है, से नीचे चला जाता है, तो यह इस उद्देश्य के लिये बनाए गए समर्पित फंड के अंतर को समाप्त कर सकता है वही फंड बनाने के लिये उपकर लगाया जा सकता है।
  • सरकार को एथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देना चाहिये। यह देश के तेल आयात लागत को कम करेगा और सुक्रोज़ को इथेनॉल में बदलने एवं चीनी के अतिरिक्त उत्पादन को संतुलित करने में मदद करेगा।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दुर्लभ खनिज गठबंधन

प्रिलिम्स के लिये:  

दुर्लभ खनिज, खनिज सुरक्षा साझेदारी

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण खनिजों का अनुप्रयोग, अंतर्राष्ट्रीय समूहों का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

 खनिज सुरक्षा साझेदारी में  स्थान मिलने के कारण भारत सरकार की चिंता बढ़ी है।

  • खनिज सुरक्षा साझेदारी चीन पर निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित करने के लिये एक नई महत्त्वाकांक्षी US -नेतृत्व वाली साझेदारी है।
  • दुर्लभ खनिजों की मांग, जो स्वच्छ ऊर्जा और अन्य प्रौद्योगिकियों के लिये आवश्यक हैं, का आने वाले दशकों में उल्लेखनीय रूप से बढ़ने का अनुमान है।

दुर्लभ खनिज

  • परिचय:
    • दुर्लभ खनिज ऐसे तत्त्व हैं जो आधुनिक युग में महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों की बुनियाद हैं और इनकी कमी की वजह से पूरी दुनिया में आपूर्ति शृंखला पर असर पड़ा है।
    • इन खनिजों का उपयोग अब मोबाइल फोन और कंप्यूटर बनाने से लेकर बैटरी, इलेक्ट्रिक वाहन (EV) तथा हरित प्रौद्योगिकी जैसे सौर पैनल एवं पवन टरबाइन बनाने में किया जाता है।
  • प्रमुख दुर्लभ खनिज::
    • EV बैटरी बनाने के लिये ग्रेफाइट, लिथियम और कोबाल्ट का उपयोग किया जाता है।
    • एयरोस्पेस, संचार और रक्षा उद्योग भी कई ऐसे खनिजों पर निर्भर हैं, जिनका उपयोग लड़ाकू जेट, ड्रोन, रेडियो सेट तथा अन्य महत्त्वपूर्ण उपकरणों के निर्माण में किया जाता है।
    • एयरोस्पेस, संचार और रक्षा उद्योग भी कई ऐसे खनिजों पर निर्भर हैं, जिनका उपयोग लड़ाकू जेट, ड्रोन, रेडियो सेट और अन्य महत्त्वपूर्ण उपकरणों के निर्माण में किया जाता है।
    • जबकि कोबाल्ट, निकेल और लिथियम इलेक्ट्रिक वाहनों में उपयोग की जाने वाली बैटरी के लिये आवश्यक हैं, अर्द्धचालक और हाई-एंड इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण में दुर्लभ हैं।
  • महत्त्व:
    • जैसे-जैसे दुनिया भर के देश स्वच्छ ऊर्जा और डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर अपने कदम बढ़ाते हैं, ये दुर्लभ संसाधन उस पारिस्थितिकी तंत्र के लिये महत्त्वपूर्ण हैं जो इस परिवर्तन को बढ़ावा देता है।
    • इनमें से किसी की भी आपूर्ति में कमी दुर्लभ खनिजों की खरीद के लिये दूसरे देशों पर निर्भर देश की अर्थव्यवस्था और सामरिक स्वायत्तता को गंभीर रूप से संकट में डाल सकती है।

खनिज सुरक्षा भागीदारी (MSP):

  • परिचय:
    • यह संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा दुर्लभ खनिज आपूर्ति शृंखलाओं को मज़बूत करने की पहल है।
  • भागीदार:
    • ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फिनलैंड, फ्राँस, जर्मनी, जापान, कोरिया गणराज्य, स्वीडन, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय आयोग।
  • उद्देश्य:
    • MSP का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि दुर्लभ खनिजों का उत्पादन, प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण इस तरह से किया जाए कि देशों के उनके भूवैज्ञानिक प्रबंधन के पूर्ण आर्थिक विकास का लाभ प्राप्त कर सके।
    • कोबाल्ट, निकेल, लिथियम जैसे खनिजों की आपूर्ति शृंखलाओं और 17 "दुर्लभ पृथ्वी" के खनिजों पर भी ध्यान दिया जाएगा।
  • महत्त्व:
    • MSP उच्चतम पर्यावरणीय, सामाजिक और शासन मानकों का पालन करने वाली पूर्ण मूल्य शृंखला में रणनीतिक अवसरों के लिये सरकारों और निजी क्षेत्र से निवेश को उत्प्रेरित करने में मदद करेगा।

MSP से बाहर होना भारत हेतु चिंता का विषय:

  • महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति:
    • भारत की विकास रणनीति के प्रमुख तत्त्वों में से एक सार्वजनिक और निजी परिवहन के बड़े हिस्से को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलने के माध्यम से गतिशीलता के क्षेत्र में महत्वाकांक्षी बदलाव द्वारा संचालित है।
      • यह मज़बूत इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पहल के साथ महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति को सुरक्षित करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • अन्य देशों पर निर्भरता:
    • पृथ्वी पर सत्रह दुर्लभ तत्त्व हैं और इन्हें हल्के RE तत्त्वों (LREE) और भारी RE तत्त्वों (HREE) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
      • कुछ RE भारत में उपलब्ध हैं, जैसे- लैंथेनम, सेरियम, नियोडिमियम, प्रेज़ोडियम और समैरियम, जबकि अन्य जैसे कि डिस्प्रोसियम, टेरबियम, यूरोपियम जिन्हें HREE के रूप में वर्गीकृत किया गया है, की निकालने योग्य मात्रा में भारत में उपलब्ध नहीं हैं।
        • भारत को ऐसे तत्त्वों के लिये आपूर्ति समर्थन की आवश्यकता होगी।
  • प्रौद्योगिकी स्थिति:
    • उद्योग पर नज़र रखने वालों का कहना है कि भारत को समूह में जगह नहीं मिलने का एक कारण यह है कि देश इस क्षेत्र पर ज़्यादा सशक्त नहीं है।
      • समूह में, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों के पास भंडार हैं और उन्हें निकालने की तकनीक भी है तथा जापान जैसे देशों के पास उन्हें संसाधित करने की तकनीक है।

दुर्लभ खनिजों से संबंधित भारत के प्रयास:

  • लिथियम समझौता:
    • वर्ष 2021 के मध्य में भारत ने सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी ‘खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड’ के माध्यम से अर्जेंटीना, जहाँ विश्व में धातु का तीसरा सबसे बड़ा भंडार मौजूद है, में संयुक्त रूप से लिथियम की खोज करने के लिये अर्जेंटीना की एक कंपनी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • भारत-ऑस्ट्रेलिया दुर्लभ खनिज निवेश साझेदारी
    • भारत और ऑस्ट्रेलिया ने दुर्लभ खनिजों के लिये परियोजनाओं एवं आपूर्ति शृंखलाओं के क्षेत्र में अपनी साझेदारी को मज़बूत करने का निर्णय लिया।
    • ऑस्ट्रेलिया के पास भारत के अंतरिक्ष और रक्षा उद्योगों, सौर पैनलों, बैटरी एवं इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में मदद करने के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों की बढ़ती मांग को पूरा करने तथा भारत की महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने में मदद के लिये संसाधन मौजूद हैं।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत  वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू)

प्रश्न. हाल में तत्वों के एक वर्ग, जिसे ‘दुलर्भ मृदा धातु’ कहते हैं, की कम आपूर्ति पर चिंता जताई गई। क्यों? (2012)

  1. चीन, जो इन तत्वों का सबसे बड़ा उत्पादक है, द्वारा इनके निर्यात पर कुछ प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  2. चीन, ऑस्ट्रेलिया कनाडा और चिली को छोड़कर अन्य किसी भी देश में ये तत्त्व नहीं पाए जाते हैं।
  3. दुर्लभ मृदा धातु विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॅानिक सामानों के निर्माण में आवश्यक है, इन तत्त्वों की माँग बढती जा रही है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से क3थन सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • दुर्लभ मृदा तत्त्व, जिन्हें दुर्लभ मृदा के रूप में भी जाना जाता है, जो पृथ्वी की ऊपरी सतह (क्रस्ट) में पाए जाते हैं। आवर्त सारणी में यह 17 दुर्लभ धातु तत्वों का समूह है। इनमें से 15 आवर्त सारणी के 'F' ब्लॉक के तत्वों के लैंथेनाइड समूह से संबंधित हैं। जबकि येट्रियम और स्कैंडियम लैंथेनाइड समूह का हिस्सा नहीं हैं, परंतु इन्हें भी दुर्लभ मृदा तत्त्व माना जाता है क्योंकि ये समान रासायनिक गुणों को साझा करते हैं। दुर्लभ मृदा तत्त्वों को दो अलग-अलग समूहों में बाँटा गया है, भारी दुर्लभ मृदा तत्व (HREEs) और हल्के दुर्लभ मृदा तत्व (LREEs)।
  • वर्ष 2010 में, चीन ने अपने दुर्लभ मृदा तत्त्व निर्यात को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया। यह घरेलू विनिर्माण और पर्यावरणीय कारणों से दुर्लभ मृदा की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये किया गया था। चीन के इस कदम से बाज़ार में दुर्लभ मृदा की तीव्र खरीदारी शुरू कर दी गई, फलस्वरूप कुछ दुर्लभ मृदा तत्त्वों की कीमतों में तेज़ी से वृद्धि हुई। इसके अलावा, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ ने विश्व व्यापार संगठन से चीन की प्रतिबंधात्मक दुर्लभ मृदा व्यापार नीतियों के विषय में शिकायत की। अत: कथन 1 सही है
  • चीन दुर्लभ मृदा का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, जो वैश्विक बाज़ार आपूर्ति का 90-95% के बीच निर्यात करता है। भारत और अमेरिका, जो कभी वैश्विक आपूर्तिकर्ता थे, अभी भी कुछ दुर्लभ मृदा तत्त्वों का उत्पादन करते हैं, लेकिन उनका योगदान अब बाज़ार पर चीन की भारी पकड़ के कारण कम हो गया है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • स्वच्छ प्रौद्योगिकियों, कंप्यूटिंग, मोटर वाहन, मनोरंजन, चिकित्सा और सैन्य क्षेत्रों में उनके व्यापक अनुप्रयोग के कारण दुर्लभ पृथ्वी धातुएँ हमारे दैनिक जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कई मामलों में इन उत्पादों के निर्माण में दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व का कोई विकल्प मौज़ूद नहीं होता है। अत: कथन 3 सही है।

अतः विकल्प (C) सही है।

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022

प्रिलिम्स के लिये:

ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001, ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी, ग्रीन हाइड्रोजन, कार्बन क्रेडिट, बैटरी स्वैपिंग पॉलिसी, ग्रीन बॉन्ड, UPSC CSE PYQ।

मेन्स के लिये:

ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022 और इसके उद्देश्य।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विद्युत मंत्रालय ने लोकसभा में ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022 पेश किया है।

  • विधेयक में कार्बन बचत प्रमाणपत्र जारी करके स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करने जैसे परिवर्तनों को पेश करने के लिये ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 में संशोधन करने का प्रस्ताव है, जिसे अंतिम बार वर्ष 2010 में संशोधित किया गया था।

ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 के प्रावधान:

  • ऊर्जा दक्षता मानदंड:
    • यह केंद्र को 100 किलोवाट लोड से अधिक या 15 किलोवाट-एम्पीयर (KVA) से अधिक की संविदात्मक मांग वाले उपकरणों, औद्योगिक उपकरणों और इमारतों के लिये ऊर्जा दक्षता के मानदंडों एवं मानकों को निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है।
  • ऊर्जा दक्षता ब्यूरो:
    • ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) की स्थापना की गई।
      • वर्ष 2010 के संशोधन ने ऊर्जा दक्षता ब्यूरो के महानिदेशक के कार्यकाल को तीन से बढ़ाकर पाँच साल कर दिया।
    • यह ब्यूरो विभिन्न उद्योगों की बिजली खपत की निगरानी और समीक्षा करने वाले ऊर्जा लेखा परीक्षकों के लिये आवश्यक योग्यताएँ निर्दिष्ट कर सकता है।
  • ऊर्जा व्यापार:
    • सरकार उन उद्योगों को ऊर्जा बचत प्रमाण पत्र जारी कर सकती है जो अपनी अधिकतम आवंटित ऊर्जा से कम खपत करते हैं।
    • हालाँकि, यह प्रमाण पत्र उन ग्राहकों को बेचा जा सकता है जो ऊर्जा व्यापार के लिये एक ढाँचे हेतु अपनी अधिकतम अनुमत ऊर्जा सीमा से अधिक खपत करते हैं।
  • निर्दिष्ट मानदंडों के अनुरूप होने तक निषेध:
    • अधिनियम केंद्र को किसी विशेष उपकरण के निर्माण, बिक्री, खरीदार आयात को प्रतिबंधित करने की अनुमति देता है जब तक कि यह छह महीने/एक वर्ष पहले जारी कये गए निर्दिष्ट मानदंडों के अनुरूप न हो।
  • दंड:
    • अतिरिक्त ऊर्जा का उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं को उनकी अधिक खपत के अनुसार दंडित किया जाएगा।
    • केंद्र या राज्य सरकार द्वारा पारित ऐसे किसी भी आदेश के खिलाफ किसी भी अपील की सुनवाई ऊर्जा अधिनियम, 2003 के तहत पहले से स्थापित अपीलीय न्यायाधिकरण द्वारा की जाएगी।

अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन:

  • अक्षय ऊर्जा का हिस्सा:
    • औद्योगिक इकाइयों या किसी प्रतिष्ठान द्वारा उपभोग की जाने वाली नवीकरणीय ऊर्जा के न्यूनतम हिस्से को परिभाषित करना।
    • यह खपत सीधे अक्षय ऊर्जा स्रोत से या परोक्ष रूप से पावर ग्रिड के माध्यम से की जा सकती है।
  • स्वच्छ ऊर्जा के लिये प्रोत्साहन:
    • कार्बन बचत प्रमाणपत्र जारी कर स्वच्छ ऊर्जा उपयोग के प्रयासों को प्रोत्साहन देना।
    • निजी क्षेत्र को जलवायु कार्रवाई के लिये आकर्षित करने हेतु स्वच्छ ऊर्जा उपयोग के लिये कार्बन क्रेडिट जैसे अतिरिक्त प्रोत्साहनों पर विचार करना।
  • संबंधित संस्थानों को सुदृढ़ बनाना:
    • मूल रूप से ऊर्जा दक्षता ब्यूरो जैसे अधिनियम के तहत स्थापित संस्थानों को सुदृढ़ बनाना।
  • ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देना:
    • उद्योगों द्वारा उपयोग किये जाने वाले जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देने में मदद करनाा।
  • संरक्षण मानकों के दायरे में वृद्धि:
    • स्थायी आवासों को बढ़ावा देने के लिये ऊर्जा संरक्षण मानकों के तहत बड़े आवासीय भवनों को शामिल करना।
    • वर्तमान में केवल बड़े उद्योग और उनके भवन ही अधिनियम के दायरे में आते हैं।

प्रस्तावित संशोधनों के उद्देश्य:

  • जीवाश्म ईंधन के माध्यम से भारत की बिज़ली की खपत को कम करना और इस तरह देश के कार्बन फुटप्रिंट को कम करना।
  • भारत के कार्बन बाज़ार को विकसित करना और स्वच्छ प्रौद्योगिकी को अपनाने को बढ़ावा देना।
  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) को पूरा करना, जैसा कि पेरिस जलवायु समझौते में इस लक्ष्य (वर्ष 2030 के पहले ) का उल्लेख किया गया है।

भारत की जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताएँ:

  • भारत ने पेरिस जलवायु समझौते के तहत NDCs के हिस्से के रूप में वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 33-35% तक की कमी लाकर इसे वर्ष 2005 के कार्बन उत्सर्जन स्तर पर लाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है ।
  • भारत ने 2030 तक गैर-जीवाश्म-ईंधन ऊर्जा संसाधनों से अपने बिजली के 40% से अधिक हिस्से का उत्पादन  करने का भी वादा किया है।
  • वर्ष 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को 550 मीट्रिक टन (Mt) तक कम करने के लिये, भारत ने अपने वृक्ष  और वनावरण को बढ़ाकर 2.5 -3 बिलियन टन कार्बन सिंक के निर्माण के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की  है।
  • नवंबर, 2021 में ग्लासगो में आयोजित COP26 में भारत ने NDCs को संशोधित किया। भारत के पाँच नए जलवायु लक्ष्य हैं:
    • वर्ष 2030 तक इसकी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 GW तक बढ़ाना
    • अक्षय ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से भारत की 50% बिजली की मांग को पूरा करना
    • भारतीय अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% तक कम करना।
    • वर्ष 2021 से 2030 तक भारत के कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करना।
    • वर्ष 2070 तक देश शुद्ध रूप से शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना।

भारत के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के उपाय:

  • घरेलू सौर विनिर्माण:
    • वर्ष 2022-23 के बजट में सरकार ने भारत में घरेलू सौर विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये 19,500 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं।
  • बायोमास को-फायरिंग:
    • ताप विद्युत संयंत्रों में को-फायरिंग के लिये 5-7% बायोमास का उपयोग।
  • ईंधन सम्मिश्रण:
    • ईंधन सम्मिश्रण को बढ़ावा देने के लिये मिश्रित ईंधन पर 2 रुपये/लीटर का अतिरिक्त अंतर उत्पाद शुल्क लगाया जाएगा।
  • बैटरी स्वैपिंग पॉलिसी:
    • स्वच्छ परिवहन प्राप्त करने के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों हेतु एक नई बैटरी स्वैपिंग पॉलिसी तैयार की जाएगी।
  • ग्रीन बॉण्ड:
    • ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिये पूँजी जुटाने हेतु सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव वाली परियोजनाओं को निधि प्रदान करने हेतु 'ग्रीन बॉण्ड' जैसे निश्चित वित्तीय तरीके से आय का सृजन करना। ऐसे सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड का उपयोग ऐसी जलवायु अनुकूलन परियोजनाओं में किया जा सकता है, जिनमें निजी वित्त पोषण की कमी होती है।

स्रोत: द हिंदू


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