इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022

  • 04 Aug 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001, ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी, ग्रीन हाइड्रोजन, कार्बन क्रेडिट, बैटरी स्वैपिंग पॉलिसी, ग्रीन बॉन्ड, UPSC CSE PYQ।

मेन्स के लिये:

ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022 और इसके उद्देश्य।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विद्युत मंत्रालय ने लोकसभा में ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022 पेश किया है।

  • विधेयक में कार्बन बचत प्रमाणपत्र जारी करके स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करने जैसे परिवर्तनों को पेश करने के लिये ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 में संशोधन करने का प्रस्ताव है, जिसे अंतिम बार वर्ष 2010 में संशोधित किया गया था।

ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 के प्रावधान:

  • ऊर्जा दक्षता मानदंड:
    • यह केंद्र को 100 किलोवाट लोड से अधिक या 15 किलोवाट-एम्पीयर (KVA) से अधिक की संविदात्मक मांग वाले उपकरणों, औद्योगिक उपकरणों और इमारतों के लिये ऊर्जा दक्षता के मानदंडों एवं मानकों को निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है।
  • ऊर्जा दक्षता ब्यूरो:
    • ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) की स्थापना की गई।
      • वर्ष 2010 के संशोधन ने ऊर्जा दक्षता ब्यूरो के महानिदेशक के कार्यकाल को तीन से बढ़ाकर पाँच साल कर दिया।
    • यह ब्यूरो विभिन्न उद्योगों की बिजली खपत की निगरानी और समीक्षा करने वाले ऊर्जा लेखा परीक्षकों के लिये आवश्यक योग्यताएँ निर्दिष्ट कर सकता है।
  • ऊर्जा व्यापार:
    • सरकार उन उद्योगों को ऊर्जा बचत प्रमाण पत्र जारी कर सकती है जो अपनी अधिकतम आवंटित ऊर्जा से कम खपत करते हैं।
    • हालाँकि, यह प्रमाण पत्र उन ग्राहकों को बेचा जा सकता है जो ऊर्जा व्यापार के लिये एक ढाँचे हेतु अपनी अधिकतम अनुमत ऊर्जा सीमा से अधिक खपत करते हैं।
  • निर्दिष्ट मानदंडों के अनुरूप होने तक निषेध:
    • अधिनियम केंद्र को किसी विशेष उपकरण के निर्माण, बिक्री, खरीदार आयात को प्रतिबंधित करने की अनुमति देता है जब तक कि यह छह महीने/एक वर्ष पहले जारी कये गए निर्दिष्ट मानदंडों के अनुरूप न हो।
  • दंड:
    • अतिरिक्त ऊर्जा का उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं को उनकी अधिक खपत के अनुसार दंडित किया जाएगा।
    • केंद्र या राज्य सरकार द्वारा पारित ऐसे किसी भी आदेश के खिलाफ किसी भी अपील की सुनवाई ऊर्जा अधिनियम, 2003 के तहत पहले से स्थापित अपीलीय न्यायाधिकरण द्वारा की जाएगी।

अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन:

  • अक्षय ऊर्जा का हिस्सा:
    • औद्योगिक इकाइयों या किसी प्रतिष्ठान द्वारा उपभोग की जाने वाली नवीकरणीय ऊर्जा के न्यूनतम हिस्से को परिभाषित करना।
    • यह खपत सीधे अक्षय ऊर्जा स्रोत से या परोक्ष रूप से पावर ग्रिड के माध्यम से की जा सकती है।
  • स्वच्छ ऊर्जा के लिये प्रोत्साहन:
    • कार्बन बचत प्रमाणपत्र जारी कर स्वच्छ ऊर्जा उपयोग के प्रयासों को प्रोत्साहन देना।
    • निजी क्षेत्र को जलवायु कार्रवाई के लिये आकर्षित करने हेतु स्वच्छ ऊर्जा उपयोग के लिये कार्बन क्रेडिट जैसे अतिरिक्त प्रोत्साहनों पर विचार करना।
  • संबंधित संस्थानों को सुदृढ़ बनाना:
    • मूल रूप से ऊर्जा दक्षता ब्यूरो जैसे अधिनियम के तहत स्थापित संस्थानों को सुदृढ़ बनाना।
  • ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देना:
    • उद्योगों द्वारा उपयोग किये जाने वाले जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देने में मदद करनाा।
  • संरक्षण मानकों के दायरे में वृद्धि:
    • स्थायी आवासों को बढ़ावा देने के लिये ऊर्जा संरक्षण मानकों के तहत बड़े आवासीय भवनों को शामिल करना।
    • वर्तमान में केवल बड़े उद्योग और उनके भवन ही अधिनियम के दायरे में आते हैं।

प्रस्तावित संशोधनों के उद्देश्य:

  • जीवाश्म ईंधन के माध्यम से भारत की बिज़ली की खपत को कम करना और इस तरह देश के कार्बन फुटप्रिंट को कम करना।
  • भारत के कार्बन बाज़ार को विकसित करना और स्वच्छ प्रौद्योगिकी को अपनाने को बढ़ावा देना।
  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) को पूरा करना, जैसा कि पेरिस जलवायु समझौते में इस लक्ष्य (वर्ष 2030 के पहले ) का उल्लेख किया गया है।

भारत की जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताएँ:

  • भारत ने पेरिस जलवायु समझौते के तहत NDCs के हिस्से के रूप में वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 33-35% तक की कमी लाकर इसे वर्ष 2005 के कार्बन उत्सर्जन स्तर पर लाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है ।
  • भारत ने 2030 तक गैर-जीवाश्म-ईंधन ऊर्जा संसाधनों से अपने बिजली के 40% से अधिक हिस्से का उत्पादन  करने का भी वादा किया है।
  • वर्ष 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को 550 मीट्रिक टन (Mt) तक कम करने के लिये, भारत ने अपने वृक्ष  और वनावरण को बढ़ाकर 2.5 -3 बिलियन टन कार्बन सिंक के निर्माण के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की  है।
  • नवंबर, 2021 में ग्लासगो में आयोजित COP26 में भारत ने NDCs को संशोधित किया। भारत के पाँच नए जलवायु लक्ष्य हैं:
    • वर्ष 2030 तक इसकी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 GW तक बढ़ाना
    • अक्षय ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से भारत की 50% बिजली की मांग को पूरा करना
    • भारतीय अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% तक कम करना।
    • वर्ष 2021 से 2030 तक भारत के कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करना।
    • वर्ष 2070 तक देश शुद्ध रूप से शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना।

भारत के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के उपाय:

  • घरेलू सौर विनिर्माण:
    • वर्ष 2022-23 के बजट में सरकार ने भारत में घरेलू सौर विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये 19,500 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं।
  • बायोमास को-फायरिंग:
    • ताप विद्युत संयंत्रों में को-फायरिंग के लिये 5-7% बायोमास का उपयोग।
  • ईंधन सम्मिश्रण:
    • ईंधन सम्मिश्रण को बढ़ावा देने के लिये मिश्रित ईंधन पर 2 रुपये/लीटर का अतिरिक्त अंतर उत्पाद शुल्क लगाया जाएगा।
  • बैटरी स्वैपिंग पॉलिसी:
    • स्वच्छ परिवहन प्राप्त करने के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों हेतु एक नई बैटरी स्वैपिंग पॉलिसी तैयार की जाएगी।
  • ग्रीन बॉण्ड:
    • ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिये पूँजी जुटाने हेतु सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव वाली परियोजनाओं को निधि प्रदान करने हेतु 'ग्रीन बॉण्ड' जैसे निश्चित वित्तीय तरीके से आय का सृजन करना। ऐसे सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड का उपयोग ऐसी जलवायु अनुकूलन परियोजनाओं में किया जा सकता है, जिनमें निजी वित्त पोषण की कमी होती है।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2