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जैव विविधता और पर्यावरण

वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021

  • 23 Apr 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, CITES, UNEP, IUCN

मेन्स के लिये:

वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर संसदीय स्थायी समिति ने प्रस्तावित वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

  • स्थायी समिति ने पाया है कि कुछ प्रजातियों, जिन्हें पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित किया गया है, को वन्यजीवों और पौधों की विभिन्न अनुसूचियों से बाहर रखा गया है तथा इन प्रजातियों को शामिल करने हेतु अनुसूचियों की संशोधित सूची की सिफारिश की गई है।

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन एवं विनियमन तथा जंगली जानवरों, पौधों व उनसे बने उत्पादों के व्यापार पर नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • अधिनियम में पौधों और जानवरों को भी सूचीबद्ध किया गया है, जिन्हें सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की सुरक्षा प्रदान कर निगरानी की जाती है।
  • इस अधिनियम में कई बार संशोधन किया गया है, अंतिम संशोधन 2006 में किया गया था।

प्रमुख बिंदु:

  • CITES के प्रावधान: यह विधेयक वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के प्रावधानों को लागू करने का प्रयास करता है।
    • प्रबंधन प्राधिकरण, जो विशिष्ट प्रजातियों के व्यापार हेतु आयात या निर्यात का परमिट प्रदान करताहै।
      • अनुसूचित नमूने के व्यापार में संलग्न प्रत्येक व्यक्ति को लेन-देन का विवरण या रिपोर्ट   प्रबंधन प्राधिकरण को सौपना होगा।   
      • CITES के अनुसार, प्रबंधन प्राधिकरण नमूने के लिये पहचान चिह्न का प्रयोग कर सकता है। 
      • यह बिल किसी भी व्यक्ति को नमूने के पहचान चिह्न को संशोधित करने या हटाने से प्रतिबंधित करता है।  
      • इसके अतिरिक्त अनुसूचित जीवित पशुओं के नमूने रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रबंधन प्राधिकरण से पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त करना आवश्यक होगा। 
    • वैज्ञानिक प्राधिकरण, व्यापार किये जा रहे जानवरों के अस्तित्व पर पड़ने वाले प्रभाव से जुड़े पहलुओं पर अपनी सलाह देता है।
  • अनुसूचियों की प्रासंगिकता: वर्तमान अधिनियम में विशेष रूप से संरक्षित पौधों (एक), विशेष रूप से संरक्षित जानवरों (चार) और कृमि प्रजातियों (एक) के लिये कुल छह अनुसूचियांँ हैं।
    • इसमें वे प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं जो CITES द्वारा सूचीबद्ध वन्यजीवों एवं पौधों में सबसे अधिक संकटापन्न स्थिति में हैं।
    • अनुसूची II में ऐसी प्रजातियाँ शामिल हैं जिनके निकट भविष्य में लुप्त होने का खतरा नहीं है लेकिन ऐसी आशंका है कि यदि इन प्रजातियों के व्यापार को सख्ती से नियंत्रित नहीं किया गया तो ये लुप्तप्राय की श्रेणी में आ सकती हैं।
    • अनुसूची III उन प्रजातियों की सूची है जिन्हें किसी पक्षकार के अनुरोध पर शामिल किया जाता है, जिनका व्यापार पक्षकार द्वारा पहले से ही विनियमित किया जा रहा है तथा शामिल की गईं प्रजातियों के अधारणीय एवं अत्यधिक दोहन को रोकने के लिये दूसरे देशों के सहयोग की आवश्यकता है।
    • यह कृमि (वर्मिन) प्रजातियों की अनुसूची को निष्कासित करता है। कृमि प्रजाति छोटे जानवरों को संदर्भित करती है जो बीमारियों में वृद्धि के साथ ही भोजन को नष्ट करती हैं।   
    • यह CITES के अंतर्गत परिशिष्टों में जंतु नमूनों की नवीन अनुसूची को शामिल करता है।
  • आक्रामक विदेशी प्रजातियांँ: यह बिल केंद्र सरकार को आक्रामक विदेशी प्रजातियों के आयात, व्यापार, कब्ज़े या प्रसार को विनियमित या प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है।   
    • आक्रामक विदेशी प्रजातियांँ उन पौधों या जानवरों की प्रजातियों को संदर्भित करती हैं जो भारतीय मूल की नहीं हैं और जो वन्यजीव या इनके आवास पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं| 
    • केंद्र सरकार किसी अधिकारी को आक्रामक प्रजातियों को ज़ब्त करने और उनका निपटान करने के लिये अधिकृत कर सकती है।  
  • अभयारण्यों का नियंत्रण: अधिनियम मुख्य वन्यजीव वार्डन को एक राज्य में सभी अभयारण्यों को नियंत्रित, प्रबंधित करने और बनाए रखने का काम सौंपता है।   
    • मुख्य वन्यजीव वार्डन की नियुक्ति राज्य सरकार करती है।   
    • बिल निर्दिष्ट करता है कि मुख्य वार्डन द्वारा की जाने वाली कार्रवाई अभयारण्य के लिये प्रबंधन योजनाओं के अनुसार होनी चाहिये।   
    • विशेष क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले अभयारण्यों के लिये संबंधित ग्राम सभा के साथ उचित परामर्श के बाद प्रबंधन योजना तैयार की जानी चाहिये।   
    • विशेष क्षेत्रों में अनुसूचित क्षेत्र या वे क्षेत्र शामिल हैं जहाँ अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 लागू है।
    • अनुसूचित क्षेत्र आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्र हैं जहां मुख्य रूप से आदिवासी आबादी रहती है, जिसे संविधान की पाँचवीं अनुसूची के तहत अधिसूचित किया गया है। 
  • संरक्षण रिज़र्व: अधिनियम के तहत राज्य सरकारें वनस्पतियों और जीवों तथा उनके आवास की रक्षा के लिये राष्ट्रीय उद्यानों व अभयारण्यों के आस-पास के क्षेत्रों को संरक्षण रिज़र्व के रूप में घोषित कर सकती हैं।: 
  • बिल केंद्र सरकार को भी एक संरक्षण रिज़र्व को अधिसूचित करने का अधिकार देता है। 
  • बंदी जानवरों का समर्पण: बिल किसी भी व्यक्ति को स्वेच्छा से किसी भी बंदी जानवर या पशु उत्पाद को मुख्य वन्यजीव वार्डन को सौंपने का प्रावधान करता है।   
    • ऐसी वस्तुओं को अभ्यर्पित करने वाले व्यक्ति को कोई मुआवज़ा नहीं दिया जाएगा।   
    • अभ्यर्पित वस्तुएँ राज्य सरकार की संपत्ति होंगी।  
  • दंड: अधिनियम, प्रावधानों का उल्लंघन करने पर कारावास की सज़ा तथा जुर्माने का प्रावधान करता है। विधेयक दंड के प्रावधानों में भी वृद्धि करता है।

    उल्लंघन के प्रकार  

   अधिनियम, 1972

    विधेयक, 2021

    सामान्य उल्लंघन

    25,000 रुपए तक

    1,00,000 रुपए तक

    विशेष रूप से संरक्षित जानवर

    कम-से-कम 10,000 रुपए

    कम-से-कम 25,000 रुपए

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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