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शासन व्यवस्था

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन

  • 04 Jan 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

DRDO और उसके प्रमुख कार्यक्रम।

मेन्स के लिये:

भारतीय रक्षा के लिये DRDO का महत्त्व,  DRDO से संबंधित विभिन्न कार्यक्रम और मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने 1 जनवरी 2022 को 64वां स्थापना दिवस मनाया है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • DRDO रक्षा मंत्रालय का रक्षा अनुसंधान एवं विकास (Research and Development)  विंग है, जिसका लक्ष्य भारत को अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों से सशक्त बनाना है।
    • आत्मनिर्भरता और सफल स्वदेशी विकास एवं सामरिक प्रणालियों तथा प्लेटफार्मों जैसे- अग्नि और पृथ्वी शृंखला मिसाइलों के उत्पादन की इसकी खोज जैसे- हल्का लड़ाकू विमान, तेजस: बहु बैरल रॉकेट लाॅन्चर, पिनाका: वायु रक्षा प्रणाली, आकाश: रडार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला आदि, ने भारत की सैन्य शक्ति को प्रभावशाली निरोध पैदा करने और महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करने में प्रमुख योगदान दिया है।
  • गठन:
    • DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation- DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment- TDEs) तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के बाद की गई थी।
    • DRDO वर्तमान में 50 प्रयोगशालाओं का एक समूह है जो रक्षा प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों  जैसे- वैमानिकी, शस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, लड़ाकू वाहन, इंजीनियरिंग प्रणालियाँ, इंस्ट्रूमेंटेशन, मिसाइलें, उन्नत कंप्यूटिंग और सिमुलेशन, विशेष सामग्री, नौसेना प्रणाली, लाईफ साइंस, प्रशिक्षण, सूचना प्रणाली तथा कृषि के क्षेत्र में कार्य कर रहा है।
  • मिशन:
    • हमारी रक्षा सेवाओं के लिये अत्याधुनिक सेंसरों, हथियार प्रणालियों, प्लेटफार्मों और संबद्ध उपकरणों के उत्पादन हेतु डिज़ाइन, विकास और नेतृत्व।
    • युद्ध की प्रभावशीलता को अनुकूलित करने और सैनिकों की सुरक्षा को बढ़ावा देने हेतु सेवाओं को तकनीकी समाधान प्रदान करना।
    • बुनियादी ढांँचे और प्रतिबद्ध गुणवत्ता जनशक्ति का विकास करना तथा एक मज़बूत स्वदेशी प्रौद्योगिकी आधार का निर्माण करना।
  • DRDO के विभिन्न कार्यक्रम:
    • एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP):
      • यह मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय रक्षा बलों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु  डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के प्रमुख कार्यों में से एक था।
      • IGMDP के तहत विकसित मिसाइलें हैं: पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, आकाश, नाग।
    • मोबाइल ऑटोनोमस रोबोट सिस्टम:
      • MARS लैंड माइन्स और इनर्ट एक्सप्लोसिव डिवाइसेज (Inert Explosive Devices- IEDs) को संभालने के लिये एक स्मार्ट मजबूत रोबोट है जो भारतीय सशस्त्र बलों से शत्रुओं को दूर कर निष्क्रिय करने में मदद करता है।
      • कुछ ऐड-ऑन के साथ, इस प्रणाली का उपयोग वस्तु के लिये जमीन खोदने और विभिन्न तरीकों से इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस को डिफ्यूज़ करने के लिये भी किया जा सकता है।
    • लद्दाख में सबसे ऊंँचा स्थलीय केंद्र:
      • लद्दाख में DRDO का केंद्र पैंगोंग झील के पास चांगला में समुद्र तल से 17,600 फीट ऊपर है, जिसका उद्देश्य प्राकृतिक और औषधीय पौधों के संरक्षण के लिये एक प्राकृतिक कोल्ड स्टोरेज इकाई के रूप में कार्य करना है।
  • DRDO से संबंधित मुद्दे:
    • अपर्याप्त बजटीय सहायता:
      • 2016-17 के दौरान रक्षा संबंधी स्थायी समिति ने DRDO की चल रही परियोजनाओं के लिये अपर्याप्त बजटीय समर्थन पर चिंता व्यक्त की।
      • समिति ने नोट किया कि कुल रक्षा बजट में से 2011-12 में DRDO की हिस्सेदारी 5.79% थी, जो 2013-14 में घटकर 5.34 फीसदी रह गई।
    • अपर्याप्त जनशक्ति:
      • DRDO भी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अपर्याप्त जनशक्ति के कारण सशस्त्र बलों के साथ उचित तालमेल की कमी से ग्रस्त है।
      • लागत में वृद्धि और देरी ने DRDO की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाया है।
    • बड़े वादे और सीमित कार्य निष्पादन:
      • DRDO द्वारा बड़े वादे और सीमित कार्य निष्पादन की स्थिति देखी गई है। जवाबदेही का अभाव है। 
      • वर्ष 2011 में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने DRDO की क्षमताओं पर एक गंभीर सवालिया निशान लगाया, यह हवाला देते हुए कि संगठन का अपनी परियोजनाओं का एक इतिहास है जो स्थानिक समय और लागत से अधिक पीड़ित है।
    • अप्रचलित उपकरण:
      • DRDO अत्याधुनिक तकनीक पर काम करने के बजाय द्वितीय विश्व युद्ध के उपकरणों के साथ सिर्फ छेड़छाड़ कर रहा है।
  • हाल ही के विकास:

आगे की राह

  • फरवरी 2007 में एजेंसी की बाहरी समीक्षा के लिये पी. रामा राव की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा सुझाए गए सुझाव के अनुसार DRDO को एक सबल संगठन के रूप में पुनर्गठित किया जाना चाहिये।
    • समिति ने परियोजनाओं को पूरा करने में देरी को कम करने के अलावा इसे लाभदायक इकाई बनाने के लिये संगठन की एक वाणिज्यिक शाखा स्थापित करने की सिफारिश की।
  • DRDO के पूर्व प्रमुख वी.के. सारस्वत ने रक्षा प्रौद्योगिकी आयोग की स्थापना के साथ-साथ एजेंसी द्वारा विकसित उत्पादों के लिये उत्पादन भागीदारों को चुनने में DRDO के लिये एक बड़ी भूमिका का आह्वान किया है।
  • यदि आवश्यक हो तो DRDO को शुरू से ही निजी क्षेत्र से एक सक्षम भागीदार कंपनी का चयन करने में सक्षम होना चाहिये।
  • अपने दस्तावेज़ "DRDO इन 2021: एचआर पर्सपेक्टिव्स" में, DRDO ने एक एचआर नीति की परिकल्पना की है जिसमें स्वतंत्र, निष्पक्ष और निडरता के साथ ज्ञान साझा करने, खुले वातावरण और सहभागी प्रबंधन पर ज़ोर दिया गया है। यह सही दिशा में एक कदम है।

स्रोत-पी.आई.बी

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