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डेली न्यूज़

  • 05 Aug, 2022
  • 35 min read
भारतीय राजनीति

राज्य सरकार के मंत्रियों की विदेश यात्रा

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ल्ड सिटीज़ समिट, कैबिनेट सचिवालय, विदेश मंत्रालय (MEA), गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, केंद्रीय प्रशासनिक मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय्व।

मेन्स के लिये:

केंद्र-राज्य संबंध और राज्यों में राज्यपाल की भूमिका का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सिंगापुर में आयोजित विश्व शहर शिखर सम्मेलन में दिल्ली के मुख्यमंत्री के भाग लेने की अनुमति को अस्वीकृत कर दिया गया।

  • साथ ही दिल्ली के राज्य परिवहन मंत्री ने राज्य सरकार के मंत्रियों की निजी विदेश यात्राओं के लिये केंद्र द्वारा यात्रा मंज़ूरी की आवश्यक शर्त को रद्द कराने हेतु दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की।

मुद्दा:

  • दिल्ली के मुख्यमंत्री को सिंगापुर सरकार ने विश्व शहर शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया था लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी यात्रा मंज़ूरी को अस्वीकृत कर दिया था।
    • इसके अलावा केंद्र सरकार का मानना है कि सिंगापुर की यह यात्रा "उचित नहीं" थी, क्योंकि इसमें ज़्यादातर महापौरों ने भाग लिया था और किसी भी मामले में, दिल्ली में शहरी शासन केवल राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं है।
  • साथ ही वर्ष 2019 में दिल्ली के मुख्यमंत्री के 7वें C-40 विश्व महापौर शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिये कोपेनहेगन की प्रस्तावित यात्रा को MEA ने बिना कोई कारण बताए खारिज़ कर दिया था।

अनुमोदन हेतु आवश्यक प्रावधान:

  • वर्ष 1982 में कैबिनेट सचिवालय ने राज्य सरकार और केंद्रशासित प्रदेशों के मंत्रियों तथा राज्य सरकार के अधिकारियों की विदेश यात्रा के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये।
    • राज्य सरकारों के सदस्यों द्वारा अपनी आधिकारिक क्षमता में विदेश यात्राओं के लिये विदेश मंत्रालय (MEA), गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और केंद्रीय प्रशासनिक मंत्रालय से मंज़ूरी की आवश्यकता होती है।
  • इसके अलावा वर्ष 2004 में एक अन्य आदेश परिचालित किया गया, जिसमें प्रावधानों को इस हद तक संशोधित किया गया था कि अंतिम आदेश वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किये जाने थे।
    • इसमें कहा गया है कि मुख्यमंत्रियों को आधिकारिक यात्रा से पहले प्रधानमंत्री कार्यालय से अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
  • वर्ष 2010 में फिर से एक और निर्देश जारी किया गया जिसने राज्य सरकार के मंत्रियों की निजी यात्राओं के लिये राजनीतिक मंज़ूरी अनिवार्य कर दी।

दायर की गई याचिका का आधार:

  • निजता के अधिकार का उल्लंघन:
    • मंत्रियों द्वारा विदेश जाने की अनुमति राज्य सरकार से लेना उनके निजता के अधिकार और संवैधानिक पद की गरिमा का उल्लंघन है।
  • राज्यपाल के कार्यालय का अधिकार क्षेत्र:
    • प्रस्तावित सिंगापुर यात्रा के खिलाफ सलाह देना राज्यपाल के अपने कार्यालय प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।
  • अनुच्छेद 21 का उल्लंघन:
    • राज्यपाल और केंद्र सरकार द्वारा मनमाने एवं सत्ता का गैर-ज़िम्मेदारना कार्यान्वयन राष्ट्रीय हित तथा सुशासन के खिलाफ है, साथ ही अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत विदेश यात्रा के अधिकार को प्रभावित करता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

सशक्त जलवायु लक्ष्य 2030

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन, यूएनएफसीसीसी, सीओपी, पेरिस समझौता, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, अक्षय ऊर्जा, सरकारी पहल

मेन्स के लिये:

यूएनएफसीसीसी सीओपी, जलवायु परिवर्तन और इसके निहितार्थ, जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपाय, सरकारी पहल।

चर्चा में क्यों:

हाल ही में भारत ने वर्ष 2030 तक अपने जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों में वृद्धि की है।

  • वर्ष 2021 में ग्लासगो में UNFCCC COP 26 में भारत के प्रधानमंत्री ने भारत की ओर से जलवायु कार्रवाई को सशक्त करने के लिये कई नए वादे किये थे।

भारत के संशोधित लक्ष्य:

  • परिचय:
    • उत्सर्जन तीव्रता:
    • विद्युत उत्पादन:
      • भारत यह सुनिश्चित करने का भी वादा करता है कि वर्ष 2030 में स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता का कम-से-कम 50% गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित स्रोतों पर आधारित होगा।
        • यह मौजूदा 40% के लक्ष्य से अधिक है।
  • महत्त्व:
    • अद्यतन राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (NDCs) जलवायु परिवर्तन के खतरे के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया को मज़बूत करने की दिशा में भारत के योगदान को बढ़ाने का प्रयास करता है, जैसा कि पेरिस समझौते के तहत सहमति व्यक्त की गई थी।
    • NDCs प्रत्येक देश द्वारा राष्ट्रीय उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने के प्रयासों को शामिल करता है।
    • इस तरह की कार्रवाई से भारत को कम उत्सर्जन वृद्धि कीे दिशा में बढ़ने में भी मदद मिलेगी।
    • नए NDCs ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से आर्थिक विकास को अलग करने के लिये उच्चतम स्तर पर भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करेंगे।
    • संशोधित NDCs के परिणामस्वरूप अकेले भारतीय रेलवे द्वारा वर्ष 2030 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य से उत्सर्जन में सालाना 60 मिलियन टन की कमी आएगी।
  • अन्य NDCs:
    • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 GW (गीगावाट) तक बढ़ाना।
    • वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन (BT) कम करना।
    • वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करना।

Climate-Targets

जलवायु परिवर्तन और भारत के प्रयास:

  • परिवहन क्षेत्र में सुधार:
    • भारत (हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक) वाहन योजना को तेज़ी से अपना रहा है तथा विनिर्माण के साथ ई-मोबिलिटी के क्षेत्र में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।
    • पुराने और अनुपयुक्त वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने के लिये स्वैच्छिक वाहन स्क्रैपिंग नीति मौज़ूदा योजनाओं की पूरक है।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों को भारत में प्रोत्साहन:
    • भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल है जो वैश्विक ‘EV30@30 अभियान’ का समर्थन करते हैं, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक नए वाहनों की बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी को कम-से-कम 30% करना है।
    • ग्लासगो में आयोजित COP26 में जलवायु परिवर्तन शमन के लिये भारत द्वारा पाँच तत्त्वों (जिसे ‘पंचामृत’ कहा गया है) की वकालत इसी दिशा में जताई गई प्रतिबद्धता है।  
  • सरकारी योजनाओं की भूमिका:
  • निम्न-कार्बन संक्रमण में उद्योगों की भूमिका:
    • भारत में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र पहले से ही जलवायु चुनौती से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, जहाँ ग्राहकों एवं निवेशकों में बढ़ती जागरूकता के साथ-साथ बढ़ती नियामक तथा प्रटीकरण आवश्यकताओं से सहायता मिल रही है।
  • हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन:
    • हरित ऊर्जा संसाधनों से हाइड्रोजन के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना।
  • प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT):
    • PAT ऊर्जा गहन उद्योगों की ऊर्जा दक्षता सुधार में लागत प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये एक बाज़ार आधारित तंत्र है।

UNFCCC CoP26:

  • परिचय:
    • संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ 26 को 2021 में ग्लासगो, यूके में आयोजित किया गया था।
  • बैठक का विवरण:
    • नए वैश्विक और राष्ट्रीय लक्ष्य:
      • ग्लासगो शिखर सम्मेलन ने विश्व के देशों से वर्ष 2022 में मिस्र में आयोजित COP27 तक अपने वर्ष 2030 के लक्ष्य को और सशक्त बनाने पर विचार करने का आग्रह किया।
      • शिखर सम्मेलन ने ग्लोबल वार्मिंग को +1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होने देने का लक्ष्य रखा और लगभग 140 देशों ने अपने उत्सर्जन को ‘शुद्ध शून्य’ (NET ZERO) तक लाने हेतु अपनी लक्षित तिथियों की घोषणा की।
      • यह उपलब्धि महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि पेरिस समझौते में विकासशील देश अपने उत्सर्जन को कम करने के लिये सहमत नहीं हुए थे और उन्होंने केवल जीडीपी की ‘उत्सर्जन-तीव्रता’ को कम करने के प्रति सहमति जताई थी।.
      • भारत भी सर्वसम्मति से इसमें शामिल हो गया है और उसने वर्ष 2070 के अपने नेट-ज़ीरो  लक्ष्य की घोषणा की है।
    • ग्लासगो निर्णायक एजेंडा:
      • ग्लासगो निर्णायक एजेंडा एक संभावित महत्त्वपूर्ण विकास है जो CoP26 (लेकिन CoP प्रक्रिया के अलग) से उभरा, जिसे 42 देशों (भारत सहित) द्वारा अनुमोदन प्रदान किया गया है।
        • यह स्वच्छ ऊर्जा, सड़क परिवहन, इस्पात और हाइड्रोजन जैसे क्षेत्रों में स्वच्छ प्रौद्योगिकियों एवं संधारणीय समाधानों में तीव्रता लाने के लिये एक सहकारी प्रयास है।
    • चरणबद्ध रूप से कोयले की खपत में कमी:
      • कोयला, जीवाश्म ईंधनों में सबसे प्रदूषणकारी है, अतः ईंधन-स्रोतों के रूप में इसके प्रयोग को अत्यधिक कम करने की आवश्यकता है।
        • यूरोपीय देशों ने इसकी खपत को कम करने की पुरजोर वकालत की है; हालाँकि विकासशील देशों ने इसका विरोध किया है।
        • भारत ने CoP26 में एक मध्यम-मार्ग, अर्थात् कोयला आधारित बिजली उत्पादन में  "चरणबद्ध  रूप से कमी लाने" का सुझाव दिया है।
  • बेहतर परिदृश्य:
    • एक स्वतंत्र संगठन क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर (CAT) द्वारा किये गए प्रारंभिक आकलन से पता चलता है कि घोषित लक्ष्य, अगर पूरी तरह से हासिल कर लिये जाते हैं, तो ग्लोबल वार्मिंग को लगभग +1.8 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सकता है।
      • हालाँकि यह चेतावनी भी जारी की गई है कि वर्ष 2030 के लक्ष्य अपर्याप्त रूप से महत्त्वाकांक्षी हैं। यदि कड़े कदम नहीं उठाए जातहैं तो वैश्विक स्तर पर तापमान में 2.1 डिग्री सेल्सियस से 2.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखने को मिल सकती है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न. जलवायु अनुकूल कृषि के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  • भारत में 'जलवायु-स्मार्ट ग्राम' दृष्टिकोण जलवायु परिवर्तन, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (CCAFS) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है।
  • CCAFS परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (CGIAR) के अधीन संचालित की जाती है जिसका मुख्यालय फ्राँस में है।
  • भारत मेंं स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT), CGIAR के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • भारत में जलवायु-स्मार्ट ग्राम परियोजना जलवायु परिवर्तन, कृषि और खाद्य सुरक्षा (CCAFS) पर CGIAR अनुसंधान कार्यक्रम है। CCAFS ने वर्ष 2012 में अफ्रीका (बुर्किना फासो, घाना, माली, नाइजर, सेनेगल, केन्या, इथियोपिया, तंजानिया और युगांडा) तथा दक्षिण एशिया (बांग्लादेश, भारत, नेपाल) में जलवायु-स्मार्ट ग्राम का संचालन शुरू किया। अत: कथन 1 सही है।
  • CCAFS की परियोजना अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान पर सलाहकार समूह (CGIAR) के अधीन संचालित की जाती है। CGIAR का मुख्यालय मोंटपेलियर, फ्राँस में है। CGIAR वैश्विक साझेदारी है जो खाद्य सुरक्षा के बारे में अनुसंधान में लगे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को एकजुट करती है। अत: कथन 2 सही है।
  • अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्र हेतु अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) CGIAR का अनुसंधान केंद्र है। ICRISAT गैर-लाभकारी, गैर-राजनीतिक सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संगठन है जो एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में विकास के लिये कृषि अनुसंधान करता है, जिसमें दुनिया भर में भागीदारों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है। अत: कथन 3 सही है।

अतः विकल्प (d) सही है।


प्रश्न: नवंबर 2021 में ग्लासगो में COP26 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के वर्ल्ड लीडर्स समिट में शुरू की गई ग्रीन ग्रिड पहल के उद्देश्य की व्याख्या कीजिये। यह विचार पहली बार अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में कब लाया गया था? (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

केरल में बाढ़ की स्थिति

प्रिलिम्स के लिये:

बाढ़, भूस्खलन, चालकुडी नदी, माधव गाडगिल समिति, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए)

मेन्स के लिये:

भारत में शहरी बाढ़, आपदा प्रबंधन

चर्चा में क्यों?

केरल एक बार फिर बाढ़ जैसी स्थिति का सामना कर रहा है, जैसा कि वर्ष 2018 में तेज़ मानसूनी हवाओं के कारण उच्च तीव्रता की वर्षा की स्थिति देखी गई थी।

  • इसके अलावा बंगाल की खाड़ी के ऊपर 2-3 दिनों के भीतर एक कम दबाव का क्षेत्र बनने की उम्मीद है, जिससे वर्षा के बढ़ने की संभावना है।

 वर्ष 2018 में केरल में बाढ:

  • केरल में वर्ष 1924 के बाद से सबसे भीषण बाढ़ अगस्त 2018 में मूसलाधार बारिश के बाद आई।
  • बाँधों के किनारे तक पानी भर जाने एवं अन्य स्थलों पर भी बहुत अधिक जल जमा हो जाने के कारण बाँध के फाटकों को खोलना पड़ा।
    • 50 बड़े बाँधों में से कम-से-कम 35 को पहले से ही बाढ़ वाले क्षेत्रों में पानी छोड़ने के लिये खोला जा चुका था।
  • समय के साथ गाद के जमाव ने बाँधों और आसपास की नदियों की जल धारण क्षमता को काफी कम कर दिया था, जिससे तटबंधों और नालों में बाढ़ का पानी भर गया।
    • गाद जमाव जिसने बाँध के अंतर्निर्मित क्षेत्र को कम कर दिया (धारण क्षमता को कम कर दिया), रेत खनन और पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई तथा पश्चिमी घाट में जंगल की सफाई ने भी बाढ़ में एक प्रमुख कारक की भूमिका निभाई।

बाढ़:

  • यह सामान्य रूप से शुष्क भूमि पर जल का अतिप्रवाह है। भारी बारिश, समुद्री की लहरों के साथ भारी मात्रा में जल की तट पर मौजूदगी, बर्फ का तेज़ी से पिघलना और बाँधों का टूटना आदि के कारण बाढ़ आ सकती है।
  • बाढ़ यानी केवल कुछ इंच जल प्रवाह या घरों की छतों तक जल का पहुँचाना हानिकारक प्रभाव डाल सकती है।
  • बाढ़ अल्प-समय के भीतर या लंबी अवधि में भी आ सकती है और यह स्थिति दिनों, हफ्तों या उससे अधिक समय तक रह सकती है। मौसम संबंधी सभी प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ सबसे आम और व्यापक प्रभाव डालती है।
  • फ्लैश फ्लड सबसे खतरनाक प्रकार की बाढ़ होती है, क्योंकि यह बाढ़ को विनाशकारी रूप प्रदान कर सकती है।

शहरी क्षेत्रों में निरंतर रूप से बाढ़ आने के प्रमुख कारण:  

  • अनियोजित विकास: अनियोजित विकास, तटवर्ती क्षेत्रों में अतिक्रमण, बाढ़ नियंत्रण संरचनाओं की विफलता, अनियोजित जलाशय संचालन, खराब जल निकासी ढाँचा, वनों की कटाई, भूमि उपयोग में परिवर्तन और नदी के तल में अवसादन बाढ़ की घटनाओं को जन्म देते हैं।
    • भारी वर्षा के समय नदी तटबंधों को तोड़ देती है और किनारे एवं रेत की पट्टियों पर बसे हुए समुदायों को हानि पहुँचाती है।
  • अनियोजित शहरीकरण: शहरों और कस्बों में बाढ़ एक आम घटना बन गई है।
    • इसका कारण जलमार्गों और आर्द्रभूमि का अंधाधुंध अतिक्रमण, नालों की अपर्याप्त क्षमता तथा जल निकासी के बुनियादी ढाँचे के रखरखाव की कमी है।
    • खराब अपशिष्ट प्रबंधन के कारण नालियों, नहरों और झीलों की जल-प्रवाह क्षमता में कमी आती है।
  • आपदा पूर्व योजना की उपेक्षा: बाढ़ प्रबंधन के इतिहास से पता चलता है कि आपदा प्रबंधन का ध्यान मुख्य रूप से बाढ़ के बाद की क्षतिपूर्ति और राहत पर रहा है।
    • कई जलाशयों और हाइड्रो-इलेक्ट्रिक संयंत्रों में बाढ़ के स्तर को मापने के लिये पर्याप्त मापन केंद्र (Gauging Stations) नहीं हैं, जो बाढ़ के पूर्वानुमान के प्रमुख घटक है।
  • गाडगिल समिति की सिफारिशों पर ध्यान न देना: वर्ष 2011 में माधव गाडगिल समिति ने लगभग 1,30,000 वर्ग किमी क्षेत्र को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र (गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में विस्तारित) के रूप में घोषित करने की सिफारिश की।
    • हालाँकि छह राज्यों में से कोई भी केरल की सिफारिशों से सहमत नहीं था, इन राज्यों ने विशेष रूप से खनन पर प्रस्तावित प्रतिबंध, निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध और जलविद्युत परियोजनाओं पर प्रतिबंध को लेकर आपत्ति जताई थी।
    • इस लापरवाही का नतीजा अब बार-बार आने वाली बाढ़ और भूस्खलन के रूप में साफ देखा जा सकता है।

आगे की राह

  • बाँध स्पिलवे के समय पर उद्घाटन और अतिरिक्त वर्षा को अवशोषित करने के लिये जलाशयों की धारण क्षमता सुनिश्चित करने हेतु पूर्वानुमान एजेंसियों तथा जलाशय प्रबंधन प्राधिकरणों के बीच और अधिक समन्वय स्थापित करने की आवश्यक है।
    • आपदा हेतु तैयारियों को सुनिश्चित करने के लिये एक व्यापक बाढ़ प्रबंधन योजना की भी आवश्यकता है।
  • शहरी विकास के सभी आयाम, किफायती आवास से लेकर भविष्य के जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने तक केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।
    • नियोजित शहरीकरण से आपदाओं का सामना किया जा सकता है, इसका आदर्श उदाहरण जापान है जो भूकंप और यहाँ तक कि सुनामी का सामना दूसरे देशों की तुलना में अधिक करता है।
  • वाटरशेड प्रबंधन और आपातकालीन जल निकासी योजना को नीति एवं कानून में स्पष्ट किया जाना चाहिये।
    • जल निकासी योजना को आकार देने के लिये चुनावी वार्डों जैसे शासन की सीमाओं के बजाय वाटरशेड जैसी प्राकृतिक सीमाओं पर विचार करने की आवश्यकता है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू):

प्रश्न. भारत के प्रमुख शहर बाढ़ की चपेट में आ रहे हैं। चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2016)

प्रश्न. उच्च तीव्रता वाली वर्षा के कारण शहरी बाढ़ की आवृत्ति वर्षों से बढ़ रही है। शहरी बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए ऐसी घटनाओं के दौरान जोखिम को कम करने की तैयारी के लिये तंत्र पर प्रकाश डालिये। (मुख्य परीक्षा, 2016)   

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-मॉरीशस संयुक्त व्यापार समिति

प्रिलिम्स के लिये:

मॉरीशस का भूगोल, व्यापक आर्थिक सहयोग और साझेदारी समझौता, भारत-मॉरीशस संबंध।

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय भागीदार के रूप में मॉरीशस का महत्त्व, सीईसीपीए का महत्त्व, भारत-मॉरीशस संबंध।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारत ने "भारत-मॉरीशस व्यापक आर्थिक सहयोग और भागीदारी समझौते (CECPA)" के तहत "भारत-मॉरीशस उच्च-शक्ति वाली संयुक्त व्यापार समिति" के पहले सत्र की मेज़बानी की।

Mauritius

सत्र के परिणाम:

  • व्यापार:
    • भारत और मॉरीशस के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021-22 में बढ़कर 786.72 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2019-20 में 690.02 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
      • दोनों पक्ष द्विपक्षीय व्यापार को और बढ़ाने के लिये द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने तथा विशेष रूप से CECPA के तहत द्विपक्षीय संबंधों की वास्तविक क्षमता के महत्त्व को स्वीकार करने पर सहमत हुए।
  • भारत-मॉरीशस व्यापक आर्थिक सहयोग और भागीदारी समझौता (CECPA):
    • CECPA में सामान्य आर्थिक सहयोग (GEC) अध्याय और स्वचालित ट्रिगर सुरक्षा तंत्र (ATSM) को शामिल किया गया है।
      • GEC अध्याय निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने एवं निवेश, वित्तीय सेवाओं, कपड़ा, लघु और मध्यम उद्यमों, हस्तशिल्प, रत्न तथा आभूषण आदि के क्षेत्र में सहयोग के मौजूदा दायरे को बढ़ाने में सक्षम होगा।
      • ATSM आयात में अचानक या नाटकीय वृद्धि से देश की रक्षा करता है।
        • इस तंत्र के तहत यदि किसी उत्पाद का आयात प्रतिकूल रूप से बढ़ रहा है, तो एक निश्चित सीमा तक पहुँचने के बाद भारत स्वचालित रूप से मॉरीशस से आयात पर रक्षोपाय शुल्क लगा सकता है।
        • यही प्रावधान मॉरीशस के साथ-साथ भारतीय आयातों पर भी लागू होता है।
  • कुशल पेशेवर:
    • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय तथा मॉरीशस में इसके समकक्ष के बीच कौशल विकसित करने पर विभिन्न पेशेवर निकायों की व्यवस्था के प्रमाणीकरण, कौशल और लाइसेंसिंग आवश्यकताओं में समानता स्थापित करने के संबंध में सेवा क्षेत्र में दोनों पक्षों के मध्य वार्ता हुई।
    • मॉरीशस पक्ष ने सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (ICT), वित्तीय सेवाओं, फिल्म निर्माण, इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में मॉरीशस में पेशेवरों की कमी से अवगत कराते हुए भारत से मॉरीशस में उच्च कुशल पेशेवरों की गतिविधियों का स्वागत किया।

भारत-मॉरीशस व्यापक आर्थिक सहयोग और भागीदारी समझौता:

  • परिचय:
    • यह एक तरह का मुक्त व्यापार समझौता है जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापार को प्रोत्साहित करने और बेहतर बनाने के लिये एक संस्थागत तंत्र प्रदान करना है।
    • यह एक सीमित समझौता है जो केवल चुनिंदा क्षेत्रों को कवर करेगा।
      • इसमें वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार, व्यापार में तकनीकी बाधाओं, विवाद निपटान, नागरिकों के आवागमन, दूरसंचार, वित्तीय सेवाओं, सीमा शुल्क जैसे क्षेत्र शामिल होंगे।
  • भारत को लाभ:
    • मॉरीशस के बाज़ार में भारत के कृषि, कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे 300 से अधिक घरेलू सामानों को रियायती सीमा शुल्क पर पहुँच मिलेगी।
    • भारतीय सेवा प्रदाताओं को 11 व्यापक सेवा क्षेत्रों जैसे- पेशेवर सेवाओं, कंप्यूटर से संबंधित सेवाओं, दूरसंचार, निर्माण, वितरण, शिक्षा, पर्यावरण, वित्तीय, मनोरंजन, योग आदि के अंतर्गत लगभग 115 उप-क्षेत्रों तक पहुँच प्राप्त होगी।
  • मॉरीशस को लाभ:
    • मॉरीशस को विशेष प्रकार की चीनी, बिस्कुट, ताज़े फल, जूस, मिनरल वाटर, बीयर, मादक पेय, साबुन, बैग, चिकित्सा और शल्य-चिकित्सा उपकरण तथा परिधान सहित अपने 615 उत्पादों के लिये भारतीय बाज़ार में पहुँच का लाभ मिलेगा।
    • भारत ने 11 व्यापक सेवा क्षेत्रों के अंतर्गत लगभग 95 उप-क्षेत्रों की पेशकश की है, जिनमें पेशेवर सेवाएँ, अन्य व्यावसायिक सेवाएँ, दूरसंचार, उच्च शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य, मनोरंजन सेवाएँ आदि शामिल हैं।

मॉरीशस के साथ भारत के संबंध:

  • आर्थिक:
    • सामाजिक आवास इकाइयाँ:
      • मई, 2016 में भारत ने मॉरीशस को विशेष आर्थिक पैकेज (SEP) के रूप में 353 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान दिया था, जिसमें मॉरीशस द्वारा पहचानी गई पाँच प्राथमिकता वाली परियोजनाओं को निष्पादित किया गया, ये हैं:
        • मेट्रो एक्सप्रेस परियोजना
        • सर्वोच्च न्यायालय भवन
        • नया ENT अस्पताल
        • प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को डिजिटल टैबलेट की आपूर्ति
        • सामाजिक आवास परियोजना
      • सामाजिक आवास परियोजना के उद्घाटन के साथ SEP के तहत सभी प्रमुख परियोजनाओं को लागू किया गया है।
    • अत्याधुनिक सिविल सेवा महाविद्यालय का निर्माण:
      • मॉरीशस के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान वर्ष 2017 में हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन के तहत इसे 4.74 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान समर्थन के माध्यम से वित्तपोषित किया जा रहा है।
    • 8 मेगावाट सोलर पीवी फार्म:
      • इसमें मॉरीशस के लगभग 10,000 घरों को विद्युतीकृत करने के लिये सालाना लगभग 14 GWh हरित ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु 25,000 PV सेल की स्थापना शामिल है।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश:
  • हाल के घटनाक्रम:
    • भारत ने उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर एमके III के निर्यात के लिये मॉरीशस के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये हैं।
      • हेलीकॉप्टर का उपयोग मॉरीशस पुलिस बल द्वारा किया जाएगा।
    • भारत और मॉरीशस ने 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर के रक्षा ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये।
    • दोनों पक्षों ने चागोस द्वीपसमूह विवाद पर भी चर्चा की, जो संयुक्त राष्ट्र (UN) के समक्ष संप्रभुता और सतत् विकास का मुद्दा था।
      • वर्ष 2019 में भारत ने इस मुद्दे पर मॉरीशस की स्थिति के समर्थन में संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान किया। भारत उन 116 देशों में से एक था, जिन्होंने ब्रिटेन से द्वीपीय देशों से "औपनिवेशिक प्रशासन" को समाप्त करने की मांग करते हुए मतदान किया था।
  • भारत द्वारा मॉरीशस को 1,00,000 कोविशील्ड के टीके प्रदान किये गए हैं।

आगे की राह

  • भारत का रुझान मॉरीशस की तरफ तेज़ी से बढ़ रहा है जैसा कि मिशन सागर (Mission Sagar) के अंतर्गत भारत की पहल को हिंद महासागर क्षेत्र के देशों को कोविड-19 से संबंधित सहायता प्रदान करने में देखा जा सकता है।
    • भारत को इस जुड़ाव को आगे भी बनाए रखने के लिये मॉरीशस, कोमोरोस, मेडागास्कर, सेशेल्स, मालदीव और श्रीलंका जैसे समान विचारधारा वाले साझेदारों के साथ सक्रिय रहने की आवश्यकता है।
  • हिंद महासागर (Indian Ocean) के उभरते भू-राजनीतिक परिदृश्य ने इस महासागर और सीमावर्ती देशों के लिये नई चुनौतियों के साथ-साथ अवसर को जन्म दिया है। मॉरीशस, भारत के अन्य छोटे द्वीपीय पड़ोसियों के साथ अपनी समुद्री पहचान एवं भू-स्थानिक मूल्य के विषय में गहराई से जानता है। ये पड़ोसी भली-भाँति समझते हैं कि एक बड़े पड़ोसी देश के रूप में भारत उनके लिये क्या मायने रखता है।
  • जैसा कि भारत दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर में अपने सुरक्षा सहयोग के बारे में एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाता है, मॉरीशस इसके लिये प्राकृतिक नोड है।
    • इसलिये भारत को अपनी नेबरहुड फर्स्ट की नीति में सुधार करना महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत : पी.आई.बी.


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