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भूगोल

केरल में बाढ़ की स्थिति

  • 05 Aug 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

बाढ़, भूस्खलन, चालकुडी नदी, माधव गाडगिल समिति, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए)

मेन्स के लिये:

भारत में शहरी बाढ़, आपदा प्रबंधन

चर्चा में क्यों?

केरल एक बार फिर बाढ़ जैसी स्थिति का सामना कर रहा है, जैसा कि वर्ष 2018 में तेज़ मानसूनी हवाओं के कारण उच्च तीव्रता की वर्षा की स्थिति देखी गई थी।

  • इसके अलावा बंगाल की खाड़ी के ऊपर 2-3 दिनों के भीतर एक कम दबाव का क्षेत्र बनने की उम्मीद है, जिससे वर्षा के बढ़ने की संभावना है।

 वर्ष 2018 में केरल में बाढ:

  • केरल में वर्ष 1924 के बाद से सबसे भीषण बाढ़ अगस्त 2018 में मूसलाधार बारिश के बाद आई।
  • बाँधों के किनारे तक पानी भर जाने एवं अन्य स्थलों पर भी बहुत अधिक जल जमा हो जाने के कारण बाँध के फाटकों को खोलना पड़ा।
    • 50 बड़े बाँधों में से कम-से-कम 35 को पहले से ही बाढ़ वाले क्षेत्रों में पानी छोड़ने के लिये खोला जा चुका था।
  • समय के साथ गाद के जमाव ने बाँधों और आसपास की नदियों की जल धारण क्षमता को काफी कम कर दिया था, जिससे तटबंधों और नालों में बाढ़ का पानी भर गया।
    • गाद जमाव जिसने बाँध के अंतर्निर्मित क्षेत्र को कम कर दिया (धारण क्षमता को कम कर दिया), रेत खनन और पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई तथा पश्चिमी घाट में जंगल की सफाई ने भी बाढ़ में एक प्रमुख कारक की भूमिका निभाई।

बाढ़:

  • यह सामान्य रूप से शुष्क भूमि पर जल का अतिप्रवाह है। भारी बारिश, समुद्री की लहरों के साथ भारी मात्रा में जल की तट पर मौजूदगी, बर्फ का तेज़ी से पिघलना और बाँधों का टूटना आदि के कारण बाढ़ आ सकती है।
  • बाढ़ यानी केवल कुछ इंच जल प्रवाह या घरों की छतों तक जल का पहुँचाना हानिकारक प्रभाव डाल सकती है।
  • बाढ़ अल्प-समय के भीतर या लंबी अवधि में भी आ सकती है और यह स्थिति दिनों, हफ्तों या उससे अधिक समय तक रह सकती है। मौसम संबंधी सभी प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ सबसे आम और व्यापक प्रभाव डालती है।
  • फ्लैश फ्लड सबसे खतरनाक प्रकार की बाढ़ होती है, क्योंकि यह बाढ़ को विनाशकारी रूप प्रदान कर सकती है।

शहरी क्षेत्रों में निरंतर रूप से बाढ़ आने के प्रमुख कारण:  

  • अनियोजित विकास: अनियोजित विकास, तटवर्ती क्षेत्रों में अतिक्रमण, बाढ़ नियंत्रण संरचनाओं की विफलता, अनियोजित जलाशय संचालन, खराब जल निकासी ढाँचा, वनों की कटाई, भूमि उपयोग में परिवर्तन और नदी के तल में अवसादन बाढ़ की घटनाओं को जन्म देते हैं।
    • भारी वर्षा के समय नदी तटबंधों को तोड़ देती है और किनारे एवं रेत की पट्टियों पर बसे हुए समुदायों को हानि पहुँचाती है।
  • अनियोजित शहरीकरण: शहरों और कस्बों में बाढ़ एक आम घटना बन गई है।
    • इसका कारण जलमार्गों और आर्द्रभूमि का अंधाधुंध अतिक्रमण, नालों की अपर्याप्त क्षमता तथा जल निकासी के बुनियादी ढाँचे के रखरखाव की कमी है।
    • खराब अपशिष्ट प्रबंधन के कारण नालियों, नहरों और झीलों की जल-प्रवाह क्षमता में कमी आती है।
  • आपदा पूर्व योजना की उपेक्षा: बाढ़ प्रबंधन के इतिहास से पता चलता है कि आपदा प्रबंधन का ध्यान मुख्य रूप से बाढ़ के बाद की क्षतिपूर्ति और राहत पर रहा है।
    • कई जलाशयों और हाइड्रो-इलेक्ट्रिक संयंत्रों में बाढ़ के स्तर को मापने के लिये पर्याप्त मापन केंद्र (Gauging Stations) नहीं हैं, जो बाढ़ के पूर्वानुमान के प्रमुख घटक है।
  • गाडगिल समिति की सिफारिशों पर ध्यान न देना: वर्ष 2011 में माधव गाडगिल समिति ने लगभग 1,30,000 वर्ग किमी क्षेत्र को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र (गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में विस्तारित) के रूप में घोषित करने की सिफारिश की।
    • हालाँकि छह राज्यों में से कोई भी केरल की सिफारिशों से सहमत नहीं था, इन राज्यों ने विशेष रूप से खनन पर प्रस्तावित प्रतिबंध, निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध और जलविद्युत परियोजनाओं पर प्रतिबंध को लेकर आपत्ति जताई थी।
    • इस लापरवाही का नतीजा अब बार-बार आने वाली बाढ़ और भूस्खलन के रूप में साफ देखा जा सकता है।

आगे की राह

  • बाँध स्पिलवे के समय पर उद्घाटन और अतिरिक्त वर्षा को अवशोषित करने के लिये जलाशयों की धारण क्षमता सुनिश्चित करने हेतु पूर्वानुमान एजेंसियों तथा जलाशय प्रबंधन प्राधिकरणों के बीच और अधिक समन्वय स्थापित करने की आवश्यक है।
    • आपदा हेतु तैयारियों को सुनिश्चित करने के लिये एक व्यापक बाढ़ प्रबंधन योजना की भी आवश्यकता है।
  • शहरी विकास के सभी आयाम, किफायती आवास से लेकर भविष्य के जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने तक केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।
    • नियोजित शहरीकरण से आपदाओं का सामना किया जा सकता है, इसका आदर्श उदाहरण जापान है जो भूकंप और यहाँ तक कि सुनामी का सामना दूसरे देशों की तुलना में अधिक करता है।
  • वाटरशेड प्रबंधन और आपातकालीन जल निकासी योजना को नीति एवं कानून में स्पष्ट किया जाना चाहिये।
    • जल निकासी योजना को आकार देने के लिये चुनावी वार्डों जैसे शासन की सीमाओं के बजाय वाटरशेड जैसी प्राकृतिक सीमाओं पर विचार करने की आवश्यकता है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू):

प्रश्न. भारत के प्रमुख शहर बाढ़ की चपेट में आ रहे हैं। चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2016)

प्रश्न. उच्च तीव्रता वाली वर्षा के कारण शहरी बाढ़ की आवृत्ति वर्षों से बढ़ रही है। शहरी बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए ऐसी घटनाओं के दौरान जोखिम को कम करने की तैयारी के लिये तंत्र पर प्रकाश डालिये। (मुख्य परीक्षा, 2016)   

स्रोत: द हिंदू

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