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मानसून परिवर्तन और कृषि

  • 02 Jul 2021
  • 11 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 29/06/2021 को द टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित लेख “Make a drop count: Southwest monsoon patterns are changing”पर आधारित है। यह भारतीय कृषि पर बदलते दक्षिण-पश्चिम मानसून पैटर्न के प्रभाव के विश्लेषण पर आधारित है।

भारत की जलवायु की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता दक्षिण-पश्चिम मानसून है क्योंकि यह भारतीय कृषि के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसलिये दक्षिण-पश्चिम मानसून के दीर्घकालिक रुझान आर्थिक सुरक्षा के साथ ओवरलैप होते हैं।

30 वर्ष की अवधि (1989-2018) के दौरान मानसून परिवर्तनशीलता पर IMD द्वारा हाल ही में किया गया एक अध्ययन सामने आया है जिसके अनुसार उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल ऐसे 5 राज्यों में से तीन राज्य हैं जिन्होंने दक्षिण-पश्चिम मानसून में उल्लेखनीय कमी देखी है।  इन राज्यों का भारत के कृषि उत्पादन पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

भारत की लगभग 55% कृषि योग्य भूमि वर्षा पर निर्भर है। वर्तमान मानसून के मौसम के दौरान वर्षा की मात्रा कृषि क्षेत्र और इससे जुड़े उद्योगों से संबंधित आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है।

मानसून में बदलाव भारत की अर्थव्यवस्था, खाद्य प्रणालियों और जनहित से संबंधित गंभीर परिणाम दे सकता है। इसलिये परिस्थितियों के हाथ से निकल जाने से पहले उपचारात्मक उपाय किये जाने की आवश्यकता है।

मानसून से तात्पर्य

  • ध्यातव्य है कि यह अरबी शब्द मौसिम से निकला हुआ शब्द है, जिसका अर्थ होता है हवाओं का मिज़ाज। 
  • शीत ऋतु में हवाएँ उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर बहती हैं जिसे शीत ऋतु का मानसून कहा जाता है। उधर ग्रीष्म ऋतु में हवाएँ इसके विपरीत दिशा में बहती हैं, जिसे दक्षिण-पश्चिम मानसून या गर्मी का मानसून कहा जाता है।  
  • चूँकि पूर्व के समय में इन हवाओं से व्यापारियों को नौकायन में सहायता मिलती थी, इसीलिये इन्हें व्यापारिक हवाएँ या ‘ट्रेड विंड’ भी कहा जाता है।  

भारत में मानसून:

  • भारत की जलवायु को 'मानसून' प्रकार के रूप में वर्णित किया गया है। एशिया में इस प्रकार की जलवायु मुख्य रूप से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में पाई जाती है।
  • भारत के कुल 4 मौसमी भागों में से मानसून 2 भागों में व्याप्त है, अर्थात्:
    • दक्षिण-पश्चिम मानसून का मौसम - दक्षिण-पश्चिम मानसून से प्राप्त वर्षा मौसमी है, जो जून और सितंबर के मध्य होती है।
    • मानसून का निवर्तन- अक्तूबर और नवंबर माह को मानसून की वापसी या मानसून के निवर्तन के लिये जाना जाता है।

मानसून और कृषि का संबंध 

  • दक्षिण-पश्चिम मानसून भारत की कृषि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और यह विश्व की अधिकांश जनसंख्या की आजीविका को प्रभावित करता है।
  • भारत में वार्षिक वर्षा की लगभग 80 प्रतिशत गर्मी की अवधि के दौरान होती है तथा प्रमुख कृषि मौसम के दौरान फसलों को सिंचाई आदि माध्यमों से जल की आपूर्ति की जाती है।
  • दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान गन्ना, जूट और धान जैसी जल की अधिक आवश्यकता वाली मानसून के अनुकूल फसलों की खेती आसानी से की जा सकती है।
  • भारत में कृषि क्षेत्र आर्थिक और राजनीतिक दोनों रूप से महत्त्वपूर्ण है।  यह क्षेत्र देश की 2.7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लगभग 14% और कुल रोज़गार का 42% है।
  • इसके अलावा भारत के विनिर्माण उत्पादन का लगभग एक-तिहाई; जो कि देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 18% है, खाद्य प्रसंस्करण से जुड़ा हुआ है।
  • इसलिये बहुत अधिक वर्षा या बहुत कम या अस्थिर मानसून पैटर्न, फसलों को नुकसान पहुँचा सकता है।

बदलते मानसून का प्रभाव 

  • जल स्तर का ह्रास: भारत में इसके कुल फसल क्षेत्र का 50% से थोड़ा अधिक भाग वर्षा के अधीन है और सिंचित क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा बोरवेल के माध्यम से सिंचाई पर निर्भर करता है, जिसे भूजल के साथ रिचार्ज करने की आवश्यकता होती है।
    • खराब मानसून की स्थिति में यह भू जल स्रोत पर्याप्त रूप से रिचार्ज नहीं होते हैं जिससे जलसंकट उत्पन्न हो सकता है।
    • इसके अलावा NITI Aayog द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में वर्ष 2020 तक लगभग 21 भारतीय शहरों (जिनमें नई दिल्ली, हैदराबाद और चेन्नई) में भूजल के शून्य होने की संभावना जताई गई थी।
  • वित्तीय बोझ: कई फसलों के खराब होने पर सरकार को सक्रिय रूप से किसानों का समर्थन करने की आवश्यकता हो सकती है।  सबसे अधिक संभावना इस बात की है कि यह सरकार को किसानों की आय का समर्थन करने हेतु मौजूदा सीज़न की सभी फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने हेतु प्रेरित कर सकता है।
    • इससे कृषि निवेश में कमी आ सकती है।
  • बिजली उत्पादन को प्रभावित करना: मानसून की वर्षा से प्राप्त जल का उपयोग एक मूल्यवान ऊर्जा संसाधन जलविद्युत के रूप में किया जा सकता है।  जलविद्युत वर्तमान में भारत की कुल विद्युत आपूर्ति का 25% हिस्सा प्रदान करती है।
    • जलाशयों को दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश के दौरान भर दिया जाता है और फिर बाँधों के माध्यम से इस जल को धीरे-धीरे छोड़ा जाता है, जिससे साल भर विद्युत उत्पन्न होती रहती है।
    • जब मानसूनी वर्षा कम होती है तो जलाशयों में पर्याप्त जल का भंडारण नहीं हो पाता है, जिससे जल द्वारा उत्पादित पनबिजली की मात्रा सीमित हो जाती है।
  • मुद्रास्फीति को प्रभावित करना: सामान्य मानसून की वर्षा खाद्य उत्पादों की उपलब्धता के कारण खाद्य मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखती है। हालाँकि सूखे की स्थिति में खाद्य उत्पादों से संबंधित कीमतें काफी बढ़ जाती हैं।
    • इसके अलावा यदि खराब मानसून के परिणामस्वरूप कम फसल उत्पादन होता है तो देश को खाद्यान्न आयात करने की आवश्यकता भी हो सकती है।
    • यह एक दर्जन से अधिक क्षेत्रों को भी प्रभावित करता है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानसून पर निर्भर करते हैं।

 आगे की राह

  • जल की कमी को दूर करना: जल की उपलब्धता एक राष्ट्रीय चुनौती है। हमारे पास दुनिया की 18% आबादी है और केवल 4% मीठे पानी के संसाधन हैं।
    • इस प्रकार भारत सरकार को कृषि क्षेत्र के लिये बेहतर जल भंडारण प्रणालियों में भारी निवेश को उच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
    • "प्रति बूंद अधिक फसल" दृष्टिकोण वर्षा जल संचयन, जल पुनर्भरण, जल निकायों के पुनरुद्धार और संरक्षण प्रौद्योगिकियों को उच्च प्राथमिकता देना सार्थक होगा।
  • अकुशल जल उपयोग को संबोधित करना: भारत में जल के उपयोग के पैटर्न बेहद अक्षम हैं। यहाँ भारतीय किसान किसी भी प्रमुख खाद्य फसल की एक इकाई का उत्पादन करने के लिये दो से चार गुना अधिक पानी का उपयोग करते हैं।
    • इस प्रकार भारतीय कृषि को नई और कम जल-गहन प्रौद्योगिकियों को तेज़ी से अपनाने की आवश्यकता है।
    • इसके लिये भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं जैसे- सूक्ष्म सिंचाई उपायों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये प्रयासों को दोगुना करने की आवश्यकता है। ये योजनाएँ पानी का अधिक कुशलता से उपयोग करने हेतु प्रोत्साहित करती हैं।

निष्कर्ष

वैश्विक जलवायु परिवर्तन कोई नई घटना नहीं है।  जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से कई खतरे पैदा हुए हैं। इसके महत्त्वपूर्ण परिणामों में से एक दक्षिण-पश्चिम मानसून में परिवर्तन और कृषि पर इसका प्रभाव है।

जैसा कि भारत ने वर्ष 2050 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को आधा करने का लक्ष्य रखा है। इसे ध्यान में रखते हुए कृषि, वन, पशुपालन, जलीय जंतु और अन्य जीवों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करने के लिये अनुसंधान को मज़बूत करने हेतु समन्वित प्रयासों की तत्काल आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: मानसून में बदलाव भारत की अर्थव्यवस्था, खाद्य प्रणालियों और जनहित से संबंधित गंभीर परिणाम उत्पन्न कर सकता है। चर्चा कीजिये

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